अर्थशास्त्र / Economics

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ की प्रकृति | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से स्थैतिक लाभ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ का मापन | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से गत्यात्मक लाभ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के स्थैतिक एवं प्रावैगिक लाभ

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ की प्रकृति | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से स्थैतिक लाभ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ का मापन | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से गत्यात्मक लाभ | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के स्थैतिक एवं प्रावैगिक लाभ | Nature of Benefits of International Trade in Hindi | Static profit from international trade in Hindi | Measurement of profit from international trade in Hindi | Dynamic gains from international trade in Hindi | Static and Dynamic Benefits of International Trade in Hindi

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ की प्रकृति

व्यापार से लाभों का एक बहुत ही स्पष्ट तथा स्वाभाविक वर्णन अर्थशात्रियों के प्रतिष्ठित सम्प्रदाय के संस्थापक सदस्य एडम स्मिथ के लेखों में प्राप्त होता है। एडम स्मिथ की महत्वपूर्ण कृति ‘The Wealth of Nations’ में निम्न ख्याति प्राप उदाहरण व्यापार से लाभ की जटिल प्रक्रिया पर प्रकाश डालता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार चाहे किन्हीं स्थानों के मध्य हो, सभी लोग इससे दो प्रकार के स्पष्ट लाभ प्राप्त करते हैं। वह अनावश्यक अतिरेक को वहां ले जाता है जहां उसकी मांग की जाती है। तथा बदले में कुछ ऐसी वस्तुएं लाता है जिनकी घरेल बाजार में मांग होती है। इस प्रकार फिजूल वस्तुओं के बदले भी कुछ प्राप्त होता है, उससे तुष्टि मिलती है और खुशहाली में वृद्धि होती है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण घरेलू बाजार की सीमितता समाप्त होती है और श्रम विभाजन चरमोत्कर्ष पर होता है। बाजार के विस्तार के कारण घरेलू उत्पादन घरेलू उपभोग से अधिक होता  है उत्पादन में वृद्धि उत्पादक की क्षमता में सुधार को प्रोत्साहित करती है और सालाना उत्पादन अधिकतम होता है जिससे वास्तविक आय और सम्पन्नता में वृद्धि होती है।’

उपर्युक्त उद्धरण के अध्ययन से निम्नलिखित दो तथ्य प्रकट होते है:

(1) स्वतंत्र अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से बाजार के क्षेत्र का विस्तार होता है तथा एकाकी अर्थव्यवस्था में उत्पाद के घरेलू उपभोग की अतिरिक्त वेशी के प्रवाह के लिए मार्ग का सृजन होता है। यदि व्यापार में प्रवेश करने के लिए तत्पर एकाकी अर्थव्यवस्था में निर्यातों के लिए अनुकूल वेशी क्षमता (वेशी क्षमता का तात्पर्य केवल वेशी भूमि से नहीं है बल्कि वेशी भूमि में वेशी श्रम भी सम्मिलित है तथा वेशी श्रम को अनुत्पादक श्रम की धारणा से सम्बद्ध किया गया है) होती है तो उसके लिए सकल घरेलू आर्थिक क्रियाओं का विस्तार तथा आयातों को प्राप्त करने के लिए वेशी क्षमता एक ‘लागत विहीन’ साधन होगा।

जब व्यापार सुस्थापित देशों के मध्य होता है, जहां साधन दिए हुए तथा पूर्णतया रोजगार में लगे हुए होते हैं (जैसा कि तुलनात्मक लागतों के सिद्धांतवेत्ताओं की मान्यता है) तो व्यापार का कार्य नवीन मूल्यों को दृष्टि में रखते हुए घरेलू तथा निर्यात उत्पादन के मध्य अधिक कुशलता से दिए हुए साधनों का पुनः आबंटन करना होता है। इस स्थिति में जब श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण के कारण कुल उत्पादन में वृद्धि होती है तो प्रत्येक देश को लाभ होता है। देश को व्यापार से लाभ वस्तुओं के विभिन्न प्रकार तथा विविधताओं, जो कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण प्रत्येक देश को उपभोग के लिए प्राप्त होती है, की अधिकता के रूप में प्राप्त होते हैं। इस प्रकार माल्थस ने ठीक ही कहा है कि व्यापार से प्राप्त लाभ इसमें निहित है कि ‘हम कम आवश्यक वस्तु का विनिमय करके अधिक आवश्यक वस्त को प्राप्त करते है तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार ‘आवश्यकता तथा पसन्दगी के अनुरूप वस्तुओं को प्रदान करके निर्विवाद रूप से सम्पत्ति के विनिमय-योग्य मूल्य में वृद्धि करता है तथा खुशहाली के साधनों एवं सम्पत्ति में वृद्धि करता है।’ यह विचार स्मिथ के उपरोक्त वक्तव्य के अधिक समीप है। जॉन स्टुआर्ट मिल इसे व्यापार से ‘प्रत्यक्ष लाभ’ कहते हैं। आधुनिक अर्थशास्त्री इसे व्यापार से ‘स्थैतिक लाभ’ कहते हैं।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बाजार का विस्तार करके श्रम विभाजन को बढ़ावा देता है तथा उससे देश के अन्दर उत्पादकता के सामान्य स्तर में वृद्धि होती है। इसे प्रायः अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का ‘उत्पादकता सिद्धांत’ कहा जाता है। ‘उत्पादकता सिद्धांत’ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उस प्रावैगिक शक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है जो बाजार के क्षेत्र को विस्तृत तथा श्रम विभाजन के अवसर में वृद्धि करके कार्यकर्ता की निपुणता तथा कार्यकुशलता में वृद्धि करती है, तकनीकी नव-प्रवर्तन में वृद्धि करती है, तकनीकी अविभाज्यताओं को समाप्त कर देती है तथा सामान्यतया व्यापारिक देशों को इस योग्य बनाती है कि उत्पत्ति वृद्धि नियम के अन्तर्गत प्रतिफल प्राप्त कर सके तथा आर्थिक विकास हो सके।’

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से स्थैतिक लाभ

(Static Gains from Trade)

जब श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण के विस्तार के कारण कुल उत्पादन में वृद्धि होती है तो प्रत्येक देश को व्यापार से लाभ होता है। उत्पादक, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रारम्भ होने के कारण सापेक्षित मूल्यों में परिवर्तनों के कारण, तकनीकी के दिए होने पर, अर्थव्यवस्था के दिए हुए साधनों का कुशलतापूर्वक पुनः आबंटन कर सकते हैं। यद्यपि व्यापार से स्थैटिक लाभ के अन्तर्गत, उत्पादन संभावना वक्र के साथ-साथ गति करते हैं परन्तु उत्पादन सीमा स्वयं अपरिवर्तनीय रहती  है। व्यापार के फलस्वरूप केवल उपभोग की सीमा में ही विस्तार होता है तथा उपभोक्ताओं को अधिक संतोष, कुछ तो उस देश की व्यापार शर्तों के अधिक अनुकूल होने के कारण तथा कुछ अर्थव्यवस्था में दिये हुए उत्पादक साधनों के अधिक कुशल प्रयोग के कारण, प्राप्त होता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ का मापन

(Measurement of Gains from Trade)

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से स्थैतिक लाभ मापनीय होते हैं। प्रोफेसर जैकब वाइनर ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से राष्ट्रीय लाभों के मापन हेत तीन विभिन्न प्रकार की विधियों को विकसित किया है। ये तीनों विधियों के मापदण्ड निम्नलिखित हैं- (1) दी हुई वास्तविक आय के उपार्जन करने की लागत में किफायत का मापन तुलानात्मक लागत सिद्धांत की सहायता से किया जा सकता है: (2) देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि तथा (3) व्यापार शर्तो में सुधार।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से गत्यात्मक लाभ

(Dynamic Gains from Trade)

व्यापार से लाभ के संबंध में अब तक जो विचार प्रस्तुत किए गए हैं उनकी प्रकृति विशुद्ध रूप से स्थैतिक को समानाज को उनकी उत्पादित वस्तुओं को अधिक सस्ते में क्रय करने में सुविधा दी हुई थी जो व्यापार प्रारंभ होने से पूर्व सापेक्षतया महंगी थी। उन्हें कोई नई उत्पादित वस्तु प्रेषित नहीं की जाती थी। इसी प्रकार, उत्पादकों को नवीन मूल्यों के अनुसार उत्पादक साधनों का पुनः आवंटन करने की प्ररेणा मिलती थी। विश्लेषण में किसी नवीन तकनीक, जो उनके उत्पादन सीमाओं में तरंग उत्पन्न कर सकती है, को प्रस्तुत नहीं किया गया था। रेखाचित्र में व्यापार के परिणामस्वरूप समुदाय उत्पादन सीमा व्यापार से पूर्व की स्थिति के समान रहती थी तथा केवल समुदाय उपभोग सीमा विस्तृत हो जाती थी।

परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से प्राप्त लाभ केवल यही नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से उपभोग तथा उत्पादन के क्षेत्र में भी आधारभूत परिवर्तन होते हैं जिनका मापन नहीं किया जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, उपभोक्ता की नवीन आवश्यकताओं, जो प्रायः आर्थिक उन्नति के प्रारम्भिक अवस्थाओं में औद्योगिक क्रांति के रूप में कार्य करती हैं, को भी जन्म देता है। पिछड़े क्षेत्रों में ‘प्रेरणादायी वस्तुओं की उपलब्धता स्थानीय व्यक्तियों के लिए पर्याप्त आकर्षक सिद्ध होती है। इन वस्तुओं को प्राप्त करने हेतु वे अपने उत्पादन का एक अंश विनिमय के लिए बचा लेते हैं। जब नवीन वस्तुओं की मात्रा उनकी नवीन आवश्यकताओं को संतुष्ट करने में असफल हो जाती हैं तो उन्हें अपने उत्पादन में वृद्धि करने की प्रेरणा मिलती है तथा अन्त में कृषि का व्यवसायीकरण करते हैं। व्यवसायिक कृषि को नवीन बाजार केन्द्रों तथा विकसित बाजारों की सुविधाओं की आवश्यकता होती है। परिणामस्वरूप, देश में रेल तथा सड़कों का निर्माण किया जाता है। आन्तरिक भागों में रेल तथा सड़कों की सुविधाओं से पूंजीपति अपनी पूंजी का विनियोग करने के लिए आकर्षित होते हैं। बाजारोन्मुख उद्योग स्थापित होते हैं जिससे अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त रोजगार तथा आय का सृजन होता है। अतिरिक्त रोजगार बहुत से उद्योगों जैसे, भवन निर्माण, खाद्यान्न तथा कच्चे माल आदि की स्थापना तथा विकास में प्रेरक का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त प्रबन्ध तथा श्रम के प्रशिक्षण के लिए बाह्य अर्थव्यवस्थाओं के भी आगमन हो सकते है। संक्षेप में, एक प्रक्रिया दूसरी प्रक्रिया द्वारा अग्रसारित होती है तथा विकास की प्रक्रिया क्रियाशील होती है। एल्सवर्थ ने ठीक ही कहां है: ‘संक्षेप में, व्यापार से स्थैतिक लाभ के अतिरिक्त, उससे बहुत से वास्तविक गत्यात्मक लाभ  भी होते हैं। उनका शुद्धतापूर्वक मापन करना असंभव हो सकता है, परन्तु वे वहाँ उपस्थित रहते हैं। भूतकाल में उन्हें एक महत्वपूर्ण विकास का इंजिन’ कहा गया था जो यद्यपि वर्तमान समय में संभवतया कम सार्थक होता है परन्तु फिर भी वह महत्वपूर्ण है।’

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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