मूल्यांकन का अर्थ | मूल्यांकन का प्रत्यय | Concept and meaning of Evaluation in Hindi
मूल्यांकन का अर्थ | मूल्यांकन का प्रत्यय | Concept and meaning of Evaluation in Hindi
मूल्यांकन का शाब्दिक अर्थ मूल्य का अंकन करना है। दूसरे शब्दों में मूल्यांकन मूल्य निर्धारण की एक प्रक्रिया है। मापन की अपेक्षा मूल्यांकन अधिक व्यापक है। मापन के अन्तर्गत किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के गुणों अथवा विशेषताओं का वर्णन मात्र ही किया जाता है जबकि मूल्यांकन के अन्तर्गत उस व्याक्त अथवा वस्तु के गुणों अथवा विशेषताओं की वांछनीयता पर दृष्टिपात किया जाता है। अतः मापन वास्तव में मूल्यांकन का एक अंग मात्र है। मूल्यांकन एक ऐसा कार्य अथवा प्रक्रिया है जिसमें मापन से प्राप्त परिणामों की वांछनीयता (Desirability) का निर्णय किया जाता है। मापन वास्तव में स्थिति निर्धारण है जबकि मूल्यांकन उस स्थिति का मूल्यांकन है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि मापन किसी गुण अथवा विशेषता का गुणात्मक अथवा मात्रात्मक वर्णन मात्र है जबाकि मूल्य निधारण उसे गुणात्मक अथवा मात्रात्मक बर्णन की गुणवत्ता (Quality) का निर्धारण है।
- चर के प्रकार | गुणात्मक चर एवं मात्रात्मक चर | Types of Variables in Hindi
- मापन के स्तर | मापन के प्रकार | Levels of Measurement in Hindi
- मापन के आवश्यक तत्व | Essential Elements of Measurement in Hindi
- शैक्षिक मापन तथा मूल्यांकन के उद्देश्य | मापन तथा मूल्यांकन का महत्व
- मापन तथा मूल्यांकन के कार्य | Functions of Measurement and Evaluation in Hindi
- मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान | Steps of Evaluation Process in Hindi
- मापन की त्रुटियाँ | Errors of Measurement in Hindi
किसी गुण अथवा विशेषता की कितनी मात्रा व्यक्ति में उपलब्ध है इस प्रश्न का उत्तर मापन से प्राप्त होता है जबकि उस व्यक्ति में उपस्थित गुण अथवा विशेषता की मात्रा किसी उद्देश्य की दृष्टि से कितनी संतोषप्रद (How satisfactory) अथवा कितनी वांछनीय (How Desirable) है इस प्रश्न का उत्तर मूल्यांकन से निर्धारित होता है। छात्रों की शक्षिक उपलब्धि को अंकों में व्यक्त करना मापन का उदाहरण है जबकि छात्रों के प्राप्तांको के आधार पर उनकी उपलब्धि के स्तर के सम्बन्ध में संतोषजनक अथवा असंतोषजनक स्थिति का निर्धारण करना मूल्यांकन का उदाहरण है। निःसंदेह मापन मूल्यांकन में सहायक है, परन्तु मूल्याकन का समानार्थी नहीं है। वस्ततः मापन की तुलना में मूल्यांकन अधिक व्यापक (Comprehensive) होता है।
मूल्यांकन का अर्थ
एच.एच. रैमर्स तथा एन.एल. गेज ने मूल्यांकन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि-
“मूल्यांकन में व्यक्ति अथवा समाज अथवा दोनों की दृष्टि से क्या अच्छा है अथवा क्या वांछनीय है का विचार या लक्ष्य निहित रहता है। “
ब्रेडफील्ड तथा मोरडोक के अनुसार-
“मूल्यांकन किसी सामाजिक, सांस्कृतिक अथवा वैज्ञानिक मानदण्ड के सन्दर्भ में किसी घटना को प्रतीक आबंटित करना है जिससे उस घटना का महत्व अथवा मूल्य ज्ञात किया जा सके।“
एन.एम. डांडेकर के शब्दों में-
मूल्यांकन को छात्रों के द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने की सीमा ज्ञात करने की क्रमबद्ध प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने मूल्यांकन के प्रत्यय को स्पष्ट करते हुए कहा है कि यह एक ऐसी सतत् व व्यवस्थित प्रक्रिया है जो देखती है कि (i) निर्घारित शैक्षिक उद्देश्यों (Specified Educational Objectives) की प्राप्ति किस सीमा तक हो रही है, (ii) कक्षा में दिये गये अधिगम अनुभव (Learning Experiences) कितने प्रभावशाली रहे हैं, तथा (iii) शिक्षा के उद्देश्य (Goals of Education) कितने अच्छे ढंग से पूर्ण हो रहे हैं ।
मापन की तरह मूल्यांकन भी व्यक्तियों अथवा वस्तुओं के किसी भी गुण के संदर्भ में किया जा सकता है। परन्तु शिक्षा के क्षेत्र में साधारणतः मूल्यांकन से अभिप्राय छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि के संदर्भ में लगाया जाता है। मूल्यांकन प्रक्रिया में किसी कार्यक्रम के द्वारा प्राप्त उद्देश्यों अथवा उपलब्धियों की वांछनीयता को ज्ञात किया जाता है। दूसरे शब्दों में मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जो यह बताती है कि वांछित उद्देश्यों को किस सीमा तक प्राप्त किया जा चुका है। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री नार्मन ई. ग्रोनलुंड के अनुसार मूल्यांकन को छात्रों के द्वारा प्राप्त किये गये शिक्षा उद्देश्यों की सीमा को ज्ञात करने की क्रमबद्ध प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
मूल्यांकन के अन्तर्गत छात्रों के व्यवहार के गुणात्मक व मात्रात्मक वर्णन के साथ-साथ व्यवहार की वांछनीयता से सम्बन्धित मूल्य निर्धारण भी निहित रहता है। तव में कोई भी अध्यापक अपने शिक्षण कार्य के उपरान्त यह जानना चाहता है कि क्या उसने वे उद्देश्यों प्राप्त कर लिये है जिसके लिए उसने अध्यापन कार्य किया था । इसी प्रकार छात्र यह जानना जाहते हैं कि क्या उन्होंने वह ज्ञान प्राप्त कर लिया है जिसे प्राप्त करने के लिए वे अध्ययन कार्य कर रहे हैं तथा प्रधानाचार्य यह जानना चाहता है कि क्या उसके विद्यालय के छात्रों के द्वारा वांछित शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की जा रही है। यह सभी प्रश्न मूल्यांकन की तरफ संकेत करते हैं।
मूल्यांकन का यह नवीन प्रत्यय इस मूलभूत मान्यता पर आधारित है कि शिक्षा संस्था का कार्य छात्रों को सीखने में सहायता करना है। सीखने के दौरान छात्रों के व्यवहार में जिन परिवर्तनों को लाने के हम इच्छुक होते हैं उन्हें शिक्षा उद्देश्यों अथवा अनुदेशन उद्देश्यों (Instructional objectives) के नाम से पुकार जाता है तथा इन शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विद्यालय में विभिन्न अधिगम क्रियाओं का आयोजन किया जाता है। ये अधिगम व्रियायें निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में किस सीमा तक सफल रही हैं यह देखना मूल्यांकन प्रक्रिया का कार्य है। स्पष्ट है कि मूल्यांकन प्रक्रिया में शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की वांछनीयता को देखा जाता है। इस प्रकार से मूल्यांकन प्रक्रिया के तीन प्रमुख अंग – (i) शिक्षण उद्देश्य (Educational Objectives), (ii) अधिगम क्रियायें (Learning Activities) तथा (iii) व्यवहार परिवर्तन (Behavioural Changes) होते हैं। मूल्यांकन के ये तीनों अंग परस्पर एक दूसरे से सम्बन्धित तथा एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विद्यालय में अधिगम क्रियायें आयोजित की जाती हैं जिनसे छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन होते हैं। छात्रों के व्यवहार में आये इन परिवर्तनों की तुलना वांछित परिवर्तनों (शिक्षा उद्देश्यों) से करके मूल्यांकन किया जाता है। मूल्यांकन प्रक्रिया के इन तीनों अंगों को एक त्रिभुज के रूप में निम्न ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है।
मूल्याकन का यह नवीन प्रत्यय केवल पाठ्यवस्तु के ज्ञान तक ही सीमित नहीं है वरन् विद्यालय पाठ्यक्रम से सम्बन्धित समस्त उद्देश्यों की एक विशाल तथा व्यापक श्रृंखला का मूल्यांकन करते है। मूल्यांकन का यह नवीन प्रत्यय पारम्परिक परीक्षा प्रणाली के द्वारा प्राप्त मापन प्राप्ताको के ऊपर हा आयारित नहीं होता वरन् अनेक प्रकार की मापन प्राविधियों, विधियों तथा यन्त्रों का प्रयोग करता है। मूल्यांकन का यह नवीन प्रत्यय छात्रों की केवल शैक्षिक उपलब्धि से ही सम्बन्धित नहीं होता है वरन् उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास से सम्बन्धित होता है। वस्तुतः मूल्यांकन का यह प्रत्यय अत्यन्त व्यापक comprehensive) तथा बहुआयामी (Multi-Dimensional) होता है।
शिक्षक शिक्षण – महत्वपूर्ण लिंक
- सूचना एवं संचार तकनीकी का अर्थ | आई.सी.टी. के शैक्षिक महत्व का वर्णन
- बालकों को अभिप्रेरित करने वाली प्रमुख विधियाँ | बालकों को अभिप्रेरित करने वाली प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिये।
- परम्परागत और आधुनिक संचार प्रौद्योगिकी का वर्गीकरण | Classification of traditional and modern communication technology in Hindi
- अधिगम अन्तरण के विभिन्न सिद्धान्त | अधिगम अन्तरण के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- सीखने के स्थानान्तरण का महत्व | अन्तरण की विभिन्न दशाएँ
- अधिगम अन्तरण क्या है? / सीखने का स्थानान्तरण क्या है? | अधिगम अन्तरण के विभिन्न प्रकार
- अभिक्रमित अधिगम का अर्थ एवं परिभाषा | अभिक्रमित अधिगम के विभिन्न प्रकार
- शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन क्या है | शाखीय अभिक्रम के सिद्धान्त | शाखीय अभिक्रम की अवधारणाएं
- फ्लैण्डर्स के शिक्षण प्रतिमान के दस पदों का स्पष्टीकरण | Ten terms of Flanders’ teaching paradigm
Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com