पैट्रिक गेडिस – ब्रिटिश भुगोलावेत्ता (Patric Geddes – British Geographers)
पैट्रिक गेडिस – ब्रिटिश भुगोलावेत्ता (Patric Geddes – British Geographers)
पैट्रिक गैडिस (1854-1934) मैकिण्डर के समकालीन ब्रिटिश भुगोलवेत्ता थे। गेडिस ने ‘भूगोल की प्रकृति’ विषय पर 1898 में एक लेख प्रकाशित किया था। इसमें दर्शित भौगोलिक दृष्टिकोण जीव वैज्ञानिक मान्यता से प्रेरित था। गेडिस की शिक्षा वनस्पति विज्ञान में हुई थी और ये डार्विन के जीव विकासवाद से बहुत प्रभावित थे भौगोलिक अध्ययन में उनकी बड़ी रुचि थी क्योंकि इसके द्वारा किसी क्षेत्र की स्थलाकृति, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, प्राकृतिक संसाधनों, मानव-समुदायों आदि के क्षेत्रीय वितरण और मानवीय क्रिया-कलापों तथा सांस्कृतिक विकास की प्रक्रिया के मध्य विद्यमान कार्य-कारण सम्बंधों का स्पष्टीकरण होता है।
इस प्रकार गेडिस इस तथ्य के उद्घाटन में सदैव प्रयत्नशील रहे कि भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में मानव जीवन को प्राकृतिक पर्यावरण किस प्रकार प्रभावित करता और भिन्न-भिन्न मानव समुदायों ने अपने स्थानीय पर्यावरण से किस प्रकार समायोजन स्थापित किया है। इसके लिए गेडिस ने विभिन्न प्रदेशों के मानव समुदायों के क्रिया कलापों के विस्तृत अध्ययन पर बल दिया।
फ्रांसीसी समाजशास्त्री ली प्ले (1806-1882) के विचारों से प्रभावित होकर गेडिस ने मानव समुदायों के अध्ययन के लिए ‘स्थान-कार्य-लोक’ (Place- Work-Folk) पद्धति का प्रतिपादन किया। इस अध्ययन पद्धति की मौलिक मान्यता थी कि स्थान (स्थानीय पर्यावरण) यह निर्धारित करता है कि वहाँ के लोगों की जीवकोपार्जन पद्धति या आर्थिक क्रियाएं किस प्रकार की होंगी और जीविकोपार्जन की पद्धति ही किसी समुदाय की पारिवारिक जीवन पद्धति और उसकी सामाजिक व्यवस्था के स्वरूप को निर्धारित करती है। गेडिस के मतानुसार पिछड़े तकनीकी विकास वाले समुदायों में इस अध्ययन पद्धति का क्रम स्थान-कार्य-लोक (परिवार) होता है किन्तु उन्नत तकनीकी विकास वाले समुदायों में यह क्रम बदल जाता है और यह ‘लोक (परिवार)-कार्य-स्थान’ के रूप में पाया जाता है। इसका कारण यह है कि उन्नत तकनीकी विकास वाले समुदायों में प्रकृति और मानव के अंतर्सम्बंधों में प्रकृति की भूमिका प्रायः गौण होती है। क्योंकि ऐसे समुदाय विज्ञान और तकनीक के माध्यम से स्थानीय पर्यावरण के प्रतिकूल प्रभावों को अधिक सीमा तक नियंत्रित करने में सफल हो जाते हैं।
पैट्रिक गेडिस को ब्रिटेन में प्रादेशिक सर्वेक्षण, प्रादेशीकरण और व्यावहारिक भूगोल का संस्थापक माना जाता है। गेडिस भौगोलिक अध्ययन के लिए क्षेत्रीय सर्वेक्षण को आवश्यक मानते थे। उन्होंने यह नारा दिया था कि ‘पहले सर्वेक्षण फिर काम’ । उनका अभिप्राय था कि सर्वेक्षण के बिना भौगोलिक अध्ययन नहीं किया जा सकता। गेडिस के ये विचार लम्बे समय तक ब्रिटेन में भौगोलिक अध्ययन को दिशा प्रदान करते रहे। गेडिस ने ‘लीप्ले स्कूल’ नामक एक संस्था स्थापित की थी जिसने अपने कार्यकाल में 71 प्रमुख क्षेत्र सर्वेक्षण किये और आठ प्रमुख शोध प्रबंध (मानोग्राफ) प्रकाशित किये यह संस्था 1960 में बंद हो गयी। नगर नियोजन के सम्बंध में गेडिस के विचार उसकी मृत्यु (1934) के पश्चात् भी प्रासंगिक बने रहे। गेडिस का विचार था कि भूगोल मात्र विवरणात्मक नहीं है बल्कि यह एक व्यावहारिक विज्ञान है।
पैट्रिक गेडिस ने सर्वप्रथम ‘सन्नगर’ या ‘कोनरबेसन’ (Conurbation) शब्दावली का प्रयोग किया था। उन्होंने दक्षिणी लंकाशायर के नगरों को अपनी प्रशासनिक सीमा से बाहर विस्तार के परिणामस्वरूप परस्पर संयुक्त नगर सांतत्य के रूप में विकसित होते हुए रेखा और नगरीकरण की इस अद्वितीयता ने उन्हें इसके अध्ययन हेतु आकर्षित किया। काफी विचार-विमर्श के पश्चात् उन्होंने इस उदीयमान नगरीय भूदुश्य को ‘कोनरबेसन’ (Counbation) की संज्ञा प्रदान की।
पैट्रिक गेडिस ने नगरीय विकास को तीन प्रधान युगों में विभक्त किया है- (i) उषःश्तकनीक (Evotechnic) युग जो लगभग 1000 से 1800 ई० तक की अवधि का द्योतक है। यह नगरीय विकास की प्रारंभिक अवस्था थी। (ii) पुरा तकनीक (Palaeotechnic) युग जिसकी अवधि 1800 से 1900 ई० तक थी। यह प्राचीन तकनीकी विकास का युग था। (iii) नूतन तकनीक (Neotechnic) युग 1900 ई० से लेकर वर्तमान काल तक के नगरीय विकास को प्रदर्शित करता है।
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