सन् 1830 ई० की क्रांति के कारण | सन् 1830 ई० को जुलाई क्रांति के परिणाम | सन् 1830 ई० को जुलाई क्रांति का महत्व

सन् 1830 ई० की क्रांति के कारण | सन् 1830 ई० को जुलाई क्रांति के परिणाम | सन् 1830 ई० को जुलाई क्रांति का महत्व

सन् 1830 ई० की क्रांति के कारण

(Causes of the Revolution of 1830)

फ्रांस की सन् 1830 ई. की जुलाई मास मे होने वाली क्रांति का इतिहास में अत्यधिक महत्व है। इसने नेपोलियन की हार के बाद क्रान्ति के विरुद्ध हुई प्रतिक्रिया को  न केवल फ्रांस में ही समाप्त कर दिया, वरन यूरोप के अन्य अनेक देशों में स्वतंत्रता के लिए चल रहे आन्दोलनों को भी प्रोत्साहन दिया।

इस क्रान्ति के निम्नांकित कारण माने जाते है-

(1) अठारहवें लई तथा चार्ल्स दशम की प्रतिक्रियावादी नीतियाँ- लुई अठारहवाँ तथा चार्ल्स दशम दोनों ही बूर्बोंन वंश के राजा थे। दोनों लुई सोलहवें के भाई थे। लुई अठारहवां एक समझदार व्यक्ति था। परन्तु चार्ल्स दशम सबसे अधिक कट्टरपंथी था, वह चाहता था कि पादरी वर्ग तथा विशेषाधिकार वर्ग के व्यक्ति ही शासन में उसकी सहायता करें। वह देश में 1789३० से पूर्व की पुरातन व्यवस्था की फिर से स्थापना करना चाहता था। जब तक लुई अठारहवा जीवित रहा तब तक चाल्स दशम राजा पर यह दबाव डालता रहा कि वह जनता को किसी प्रकार की रियायत न द वह कहता था, “रियायतों ने ही लुई सोलहवे का सर्वनाश कर दिया।” शुरू में तो लुई अठारहवन ठप राजतन्त्रवादियों को इस प्रकार की मांगों का प्रतिरोध किया लेकिन बाद में उदार नीति का अपनान लगा। सन् 1820 ई० में आर्वा के काउन्ट कपुत्र वैरी के ड्यूक की हत्या कर दी गई। तत्पश्चात् लुई की नीति अत्यधिक कठोर हो गई। उसका शासनकाल समाप्त होने के बाद तथा मृत्यु के पश्चात 1824 ई० में आत्वों का काउन्ट चाल्स दशम के नाम से गद्दी पर बैठा। उसकी प्रतिक्रियावादी नीति के कारण 1830 ई० की क्रांति हुई । उसने अप्रांकित नितियों को अपनाया

(i) क्रांतिकारियों से प्रतिशोध- नेपोलियन के निष्कासन के पश्चात उय राजतन्त्रवादियों ने उन लोगों से बदला लेना शुरू कर दिया जिन्होने या तो क्रांति में हाथ बटाया था या नेपोलियन का साथ दिया था। प्रसिद्ध सेनानायक ‘ने (Ney) पर देशद्रोही होने का आरोप लगाया गया तथा उसे गोली मार दी गयी। हजारों लोगों को कारागार में डाल दिया गया, कुछ लोग देश से निर्वासित भी कर दिए गए। सरकारी सेवाओं से तो सभी को वंचित कर दिया गया।

(ii) कथैलोलिक चर्च की पुनः स्थापना- नेपोलियन ने धर्म के सम्बन्ध में जनता को पूर्ण स्वतन्त्रता थी, उसने राज्य का कोई धर्म नहीं माना था। परन्तु अब कैथोलिक धर्म को राजधर्म बनाया गया। शिक्षा का कार्य चर्च के हाथ में आ गया। इस कारण पादरी वर्ग राजकाज में हस्तक्षेप करने लगा। इस सम्बन्ध में वेलिंग्टन ने लिखा है, चार्ल्स दशम के सामने जेम्सु द्वितीय के पतन के उदाहरण का कोई मूल्य नहीं है, वह राज्य की स्थापना करने जा रहा है जो पादरियों द्वारा, पादरियों का और पादरियों के लिए है।”

इस प्रकार चार्ल्स दशम की नीति चर्च के समर्थन की थी। परन्तु जनता को उसकी यह नीति पसन्द नहीं थी।

(iii) सामंतों को विशेष रियासत- चार्ल्स दशम् ने पुरातन व्यवस्था की पुर्नस्थापना करने के कारण 1825 ई० में एक कानून बनाया, जिसके अनुसार उन सामन्तों को मुआवजा देने की व्यवस्था की जिनकी सम्पत्ति 1789 ई. की क्रांति के समय छीन ली गयी थी। इस कार्य के लिए लगभग 1 अब फ्रैंक की आवश्यकता थी। अतः शासन ने यह तय किया कि जनता से लिए जाने वाले ऋण के ब्याज की राशि पाँच प्रतिशत से चार प्रतिशत कर दी जाए। इससे जो धन यचेगा वह मुआवजे के रूप में अदा कर दिया जायेगा। इससे मध्यम वर्ग में असंतोष की लहर फैल गई।

(iv) गिरजाघर का अधिनियम- एक नियम और बनाया गया जिसका नाम ‘Sacrilege Act’ था। इसके अनुसार यह व्यवस्था की गयी कि जो लोग गिरजाघरों को अपवित्र करेंगे उनको मृत्यु-दण्ड दिया जाएगा। जो लोग पूजा के पवित्र बर्तनों को चुराएँगे उनके हाथ काटने की व्यवस्था की गयी। परन्तु इस कानून का जनता ने खुलकर विरोध किया।

(V) राष्ट्रीय रक्षक सेना (National Guard) की समाप्ति- चार्ल्स दशम ने सन् 1827 में राष्ट्रीय रक्षक सेना का निरीक्षण किया। उससे पूर्व कुछ प्रश्नों पर प्रतिनिधि सभा (Chamber of Deputies) में मंत्रीमंडल की हार हो गयी। सैनिकों ने मंत्रियों तथा पादरियों के लिए अपशब्द कहे। इस पर राष्ट्रीय रक्षा सेना को भंग कर दिया गया। यह भी जनता में असंतोष भड़काने वाली बात थी।

(vi) विजय अभियान- लिप्सन ने इस संबंध में लिखा है, ‘नेपोलियन भी इस बात को मानता था कि स्वदेश में असन्तोष को दबाने का सुदढ़ उपाय है, कि विदेशों में विजय प्राप्त की जाएँ और उसके उद्देश्यों का एक भेद यह भी था कि लोग इस बात को भूले रहें कि स्वदेश में उसका शासन निरंकुश है।“ठीक ऐसी ही बातें इस समय भी अपनायी गयीं। स्पेन में निरंकुश राजतंत्र के लिए सेनाएँ भेजी गई। परन्तु सफलता का समाचार मिलने से पूर्व ही 1830 की क्रांति हो गई।

(2) समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध- समाचार-पत्र सरकार के विरुद्ध खबरें छापते थे। अतः सरकार ने उन पर सेंसर लगा दिया। इस प्रतिबन्ध को लोगों ने अच्छा नहीं माना तथा सरकार की आलोचना की।

(3) तत्कालीन कारण- इस क्रांति के अन्य तत्कालीन कारण भी थे। उदाहरण के लिए राजा ने चार अध्यादेश जारी किए जो जनता की भावनाओं को कुचलने वाले थे। उन अध्यादेशों को सेंट क्लूद (St.Cloud) कहा जाता है। उनके अनुसार –

(i) नयी निर्वाचित प्रतिनिधि सभा बैठक होन से पूर्व ही समाप्त कर दी गयी।

(ii) मतदाताओं को योग्यताएं इस प्रकार बढ़ा दी गयीं कि मतदाताओं की संख्या घट गयी।

(iii) राजा की अनुमति के बिना समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि नहीं छप सकती थीं।

(iv) उपरलें सदन (Chamber of Peers) में प्रतिक्रियावादियों की संख्या बढ़ायी गयी। ये अध्यादेश 26 जुलाई को जारी हुए तथा 28 जुलाई को क्रांति का बिगुल बज उठा।

जुलाई-क्रांति,1830

(Revolution of 1830)

पोलिगनेक मंत्रिमंडल द्वारा घोषित उपरोक्त चारों अध्यादेश जनता के लिए चुनौती के समान थे। चार्ल्स इन विशेष कानूनों के परिणाम के बारे में बिल्कुल नहीं जानता था। अध्यादेश की घोषणा के बाद क्रांतिकारी सक्रिय हो उठे, उन्होंने गुप्त समितियों के गठन शुरू कर दिए। उदारवादी गणतंत्रवादी तथा अन्य दलों के नेता आपसी भेदभाव को भुलाकर चार्ल्स के शासन को उखाड़ फेंकने के लिए तैयार हो गए। इतिहासकार हेजेन के इन शब्दों को नहीं भुलाया जा सकता, “पेरिस की जनता झुकने के लिए तैयार नहीं थी। जैसे- जैसे अध्यादेशों का अर्थ स्पष्ट होता गया, सड़को पर भीड़ जमा होने लगी। और मंत्रिमंडल का नाश हो’ ‘अधिकार-पत्र चिरजीवी हो’ के नारे लगाए जाने लगे।

इसके साथ-साथ चार्ल्स दशम के प्रतिक्रियावादी शासन को समाप्त करने के लिए अस्त्र-शस्त्र एकत्र किए गए। प्रजातन्त्रवादियों तथा स्वतन्त्रता के प्रेमियों ने जनता को विद्रोह करने के लिए उकसाना शुरू कर दिया । फ्रांस भर में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। 26 जुलाई की रात्रि को क्रांतिकारियों ने पेरिस की गलियों में जुलूस निकाले, क्रांतिकारी नारे लगाये तथा मोर्चाबन्दी की।

बुधवार, जुलाई 28 को गृह-युद्ध आरम्भ हो गया। पेरिस की सड़कों पर क्रांतिकारी बैठ गए, कई स्थानो पर शाही सेना तथा विद्रोहियों के बीच युद्ध हुए। सेना नए ढंग के मोर्चे को तोड़ने में असमर्थ रही। क्योंकि विद्रोहियों ने तंग गलियों में लड़ाई छेड़ी थी जहां रसद का समान तथा अस्त्र शस्त्र ले जाना कठिन था। इन गलियों के युद्ध को दबाने में चार्ल्स की सेना कुछ नहीं कर सकी। युद्ध तीन दिन तक चलता रहा । हेजेन ने लिखा है। “यही-जुलाई क्रांति थी- गौरवशाली तीन दिन ।” राजा के बहुत से सैनिकों ने विद्रोहियों का साथ देना शुरू कर दिया था। इसके फलस्वरूप चार्ल्स को सेना कई स्थानों पर हारी।

चार्ल्स दशम का सिंहासन छोड़ना- क्रांति के सफल हो जाने पर चार्ल्स ने क्रांतिकारियों से समझौता करना चाहा, उस्ने जनता को आश्वासन दिया कि वह सैंट क्लूद (St.Cloud) के अध्यादेशों को रद्द कर देगा। प्रन्तु, अब समय बहुत आगे बढ़ चुका था। क्रांतिकारी नेता किसी प्रकार का समझौता करने को तैयार नहीं थे। निराश होकर चार्ल्स अपने दस वर्षीय पोते ‘वोदो के ड्यूक्’को सिंहासन पर बिठाकर इंगलैंड भाग गया। उसकी मृत्यु आस्ट्रिया में सन् 1836 में हो गयी। इस प्रकार क्रांति सफल हुई और चार्ल्स के दमनकारी शासन का अन्त हो गया । फ्रांस की जनता ने राजा चार्ल्स दशम के पोते को सम्राट स्वीकार नहीं किया।

जुलाई-क्रांति के परिणाम-

(Consequences of July Revolution)-

चार्ल्स दशम के शासन का अन्त हो जाने के बाद जनता (क्रांतिकारियों के सामने यह समस्या उत्पन्न हुई कि फ्रांस में किस प्रकार की शासन व्यवस्था स्थापित की जाये। इस समस्या पर कोई भी नेता ‘सुदृढ़ निराकरण-विचारमाला’ पेश नहीं कर सका। गणतन्त्रवादी फ्रांस में गणराज्य की स्थापना पर जोर देने लगे जबकि उदारवादी राजतंत्र कायम रखना चाहते थे। एक बार तो दोनों दलों के मध्य सशस्त्र संघर्ष छिड़ गया, परन्तु वयोवृद्ध नेता ‘लाफायत’ ने स्थिति को सुलझा दिया, उसने गणतन्त्रवादियों को समझाकर वैध राजतंत्र की योजना स्वीकार करा ली। 7 अगस्त 1830 को प्रतिनिधि सभा ने यह निश्चय किया कि लुई फिलिप को फ्रांस की गद्दी पर बिठाया जाए।

इस प्रकार 9 अगस्त को लुई फिलिप को राजसिंहासन मिल गया।

जुलाई 1830 की क्रांति के महत्वपूर्ण परिणाम ये थे।

1. फ्रांस में बूबों वेश के स्थान पर ओर्लिया वंश की स्थापना हुई। इस वंश का राजकुमार ओर्लियन्स का डयूक फिलिप गद्दी पर बैठा, जो 1848 तक राजा रहा।

2. जुलाई क्रांति मध्यम वर्ग की विजय के परिणामस्वरूप हुई, जिसने संवैधानिक घोषणा पत्र के दोषों को दूर किया।

3. क्रांति के फलस्वरूप फ्रांस में ‘दैवी अधिकार’ के स्थान पर ‘जनता के जन्म सिद्ध अधिकारों के आधार पर जनतंत्रीय शासन स्थापित हुआ। फिलिप का राज्याभिषेक ‘फ्रांसीसी जनता के राजा’ (King of the French) के नाम से हुआ।

4. गणतववादियों ने अपने सिद्धान्त को समयानुसार उदार बनाया ताकि वे नवीन व्यवस्था में सहायक सिद्ध हो सकें।

जुलाई क्रांति का महत्व

(Importance of the Revolution of 1830)

1830 की जुलाई-क्रांति फ्रांस के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसका प्रभाव केवल फ्रांस की राजनीति पर ही नहीं पड़ा वरन् सम्पूर्ण यूरोप की राजनीति पर पड़ा। इस क्रांति के परिणामस्वरूप यूरोप के लगभग सभी देशों में स्वतंत्रता तथा समानता के सिद्धान्तों की स्थापना के लिए आन्दोलन चल पड़े। स्पेन, पुर्तगाल, पोलैण्ड, बेल्जियम, स्विटजरलैण्ड, इंगलैंड आदि इस क्रांति के प्रभाव से अछूते नहीं रहे।

इस क्रांति की एक विशेष बात यह थी कि इसके द्वारा फ्रांस में गणराज्य की स्थापना नही हो सकी है। प्रो० लिप्सन का मत है, जो परिस्थियाँ अन्त में बूझे एकतन्त्र के पतन के लिए उत्तरदायी बनी रही उन्हीं ने उसके स्थान पर गणराज्य की स्थापना असम्भव कर दी।”

इस प्रकार यदि 1830 की क्रांति के कारण फ्रांस में गणराज्य की स्थापना हो जाती तो इसका तात्पर्य यह होता कि फ्रांस ने सम्पूर्ण यूरोप को चुनौती दी है और तब यूरोप के राज्य जो 1789 की क्रांति को अभी भूले नहीं थे, तुरन्त ही उसे नष्ट करने के लिए कदम उठाते । इसीलिए गणतन्त्रवादियों के हाथ बंध गए।

क्रांतिकारी श्रमिक दल के नेता के मतानुसार, “फ्रांस हमें धन्यवाद देकर भूल कर रहा है। हम दबे इसलिए नहीं है कि शक्ति अधिक नहीं है पर हमें आशा है कि भविष्य में यह दशा नहीं रहेगी।

वैसे तो इस क्रान्ति का श्रेय जनता को है,परन्तु इस क्रांति की बहुत बड़ी कमी यह थी कि इससे जनता को शासन में कोई अधिकार प्राप्त नहीं हो सका । हेजेन के शब्दों में “इस क्रांति से सम्राट के हाथ से सत्ता निकलकर जनता में सत्ता आने की घटना को प्रोत्साहन अवश्य मिला।”

“साउथ गेट ने इसे वियना समझौते को बदलने वाली घटना कहा है।”

सन् 1830 की क्रांति की एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि इस क्रांति के द्वारा मध्यम वर्ग की शक्ति में वृद्धि हुई। हेजेन के शब्दों में “चार्ल्स दशम को भागने के लिए विवश करने में उनका महत्वपूर्ण हाथ था। मध्यम वर्ग ने निम्न वर्ग को नेतृत्व प्रदान कर शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी। निम्न वर्ग की स्थिति में भी इस क्रांति से सुधार हुआ था।”

एमिल के अअनुसार “जिस प्रकार 1789 ई० की कोति ने मध्यम वर्ग को मुक्त किया था उसी प्रकार जुलाई-क्रान्ति ने निम्न वर्ग को शासन में भाग लेने का अवसर दिया।”

वास्तव में 1830 की जुलाई क्रांति एक प्रकार से 1789 की राज्य क्रांति की पूरक थी। प्रो० लिप्सन ने लिखा है, “1789 की क्रांति में जो कमी रह गई थी वह 1830 की क्रांति से पूरी हो गयी। 1830 की क्रांति के फलस्वरूप स्वतन्त्रता, समानता, वैधानिक शासन, धर्मनिरपेक्ष आदि क्रांतिकारी भावनाओं की नींव सुदृढ़ हो गयी।

हानर्शा के शब्द इसी संदर्भ में दृष्टव्य हैं, “यह क्रांति संयुक्त व्यवस्था में परिवर्तन करने वाली महान घटना थी। इसी के द्वारा शक्ति संतुलन के सिद्धान्त को नया रूप प्राप्त हुआ इंगलैंड में प्रजातंत्रीय विचारधारा को प्रगति मिली और मैटर्निख व्यवस्था के पतन के कारण दिखाई देने लगे।”

निष्कर्ष (Conclusion)

1830 की क्रांति के फलस्वरूप सत्ता सम्राट के हाथों से निकलकर जनता के हाथों में आ गयी। यह क्रांति नवजीवन के संचार और जनतंत्रीय आन्दोलन के लिए प्रेरक सिद्ध हुई। राजा का संकटकाल में अध्यादेश (Ordinance) जारी करने का अधिकार समाप्त हो गया और कैथोलिक धर्म की सर्वोच्चता भी धराशायी हो गयी। इस क्रांति ने धार्मिक स्वतंत्रता तथा समानता का मार्ग प्रशस्त किया।

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