मकानों का वर्गीकरण | आकृति के आधार भारतीय मकानों का वर्गीकरण | मकानों के प्रकारों को प्रभावित करने वाले कारक

मकानों का वर्गीकरण | आकृति के आधार भारतीय मकानों का वर्गीकरण | मकानों के प्रकारों को प्रभावित करने वाले कारक

मकानों का वर्गीकरण

आवासों की उपादेयता जानते हुए उनका वर्गीकरण, उनकी आकृति (Shape), आकार (Size), विस्तार व मंजिलें (Stores) तथा निर्माण सामग्री (building material) के आधार पर किया गया है। अनेक विद्वानों ने आवासों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है।

(1) डिमांजिया का वर्गीकरण-फ्रांसीसी विद्वान डिमांजिया ने कार्यों के आधार पर मकानों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है।

मकानों का वर्गीकरण

(क) साधारण या अविकसित मकान (Rudimentary House) – यह एक कमरे का मकान होता है जिसमें कृषक रहता भी है और अपने सभी औजार, वस्तुएँ व पशु भी रखता है।

(ख) सघन मकान (Compact House ) –  इनमें निवास, पशु बाँधने, औजार रखने के पृथक् कमरे होते हैं तथा सभी एक चाहरदीवारी से घिरे रहते हैं। यह विकसित व विकासशील देशों में होते हैं।

(ग) अपकीर्ण मकान (Struggling House) –  इनमें निवास व पशुशाला बिल्कुल अलग होते हैं। पशु बाँधने का कमरा खेतों या चरागाह के पास होता है।

(घ) उदग्र मकान (Vertical House)-  यह बहुमंजिले मकान होते हैं। कृषि उपकरण व पशु नीचे बाँधते हैं व कृषक का आवास ऊपरी मंजिल में होता है।

यह ग्रामीण बस्तियों के मकानों के प्रकार हैं।

भारतीय मकानों का वर्गीकरण- भारतीय मकानों को विभिन्न आधारों पर विभाजित किया गया है।

(1) आकृति के आधार पर (2) आकार के आधार पर (3) निर्माण सामग्री के आधार पर
(1) ढलवां छत के मकान (1) छोटे मकान (1) छप्पर के मकान
(2) मध्यम ढाल की छत के मकान (2) झोपड़ियां (2) घास की झोपड़ी
(3) सपाट छत के मकान (3)  एक मंजिला मकान (3) बांस या लकड़ी के मकान
(4) आयताकार या वर्गाकार (4) दो मंजिला मकान (4) कच्ची मिट्टी के मकान
(5) दृत्ताकार (5) तीन मंजिला मकान (5) ईंट व लकड़ी के मकान
(6) मिश्रित मकान (6) अन्य आकार के मकान (6) ईट, पत्थर, सीमेंट के मकान
(7) द्विछत्तीय मकान (7) लोहे, कंक्रीट के मकान
(8) अहाते वाले मकान (8) मिश्रित मकान।
(9) द्विद्वार मकान

आकृति के आधार भारतीय मकानों का वर्गीकरण

(1) ढालू छत के मकान (Stating roofed house)- जिन प्रदेशों में वर्षा व हिमपात अधिक होता है वहाँ के मकानों की छतें ढलवाँ होती हैं। यह मकान अधिकांशतः असम, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु के तटवर्ती प्रदेश व हिमालय के गिरिपदीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं।

(2) मध्यम ढाल की छत के मकान (Medium slope roofed house)- जिन प्रदेशों में औसत वर्षा मध्यम होती है वहाँ कम ढाल की छत के मकान बनाये जाते हैं। पूर्वी उ. प्र. में कानपुर से वाराणसी तक, मध्य प्रदेश में जबलपुर से कटनी तक तथा आन्ध्रप्रदेश के मध्यवर्ती भागों में यह मकान बनाये जाते हैं।

(3) सपाट छत के मकान (Flat roofed house)- कम वर्षा के क्षेत्रों में सपाट छत के मकान बनाये जाते हैं। राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा उत्तरी मध्य प्रदेश में पाये जाते हैं।

(4) आयताकार या वर्गाकार मकान (Rectangular or Square shape house) – भारत के मैदानी प्रदेशों में इसी प्रकार के मकान पाये जाते हैं। भारत में इन मकानों का प्रतिशत सबसे अधिक है।

(5) वृत्ताकार मकान (Circular house) – भारत में जनजातियों के मकान वृत्ताकार होते हैं। यह मकान उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्रों, विशाखापट्टनम् के पृष्ठ प्रदेश में तथा जगदलपुर के आदिवासी क्षेत्रों में पाये जाते हैं।

(6) मिश्रित आकृति के मकान (Mixed shape house)- इनमें अर्द्ध वृत्तकार, त्रिभुजाकार दीर्घ वृत्तकार, आवास पाये जाते हैं।

(7) द्विछतीय मकान (Double roofed house)- द्यो प्रकार की छतें होती हैं (कंक्रीट की तथा खपैरल की) यह प्रायः मध्य प्रदेश में बनते हैं।

मकानों के प्रकारों को प्रभावित करने वाले कारक

मकानों को अनेक कारक प्रभावित करते हैं-

(1) जलवायु (Climatic)- मकानों की आकृति (Shape), आकार (Size) व निर्माण आदि पर इसका प्रभाव पड़ता है इनमें वर्षा की तीव्रता हिमपात, हवा की दिशा, तापमान, सूर्य प्रकाश एवं ढाल की दिशा इत्यादि प्रमुख हैं।

(क) वर्षा की तीव्रता (Intensity of Rainfall) – मकानों की दीवारों व छतों पर वर्षा की तीव्रता व मात्रा का विशेष प्रभाव पड़ता है जहाँ यह कम होती है छतें चौरस होती है परन्तु इसकी तीव्रता व मात्रा बढ़ने पर छतों का ढालूपन बढ़ता जाता है। दीवारों में मिट्टी का प्रयोग भी कम होता है। लकड़ी व पत्थर का अधिक प्रयोग होता है। मकान ऊँचे चबूतरों (Platform) पर बनाये जाते हैं। ऐसे मकान, बंगाल, बिहार, असम, केरल आदि राज्यों में बनाये जाते हैं।

(ख) हिमपात (Snowfall)- हिमपात वाले स्थानों पर चारों ओर ढलवाँ छतें बनायी जाती हैं ताकि हिम फिसल कर नीचे चली जाए मकान हिमालय में व अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में बनाये जाते हैं।

(ग) हवा की दिशा (Direction of Wind)- मकानों का निर्माण स्थानीय हवाओं की दिशा को ध्यान में रखकर किया जाता है ताकि उन पर विपरीत प्रभाव न पड़े। इसलिए मरुस्थलों में रेत से बचाव के लिए ऊँची चाहरदीवारी से मकानों को घेर दिया जाता है।

(घ) तापमान (Temperature)- ठण्डे स्थानों पर मोटी दीवारे, दुहरी छतें, नीचे द्वारा बनाये जाते हैं ताकि उसकी ऊष्मा बाहर न निकल सके। गर्म प्रदेशों में ऊंचे द्वार, ऊँची छतें पर मोटी दीवारें उनकी ठण्डा बनाए रखने के लिए वनायी जाती हैं।

(ङ) सूर्य का प्रकाश व ढाल की दिशा (Sunlight and Direction of Slope) पर्वतीय प्रदेशों में मकान बनाते समय सूर्य प्रकाश व ढाल की दिशा का विशेष ध्यान रखा जाता है। सूर्य का प्रकाश जीवाणु नाशक होता है, बलिक मकान को अति ठण्डा होने से भी बचाता है। इसलिए भारत में भ्ज्ञी पूर्वोन्मुख मकान अधिक अच्छे समझे जाते हैं।

(2) भूमि का स्वरूप व सुलभता (Structure and Availability of Land)- भूमि का स्वरूप सदैव मकानों को प्रभावित करता है। प्रायः समतल भूमि मकानों के लिए अच्छी समझी जाती है। नदी घाटियाँ इसीलिए आरम्भ से ही जनसंख्या को आकर्षित करती रही हैं।

(3) जल प्राप्ति (Availability of Water) – जल मानव आवश्यकताओं का मूलभूत तत्व है, इसलिए जल की उपलब्धता मकानों को प्रभावित करती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग हर स्थान पर Hand pump लगे होते हैं जबकि मध्य भारत पङ्गारी होने के कारण यह सम्भव नहीं है और खर्चीला भी होता है इसलिए वहाँ जल प्राप्ति के यह साधन सामूहिक ही ज्यादा देखे जा सकते हैं। यहाँ तालाब व पोखर भी जल आपूर्ति के साधन हैं।

(4) निर्माण सामग्री (Building Material)- निर्माण सामग्री मकानों के प्रकारों को प्रभावित करती है। पर्वतीय क्षेत्रों में पत्थर व लकड़ी का अधिक प्रयोग होता है। ध्रुवीय प्रदेशों में बर्फ का तो मैदानों में पकी हुई ईंटों व सीमेण्ट का प्रयोग किया जाता है।

(5) सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक कारक (Social, Cultural and Religious Factors)- मकानों के प्रकारों पर सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक कारकों का प्रभाव स्पष्टतः परिलक्षित होता है। जैसे मुगलकालीन भारत में लाल पत्थर के प्रयोग से धार्मिक व सांस्कृतिक तत्वों के समावेश से इमारतें बनाई गयीं।

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