मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ | मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण
मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ | मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण
मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ
मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति की उस योग्यता का नाम है जिसके द्वारा वह अपनी कठिनाइयों को दूर करता है और हर परिस्थिति में अपने को समायोजित (adjust) कर लेता है। मानसिक स्वास्थ्य की कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
(1) हेडफील्ड के अनुसार- “सम्पूर्ण व्यक्तित्व की पूर्ण एवं सन्तुलित क्रियाशीलता को मानसिक स्वास्थ्य कहते हैं।”
(2) प्रोफेसर भाटिया के अनुसार- “मानसिक स्वास्थ्य यह बताता है कि कोई व्यक्ति जीवन की माँगों और अवसरों के प्रति कितनी अच्छी तरह समायोजित है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से मानसिक स्वास्थ्य की कुछ प्रमुख विशेषतायें स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। हेडफील्ड महोदय ने इन्हें मानसिक स्वास्थ्य की नितान्त आवश्यकतायें कहा है। ये निम्नलिखित हैं-
(1) पूर्ण अभिव्यक्ति- स्वस्थ मानसिक विकास के लिए व्यक्ति को मूलप्रवृत्तियों, इच्छाओं व शक्तियों को पूर्ण रूप से प्रकट होने के उचित अवसर मिलना आवश्यक है। इनका दमन होने पर वृत्तियाँ, दमित व कुण्ठित होकर व्यक्तित्व में मानसिक विकारों एवं कुसमंजन का कारण बनेंगी और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालेंगी।
(2) सन्तुलन- मानसिक स्वास्थ्य के लिए मूल-प्रवृत्तियों, आकांक्षाओं एवं अन्य सभी क्षमताओं का परस्पर सन्तुलित विकास आवश्यक है जिससे मानसिक द्वन्द्व, प्रतिरोध व भावनाग्रंथि आदि सामंजस्य सम्बन्धी दोष उत्पन्न न होने पायें अन्यथा व्यक्तित्व का विकास असन्तुलित, एकांगी और विकृत होगा। अतः इन प्रवृत्तियों में सन्तुलन का समायोजन मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से जरूरी है।
(3) सामान्य लक्ष्य- विभिन्न क्षमताओं, वृत्तियों और आकांक्षाओं का सन्तुलन और पूर्ण अभिव्यक्ति तभी सम्भव है जबकि ये एक सामान्य लक्ष्य की ओर उन्मुख हों। यदि लक्ष्य या उद्देश्य अलग-अलग होंगे तब फिर सामंजस्यपूर्ण सन्तुलन नहीं हो सकेगा। अतः मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से इन लक्षणों का उचित होना जरूरी है तभी व्यक्ति का सर्वाधिक सन्तोष, और प्रसन्नता की अनुभूति हो सकेगी।
उपर्युक्त तत्त्वों से स्पष्ट है कि मानसिक स्वास्थ्य का सम्बन्ध व्यक्ति की मूलप्रवृत्तियों, संवेगों और इच्छाओं की पूर्ण अभिव्यक्ति, सन्तुलित क्रियाशीलता एवं सामान्य व्यापक लक्ष्य से है। हर व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं है। कोई व्यक्ति यदि किसी एक क्षेत्र में सफल हो तो मानसिक संघर्ष से पीड़ित हो सकता है। केवल एक ही क्षेत्र में सफल हो जाना मानसिक स्वास्थ्य का लक्षण नहीं है। मानसिक रूप से स्वस्थ बही व्यक्ति माना जायेगा जो बदलती हुई परिस्थितियों में अपनी सभी क्षमताओं का, चाहे वे जन्मजात हों अथवा अर्जित, सामान्य लक्ष्य एवं उद्देश्य की ओर, पूर्ण एवं सन्तुलित विकास करने में सक्षम होता है। सम्पूर्ण व्यक्तित्व के स्वस्थ होने से ही व्यक्ति मानसिक दृष्टि से स्वस्थ कहा जायगा।
मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण
मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति के लक्षणों का विचार शान्तिपूर्ण हैं केवल जैविक कुशलता रखने वाला, स्वस्थ सामाजिक व्यवहार करने वाला व अच्छे नैतिक आदर्शों वाला व्यक्ति मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं कहा जा सकता। ऐसे कई व्यक्ति हो सकते हैं, जो अत्यधिक कार्य कुशल तो हैं परन्तु फिर भी दुःखी, चिन्तित या पीड़ित हैं। इस प्रकार स्वस्थ सामाजिक व्यवहार करने वाला व्यक्ति अन्दर से अपने साथियों का बुरा सोचने वाला भी हो सकता है। यही स्थिति धार्मिक आदर्शों वाले व्यक्ति के साथ भी हो सकती है कि वह उच्च नैतिक के उपदेश तो देता है परन्तु स्वयं कामेच्छाओं से पीड़ित है। अतः हम निश्चित रूप से मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति का कोई एक लक्षण नहीं बता सकते।
मानसिक स्वास्थ्य से सम्पन्न व्यक्ति में निम्नलिखित लक्षणों के पाये जाने पर उसके मानसिक स्वास्थ्य की पहचान की जा सकती है-
(1) अपने व्यवहार के प्रति अन्तर्दृष्टि- जो व्यक्ति अपनी क्षमताओं और न्यूनताओं दोनों से परिचित होता है उसमें अपनी समंजन सम्बन्धी समस्याओं के प्रति अन्तर्दृष्टि होती है। वह अपने व्यवहार का सही मूल्यांकन कर अपनी कमियों को स्वीकार करता है।
(2) निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सचेष्ट- मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति हमेशा अपने सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयलशील रहता है तथा उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपनी पूर्ण क्षमता का प्रयोग करता है। उसकी इच्छाशक्ति बहुत बलवान होती है और वे अपने लक्ष्य की ओर पूर्ण विश्वास के साथ अग्रसर होते हैं।
(3) नवीन एवं परिवर्तित सामाजिक स्थितियों से समंजन स्थापित करने में समर्थ- वह व्यक्ति जो मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होता है। अपने आस-पास के वातावरण, परिस्थितियों और व्यक्तियों आदि से अच्छी तरह परिचित होता है। वह उनसे अच्छा व्यवहार करता है और समाज के परिवर्तनशील नियमों और रिवाजों से परिचित होने के कारण उनसे समंजन स्थापित करने में समर्थ होता है। इस प्रकार वह अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर अच्छा मानसिक स्वास्थ्य रखता है।
(4) व्यावसायिक दृष्टि से सन्तुष्ट- मानसिक स्वस्थ होने पर व्यक्ति में अपने व्यवसाय की और अच्छा दृष्टिकोण होता है। ऐसा व्यक्ति जीवन की समस्याओं को पूरा करने में लगा रहता है उसे काम करने की आदत पड़ जाती है। उसे अपने कर्य के प्रति पूर्ण सन्तुष्टि का अनुभव होता है। परिणामस्वरूप उसकी कार्य क्षमता में और अधिक वृद्धि होती है और अन्त में अपने निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करता है।
(5) जीवन के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण और स्वस्थ अभिवृत्ति- मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति कल्पनावादी या अतिशयवादी नहीं होता । उसकी वृत्तियों आकांक्षाओं, संवेगों और विचारों में सन्तुलन होता है। वह अपने व्यक्तित्व का सन्तुलित विकास करता है। उसमें उच्च और हीन भावना-ग्रन्थि के दोष नहीं पाये जाते । इससे वह अपनी बुद्धि के अनुसार काम चुनता है और उसमें लगा रहता है। उसको विभिन्न प्रवृत्तियों में विरोध नहीं होता। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि ऐसा व्यक्ति जीवन के प्रति ययार्थ दृष्टिकोण और स्वस्थ अभिवृत्ति को अपनाता है।
(6) सामाजिक मान-मर्यादाओं के प्रति सतर्क- मानसिक स्वास्थ्य होने पर व्यक्ति हमेशा समाज की मान्यताओं और मर्यादाओं का ध्यान रखता है। वह केवल अधिकार प्राप्ति की ओर ही सचेष्ट नहीं होता वरन् समाज के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति भी सतर्क रहता है। स्व-हित के साथ-साथ पर-हित का वह पूरा-पूरा ध्यान रखता है।
(7) स्वस्थ सांवेगिक विकास- मानसिक तौर पर स्वस्थ व्यक्ति में सांवेगिक पूर्णता पायी जाती है। वह विभिन्न ग्रन्थियों, जैसे मन, उन्माद, ईर्ष्या, स्नेह आदि का सामाजिक मान्यताओं और मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए कार्य करता है। विविध सांवेगिक ग्रन्थियों, उलझनों एवं अन्तर्द्वन्द्वों आदि से वह मुक्त होता है। वह कई विषयों में रुचि रखता है ‘और साधरणतः एक सुसमायोजित जीवन व्यतीत करता है।
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