प्लेट टेक्टोनिक्स और पर्वत निर्माण | पर्वत निर्माण प्रक्रिया की व्याख्या करने में प्लेट विवर्तनिकी की भूमिका | प्लेट विवर्तनिकी संकल्पना का मूल्यांकन

प्लेट टेक्टोनिक्स और पर्वत निर्माण | पर्वत निर्माण प्रक्रिया की व्याख्या करने में प्लेट विवर्तनिकी की भूमिका | प्लेट विवर्तनिकी संकल्पना का मूल्यांकन | Plate Tectonics and Mountain Formation in Hindi | Role of plate tectonics in explaining mountain formation process in Hindi | Evaluation of Plate Tectonics Concept in Hindi

प्लेट टेक्टोनिक्स और पर्वत निर्माण

(Plate Tectonic and Mountain Building)

भू-पटलीय प्लेट (Crustal Plate) में एक किनारे पर मध्य-सागरीय कटक या भ्रंश (Mid-ocean ridge or rift) मिलता है जहाँ भ्रंश-स्थल पर पिघला हुआ बेसाल्ट ऊपर उठता है। और नये भू-पटल का निर्माण होता रहता है। यहाँ प्लेटों का बिलगाव या अपसरण (Divergence)  होता है। कटक या अंश से दूर हटता हुआ भू-पटल प्लेटों के दूसरे किनारे पर पहुंचता है जहां गहरा समुद्री ट्रेन्चों में भू-पटल फिर मैन्टल में प्रवेश कर जाता है। यहाँ दो प्लेटों का मिलन या अभिसरण (Convergence) होता है, और एक प्लेट दूसरे प्लेट के नीचे घुस कर मैन्टल में समाविष्ट हो जाता है। प्लेट के दो बाकी किनारों पर, दो प्लेट केवल एक दूसरे के पास से होते हुए गुरजते हैं और उनका केवल घर्षण होता है। अतः तीन प्रकार की प्लेट सीमायें (plate boundaries) संभव है :- (क) अपसारी (Divergent boundaries or junctures) जिनके उदाहरण मध्य सागरीय भ्रंश हैं, (ख) घर्षण सीमायें (Shear boundaries or Junctures) जहाँ दो प्लेट एक दूसरे के पास से सटते हुए गुजरते हैं। (ग) अभिसारी सीमायें (Convergent boundaries or junctures) जहाँ दो प्लेट एक दूसरे से टकराते हैं (Collide) और इनमें से एक प्लेट ट्रेन्चों में प्रविष्ट होकर नष्ट हो जाता है। इनमें से अपसारी (Divergent) तथा अभिसारी (Convergent) सीमायें विशेष महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अपसारी सीमाओं पर सागरीय कटकों तथा विभ्रंश घाटियों (Rift Valleys) का निर्माण होता है, और अभिसारी सीमाओं पर मोड़दार पर्वत-मालाओं का निर्माण होता है।

संसार की नवीन मोड़दार पर्वतमालायें अर्थात् आल्प्स-हिमालय पर्वतमाला तथा परि- प्रशांतीय (Circum-Pacific) पर्वतों की पट्टियाँ दोनों अभिसारी प्लेट सीमाओं (Convergent Plate boundaries) पर स्थित हैं जहाँ दो प्लेटों के बीच टकराव की स्थिति पायी जाती है। अतः एक सामान्य नियम के रूप में कहा जा सकता है कि जहाँ दो प्लेटों का अभिसरण (Convergence) या टकराव (Collision) होता है वहाँ भू-पटल में संपीडन (Compression) के कारण पर्वतों का निर्माण होता है।

प्लेटों का अभिसरण तीन स्थितियों में हो सकता है – (i) जहाँ एक प्लेट महासागरीय और दूसरा प्लेट महाद्वीपीय हो (Continent-Ocean collision), (ii) जहाँ पर दोनों प्लेट महाद्वीपीय हो (Continent-Continet Collision), तथा (iii) जहाँ पर दोनों प्लेट महासागरीय हो (Ocean-Ocean Collision) I

(1) महाद्वीप-महासागर अभिसरण (Continent-Ocean Collision) –

यह सबसे सामान्य प्रकार का अभिसरण है, और प्रशान्त महासागर को घेरे हुए पर्वतों की श्रृंखलायें वैसे स्थानों पर स्थित हैं जहाँ महाद्वीपीय और महासागरीय प्लेटों के बीच अभिसरण या टकराव पाया जाता है। इस प्रकार के अभिसरण की स्थिति दक्षिणी तथा उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर एन्डीज तथा रॉकीज पर्वतमालाओं में मिलती है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण दक्षिणी अमेरिका के पैसिफिक तट पर देखने को मिलता है। यहाँ महासागरीय पटल और महाद्वीपीय पटल में सतत टकराव की स्थिति पायी जाती है। फलस्वरूप महासागरीय पटल गहरे समुद्री ट्रेन्चों में महाद्वीपीय पटल के नीचे घुस जाता है। अत्यधिक संपीडन के कारण प्लेट के किनारे के पदार्थों का वलन प्रारंभ हो जाता है। दो प्लेटों के टक्कर से बेनिऑफ क्षेत्र (Benioff Zone) में इतना अधिक ताप उत्पन्न होता है कि नीचे घुसता हुआ समुद्री प्लेट तथा महाद्वीपीय प्लेट के निचले भाग की चट्टानें पिघल जाती हैं। ये पिघली हुई चट्टानें अर्न्तवेधित (Intruded) होकर धरातल के नीचे आग्नेय चट्टानों के रूप में जमा हो जाती हैं, और कुछ ऐन्डिसाइट मैगमा (Andesite magma) के रूप में धरातल पर उद्गारित होती हैं। नीचे घुसते हुए समुद्री प्लेट के फलस्वरूप बेनिऑफ क्षेत्र में भूकम्प उत्पन्न होते हैं जिनके उत्पत्ति केन्द्र प्रायः 300 से 400 किलोमीटर की गहराई तक पाये जाते हैं। जैसे-जैसे पर्वत-निर्माण क्षेत्र का गतिशील केन्द्र (Mobile core of the orogenic belt) विकसित होता है, वैसे-वैसे ऊँचे तापमान तथा अत्यधिक दबाव के कारण  प्लेट के किनारों का विरूपण बढ़ता जाता है। उत्थापन के कारण गुरुत्व फिसलन (Gravity – slide), तथा संपीडन (Compression) के कारण क्षेपण (Thrusting) होता है। गतिशील केन्द्र (Mobile Core) रूपान्तरित चट्टानों को महाद्वीप की ओर उत्क्षेपित कर देता है, और महाद्वीपीय किनारों का पर्वतों के रूप में उत्थापन होता है।

प्लेट विवर्तन सिद्धान्त के अनुसार एन्डीज पर्वतमाला का निर्माण प्रारंभिक मेसोजोइक काल में शुरू हुआ। इसी समय सागरीय प्लेट का दक्षिण अमेरिकन प्लेट के नीचे प्रत्यावर्त्तन (Subduction) प्रारंभ हुआ जिसके कारण पैलियोजोइक कालीन सागरीय अवसादों की परत का विरूपन होने लगा। इसके बाद दक्षिण अमेरिकन प्लेट पश्चिम की ओर खिकने लगा जिससे मध्य मेसोजोइक तथा प्रारंभिक क्रिटेशस युग में पर्वत निर्माण की क्रिया में तेजी आ गई, और सागरीय अवसादों के वलन के साथ-साथ अग्नेय चट्टानों का अन्तर्वेधन तथा ज्वालामुखी उद्गार होने लगे। जैसे-जैसे सागरीय प्लेट का अमेरिकन प्लेट के नीचे उतार और वदाव बढ़ता गया, इन क्रियाओं में तीव्रता आती गयी, और पर्वतन क्रिया के क्षेत्र का विस्तार होता गया। ऐन्डीज का पूर्वी भाग पैलियोजोइक काल के रूपान्तरित अवसादों द्वारा निर्मित है, पश्चिमी भाग में मेसोजोइक तथा सेनोजोइक काल के ज्वालामुखी पदार्थ तथा छिछले सागरीय अवसाद तथा जुरैसिक के क्रिटेशस कालीन बैथोलिथ पाये जाते हैं। और इन दोनों के मध्य एक अपेक्षाकृत नीचा अन्तः पर्वतीय क्षेत्र पाया जाता है।

(2) महाद्वीप-महाद्वीप अभिसरण (Continent- Continent Collision) –

इस प्रकार के अभिसरण या टक्कर से उत्पन्न पर्वतमालाओं का सबसे उत्तम उदाहरण अल्पाइन- हिमालय पर्वत मेखला मे देखने को मिलता है। मेसोजोइक काल में भारत दक्षिणी महाद्वीपों के साथ गौंडवाना लैंड का भाग था, और मुख्य एशियाई स्थलखण्ड (लॉरेशिया) और गौडवाना लैंड के बीच टेथिस सागर था। मेसोजोइक काल के बाद, गौंडवाना लैंड टूटने लगा और भारत

महादेशीय प्लट के नोच महासागरीय प्लेट नोच घसन की स्थिति में पर्वत निर्माण और उससे सम्बन्धित संरचनायें (सटन पर आधारित)

लगभग 16 सेन्टिमीटर प्रतिवर्ष की दर से उत्तर की ओर हटने लगा, और लगभग 30 से 60 मिलियन वर्ष पहले एशियाई स्थल खण्ड से जुड़ गया। फलस्वरूप टेथिस सागर छोटा होता गया और अन्त में बन्द हो गया। लगभग इसी समय अफ्रिका भी उत्तर की ओर खिसकने लगा, और यूरोप और अफ्रिका के बीच स्थित टेथिस सागर का अंश छोटा होता गया। भारत तथ एशियाई स्थलखण्ड के टक्कर के कारण इन दोनों के बीच स्थित सागरीय तलछट तथा भू-पटल का वलन तथा क्षेपण (Folding and thrusting) हो गया, और लगभग 2 से 30 मिलियन वर्ष पहले हिमालय पर्वतमाला का निर्माण हुआ। महादेशों की सापेक्षिक उत्प्लावकता (Relative buoyancy) के कारण ऊपरी चट्टानों में वलन और क्षेपण अधिक हुआ। इन उत्थित वलित तलछटों के ऊपर इनके अपरदन से प्राप्त फ्लिश (Flysch) तथा तटीय क्षेत्रों में मोलासे (Molasse) के निक्षेप मिलते हैं। इसी प्रकार अफ्रिका तथा यूरोप के प्लेटों के टकराव के कारण महाद्वीपों के किनारे स्थित तलछटों का वलन और क्षेपण हुआ है, और दक्षिण यूरोप के आल्प्स तथा उत्तर-पश्चिम अफ्रिका के एटलस पर्वतमालाओं का निर्माण हुआ है।

(3) महासागर-महासागर प्लेटों का अभिसरण (Ocean-Ocean Collision) –

जहाँ अभिसारी प्लेट सीमा (Convergent Plate boundary) के दोनों ओर सागरीय पटल पाये जाते हैं, वहाँ एक प्लेट का सागरीय पटल दूसरे प्लेट के नीचे ट्रेन्चों में घुस जाता है, और इससे उत्पन्न संपीडन द्वारा द्वीप तोरण तथा द्वीप चाप (Island festoons and island-arcs) के पर्वतों का निर्माण होता है। ये मालाकार द्वीप समूह तथा द्वीप चाप प्रशान्त महासागर के पश्चिमी किनारे तथा हिन्द महासागर के उत्तर-पूर्वी किनारे पर विशेष रूप से पाये जाते हैं। स्वेस ने सबसे पहले बतलाया था कि ये चापाकार द्वीप समूह डूबे हुए नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियों के शीर्ष हैं, तथा महाद्वीपों पर पाये जाने वाले पर्वतमालाओं के विस्तार हैं। महाद्वीपों तथा इन चापाकार द्वीप समूहों के बीच छिछले समुद्र मिलते हैं जिन्हें पृष्ठ-चाप बेसिन (Back-arc basins) कहते हैं। जापान सागर पृष्ठ-पाच बेसिन का एक अच्छा उदाहरण है। प्रत्येक चाप के महासागरीय किनारे की तरफ एक गहरा ट्रेन्च पाया जाता है। ऐसा लगता है कि ट्रेन्चों का निर्माण प्लेट के नीचे उतरने के कारण होता है। यहाँ पर महासागरीय पटल निक्षेपित तलछटों सहित निकटवर्ती महासागरीय पटल के नीचे प्रवेश करता है, और इस प्रकार ट्रेन्च के महाद्वीपीय पार्श्व में दबाव के कारण रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण होता है। जब नीचे गिरता हुआ प्लेट 100 किलोमीटर से अधिक गहराई में पहुंचता है तो अत्यधिक ताप के कारण वह पिघलने लगता है, और पिघला हुआ मैगमा ज्वालामुखीय चट्टानों के रूप में ऊपर उठ कर जमा होता है। ‘ज्वालामुखीय उद्भेदन की क्रिया ट्रेन्च से महाद्वीप की ओर लगभग 200 किलोमीटर की क्षैतिज दूरी पर होती है। इससे उत्पन्न ताप और दबाव में वृद्धि के कारण चट्टानों में और भी अधिक रूपान्तरण होता है। प्लेट जितना अधिक नीचे उतरता है, ज्वालामुखीय क्रिया उतनी तीव्र होती है, लावा का प्रकार बदलता जाता है, और उद्गार की दूरी ट्रेन्च से बढ़ती जाती है। कम गहराई से सबसे पहले बेसाल्ट उद्गारित होता है, और अधिक गहराई से एन्डिसाइट जो धीरे-धीरे क्षारीय (Alkaline) होता जाता है।

इस तरह की स्थिति का उत्तम उदाहरण जापान द्वीप-चाप में मिलता है। यहाँ मुख्य द्वीप हौन्शु में 3,000 से 4,000 मीटर ऊँचे पर्वत हैं और वे सभी उत्पत्ति में ज्वालामुखी हैं। अतः वे हिमालय अथवा पाल्प्स की तरह वलित पर्वत (Fold mountains) नहीं कहे जा सकते हैं, किन्तु इनमें वलित पर्वतों की कई विशेषतायें वर्तमान हैं। हौन्शु द्वीप पश्चिम में जापान सागर  तथा पूरब में जापान ट्रेन्च के मध्य स्थित है और मुख्यतः बेसाल्ट और एन्डिसाइट चट्टानों द्वारा  निर्मित है। महासागरीय पटल का ट्रेन्च में प्रत्यावर्त्तन (Subduction) होता है जो लगभग 120 किलोमीटर की गहराई में जाकर पिघल जाता है। यही कारण है कि हौन्शु के पूर्वी भाग की तुलना में पश्चिमी भाग में ज्वालामुखी क्रिया अधिक होती रही है। जापान के पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों भागों में विभिन्न कालीन रूपान्तरित चट्टानों की पट्टियों का पाया जाना यह संकेत करता है कि जापान का निर्माण दो विभिन्न कालीन द्वीप-चापों के संयोग से हुआ है। वर्तमान काल में जापान के दक्षिण फिलिपीन्स चाप तथा मेरियाना चाप दो अलग-अलग द्वीप-चाप पाये जाते हैं।

यहाँ पर बतला देना उचित होगा कि कभी-कभी महाद्वीप तथा द्वीप-चाप के अभिसरण से भी पर्वतों का निर्माण होता है। इस प्रकार की स्थिति न्यूगिनी में मिलती है जहाँ लगभग 20 मिलियन वर्ष पहले उत्तर में स्थित द्वीप-चाप तथा आस्ट्रेलिया के उत्तरी किनारे के अभिसरण से न्यूगिनी के पर्वतों का निर्माण हुआ है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि महासागर महासागर अभिसरण (द्वीप चाप स्थिति) तथा महाद्वीप-महासागर अभिसरण (ऐन्डीज या कॉर्डिलेरा की स्थिति) में महासागरीय पटल के ट्रेन्चों में नीचे गिरने से उत्पन्न तापीय ऊर्जा के कारण आग्नेय चट्टानों की प्रचुरता (आफियोलाइट्स- ophioilites) मिलती है जिनका निर्माण मुख्यतः महासागरीय पटल के पदार्थो से होता है। किन्तु महाद्वीप महाद्वीप अभिसरण (अथवा महाद्वीप-द्वीपचाप अभिसरण) की स्थिति में उच्च ताप से उत्पन्न ओफियोलाइट्स (Ophioilites) तथा रूपान्तरित चट्टानें कम महत्वपूर्ण है और टकराव से उत्पन्न यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical energy) अधिक महत्वपूर्ण होती है। अतः यहाँ मुख्यतः महाद्वीपीय पटल की परतदार तथा रवेदार चट्टानों का विरूपण होता है।

यदि इस संकल्पना को स्वीकार किया जाता है कि प्लेटों के अभिसरण (Convergence) के स्थान पर भू-पटल के संपीडन (Compression of the crust) द्वारा पर्वतों का निर्माण होता है।

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