इतिहास / History

मौलिक एकता का अर्थ | भारतीय संस्कृति तथा मौलिक एकता | भारत की मौलिक एकता | भारत की विभिन्नता में एकता तथा एकता में विभिन्नता है

मौलिक एकता का अर्थ | भारतीय संस्कृति तथा मौलिक एकता | भारत की मौलिक एकता | भारत की विभिन्नता में एकता तथा एकता में विभिन्नता है

मौलिक एकता का अर्थ

किसी भी देश की मौलिक एकता का सम्बन्ध उस देश के सांस्कृतिक मूल्यों का विश्वासों से होता है। यह प्रायः निश्चित है कि चाहे वह भारत चीन, अमेरिका या अन्य कोई देश हो-संपूर्ण रूप उसकी संस्कृति का निर्माण विभिन्न तत्वों विश्वासों तथा मूल्यों द्वारा हुआ है। विविधताओं में एकता उत्पन्न करना संस्कृति का एक विशेष लक्षण है। किसी भी देश की एकता की बात करने का अर्थ है- उस देश के मूल्यो, विश्वासों, सामाजिक जीवन, आध्यामिक विचारों, परंपराओं, आचार- विचार तथा व्यवसार आदि की बात करना। राष्ट्रीय एकता तभी तक जीवित रह सकती है  जब तक कि यहाँ की संस्कृति अपने आदशों में एकता बद्ध रहती है। आदर्श खन्डित हो जाने पर विश्वास टूट जाते है। विश्वास का टूटना सांस्कृतिक हास्य का लक्षण है। संस्कृति की जडें यदि मजबूत होंगी तो वह संस्कृति एक दिन कठोर होकर महान् सभ्यता का रूप धारण कर लेगी। इस प्रकार किसी भी देश की मौलिक एकता के लिये विश्वासों, मूल्यों तथा आदशों में समन्वय तथा सहिष्णुता होना आवश्यक है। संक्षेप में हम यह कह सकते है कि मौलिक एकता का अर्थ किसी भी देश के वंशों वर्णों, जातियों, धर्मों, भाषाओं, रीतिरिवाजों, वस्त्राभूषणों एवं अन्य अनेक विभिन्न तत्वों में एकीकरण तथा समन्वय स्थापित करना है। हम इसी सन्दर्भ में भारत की मौलिक एकता के विषय में विचार करेंगे।

भारतीय संस्कृति तथा मौलिक एकता

भारतीय संस्कृति के स्वरूप गुणों तथा विशेषताओं का निरीक्षण करने पर हमें इस निष्कर्ष की प्राप्ति होती है कि इस देश की मौलिक एकता से इसका घनिष्ठ सम्बन्ध है। भारतीय संस्कृति का इतिहास विविधताओं के मध्य एकता की स्थापना करने की गाथा है। डा० बेनी प्रसाद के अनुसार “बहुत पुराने समय में ही जब आना-जाना बहुत मुश्किल था-भारत वासियों ने बहुत अच्छी तरह समझ लिया था कि हमारा देश तथा शिष्टाचार बाहर वालो से जुदा है। रामायण तथा महाभारत के समय में ‘भारतवर्ष’ नाम से काश्मीर तथा कन्याकुमारी तक के तथा सिन्थ से ब्रह्मपुत्र तक के देश का सम्बोधन होने लगा था। आपस में कितना ही फर्क हो पर दूसरों के सामने सब भारतवासी एक से जान पड़ते थे। सभ्यता तथा संस्कृति के विभिन्न अंगों में इस एकता का प्रतिबिम्ब नजर आता है।” प्राचीन काल से लेकर आज तक की भारतीय संस्कृति के रूपों में वैविध्यपूर्ण एकता है। प्रश्न उठता है कि भौगोलिक सामाजिक, रूढ़ियों, परम्पराओं, रहन-सहन, खान पान, वेशभूषा, रीतिरिवाज, आध्यात्मिक, धार्मिक तथा दार्शनिक विषमताओं तथा विविधताओं के बावजूद भारतीय संस्कृति में मौलिक एकता होने के क्या कारण है ? इस एकता का क्या आधार है ? इन प्रश्नों का उत्तर पाने के लिये हम भारत की विविधताओं से तथा उनके एकीकरण के विषय में विचार करेंगे।

  1. भारत की भौगोलिक अनेकता में एकता- भारत एक अतिविशाल देश है। इसकी भौगोलिक दशा की पाँच प्रमुख विशेषताएँ हैं-यथा (1) पृथक्कत्व, (2) सम्पर्क, (3) विशालता, (4) विविधता तथा (5) एकता। इन विशेषताओं के कारण विश्व के मानचित्र में भारत को संसार का संक्षिप्त प्रतिरूप’ कहा जाता है। जब हम मौलिक एकता के सन्दर्भ में भारत की भौगोलिक विशेषताओं की ओर दृष्टिपात करते हैं तो हमें विदित होता है कि भारत की भौगोलिक विविधताओं तथा अनेक रूपता ने भारत की संस्कृति को बहुत प्रभावित किया है। राजनैतिक क्षेत्र में भौगोलिक अवस्था ने देश को एकता के रूप में प्रशासित करने वाले तन्त्र की स्थापना को असंभव बना दिया। फलस्वरूप भारतीय राजनीति में फ्रान्स या इंग्लैण्ड जैसी एक शासन पद्धति नहीं रही। परन्तु जब हम भारत की भौगोलिक अनेकता को सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखते हैं तो हमें एक अद्भुत तथा आश्चर्यजनक परिणाम की प्राप्ति होती है। राजनैतिक अलगाव के होते हुए, भारतीय संस्कृति का एकता-विरोधाभास सा प्रतीत होती है। इस क्षेत्र में भौगोलिक अवस्था संस्कृति द्वारा पूर्ण रूप से विजित कर ली गई है। भौगोलिक विविधता के होते हुए भी भारतीय संस्कृति एक जैसे आदर्शों, विचारों तथा विश्वासों में बंधी हुई है। कन्याकुमारी में रहने वाले भारतीय के लिये कैलाश पर्वत उतना ही पवित्र है जितना कि उत्तर में रहने वाले भारतीय के लिये रामेश्वरम्। भारतीय तीर्थ भारत के कोने-कोने में विस्तृत है तथा इन सब की यात्रा करना आवश्यक समझा जाता है।
  2. जातिगत अनेकता में एकता- भारत में जातिगत अनेकता सदैव से बनी रही है। आर्य, द्रविड़, शबर पुलिन्द, मंगोल, किरात, हूण, यवन, शक, पह्नव, अरब, तुर्क, पठान आदि जातियों ने इस देश के जातिगत वातावरण को विभिन्नताओं से परिपूर्ण किया। इन जातियों के शारीरिक, मानसिक, धार्मिक, दार्शनिक तथा पारम्परिक आदि गुण तथा विश्वास अलग-अलग हैं परन्तु भारत की मिट्टी में कुछ ऐसा चमत्कार है कि इन जातियों की संस्कृति के टकराव स्वरूप यहाँ पर कोई आपद स्थिति उत्पन्न नहीं हुई। भारतीय संस्कृति की उदारता एवं सहिष्णुता ने सभी जातियों को स्वयंभू कर लिया। जब भी कोई जाति किसी भी रूप में भारत आई तो शुरू-शुरू में तो उसकी जातिगत भावना प्रबल रही,परन्तु जब भारतीय संस्कृति से उसका सामना हुआ तो शनैः शनैः उनकी जातिगत भावना निर्बल होती गई और उसने भारतीयता का परिवेश धारण कर लिया। नाम अलग रहे, रूप भित्र रहे-परन्तु भारतीय संस्कृति के प्रेम, सहिष्णुता, उदारता तथा कल्याण आदि गुणों ने सभी जातियों के बीच भावात्मक एकता स्थापित कर दी। इतिहास के अनेकानेक प्रमाण तथा घटनाएं हमारी इस मान्यता की पुष्टि करती है कि भारतीय जातियों की अनेकता में एक अद्भुत एकता है।
  3. भाषागत अनेकता में एकता- भारत को प्रायः भाषाओं का अजायब-घर कहा जाता है। भारत में लगभग 180 भाषायें हैं। यह स्वाभाविक भी है कि जहाँ पर विभिन्न जातियाँ होगी- वहाँ पर भाषाओं की पर्याप्त भिन्नता होगी। द्रविड़, कोल, आर्य, ईरानी, यूनानी, हूण, शक, मध्य युगीन अरब, तुर्क, पठान, मंगोल तथा पश्चात् कालीन डच, फ्रेंच, अंग्रेज आदि भारतीय जातियों की भाषा अलग-अलग रही-परन्तु जब उन्होंने इस देश में बसना शुरू किया तो एक दूसो को समझने तथा विचारों के आदान-प्रदान की आवश्यकता पड़ी। फलस्वरूप एक ऐसी भाषा का जन्म हुआ जा भारत के अधिकांश की भाषा बन गई। यह भाषा पहले तो संस्कृत थी परन्तु आजकल हिन्दी है। यादि ध्यान पूर्वक निरीक्षण किया जाये तो हमें यह विदित होगा कि भारत की लगभग समस्त भाषाओं में संस्कृत का पुट है। बंगला, तामिल तथा तेलगु भाषा पर तो संस्कृत का बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। मुसलमानों के साथ फारसी भाषा आयी तथा संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रभाव द्वारा उर्दू का जन्म हुआ। फिर जब अंग्रेज आये तो अंग्रेजी भाषा का प्रसार हुआ। इस प्रकार भारत में अनेक भाषायें तो आयीं परन्तु आधुनिक समय तक हमें यहाँ पर भाषागत टकराव का कोई प्रमाण नहीं मिलता। स्वाधीन भारत ने भाषागत अनेकता को एकता के रूप में परिवर्तित करने के लिये हिन्दी को राष्ट्र भाषा की मान्यता दी है, परन्तु इस विषय में कतिपय तत्व बाधायें उत्पन्न कर रहे हैं। हमें आशा करनी चाहिये कि एक दिन भारत की रही-सही भाषागत अनेकता एकता में परिवर्तित हो जायेगी।
  4. धार्मिक अनेकता में एकता- जब हम भारतीय धर्मों की अनेकता के विषय में विचार करते हैं तो हमें इस निष्कर्ष की प्राप्ति होती है कि यहाँ पर सदैव से ही अनेक धर्मों तथा धार्मिक सम्प्रदायों का बोलबाला रहा है। परन्तु विभिन्न धर्मों के मतानुयायी अपनी धार्मिक विभिन्नता के विपरीत भी स्वयं को भारतीय मानते हैं। डा० बेनीप्रसाद के अनुसार, “आपस में चाहे जितना भी फर्क हो-पर सबके सामने भारतवासी एक से जान पड़ते हैं। विभिन्न धर्मानुयायी अपने धर्म में विश्वास रखते हुए भी भारतीय एक मानवधर्म में आस्था रखते हैं। भारतीय आत्मा धर्म निरपेक्ष है।श्री अरविन्द के अनुसार-“The fundamental idea of all Indian religions is one spirituality.”
  5. राजनैतिक अनेकता में एकता- जब हम भारत की राजनैतिक अनेकता के विषय में विचार करते हैं तो हमें पता चलता है कि मुगलों के समय तक राज्यतन्त्रात्मक प्रणाली की प्रधानता रही। अंग्रेजों के शासनकाल में परोक्षरूप से तानाशाही प्रणाली कार्य करती रही, परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने गणतन्त्रीय प्रणाली को अपनाया। इन शासन प्रणालियों के अन्तर्गत भारतीय राजनैतिक वातावरण में अनेकता होते हुए भी एकता की भावना बनी रही। राज्यतन्त्रीय राजनैतिक प्रणाली के अन्तर्गत सदैव से ही विशाल साम्राज्य स्थापना के प्रयास किये जाते रहे। मौर्य तथा गुप्त साम्राज्य भारत की राजनैतिक एकता के ज्वलन्त उदाहरण हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के संग्राम में समस्त भारत ने एकजुट होकर राजनैतिक एकता का परिचय दिया। गणतन्त्रीय प्रणाली अपनाये जाने के उपरान्त भारत में अनेक राजनैतिक विचारधाराओं के राजनैतिक संगठनों तथा दलों का जन्म हुआ। ये सभी राजनैतिक दल पारस्परिक मतभेद रखते हुए भी भारत की राजनैतिक एकता को सर्वोपरि मानते हैं।
  6. सामाजिक अनेकता में एकता- भारत का सामाजिक जीवन एक सरीखा है। यद्यपि भारत की सामाजिक इकाइयों के रूप में हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, पारसी, जैन तथा बौद्ध आदि अपने सामाजिक विश्वासों, परम्पराओं तथा रीति-रिवाजों में भिन्न हैं तथापि उनके पारस्परिक सामाजिक सम्बन्ध सहिष्णु, उदार तथा मधुर हैं। भारतीय समाज का आदर्श तथा दिशा लोकमंगल एवं मानव कल्याण है। भारतीय समाज में लचीलापन है तथा इसकी प्रवृति समन्वयवादी है। कठोर से कठोर दुर्भाग्य भी हमारी सामाजिक संस्कृति की एकता को नहीं मिटा पाया हैं।
  7. आर्थिक विषमता में समता- यद्यपि आधुनिक समय में आर्थिक विषमता का प्राबल्य है तथापि प्राचीनकाल में वस्तु-स्थिति ऐसी नहीं थी। आर्थिक दृष्टि से समस्त भारतीयों की दशा सन्तोषजनक थी। आर्थिक विषमता के होते हुए भी समाज में आर्थिक सन्तोष था। परन्तु आधुनिक भारत में आर्थिक समता की बात को कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस विषय में पं० नेहरू ने उचित ही लिखा है, “अमीरी और गरीबी से उपजी हुई अनगिनत बातें सभी जगह हैं और इसके हैवानी पंजे के निशान हर माथे पर लगे हुए हैं। हमारा विचार है कि भारत की बढ़ती हुई आर्थिक विषमता पर यदि शीघ्र ही अंकुश न लगाया गया तो हमारी संस्कृति तथा बुनियादी विश्वासों के लिये संकट उत्पन्न हो जायेगा।
  8. सांस्कृतिक एकता- संस्कृति का सम्बन्ध मन तथा हृदय से होता है। मन तथा हृदय से भारत एक है। राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, जातिगत अनेकता आदि को एकता के सूत्र में पिरोने का श्रेय भारतीय संस्कृति को है। भारत में मन तथा हृदय की सांस्कृतिक एकता न होती तो पता नहीं इस देश का रूप आज क्या होता? प्रो० हुमायूँ कबीर के अनुसार “भारतीय संस्कृति की कहानी एकता, समाधानों का एकीकरण तथा प्राचीन भारतीय परम्पराओं के पूर्णात्व एवं उन्नति की कहानी है। यह प्राचीनकाल में रही है और जब तक विश्व रहेगा तब तक रहेगी। सभी संस्कृतियाँ नष्ट हो गईं परन्तु संस्कृति की एकता सतत् एवं अमर है।” हमारा विचार है कि सांस्कृतिक एकता के कारण ही हम अपने को भारतीय कहते हैं तथा “भारतीयता’ में गौरव का अनुभव करते हैं।

निष्कर्ष

उपरोक्त विभिन्न प्रकरणों की अनेकता में भारत की एकता सर्वत्र विद्यमान दृष्टिगत होती है। भारत की भौगोलिक अनेकता ने हमें एकता के मूल्य और महत्व के प्रति जागरुक बनाया है। जातिगत तथा भाषागत अनेकता ने हमें अपने अस्तित्व की रक्षा करने के लिये पारस्परिक मतभेदों को भुलाने की प्रेरणा दी है। धार्मिक तथा सामाजिक अनेकता के दुष्परिणामों के प्रति धार्मिक चिन्तकों तथा सामाजिक सुधार-वादियों ने हमें अतिप्राचीन काल से ही सजग किया तथा इन मतभेदों को भुलाकर राष्ट्रीय भावना को बलवती बनाने की प्रेरणा दी। आधुनिक आर्थिक असन्तुलन की विषम परिस्थितियों में भी हम एकता को सर्वोपरि मानते हैं तथा आर्थिक क्रान्ति की अपेक्षा आर्थिक सुधारों पर विशेष बल देते हैं। संकट तथा विषम परिस्थितियों का सामना करने के लिये हमने एकता का ही सहारा लिया है। समय की कसौटी पर हमारी एकता तथा भारतीय चेतना सफल सिद्ध हुई है। एकता हमारी आत्मा का अन्तर्निहित गुण है। महाकवि टैगोर के अनुसार-

“The realisation of unity in diversity, the establishment of a synthesis amidst variety is inherent in India.”

भारत ही अकेला देश है जहाँ मन्दिरों, गिरजों, मसजिदों, गुरुद्वारों में शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि भारत की विविधता उस महीन आवरण की भाँति है जिसमें ध्यानपूर्वक देखने पर भारत की अखण्ड मौलिक एकता ही दृष्टिगोचर होती है! वास्तविकता के प्रति आस्था, आध्यात्मिक अनुभव का महत्व, संस्कारों और सिद्धांतों की सापेक्षता, बौद्धिक आदर्शों के प्रति रूढ़ अवलम्बन तथा प्रत्यक्ष विरोधों को सम करने की आतुरता के गुणों से युक्त भारतीय संस्कृति ने भारत की अनेकता को एकताबद्ध किया हुआ है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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