अर्थशास्त्र / Economics

राजकोषीय नीति की सीमाएँ | राजकोषीय या बजट नीति की सफलता हेतु सुझाव

राजकोषीय नीति की सीमाएँ | राजकोषीय या बजट नीति की सफलता हेतु सुझाव

राजकोषीय नीति की सीमाएँ

  1. उत्तम कर प्रणाली का अभाव- विकासशील देशों में एक अच्छी कर प्रणाली का प्रभाव होता है, क्योंकि सरकार एक कर व्यवस्था लागू करती है, समस्याग्रसत राष्ट्र में वह व्यवस्था अधिक दिनों तक टिकाऊ नहीं रहती है, परिणामस्वरूप राजकोषीय नीति की असफलता संदिग्ध हो जाती है। क्योंकि करारोपण के सिद्धान्तों में अव्यावहारिकता का पक्ष प्रस्तुत होता है, फलतः कर अपवंचन एवं कर से बचाव, कर विवर्तन मनचाही दिशा की ओर अग्रसर रहता है। इसके विपरीत विकसित राष्ट्रों में एक उत्तम कर प्रणाली उपलब्ध रहती है।
  2. मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति में समन्वय का अभाव- किसी भी अर्थव्यवस्था में मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति के मध्य समन्वय आवश्यक है। क्योंकि अर्थव्यवस्था में दोनों नीतियाँ अहम् होती है। किन्तु विकासशील देशों में मौद्रिक नीति के अन्तर्गत जब मुद्रा प्रसार की नीति अपनाकर आर्थिक विकास एवं स्थायित्व के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहती है तो राजकोषीय (बजट) या नीति करारोपण द्वारा माँग सृजित स्फीति को रोकने एवं सार्वजनिक व्यय में कमी, के प्रयास किये जाते हैं। इस प्रकार दोनों नीतियों में समन्वय का अभाव रहता है। विकसित राष्ट्रों में दोनों के मध्यपूर्ण समन्वय स्थापित रहता है।
  3. निजी निवेश पर विपरीत प्रभाव- राजकोषीय नीति की एक सीमा यह होती है कि कभी-कभी सार्वजनिक व्यय से निजी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं, क्योंकि सरकारी निवेश यदि उन्हीं क्षेत्रों पर हो रहे हैं, जहाँ निजी निवेशक निवेश करते तो वे निजी निवेश को रोक देते हैं। इसी प्रकार प्रगतिशील कर भी निजी निवेश एवं उत्पादनपर विपरीत प्रभाव डालते हैं। अतः राजकोषीय नीति निजी निवेश को हतोत्साहित करता है।
  4. अकुशल प्रशासनिक व्यवस्था- राजकोषीय नीति या बजट नीति की सफलता के लिए प्रशासनिक व्यवस्था कुशल एवं चुस्त होनी चाहिए। दुःख है कि अलपविकसित एवं विकासशील देशों में अकुशल प्रशासन अपने उत्तरदायित्व का उचित पालन नहीं करता है, जिससे राजकोषीय नीति प्रभावशाली ढंग से लागू नहीं हो पाती है। फलतः जनमानस अपेक्षित लाभ से वंचित रहता है।
  5. आंकड़ों की अनुपलब्धता- राजकोषीय नीति की असफलता के लिए शुद्ध आंकड़े को उपलब्ध होना चाहिए, लेकिन विकासशील एवं अल्पविकसित देशों में कर, ऋण एवं व्यय के विश्वसनीय आंकड़ों की अनुलब्धता होती है। फलतः राजकोषीय नीति में ‘भावी सुदृढ़ योजना घोषित करना कठिन हो जाता है।
  6. निर्णयों में देरी- राजकोषीय या बजट नीति की असफलता त्वरित निर्णयों पर निर्भर होती है। लेकिन स्फीति की दशा में तुरन्त करों की घोषणा, मन्दी की अवस्था में सार्वजनिक व्ययों की वृद्धि एवं सार्वजनिक ऋणों की प्राप्ति आदि के लिए निर्णय लेने में अनावश्यक विलम्ब होता है। यदि घोषणा कर भी दी जाती है तो क्रियान्वयन में देरी होती है। इसलिए राजकोषीय नीति के निर्णयों में देरी के कारण असफल हो जाती है।

राजकोषीय या बजट नीति की सफलता हेतु सुझाव-

बजट नीति या राजकोषीय नीति की सफलता के लिए सभी देशों को विशेष सजग रहना चाहिए, मुख्य सुझाव इस प्रकार हैं-

(1) बजट नीति की सफलता हेतु राजकोषीय नीति एवं मौद्रिक नीति के मध्य समन्वय स्थापित करना आवश्यक है। (2) बजट नीति की सफलता हेतु एक अच्छी कर प्रणाली जो व्यावहाकिर एवं कर-अपवंचन पर नियन्त्रण रखने वाली हो, घोषित करनी चाहिए। (3) बजट नीति में निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलना रहे, ऐसी स्थिति के लिए करारोपण, व्यय-व्यवस्था, ऋण व्यवस्था को नियंत्रित करके व्यवस्थित किया जाना आवश्यक है। (4) बजट नीति में राष्ट्र को आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु घाटे का बजट, अति मुद्रा प्रसार में आधिक्य बजट प्रस्तुत करना चाहिए। (5) बजट नीति की सफलता हेतु सुदृढ़ एवं चुस्त प्रशासनिक व्यवस्था का स्वरूप आवश्यक है। (6) बजट नीति की सफलता हेतु सरकार की निष्ठा एवं प्रतिबद्धता अत्यावश्यक पहलू है, जो राजकोष सम्बन्धी व्यवस्था को तुरन्त क्रियान्वित करने में सक्षम हो।

निष्कर्ष-

बजट नीति का अर्थव्यवस्था के लिए पारदर्शी एवं उत्पादकता के अनुरूप स्वरूप प्रकट होनी चाहिए। क्योंकि बजट नीति या राजकोषीय नीति देश में कराधान, ऋण एवं सार्वजनिक व्ययों की नियमन सम्बन्धी रूप रेखा प्रस्तुत करती है, जिस पर अर्थव्यवस्था का भावी स्वरूप निर्भर करता है। इसलिए सरकारों ने शून्य आधार बजट प्रक्रिया तक का प्रयोग सन् 1969 में अमेरिका से प्रारम्भ कर दिया है। भारत में इस तकनीक की चर्चा 1986 से सर्वप्रथम हुई है। चालू प्रथा को स्वीकारने के बजाय यह ललकारने तथा प्रश्न करने के रवैये को जन्म देती है। इसमें पुराने तथा अकुशल प्रचालनों की पहचान कर ली जाती है। अतः संसाधनों का आवंटन लाभों के अनुसार हो जाता है। अतः बजट नीति को किसी देश का आधार कहा जाये तो अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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