इतिहास / History

औद्योगिक क्रांति के तीन क्षेत्र | औद्योगिक क्रांति का यूरोपीय देशों में प्रसार

औद्योगिक क्रांति के तीन क्षेत्र | औद्योगिक क्रांति का यूरोपीय देशों में प्रसार

औद्योगिक क्रांति के तीन क्षेत्र

(Three Areas of Industrial Revolution)

औद्योगिक क्रांति तीन क्षेत्रों में हुई- कपड़ा उद्योग में, लोहा और कोयला-उद्योग में तथा आवागमन के साधन में। ये परिवर्तन अकस्मात् और बहुत तीव्र गति से हुए जिससे इंगलैंड में आम आदमी के जीवन में उत्पादन और उपयोग के कारण आमूल परिवर्तन हुआ।

कपड़ा-उद्योग- बहुत् दिनों से कपड़े के उत्पादन में परिवर्तन नहीं हो रहा था, चरखा और करघा के द्वारा पुराने ढंग से कपड़ा तैयार किया जाता था। इस क्षेत्र में सर्वप्रथम 1743 ई० में जॉन के (Jhon Kay) नामक लंकाशायर के एक निवासी ने फ्लाइंग शटल का आविष्कार किया जो बिना हाथ के सहारे ही करघे के दोनों ओर फेंकी जा सकती थी। इसके व्यवहार में कुशलता के कारण काफी चौड़ा कपड़ा बुना जा सकता था। इस तरीके से बुनाई के कार्य से जुलाहों की आमदनी दुगुनी हो गई। लंकाशायर में इसका व्यवहार 1760 ई. से व्यापक रूप से होने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि सूत कातनेवालों के लिए जुलाहों की आवश्यकता पूरा करना असंभव हो गया। अतः 1764 ई० के बाद सूत कातनेवाले चरखे की उत्पादन-शक्ति को बढ़ाने के लिए आविष्कार किए गए।

जेम्स हारग्रीव्ज नामक व्यक्ति ने स्पिनिंग जेनी का आविष्कार 1764ई० में किया। इस मशीन से एक ही आदमी अस्सी तकुओं को चलाकर सूत का उत्पादन बढ़ा सकता था। 1769 ई० में आर्कराइट नामक व्यक्ति ने वाटरफेम नामक सूत कातने की एक मशीन निकाली, जो जलशक्ति या जानवर द्वारा चलाई जा सकती थी। इस मशीन के कारण हाथ से सूत कातने की आवश्यकता जाती रही। अब इस मशीन से सभी तरह के सूत अधिक मात्रा में तैयार किए जा सकते थे।

क्रॉम्पटन नामक एक व्यक्ति ने हारग्रीव्ज और आर्कराइट की मशीनों को मिला-जुलाकर एक नई मशीन बनाई जिसको ‘म्यूल’ कहा गया। इससे काफी बारीक सूत काता जा सकता था। इस मशीन का नाम ‘स्पिनिंग म्यूल’ (spinning mule) पड़ा। इसी समय अमेरिका में एक मशीन का आविष्कार हुआ जिससे आसानी से कपास से बिनौला निकालकर उसे सूत कातने के योग्य बनाया जा सकता था।

उपर्युक्त आविष्कारों ने कताई और बुनाई के कार्य को सुगम बना दिया। बहुत दिनों तक कताई और बुनाई की मशीनों के बीच प्रतियोगिता चलती रही, जिससे कपड़े का उत्पादन बढ़ता चला गया। इस दौरान कार्टराइट नामक व्यक्ति ने बुनाई की बढ़ोत्तरी के लिए 1785 ई० में जलशक्ति के सहारे चलने वाला एक करघा तैयार किया, जिसका नाम ‘पावरलूम’ रखा गया।

इस बीच हाथ से काम करने का महत्व घटा और मशीनों से काम करना शुरू हुआ। इसके पहले भी मशीनों का उपयोग होता था। मशीनें जानवरों अथवा वायु की शक्ति से चलाई जाती थीं। परंतु, ऐसे सारे कार्यों में मनुष्य की श्रम-शक्ति की महत्ता थी। जब वाष्प-शक्ति का आविष्कार हुआ तो इसका मशीन चलाने की शक्ति के रूप में प्रयोग बड़े पैमाने पर होने लगा।

18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जेम्सवाट ने वाष्प की शक्ति से संचालित इंजन का आविष्कार 1769 ई० में किया। 1781 ई० में इसका प्रयोग आटे को मिल चलाने में किया गया और 1787 ई० में पहले-पहल वाष्प की शक्ति के द्वारा कपास के सूत की बुनाई होने लगी। 1800 ई. तक मिलों में चौरासी वाष्प इंजनें लग गई थी और उसके बाद कल-कारखानों में वाष्प की शक्ति का प्रयोग व्यापक रूप से होने लगा। वाष्प इंजनों का प्रयोग केवल कताई-बुनाई तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका उपयोग छापाखाने,आवागमन के साधनों और प्रायः सभी प्रकार के कल-कारखानों में होने लगा जिससे पैदावार में आमूल परिवर्तन हुआ। वाष्प के इंजनों के व्यापक प्रयोग से उत्पादन में अभूतपूर्व परिवर्तन के कारण जेम्सवाट को ‘औद्योगिक क्रांति का पिता’ भी कहा जाता है।

लोहा और कोयुला के उद्योग- 18वीं शताब्दी के अंत तक मशीनों को मुख्यतः लकड़ी से बनाया जाता था और जिन मशीनों को घिसने का अधिक भय रहता था, उन पर लकड़ी के ऊपर धातु चढ़ाई जाती थी। लेकिन अब वाष्पचालित इंजन के लिए आवश्यक था कि वह किसी घातु से बने। आरंभ के इंजनों को बनाने में मुख्यतः पीतल का प्रयोग किया गया। उस समय लोहे का प्रयोग विरले होता था। लोहा कड़ा और अधिक उपयोगी होने पर भी काफी खर्चीला होने के कारण उपयुक्त नहीं होता था। लोहे के खर्चीला होने का कारण लकड़ी के कोयले से लोहा गलाने की विधि थी। लकड़ी के कोयले की कमी थी, इसलिए लोहा महंगा पड़ता था। इंगलैंड के जंगल कट गए थे। 1540 और 1640 ई० के बीच लकड़ी के जलावन का दाम तिगुना हुआ था। ऐसी स्थिति में लोहे का व्यवसाय लकड़ी के कोयले के अभाव के कारण मंद पड़ता जा रहा था।

संयोग से इसी समय मशीनों का आविष्कार होने लगा जिसको बनाने के लिए लोहे की आवश्यकता थी। ऐसी अवस्था में लोहे के उत्पादन पर जोर दिया जाने लगा। 1760 ई० में पत्थर के कोयले द्वारा मजबूत भट्ठी में लोहा ढालने के तरीकों को ईजाद किया गया। इस सदी के अंत होते-होते यह प्रथा सारे इंगलैंड में फैल गई और बड़े पैमाने पर ढलवां लोहा तैयार किया जाने लगा। 1788 ई० में 62 हजार टन ढलवा लोहा पैदा हुआ था और यह मात्रा दिन-दिन बढ़ती गई। अब लोहे का उपयोग तरह-तरह के कामों में होने लगा। 1779 ई० में लोहे का पहला पुल बना और 1790 ई० में लोहे का पहला जहाज। इसके बाद तो 17वीं शताब्दी में रेल, जहाज और तरह-तरह की मशीनों को बनाने में लोहे का धड़ल्ले से प्रयोग होने लगा।

फिर भी, लोहा बनाने के लिए पत्थर के कोयले का उत्पादन जरूरी था। अब लोगों का ध्यान खानों से अधिक से अधिक मात्रा में कोयला निकालने की ओर गया। कोयले की नई-नई खाने खोदी गई। पहले अंधेरे और विस्फोट के कारण खानों में काम करना खतरे से खाली नहीं था, परंतु 1815 ई० में हेम्के डेवी नामक व्यक्ति ने ‘सेफ्टी लैंप’ (safety lamp) का आविष्कार किया जिससे खानों के भीतर काम करना सुगम हो गया। इससे कोयले के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई।

फिर भी, कोयला देश के प्रत्येक भाग में नहीं पाया जाता था। यह भी सत्य है कि कई जगह इंगलैंड में कोयला और लोहा आस-पास ही पाया जाता था, जिससे लोहा तैयार करने में सुविधा होती थी। फिर भी, हर जगह लोहा और कोयला एक जगह नहीं मिलते थे, जिसके कारण ढोने की व्यवस्था में सुधार होना आवश्यक था। इसी कमी को दूर करने के लिए आवागमन के साधनों में सुधार हुआ।

आवागमन के साधन में परिवर्तन- 17वीं शताब्दी के अंत तक इंगलैंड में बहुत कुम सड़कें थीं, जिन पर सालभर चक्केवाली गाड़ियां चल सकती थीं। धूल और कीचड़ इंगलैंड की सड़कों के लिए आम बात थी। घोड़े की पीठ पर ही लादकर कोई चीज भेजी जा सकती थी। ऐसी स्थिति में भारी माल ढोने में काफी कठिनाई होती थी। बड़े-बड़े उद्योग केंद्रों के बीच बड़ी सड़कों के बनने के बाद भी स्थलमार्ग से माल ले जाना खर्चीला बना रहा। इस कठिनाई को दूर करने के लिए एक कोयला खान के मालिक ‘डयूक ऑफ बिजवाटर (Duke of Bridgewater) ने 1761 ई० में मैनचेस्टर से वर्सले तक 11 मील लंबी नहर खुदवाई। फलस्वरूप, मेनचेस्टर में कोयले का दाम आधा घट गया। इसके बाद इंगलैंड में नहर बनाने का सिलसिला उसी तरह चला जिस तरह 19वीं शताब्दी में रेल लाइन बिछाने का। 1790-94 के बीच नुहर बनाने के 81 ऐक्ट पास किए गए और 18वीं शताब्दी के अंत होते-होते समूचे इंगलैंड में नहरों का जाल-सा बिछ गया। परिणामतः देश का भीतरी हिस्सा औद्योगिक सामान मंगाने लगा और अपना अतिरिक्त पैदावार बाहर भेजने लगा।

नहरों के विकास के साथ-साथ सड़कों का भी निर्माण और विकास हुआ। 18वीं शताब्दी के अंत में जॉन मैकडम ने एक ऐसी सड़क बनाई जिसकी सतह काफी कड़ी थी। उसने पत्थर के टुकड़ों को मिट्टी और कुछ अन्य चीजों के साथ जोड़कर पक्की सड़क बनानी शुरू की। लेकिन, रेलवे के आ जाने पर नहरों और सड़कों का महत्व घट गया। फिर भी, इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि नहरों और सड़कों ने औद्योगिक क्रांति के खास-खास चरणों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

सड़कों और नहरों के माल ढोने में खर्च और समय दोनों अधिक लगते थे। अतएव अब आवागमन को और भी अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए रेलगाड़ी और उसके चलने के लिए लोहे की लाइन का आविष्कार हुआ। 1814 ई० में जार्ज स्टीफेन्सन ने रेलगाड़ी के पहले इंजन का आविष्कार किया। 1825 ई० में उसके बनाए इंजनों द्वारा रेलवे की शुरुआत हुई। आरंभ में भूमिपतियों के विरोध के कारण रेलवे का प्रसार शीघ्र नहीं हुआ, लेकिन बाद में औद्योगिक जरूरतों को पूरा करने के लिए रेलवे लाइनों की भरमार आ गई। रेलवे औद्योगिक माल ढोने के लिए प्रधान साधन बन गया।

वाष्प-शक्ति का प्रयोग अब पानी के जहाजों को चलाने के लिए भी किया जाने लगा। वाष्प-शक्ति से संचालित सर्वप्रथम जहाज 1807 ई० में निकला। 1809 ई. में ‘सवाना नामक जहाज ने अदलांटिक सागर को इसी शक्ति की सहायता से पार किया। अब बड़े-बड़े ढलवे लोहे के जहाज बनने लगे जिनको वाष्प शक्ति से चलाया जाता था। इस्पात का पहला जहाज 1863 ई० में निर्मित हुआ और 1847 ई० तक बिल्कुल इस्पात के ही जहाज बनने लगे।

समुद्री जहाजों के बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए आवश्यक था कि अच्छे बंदरगाह हो। नेपोलियन के साथ युद्ध करते समय जहाजों का प्रयोग बढ़ा जिसके लिए बंदरगाहों की मरम्मत और विस्तार की आवश्यक्ता पड़ी। 1800 और 1810 ई० के बीच उन्हें ठहर्ने के लिए तीस एकड़ के रकबे में लोहे के नए डॉक (dock) तैयार हुए। इन्हीं डॉकों के कारण लंदन दुनिया का सबसे बड़ा बंदरगाह बन गया।

इसके साथ-साथ इंगलैंड और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने विजली के टेलीग्राफ का अपने-अपने देश में स्वतंत्र रूप से आविष्कार किया और 19वीं शताब्दी का अंत होते-होते सभी प्रमुख व्यापारिक केंद्रों का पारस्परिक संबंध टेलीग्राफ के द्वारा चलने लगा।

इसके अलावा, 18वीं शताब्दी में दीपों से प्रकाश प्राप्त करने के तरीके में सुधार हुआ। 19वीं सदी के मध्य में लोग गैस जलाने लगे। उसी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बिजली के प्रकाश का व्यवहार होने लगा और बाद में बिजली का प्रयोग होने लगा।

इस प्रकार, हम देखते हैं कि कपड़ा उद्योग में आमूल परिवर्तन हुआ और मशीनों को वाष्प की शक्ति द्वारा चलाया जाने लगा। इतना ही नहीं आवागमन के साधनों; यथा-रेल और पानी के जहाज में भी वाण-शक्ति का प्रयोग किया जाने लगा। लोहा और कोयला के उत्पादन को बढ़ाकर कपड़ा उद्योग या आवागमन के साधनों में उपयुक्त होनेवाली मशीनों के लिए पर्याप्त लोहा प्राप्त किया जाने लगा।

औद्योगिक क्रांति का यूरोपीय देशों में प्रसार

(Expansion of Industrial Revolution in European Countries)

औद्योगिक क्रांति इंगलैंड में शुरू हुई, लेकिन इसका प्रसार 19वीं शताब्दी में यूरोप के अन्य देशों में हुआ और अनुकूल स्थिति रहने पर काफी तरक्की भी की।

फ्रांस- फ्रांस में पूंजी का निर्माण बड़े पैमाने पर नहीं हुआ था। वहां पर सरकारी हस्तक्षेप भी अधिक था और अधिक किसान होने के कारण मजदूरों की भी कमी थी। उसके पास उपनिवेश उतने नहीं थे। फलतः 1780 ई० के दशक में कुछ उद्योग-धंधे खुले भो तो सफल नहीं रह सके । नेपोलियन के पतन का एक मुख्य कारण यह भी था कि फ्रांस का उद्योगीकरण इंगलैंड के समान नहीं हो पाया था। फिर 1830 ई. की क्रांति के बाद फ्रांस का उधोगीकरण शुरू हुआ और 1848 ई० की क्रांति इस उद्योगीकरण का ही परिणाम था। 19वीं और 20वीं शताब्दी में फ्रांस का उद्योगीकरण होता रहा।

जर्मनी- जर्मनी 19वीं शताब्दी के शुरू में मात्र एक भौगोलिक अभिव्यक्ति था। लेकिन, प्रशा के राइन क्षेत्र में 1848 ई० के आस-पास तक कितने औद्योगिक केंद्र स्थापित हो चुके थे। 1850 ई. तक जर्मनी के उद्योगपति जर्मनी के एकीकरण की मांग करने लगे ताकि उनके उत्पादनों के लिए संयुक्त जर्मनी विश्व में बाजार दूंढ़ सके। 1870 ई० में जर्मनी के एकीकरण के बाद् जर्मन-उद्योगीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ और नए बाजार खोजने के चक्कर में वह विश्व के समक्ष एक चुनौती बन गया ।

रूस- रूस यूरोप का महान देश था, फिर भी पूंजी के अभाव और कृषक दासों की मौजूदगी के कारण औद्योगिक दौड़ में बहुत बाद में शामिल हुआ। 1862 ई. में कृषक दास मुक्त हुए और बाद में विदेशी पूंजी का निवेश हुआ, जिसके परिणामस्वरूप 1880 ई० के दशक के बाद रूस का उद्योगीकरण शुरू हुआ। फिर भी यूरोप के अन्य देशों की तुलना में रूस के उद्योग पिछड़े हुए थे।

यूरोप के अन्य देश- स्पेन एक पिछड़ा हुआ देश था और वहां की जनता मुख्यत: कृषक ही रही। इटली में इटली के एकीकरण के बाद उद्योगीकरण शुरू हुआ। पूर्वी यूरोप के देश भी औद्योगिक नक्शे पर बहुत बाद में आए और वे अभी भी पश्चिमी यूरोपीय देशों के समान विकसित नहीं हैं।

एशिया के देशों में 19वीं शताब्दी के मध्य के बाद जापान ने काफी औद्योगिक केंद्र बैठाए, और 19वीं शताब्दी के अंत होते-होते वह एक महान् औद्योगिक देश बन गया। लेकिन, चीन, भारत तथा एशिया के अन्य देश उद्योगीकरण के रास्ते पर बाद में शामिल हुए।

अफ्रीकी देशों में अभी औद्योगिक क्रांति पूर्णतः नहीं पहुंची है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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