आतंकवाद से तात्पर्य | भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ | आतंकवाद के विविध रूप | आतंकवाद का समाधान

आतंकवाद से तात्पर्य | भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ | आतंकवाद के विविध रूप | आतंकवाद का समाधान आतंकवाद की समस्या (आतंकवाद एवं विश्वशान्ति) आतंकवाद : वैश्विक चुनौती मानव-मन में विद्यमान भय प्रायः उसे निष्क्रिय और पलायनवादी बना देता है। इसी भय का सहारा लेकर समाज का व्यवस्था-विरोधी वर्ग अपने दूषित और निम्नस्तरीय स्वार्थों की सिद्धि…

भारतीय राष्ट्रवाद | गांधी का रामराज्य

भारतीय राष्ट्रवाद | गांधी का रामराज्य भारतीय राष्ट्रवाद भारत सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता का देश है। राष्ट्रवाद एकमात्र ऐसा धागा है जो विभिन्न सांस्कृतिक-जातीय पृष्ठभूमि से संबंधित होने के बावजूद लोगों को एकता के सूत्र में बांधता है। यह कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी भारतीयों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राष्ट्रवाद…

हिन्दी में प्रगतिवाद एवं प्रयोगवाद | हिन्दी में प्रगतिवाद | हिन्दी में प्रयोगवाद

हिन्दी में प्रगतिवाद एवं प्रयोगवाद | हिन्दी में प्रगतिवाद | हिन्दी में प्रयोगवाद हिन्दी में प्रयोगवाद प्रगतिवाद- प्रगतिवाद एक राजनीति एवं सामाजिक शब्द है। ‘प्रगति शब्द का अर्थ है ‘आगे बढ़ना, उन्नति। प्रगतिवाद का अर्थ है ‘समाज, साहित्य आदि का निरंतर उन्नति पर जोर देने का सिद्धांत।’ प्रगतिवाद छायावादोत्तर युग के नवीन काव्यधारा का एक…

लोकतन्त्र एवं भ्रष्टाचार | भारत में लोकतन्त्र का समकालीन परिदृश्य

लोकतन्त्र एवं भ्रष्टाचार | भारत में लोकतन्त्र का समकालीन परिदृश्य लोकतन्त्र एवं भ्रष्टाचार प्रस्तावना- भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ सबको हर तरह की स्वतंत्रता प्राप्त है। परन्तु हमारे देश में इसी भारत के अंदर तो भ्रष्टाचार का फैलाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। लोग इसी स्वतंत्रता और हमारे देश के लचीले कानूनों का लाभ उठाते…

भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास | तुलसीदास की समन्वय-साधना

भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास | तुलसीदास की समन्वय-साधना भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास मेरे प्रिय कवि (लोक कवि तुलसीदास)- मैं यह तो नहीं कहता कि मैंने बहुत अधिक अध्ययन किया है; तथापि भक्तिकालीन कवियों में कबीर, सूर और तुलसी तथा आधुनिक कवियों में प्रसाद, पन्त और महादेवी के काव्य का आस्वादन अवश्य किया है। इन सभी…

हिन्दी काव्य में प्रकृति-चित्रण | हिन्दी कविता में प्रकृति-चित्रण

हिन्दी काव्य में प्रकृति-चित्रण | हिन्दी कविता में प्रकृति-चित्रण हिन्दी काव्य में प्रकृति-चित्रण प्रकृति मानव की आदिम सहचरी है। मानव ने जब आँखें खोली होंगी तो स्वयं को प्रकृति की सुरम्य गोद में ही पाया होगा। प्रकृति मानव के क्रिया-कलापों की चित्रमयी रंगस्थली है, जिसके बिना मानव-जीवन का नाटक अधूरा ही रह जाता है। भारत…

छायावाद के आविर्भाव के कारण | छायावाद की प्रवृत्तियाँ | छायावावदी कविता की शिल्पगत विशेषताएँ

छायावाद के आविर्भाव के कारण | छायावाद की प्रवृत्तियाँ | छायावावदी कविता की शिल्पगत विशेषताएँ छायावाद के आविर्भाव के कारण वास्तव में हिंदी की छायावादी कविता का उद्भव तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं साहित्यिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप हुआ है। डॉ. शिवनंदन प्रसाद के शब्दों में छायावाद के जन्म का इतिहास समझने के लिए हमें तत्कालीन…

रीतिकाव्य धारा के विकास में केशवदास की भूमिका | हिंदी में रीतिकाल का प्रवर्तक

रीतिकाव्य धारा के विकास में केशवदास की भूमिका | हिंदी में रीतिकाल का प्रवर्तक रीतिकाव्य धारा के विकास में केशवदास की भूमिका केशव रीति-परंपरा के प्रथम मार्ग-स्तम्भ- वैसे केशव के पूर्व भी रीति-परंपरा विकसित हो रही थी, पर केशव ने इसे व्यवस्थित रूप प्रदान किया। केशव ने अपने ‘कविप्रिया’ और ‘रसिकप्रिया’ ग्रंथों के द्वारा हिंदी…

रीतिकाव्य का वर्गीरण | रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ | रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध एवं रीतिमुक्त काव्य धाराओं को सामान्य परिचय

रीतिकाव्य का वर्गीरण | रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ | रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध एवं रीतिमुक्त काव्य धाराओं को सामान्य परिचय रीतिकाव्य का वर्गीरण शुक्ल जी ने संवत् 1700 से 1900 तक के समय को ‘रीतिकाल’ नाम दिया है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य विद्वानों ने भी अपने-अपने मतानुसार इस काल का नामकरण किया है जिनमें से मिश्र-बंधु ने…