अर्थशास्त्र / Economics

नव-वणिकवाद से आशय | नव-वणिकवाद के उदय के कारण | पुराने और नये वणिकवाद में तुलना

नव-वणिकवाद से आशय | नव-वणिकवाद के उदय के कारण | पुराने और नये वणिकवाद में तुलना

नव-वणिकवाद से आशय

(Meaning of Neo-Mercantilism)

बीसवीं शताब्दी में प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् नव-वणिकवाद का जन्म हुआ जो पुराने वणिकवाद से काफी भिन्न है। नव-वणिकवाद पुराने वणिकवाद की अपेक्षाकृत अधिक व्यावहारिक एवं स्पष्ट है। इसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था का पुननिर्माण करना एवं उसको प्रगति के पथ पर ले जाना है। जैसा कि हम जानते हैं, इतिहास मरता नहीं है, वरन् वह स्वयं को दोहराता रहता है। व्यापारवाद का समूल नाश नहीं हुआ, वरन् उसके मूल विचार अभी भी जीवित हैं । विशेषकर 1921 के बाद वणिकवादी विचारों की पुनरावृत्ति होने लगी। नव-वणिकवाद का आशय वह व्यापारवादी विचारधारा के पुनः आगमन या पुनरावृत्ति से है। कारण यह बना कि जिन परिस्थितियों ने वणिकवाद को शुरू में जन्म दिया था वे ही परिस्थतियाँ विश्व में पुन: उत्पन्न हो गयीं और फलतः वणिकवाद का पुर्नजन्म हुआ।

नव-वणिकवाद के उदय के कारण

(Factors Leading of Rise of Neo-Mercantilism)

नव-वणिकवाद के जन्म के लिए जिम्मेदार विभिन्न आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितियाँ निम्नांकित हैं-

(1) विश्व युद्धों का प्रभाव- प्रथम और द्वितीय महायुद्धों ने विश्व की अर्थव्यवस्था को जर्जर कर दिया था और ऐसी व्यापारिक एवं आर्थिक नीतियों को अपनाने की आवश्यकता अनुभव की गयी, जो कि राष्ट्रों को शक्तिशाली रूप प्रदान कर सकें।

(2) निर्बाधावाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया- निर्बाधावादियों ने ‘स्वतंत्रता’ की धारणा को अनुचित सीमाओं तक खींच दिया। यह सही है कि स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था में स्वतन्त्र व्यापार को प्रोत्साहन मिला परन्तु इससे अनेक दोष भी उत्पन्न हो गये। इनसे बचने के लिए राज्य हस्तक्षेप दिन पर दिन बढ़ने लगा और देशों ने आयात पर नियन्त्रण लगाने आरम्भ कर दिये।

(3) विश्वव्यापी मन्दी- इसका कारण अति उत्पादन होना था। स्टॉक बढ़ने लगे, उत्पादन, विनियोग, रोजगार एवं आय सब में गिरावट आयी। ऐसे समय सार्वजनिक विनियोग ही अर्थव्यवस्था को संभाल सकता था। इसके महत्व को प्रो० केन्ज ने प्रतिपादित किया। केन्ज के विचारों से प्रेरित होकर आर्थिक नियन्त्रण पुनः लगाये जाने लगे, जो लगभग वणिकवादी युग के जैसे थे।

(4) संरक्षणवाद का प्रारम्भ- प्रत्येक देश स्वयं को शक्ति सम्पन्न एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए देशी उद्योग-धन्धों के विकास और निर्यात व्यापार को प्रोत्साहन देने पर कटिबद्ध हो गया। अत: संरक्षणवादी नीतियाँ अपनायी जाने लगीं। ये नीतियाँ वास्तव में प्राचीन व्यापारवाद का एक संशोधित रूप है।

पुराने और नये वणिकवाद में तुलना

(Comparison between Old and Neo-Mercantilism)

समानतायें (Similarities)

(1) पुराने वणिकवादियों की भाँति नये वणिकवादी भी अपने देश के राष्ट्रीय हित को सर्वोच्चता देते हुए अधिकाधिक शक्तिशाली बनने के लिए सारे कार्यक्रम बना रहे हैं। व्यक्तिवाद के स्थान में राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ाया जा रहा है।

(2) जिस प्रकार पुराने वणिकवाद के अन्तर्गत हर प्रकार की व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए राज्य को हर प्रकार के अधिकार दिये गये थे, उसे समस्त उत्पत्ति-साधनों, विदेशी व्यापार आदि पर नियन्त्रण के व्यापक अधिकार थे और इस प्रकार सरकार को शक्तिशाली बनाने की योजना चालू थी उसी प्रकार नव-वणिकवाद के अन्तर्गत भी दुनिया के अधिकांश देशों (रूस, चीन आदि) में पूर्ण व्यवस्था सरकारों के हाथ में आ गयी है और धीरे-धीरे स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था वाले देश (जैसे कि भारत) भी इस होड़ में शामिल होने लगे हैं।

(3) पुराने वणिकवाद की भाँति नये वणिकवाद के अन्तर्गत भी औद्योगीकरण को सर्वाधिक महत्व दिया जा रहा है।

(4) पुराने वणिकवाद के समान नव-वणिकवाद में भी विश्व का प्रत्येक देश व्यापाराधिक्य बनाने के लिए प्रयत्नशील है और इसका उद्देश्य भी वही पहले जैसा अर्थात् सोना-चाँदी और विदेशी मुद्रा कमाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आयात-निर्यात पर कड़े प्रतिबन्ध लगाये जा रहे हैं।

(5) प्राचीन वणिकवाद को जिन परिस्थितियों ने सफल बनाया था उनसे मिलती-जुलती परिस्थितियाँ ही नव-वणिकवाद को सफलता की ओर ले जा रही हैं, जैसे-आन्तरिक एवं बाहरी युद्ध, अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता, मुद्रा और मूल्य में अस्थिरता आदि।

असमानतायें

पुराने और नये वणिकवाद में उपर्युक्त समानताओं के आधार पर यह नहीं समझना चाहिए कि दोनों हर प्रकार से समान हैं। जैसा कि ऐलेक्जेन्डर ग्रे (Alexander Gray) ने लिखा है, “वणिकवाद वास्तव में आज भी हमारे साथ है। वह आज स्वस्थ एवं शानदार रूप में फिर से प्रकट होने की प्रवृत्ति दिखा रहा है किन्तु तीन शताब्दियों से इतने लम्बे समय में कोई भी सामान्य सिद्धान्त परिवर्तित हुए बिना नहीं रह सकता। अत: वह स्वयं को बदलती हुई परिस्थितियों के अनुकूल ढाल रहा है।” आज का वणिकवाद निश्चित रूप से पुराने वणिकवाद से बहुत कुछ भिन्न है। प्रमुख भिन्नतायें निम्नांकित हैं-

(1) नव-वणिकवाद और पुराना वणिकवाद दोनों ही विदेशी व्यापार को बढ़ाने की बात कहते हैं। जहाँ पुराने वणिकवादी विदेशी व्यापार बढ़ाकर सोने-चाँदी की प्राप्ति को महत्व देते थे वहाँ नव-वणिकवाद विदेशी व्यापार को बढ़ाकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति को महत्व देते हैं। आजकल अनुकूल व्यापाराधिक्य की अपेक्षा सन्तुलित व्यापार पर ध्यान दिया जा रहा है।

(2) जबकि पुराने वणिकवाद के अन्तर्गत व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का विशेष महत्व था तथा आजकल व्यक्ति को देश के सामने गौण स्थान दिया जाता है। पहले सांख्यिकी के अभाव में जन- जीवन पर पूर्ण नियन्त्रण रखना सम्भव नहीं था, किन्तु आजकल सर्वेक्षणों और आँकड़ों की उपलब्धता के कारण ऐसा नियन्त्रण सम्भव है। पुराने वणिकवादियों की हस्तक्षेप नीति स्थायी होती थी और समाज कल्याण की दृष्टि से प्रेरित नहीं होती थी किन्तु आजकल हस्तक्षेप समाज के कल्याण की दृष्टि से किया जाता है और हस्तक्षेप आर्थिक दशाओं के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है।

(3) पुराने वणिकवादियों ने कृषि की उपेक्षा की थी, किन्तु नव वणिकवादी इसे उद्योग-धन्धों के समान महत्व देते हैं और कृषि सुधार प्रचलित कर रहे हैं।

(4) आज सोने-चाँदी की प्राप्ति पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता वरन् विदेशी मुद्रा कमाने पर जोर दिया जाता है, ताकि बढ़ते हुए आयात बिलों का भुगतान कर सकें।

(5) व्यवस्थित नियोजन का जो रूप नव-वणिकवाद के अर्न्तगत देखने में आता है वह प्राचीन वणिकवाद के अन्तर्गत, जिसने नियोजन को जन्म दिया, नहीं देखा जा सकता है।

इस प्रकार हैने (Haney) ने ठीक ही लिखा है कि- “प्रथम महायुद्ध के बाद जो नव- वणिकवाद विश्व में प्रचलित हुआ वह अनेक बातों में प्राचीन वणिकवाद से भिन्न था। इसकी मुख्य विशेषता यह थी कि यह अधिक आदर्शवादी था।”

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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