इतिहास / History

फ्रांसीसी क्रांति की उपलब्धियाँ | Achievements of the French Revolution in Hindi

फ्रांसीसी क्रांति की उपलब्धियाँ | Achievements of the French Revolution in Hindi

फ्रांसीसी क्रांति की उपलब्धियाँ

(Achievements of the French Revolution)

फ्रांस की क्रांति आधुनिक विश्व की पहली क्रांति थी, जिसने पुरातन व्यवस्था में परिवर्तन के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया और उसी के साथ समानता, स्वतंत्रता एवं भ्रातृत्व का नारा दिया तथा राष्ट्रवाद, जनतंत्रवाद और समाजवाद जैसी नई शक्तियों को पनपने का मौका दिया। इतना ही नहीं, आधुनिक तानाशाही और सैनिकवाद भी फ्रांस की क्रांति की ही उपज है। इसके अलावा कल्याणकारी राज्य की धारणा, युद्ध की धारणा में परिवर्तन, धर्मनिरपेक्षवाद आदि की शुरुआत भी फ्रांस की क्रांति से ही हुई। जर्मन दार्शनिक फॉन हरडर ने ठीक ही कहा है कि फ्रांस की क्रांति मानव के जीवन को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना है। सचमुच इस क्रांति के पूर्व विश्व में संभवतः कोई ऐसी राजनीतिक घटना नहीं घटी जिसका परिणाम विश्व पर इतने दिन तक इतने अधिक देशों की राजनीति और उसके लोगों को प्रभावित करता रहा हो।

1789 ई० की फ्रांसीसी क्रांति फ्रांस की दलित जनता के बीच असमानता, उत्पीड़न और अत्याचार के विरुद्ध आक्रोश का आह्वान था। इस क्रांति नेफ्रांस में समानता, स्वतत्रता, भ्रातृत्व एवं जनतंत्र का नारा बुलंद किया, जिसका प्रचार एवं प्रसार पूरे यूरोप में हुआ। इस क्रांति ने प्राधीन जातियों में स्वतंत्रता एवं राष्ट्रवाद का मंत्र फूंका और उन्हें स्वतंत्रता तथा एकीकरण के लिए प्रेरित किया। इस क्रांति के दौरान अनेक शासन प्रणालियों का प्रयोग हुआ जिनमें एक साम्यवाद भी था।

क्रांति के नारे का प्रसार-

फ्रांस की क्रांति समाज में व्याप्त असंतोष का प्रतीक था। क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता, समानता एवं भ्रातृत्व’ का नारा लगाया। यह ठीक है कि क्रांति के दिनों में फ्रांस की दलित जनता इससे प्रभावित हुई थी, लेकिन यूरोप में क्रांति के प्रसार के साथ यह मंत्र यूरोप के अन्य देशों में भी फैल गया और वहाँ की जनता की इच्छा का प्रतीक बन गया। फ्रांस की क्रांति के सहारे यूरोप के अन्य देशों ने रिंकुश शासन के विरूद्ध संघर्ष किया। धीरे-धीरे समानता, स्वतंत्रता, भ्रातृत्व एवं जनतंत्र यूरोप से निकलकर पूरे विश्व की दलित मानवजाति के नारे बन गए।

लोकतांत्रिक भावनाओं का विकास-

1789 ई० को फ्रांसीसी क्रांति ने देश में लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रतिष्ठित किया। इस क्रांति ने शासन के दैवी सिद्धान्त का अंत कर लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धान्त को मान्यता दी। क्रांति के पूर्व देश की राजनीति चलाने का अधिकार केवल कुछ लोगों तक ही सीमित था। सर्वसाधारण जनता को इससे कोई मतलब नहीं रहता था, पर क्रांति के बाद देश के सभी नागरिक राजनीति में सक्रिय भाग लेने लगे, राष्ट्रीय सभा द्वारा घोषित मानव अधिकार ने यह सिद्ध कर दिया कि सार्वभौम सत्ता जनता में निहित है और शासन का अधिकार जनता से आता है। इसके अलावा इसने स्वतंत्रता और समानता के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करके व्यक्ति की महत्ता को भी स्वीकार किया। अब तय हुआ कि सरकार जनता का और जनता के लिए होना चाहिए। क्रांति के पूर्व एक व्यक्ति का कुछ भी मूल्य नहीं था, लेकिन क्रांति ने समाज में हर व्यक्ति को यथोचित स्थान दिया। इस कार्य से यूरोप का मध्यम वर्ग काफी उत्साहित था, क्योंकि उसे समाज के सामंत और पादरी वर्ग को मिले विशेषाधिकार अखरते थे। समाज के निचले तबके के लोग भी इससे प्रभावित हुए और 1815 ई० के बाद यूरोप का इतिहास फ्रांस की क्रांति द्वारा जनित उदारवादी सिद्धांतों और प्रतिक्रियावादियों की लड़ाई थी जिसमें अंततः उदारवाद विजयी हुआ।

सामंतवाद् का अंत, सामाजिक समानता और धार्मिक सहिष्णुता-

यह सही है कि फ्रांस की क्रांति का नेतृत्व शुरू से लेकर अंत तक मध्यमवर्ग के हाथ में रहा और जो कानून बने, उनसे मध्यमवर्ग ही लाभान्वित हुआ। लेकिन, एक बार आम जनता में सार्वभौम शक्ति का सिद्धांत स्वीकार कर लेने के बाद धीरे-धीरे 19वों एवं 20 वीं शताब्दियों में जनता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गई और 1848 ई० की क्रांति और उसके बाद में विश्व में मध्यमवर्ग और आम व्यक्ति के बीच हो रहे संघर्ष का श्रेय भी 1789 ई० की क्रांति को ही है। फ्रांस की क्रांति ने ही सर्वप्रथम यह स्वीकार किया कि प्रत्येक मनुष्य कानून के समक्ष बराबर है और जन्म एवं संपत्ति के आधार पर किसी को विशेषाधिकार नहीं मिलना चाहिए। फ्रांस की क्रांति के परिणमस्वरूप सामंतवाद का भी अंत हुआ। इतना ही नहीं, धार्मिक क्षेत्र में भी काफी परिवर्तन आए और धार्मिक सहिष्णुता की सीख विश्व को फ्रांसीसी क्रांति से ही मिली। आम लोगों को स्वतंत्रता देने के प्रयास में प्रेस पर लगे प्रतिबंधों को हटाया गया, जिससे स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ।

राष्ट्रीयता की भावना का उदय-

1789 ई० को फ्रांस की क्रांति ने राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया। अभी तक आम जनता की भक्ति राजा के प्रति थी और देशभक्ति की. भावना का भी अभाव था। फ्रांसीसी क्रांति ने राजभक्ति को देशभक्ति में परिवर्तित कर दिया। लुई सोलहवें द्वारा 1791 ई० में देश छोड़कर भागने के प्रयास ने यह साबित कर दिया कि जनता और राजा के हित असमान हैं। 11 जून, 1792 की फ्रांस के शत्रुओं की घोषणा ने फ्रांसीसियों के एन में असाधारण रूप से देशभक्ति की भावना भर दी, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीयता की भावना लोगों में आई और ये क्रांति के विदेशी शत्रुओं को फ्रांस से भगाने में सफल हुए। इतना ही नहीं, क्रांतिकारी सेना इसी भावना से प्रेरित होकर विदेशी राजाओं को पराजित करने में सफल हुई।

एक ओर यदि फ्रांसीसी क्रांति ने फ्रांस में राष्ट्रीयता एवं देशभक्ति की भावना जागृत की तो दूसरी ओर प्राजित देशों में भी राष्ट्रीयता की भावना का संचार किया। राष्ट्रीयता की भावना के अस्त्र से स्पेनवासियों तथा पुर्तगालवासियों ने नेपोलियन की सेना को अपने देश से भगाया। राष्ट्रीयता की भावना के संचार के कारण ही रूसवासियों ने अपनी भूमि से आक्रमणकारी फ्रांसीसी सेना को 1812 ई० में भगाया। राष्ट्रीयता के प्रचार-प्रसार और उसके बढ़ते उन्मादु ने साबित कर दिया कि एक ताकतवर सेना से एक राष्ट्र अधिक शक्तिशाली होता है।

समाजवादी आंदोलन का प्रेरणास्त्रोत-

मार्क्स से पहले के समाजवादियों ने फ्रांसीसी क्रांतिकालीन सामूहिक क्रियाओं तथा वर्ग-संघर्ष के विचारों से बहुत अधिक प्रोत्साहन ग्रहण किया। क्रांति के लाभों को सिर्फ अपने तक सीमित कर लेने के मध्यमवर्ग के प्रयास से निराश होकर क्रांति के दौरान प्रथम बार निन्नवर्गों ने सामूहिक रूप से अपने को क्रियाशील बनाया। एक प्रगतिवादी संस्था एनरेजेज (Enrages) के लोगों ने जनता की ओर से बोलने का दावा करते हुए मांग की कि कीमतों पर सरकारी नियंत्रण हो, गरीबों की सहायता की जाए और युद्ध की लागत को पूरा करने के लिए धनवानों पर भारी कर लगाया जाए। उनके सभी प्रस्तावों को तुरंत ही कार्यान्वितु नहीं किया गया । पर, 1793 ई. के वसंत में कंवेंशन ने जनता को अनेकानेक सुविधाएँ प्रदान करने के लिए नियम बनाया, युद्ध कर लगाया, धनवानों से बलपूर्वक ऋण प्राप्त किया और 4 मई को पहले-पहल ‘लॉ ऑफ मेक्सिमम’ (law of maximum) का नियम लागू किया। इस नियम के द्वारा वस्तुओं का अधिकतम मूल्य सरकार द्वारा निर्धारित कर दिया गया। श्रमिक वर्गों की यह एक महत्वपूर्ण विजय थी। 1796 ई० के पेन्थियन विद्रोह के षड्यंत्र के पर्दाफाश से समाज के निचले वर्ग के लोगों में एकता और जागृति आई। समाजवादी विचारधारा ने फ्रांस की क्रांति से बहुत कुछ लिया है।

जर्मनी और इटली के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त-

नेपोलियन के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना संपूर्ण जर्मनी और इटली पर हावी हो गई थी, जहाँ क्रांति के पहले आस्ट्रिया का बोलबाला था। राष्ट्रीयता की भावना के प्रसार के परिणामस्वरूप जर्मनी और इटली के लोगों ने आक्रमणकारी फ्रांसीसियों से युद्ध किया और अंततः अपने देश से उन्हें बहिष्कृत कर दिया। लेकिन 1815 ई० को बियना कांग्रेस ने जर्मनी और इटली पर पुनः प्रतिक्रियावादी शासन लाद दिया और देशों में आस्ट्रिया का बोलबाला हो गया। लेकिन, एक बार राष्ट्रीयता की भावना आ जाने पर जर्मनी एवं इटलीवासी आस्ट्रिया के विरुद्ध सतत् प्रयत्न कर राष्ट्रीय एकता के लिए संघर्ष करते रहे और अंत में जर्मनी और इटली को राष्ट्रीय एकता प्राप्त हुई। राष्ट्रीयता की भावना विश्व के हर कोने में अधीन जातियों की अपने शासकों के विरुद्ध आवाज बन गई। इसके फलस्वरूप इन जातियों ने स्वयं संघर्ष कर एशियाई, अफ्रीकी, दक्षिणी अमेरिकी आदि देशों में स्वतंत्रता हासिल की। यह संघर्ष अब भी साम्राज्यवाद के विरुद्ध जारी है।

सैन्यवाद का जन्म-

1789 ई० की फ्रांसीसी क्रांति ने सैन्यवाद को जन्म दिया। फ्रांस पर जब प्रतिक्रयावादी देश आक्रमण करने लगे तो क्रांतिकारियों ने देश में आतंक का राज्य’ कायम किया और आम जनता को क्रांति के शत्रुओं को मार भगाने के लिए तैयार किया। अभी तक युद्ध राजा के पेशेवर सैनिकों द्वारा लड़ा जाता था। यह पहला अवसर था कि पूरी फ्रांसीसी जनता को युद्ध के लिए तैयार किया गया और उन्होंने विदेशियों के साथ संघर्ष करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जन-सुरक्षा समिति का आदेश था, “अब से जब तक कि गणतंत्र के प्रदेश से शत्रुओं को बाहर निकाल नहीं दिया जाता तब तक फ्रांसीसी जनता स्थायी रूप से सैनिक सेवा के लिए उपलब्ध रहेगी। युवक युद्ध में लड़ने जाएंगे। विवाहित हथियार बनाएंगे तथा रसद पहुंचाने का काम करेंगे। महिलाएं तंबू तथा कनात बनाएंगी, अस्पतालों में सेवा करेंगी। बच्चे पुराने कपड़ों से जख्म पर वाँधनेवाली पट्टियाँ बनाएंगे। वृद्ध जनसभा भवनों की मरम्मत कर योद्धाओं का साहस बढ़ाएंगे, गणतंत्र की एकता बनाए रखने तथा राजाओं से घृणा करने का चार करेंगे। यह पहला अवसर था जब विश्व में एक देश ऐसा युद्ध कर रहा था, जिसमें उसकी पूरी जनता राष्ट्रीय युद्ध में शामिल थी, न कि प्रजा अपने राजा के लिए युद्ध लड़ रही थी। इन सैन्यवाद ने बाद में प्रगति करते हुए जर्मनी और इटली के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अधिनायकवाद की शुरुआत

फ्रांस की क्रांति के दौरान कई तरह की समस्याएं आई और पूरे देश में कई तरह की प्रामक बातें फैली। ऐसी स्थिति में एक के बाद एक सिद्धांत कार्यान्वित किए गए और वे असफल हुए। परिणामतः लोगों का विश्वास व्यक्ति विशेष की योग्यता पर होने लगा और इसीलिए नेपोलियन जैसे तानाशाह का उदय हुआ जिसने क्रांतिजनित सारे नारों को समाप्त कर व्यक्तिगत शासन स्थापित किया।

मानवतावाद का जन्म-

फ्रांसीसी क्रांति ने मानवतावाद को भी जन्म दिया। गुलामी प्रथा को खत्म करने की कोशिश की गई और जेलों की हालत सुधारने के लिए प्रयास किए गए। राज्य द्वारा संपत्ति अधिग्रहण करने के बाद संपत्ति का अधिकार असुरक्षित हो गया। अब जरूरत पड़ने पर राज्य किसी की संपत्ति का अधिमहण कर सकता था। फलत:, समाजवादी विचार्धारा अब केवल विचार ही नहीं, बल्कि एक निश्चित स्वरूप लेने योग्य हो गई। आतंक के राज्य के दौरान हेबर्त (Hebert) एवं रॉब्सपीयर द्वारा लागू किए गए सुधार आधुनिक साम्यवाद की ओर इंगित करते हैं।

कंवेंशन काल में क्रांतिकारियों ने एक कानून बनाया जिसके अनुसार अफ्रीका से गुलाम बनाकर दूसरे देशों में गुलामों को बेचने की प्रथा समाप्त कर दी गई। यह तत्कालीन इतिहास के लिए एक क्रांतिकारी कदम था। बाद में फ्रांस की नकल करते हुए यूरोप के दूसरे देशों ने भी 19 वीं शताब्दी में गुलामी प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया।

धर्मनिरपेक्षता-

धर्मनिरपेक्षता की भावना का विकास फ्रांस की क्रांति की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। क्रांति के पूर्व राजनीति पर धर्म हावी था और दोनों एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबद्ध थे। को राजनीति से अलग करने की घटना सर्वप्रथम क्रांति के दौरान ही हुई और राज्य एवं राजनीति को धर्म से पृथक् कर दिया गया। क्रांति के दौरान यह निश्चित हो गया कि धर्म नागरिकों का व्यक्तिगत मामला है और इसमें राज्य को किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। क्रांति के दिनों में फ्रांस का रोमन कैथोलिक चर्च निष्क्रिय कर दिया गया था।

क्रांतिकारियों को धार्मिक कट्टरता से चिढ़ थी। अतः धर्म को राजनीति से अलग कर दिया गया। धर्म अब व्यक्तिगत विश्वास की वस्तु बन गई जिसमें राज्य को किसी तरह हस्तक्षेप नहीं करना था। धर्म और राजनीति के अलग होने से फ्रांस के प्रोटेस्टेंटों, जिन्हें ह्यूग्नोट कहा जाता था, पर से तो अत्याचार घटा ही, अब धर्म के नाम पर भोली-भाली जनता को पादरी नहीं ठग सकते थे। इसके अलावा अंधविश्वास खत्म होने से वैज्ञानिक दृष्टिकोण से राज्य की समस्या पर सोचने और उसे सुलझाने को लोगों की आदत पड़ी। अभी तक शिक्षा-व्यवस्था चर्च करता था। क्रांति के दौरान शिक्षा-व्यवस्था राज्य करने लगा जिसमें धार्मिक विश्वास का कहीं पुट नहीं था। यह क्रांति की एक बड़ी उपलब्धि थी। इस क्रान्ति के बाद अमेरिका और यूरोप के अन्य देशों में राज्य को धर्मनिरपेक्ष बनाने की होड़-सी लग गई।

इस प्रकार, हम देखते हैं कि फ्रांसीसी क्रांति ने समानता, जनतंत्र, देशभक्ति की भावना और सैन्यवाद को जन्म दिया। इसने विश्व के प्रत्येक दलित और अधीन जातियों को अपने अधिकार का बोध कराया । क्रांति का नारा केवल फ्रांस तक ही सीमित न रहकर यूरोप तथा विश्व के अन्य प्रदेशों में भी पहुंचा, जिससे उदारवादी सुधारों का सिलसिला चल पड़ा। 1917 ई० की रूसी क्रांति के पहले यह विश्व की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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