अर्थशास्त्र / Economics

भारत में आर्थिक नियोजन | भारतीय नियोजन की उपलब्धियाँ | Economic planning in india in Hindi | Achievements of Indian planning in Hindi

भारत में आर्थिक नियोजन | भारतीय नियोजन की उपलब्धियाँ | Economic planning in india in Hindi | Achievements of Indian planning in Hindi

भारत में आर्थिक नियोजन 

भारत में आर्थिक नियोजन के इतिहास का अध्ययन दो भागों में कर सकते है- (अ) स्वतन्त्रता से पूर्व आर्थिक नियोजन व (ब) स्वतन्त्रता के पश्चात् आर्थिक नियोजन।

(अ) स्वतन्त्रता से पूर्व आर्थिक नियोजन-

स्वतन्त्रता से पूर्व आर्थिक नियोजन की आवश्यकता 1934 में सर एम. विश्वेश्वरैया ने अपनी पुस्तक ‘Planned Economy for India’ में कराई, परन्तु इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जा सका। सन् 1938 में प. जवाहर लाल नेहरू ने एक राष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन किया लेकिन विश्वयुद्ध प्रारम्भ होने व कई अन्य करणों से इसको विशेष सफलता नहीं मिली। जनवरी 1944 में बम्बई के आठ प्रमुख उद्योगपतियों ‘बम्बई योजना’ के नाम से एक योजना बनायी लेकिन यह भी सफल न हो सकी। इसके पश्चात 1944 में एक योजना अप्रैल 1944 में एम. एन. राय द्वारा जनयोजना के नाम से व दूसरी योजना श्री मन्ननारायण अग्रवाल द्वारा गाँधीवादी योजना के नाम से बनायी गयी।

स्वतन्त्रता से पूर्व बनायी गयी उपर्युक्त सभी योजनाओं को विस्तृत रूप से निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है-

(1) सर एम. विश्वेश्वरैया योजना- वह योजना 1934 में सर एम. विश्वेश्रैया द्वारा अपनी पुस्तक ‘Planned Economy for India ‘नामक पुस्तक में प्रस्तुत की गयी इस योजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-

(1) यह 10 वर्षीय योजना थी।

(2) दस वर्ष में राष्ट्रीय आय को दो गुना करना।

(3) लघु एवं वृहत उद्योगों में समन्वय स्थापित करना।

(4) औद्योगिक उत्पादन में तीव्र वृद्धि करना ।

(5) व्यापार में होने वाले असन्तुलनों को दूर करना ।

परन्तु यह योजना आर्थिक कठिनाईयों के कारण उपर्युक्त लक्ष्यों को पूर्ण करने में सफल न हो सकी।

सन् 1938 में पं. नेहरू ने राष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन किया जिसके प्रमुख उद्देश्य लघु व वृहत् उद्योगों में समन्वय स्थापित करना, सहकारी कृषि का विकास करना, कृषि ऋण की व्यवस्था करना, आदि थे। 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हो जाने तथा कांग्रेस मंत्रिमण्डल द्वारा इस्तीफा दिये जाने के कारण इस नियोजन समिति के लक्ष्यों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा सका।

(2) बम्बई योजना- बम्बई के आठ प्रमुख उद्योगपतियों (सर पुरूषोत्तम दास-ठकुर दास, जे0 आर0 डी0 टाटा, घनश्याम दास बिड़ला, सर आरदेशिर दलाल, सर श्री राम, सेठ कस्तूर भाई-लाला भाई,डी0 एफ0 श्राफ तथा डॉ0 जॉन मथाई) द्वारा जनवरी 1944 में बम्बई योजना के नाम से एक योजना प्रकाशित की इस योजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-

(1) यह योजना 15 वर्षीय योजना थी।

(2) इस योजना में राष्ट्रीय आय में तीन गुना वृद्धि करने का लक्ष्य रखा गया।

(3) प्रतिव्यक्ति आय को दो गुना करने की बात की गयी।

(4) परिवहन के साधनों को विकसित करने का लक्ष्य निश्चित किया गया ।

(5) शिक्षा व उद्योगों को विशेष प्राथमिकता दी गयी।

(6) कृषि क्षेत्र में 30 प्रतिशत की वृद्धि करने की बात कही गयी।

(7) निजी उपक्रमों को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया गया ।

(8) नागरिकों को 2600 कैलोरीज भोजन, 30 गज कपड़ा व 100वर्ग फीट भूमि देनेकी बात कही गयी।

परन्तु उपर्युक्त योजना जोकि पूँजीवादी थी तथा जिसमें निजी क्षेत्र को विशेष बल दिया गया था, को कई कारणों से क्रियान्वित नहीं किया जा सका।

(3) जन योजना- अप्रैल 1944 में भारतीय श्रमसंघ के प्रमुख श्री एम० एन० राय द्वारा एक जन योजना के नाम से योजना बनायी गयी जो कि साम्यवादी सिद्धान्तों पर आधारित थी। इस योजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-

(1) इस योजना में सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता पर विशेष बल दिया गया।

(2) दस वर्षों में जनता को आधारभूत आवश्यकताओं को प्रदान करना।

(3) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का विकास करना।

(4) आय की असमानता को दूर करना ।

(5) कृषि सुविधाओं में वृद्धि करना।

(6) कृषि उत्पादन में वृद्धि करना।

(7) लघु व कुटीर उद्योगों को विकसित करना ।

उपर्युक्त योजना भी क्रियान्वित नहीं की जा सकी क्योंकि यह साम्यवादी विचारधारा पर आधारित थी।

(4) गाँधीवादी योजना- सन् 1944 में यह योजना श्रीमन्ननरायण अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत की गयी। यह योजना गाँधी जी विचारधारा पर आधारित थी इसलिए इसे गाँधीवादी योजना कहा गया। इस योजना में 3,500 करोड़ व्यय करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया जिसमें से 1,175 करोड़ रूपये कृषि पर, 400 करोड़ रूपये परिवहन पर, 1,000 करोड़ रूपये वृहद उद्योग पर, 350 करोड़ रूपये कुटीर उद्योग पर , 295 करोड़ रूपये शिक्षा पर , 260 करोड़ रूपये स्वास्थ्य पर व 20 करोड़ रूपये अनुसंधान पर व्यय का लक्ष्य निश्चित किया गया इस योजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-

(1) यह दस वर्षीय योजना थी ।

(2) इसका उद्देश्य जीवन स्तर को निर्धारित न्यूनतम सीमा तक लाना था।

(3) इस योजना में प्रत्येक व्यक्ति को 2 ,600 कैलोरीज भोजन , 120 गज कपड़ा व 100 वर्ग फुट भूमि देने को लक्ष्य रखा गया।

(4) ग्राम विकास को विशेष प्राथमिकता दी गयी।

(5) सामूहिक कृषि के विकास को विशेष महत्व दिया गया।

(6) रोजगार में वृद्धि का लक्ष्य निश्चित किया गया|

(7) प्रतिव्यक्ति आय को चार गुना बढ़ाने की बात की गयी।

(8) भारी व जनोपयोगी सेवाओं वाले उद्योगों को राज्य के अधीन संचालित करने की बात कही गयी।

उपर्युक्त योजना अन्य योजनाओं की तुलना में अच्छी थी परन्तु पर्याप्त वित्तीय साधन न उपलब्ध होने के कारण उसे भी लागू नहीं किया जा सका।

इस प्रकार स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में आर्थिक नियोजन हेतु उपर्युक्त योजनाएं बनायी गयी। लेकिन किसी न किसी कारणों से वह योजनाएं क्रियान्वित नहीं की जा सकी।

(ब) स्वतन्त्रता के पश्चात् आर्थिक नियोजन-

15 अगस्त 1947 को भारत के स्वतन्त्र होने के पश्चात् देश के सतत् आर्थिक विकास के लिए आर्थिक नियोजन की आवश्यकता अनुभव की गयी। 1948 में औद्योगिक नीति के घोषित होने तथा 1951 में औद्योगिक (विकास एवं नियमन) अधिनियम बनाये जाने से उद्योगों के नियोजित विकास पर नियंत्रण की आवश्यकता अनुभव की गयी जिसके फलस्वरूप 15 मार्च 1950 को योजना आयोग का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू थे। इस बीच दो योजनाएं बनायी गयी जिनमें से एक सर्वोदय योजना व दूसरी कोलम्बो योजना थी।

(1) सर्वोदय योजना- यह योजना 30 जनवरी 1950 को जय प्रकाश नारायण द्वारा घोषित की गयी। इस योजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-

(1) आय सम्पत्ति वितरण की समानता को कम करना।

(2) सहकारी खेती को प्रोत्साहित करना ।

(3) समाज द्वारा उद्योगों का संचालन करना।

(4) विदेशी लाभ अर्जित करने वाले प्रतिष्ठानों पर नियंत्रण लगाना।

(5) समाज राज्य की आय का 50 प्रतिशत भाग ग्राम पंचायतों द्वारा व्यय किया जाना तथा शेष 50 प्रतिशत भाग शासन द्वारा व्यय किया जाना।

(6) भूमि का पुन: वितरण करना आदि।

परन्तु यह योजना सरकार के द्वारा स्वीकार नहीं की गयी।

(2) कोलम्बो योजना- द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विभिन्न राष्ट्रो द्वारा यह अनुभव किया गया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक नियोजन को अपनाया जाये। जिसके फलस्वरूप जनवरी 1950 में संयुक्त राष्ट्र मण्डल की राष्ट्रीय सरकारों का एक सम्मेलन कोलम्बों में बुलाया गया। इस सम्मेलन में एक सलाहकार समिति गठित की गयी , इस समिति ने 1951-1957 में छ: वर्षों के लिए 1868 मिलियन पौड व्यय करने की सिफारिश की।

जुलाई 1951 में भारत सरकार द्वारा पहली पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा प्रस्तुत को गया। जिसके पश्चात् से भारत में आर्थक नियोजन के अन्तर्गत पंचवर्षीय योजना को लागू किया गया।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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