राजनीति विज्ञान / Political Science

रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धान्त | सामान्य इच्छा के सिद्धान्त की विशेषताएँ | रूसो के सामान्य इच्छा के सिद्धान्त के दोष | लोकतन्त्र और सामान्य संकल्प पर रूसो के विचार

रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धान्त | सामान्य इच्छा के सिद्धान्त की विशेषताएँ | रूसो के सामान्य इच्छा के सिद्धान्त के दोष | लोकतन्त्र और सामान्य संकल्प पर रूसो के विचार

रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धान्त

(General will of Rousseau)

रूसो का सामान्य इच्छा का सिद्धान्त राजनैतिक दर्शन के इतिहास में एक अत्यन्त ही महवपूर्ण देन है। रूसो के अनुसार इच्छा दो प्रकार की होती है जो निम्नलिखित है-

(क) स्वार्थपूर्ण इच्छा (Actual will)-  मनुष्य के मन में अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये उठने वाली विभिन्न प्रकार की अविवेकपूर्ण, अस्थायी और क्षणिक इच्छायें होती हैं। ये इच्छायें स्वार्थ तथा व्यक्तिगत हितों का ही ध्यान रखती है, सामाजिक हित का विचार नहीं करती। उदाहरणार्थ, दूध में पानी मिलाने वाले अथवा खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वाले व्यापारी का उद्देश्य सामाजिक हित की चिंता न करके अपना निजी लाभ पूरा करने का विचार होता है, वह इससे समाज को पहुँचाने वाली हानि के बारे में कभी नहीं सोचता।

(ख) सामाजिक इच्छा (Real will)-  दूसरे प्रकार की इच्छा सामाजिक इच्छा होती है और यह नैतिकता पर आधारित होती है। इसमें मनुष्य अपने विवेक से समाज के हित में लगा रहता है। यह इच्छा पर आधारित होने के कारण अस्थायी और क्षणिक नहीं होती। यह मनुष्य की बुद्धि के चिन्तन का परिणाम और व्यक्तिगत स्वार्थ से रहित होने के कारण व्यक्ति की वास्तविक इच्छा (Real will) होती है। यह व्यक्ति के क्षणिक स्वार्थ को नहीं, किन्तु उसके समूचे जीवन को तथा समाज के हित को ध्यान में रखती है।

प्रो० भण्डारी ने लिखा है कि सामान्य इच्छा किसी व्यक्ति या बहुमत की इच्छा को व्यक्त न करके सामान्य हित को स्पष्ट करती है। समान्य हितों पर आधारित होने के कारण इसमें एकता, स्थायित्व, अदेयता तथा औचित्य के गुण होते हैं।

रूसो राज्य का मुख्य आधार सामान्य इच्छा मानता है; अतः इस आधार पर ग्रीन ने बाद में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि “Will not force is the basis of state.” जोन्स के शब्दों में, “सामान्य इच्छा का विचार रूसो के सिद्धान्त का न केवल सबसे अधिक केन्द्रीय विचार है अपितु यह उसका सबसे अधिक मौलिक तथा रोचक विचार है।”

सामान्य इच्छा तीन दृष्टियों से सामान्य होनी चाहिये-

(क) उद्गम की दृष्टि से- इसमें सब नागरिकों की सहमति प्राप्त होनी चाहिये।

(ख) क्षेत्रों की दृष्टि से- यह राज्य की समस्त जनता से सम्बन्धित होनी चाहिये ।

(ग) ध्येय की दृष्टि से- यह समाज के हित के अनुकूल होनी चाहिये। इन तीन विशेषताओं से युक्त होने पर ही इच्छा सामान्य इच्छा होती है।

सामान्य इच्छा की विशेषताएँ-

रूसो के मतानुसार सामान्य इच्छा की निम्नलिखित विशेषतायें हैं

(1) सामान्य इच्छा प्रतिनिधियों द्वरा अभिव्यक्ति किये जाने योग्य नहीं है।

(2) सामान्य इच्छा को प्रभुसत्ता से अलग नहीं किया जा सकता।

(3) तीसरी विशेषता इसकी अखंडता तथा एकता है।

(4) सामान्य इच्छा स्थायी होती है क्योंकि यह क्षणिक भावावेश का नहीं, किन्तु सुविचारित तर्क और बुद्धि का परिणाम होता है।

(5) पाँचवी विशेषता इसका न्यायोचित होना है। यह समाज के कल्याण के लिये नैतिक विचार की दृष्टि से निश्चित होती है।

(6) छठी विशेषता इसका सर्वोच्च एवं निरंकुश होना है। इस पर किसी प्रकार के दैवी नियमों या प्राकृतिक नियमों का प्रतिबन्ध नहीं है।

(7) सातवीं विशेषता है कि सामान्य इच्छा राज्य शक्ति से नहीं, किन्तु जनता की सहमत से संचालित होती है।

रूसो के सामान्य इच्छा के सिद्धान्त के दोष-

रूसो की सामान्य इच्छा के सिद्धान्त में कुछ दोष भी हैं जो कि निम्नलिखित हैं:-

(1) पहला दोष यह है कि रूसो स्पष्ट रूप से यह नहीं बताता कि सामान्य इच्छा का निर्धारण किस प्रकार होगा दूसरी कठिनाई यह है कि व्यक्ति की इच्छा ऐसी जटिल पूर्ण अविभाज्य समष्टि (Whole) है और उसका यह विभाजन सम्भव नहीं है |

(2) इससे व्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन होता है।

(3) सामान्य इच्छा का सिद्धान्त केवल छोटे राज्यों में सफल हो सकता है क्योंकि जनसंख्या कम होने के कारण वहाँ इस इच्छा का सुगमता से पता लग सकता है।

(4) रूसो सामान्य इच्छा के निर्धारण के लिये राजनीतिक दलों की सत्ता का तथा प्रतिनिधि मूलक शासन-व्यवस्था का विरोध करता है।

(5) पाँचवा दोष यह है कि राज्यों में सामान्य इच्छा कभी कभी राष्ट्र पर आने वाले महान संकटों के अवसर पर ही प्रकट होती है, उस समय सब लोग व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर सामान्य हित की चिन्ता करते हैं किन्तु सामान्य रूप से वे अपने व्यक्तिगत स्वार्थों में इतने डूबे रहते हैं कि सामान्य इच्छा का निर्धारण संभव नहीं होता।

(6) छठा दोष यह है कि इस व्यवस्था से अधिनायकवाद (Dictatorship) तथा सर्वाधिकारवाद (Totalitarianism) की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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