सन् 1830 की फ्रांसीसी क्रांति का अन्य देशों पर प्रभाव | सन् 1830 ई० की फ्रांसीसी राज्य-क्रांति का अन्य यूरोपीय देशों पर प्रभाव

सन् 1830 की फ्रांसीसी क्रांति का अन्य देशों पर प्रभाव | सन् 1830 ई० की फ्रांसीसी राज्य-क्रांति का अन्य यूरोपीय देशों पर प्रभाव

सन् 1830 की फ्रांसीसी क्रांति का अन्य देशों पर प्रभाव

(Effects of the Revolution of 1830 on the other countries)

सन् 1830 की फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव यूरोप के अन्य राज्यों पर भी पड़ा। इससे यूरोप का राजनीतिक वातावरण पुनः गरम हो गया। यूरोप के प्रत्येक देश की जनता ऐसे अवसरों की प्रतीक्षा करती थी जिससे वियना समझौते को लपेटकर रखा जा सके। इस क्रांति से लोगों में एक नई मूर्ति का संचार हो उठा वे अपनी मुक्ति की कामना करने लगे। इस क्रांति ने यह सिद्ध कर दिया कि प्रतिक्रियावाद अजेय नहीं है। अतः एक भीषण संक्रामक रोग की भांति क्रांति की लहर सारे यूरोप में फैल गयो । बेल्जियम, जर्मनी, इटली और पोलैण्ड आदि देशों में क्रांतियों की अग्नि भड़क उठी।

बेल्जियम पर क्रांति का प्रभाव-

वियना- कांग्रेस ने बेल्जियम को वहाँ की जनता की इच्छा के विपरीत हालैण्ड में मिला दिया था। इस प्रकार हालैण्ड को अधिक शक्तिशाली बनाने की योजना थी। परंतु बेल्जियम की जनता इससे रुष्ट हो गई। क्योंकि उनकी भाषा धर्म तथा संस्कृति हालैण्ड से भिन्न थी। इसके अतिरिक्त हालैण्ड निवासी फ्रांस से घृणा करते थे जबकि बेल्जियम निवासी जो कट्टर रोमन कैथोलिक थे, फ्रांस के मित्र थे। फ्रांस के हाथ वे अपना थोक माल बेचते थे। अतः दोनों के आर्थिक हित भी एक दूसरे के विपरीत हो जाते थे।

बेल्जियम की जनसंख्या हालैण्ड की जनसंख्या से दुगुनी थी। फिर भी हालैण्ड के सात मंत्रियों में से उनका एक ही मंत्री था। हालैंड के राजा विलियम प्रथम ने बेल्जियम के साथ जीते हुए प्रदेश के राजा के समान व्यवहार किया बेल्जियम में डूच कानून लागू किए गए। शासन में भी डच अधिकारियों को नियुक्त किया गया। हालैण्ड के हित में बेल्जियम के व्यापार पर भारी कर लगाये गए। बेल्जियम निवासियों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता प्रेस, भाषण आदि पर प्रतिबन्ध लगा दिए गए।

हालैण्ड की इस नीति से बेल्जियम की जनता पर गहरा प्रभाव पड़ा सोचने लगे कि हालैंड से उन्हें मुक्ति मिले। बेल्जियम की जनता स्वशासन की मांग करने लगी। हालैंड के राजा विलियम प्रथम ने यह मांग नहीं मानी, बेल्जियम वालों ने जोरदार आंदोलन शुरू कर दिया, सभी वर्ग के लोग आंदोलन में शामिल हुए। उसी समय उन्हें फ्रांस की सफल क्रांति की सूचना मिली। इससे बेल्जियम वालों का साहस बढ़ गया। उन लोगों ने क्रांति कर दी बेल्जियम की राजधानी बुसेल्स में जनता अस्त्र शस्त्र लेकर निकल पड़ी। इससे भयभीत होकर डच सेना पलायन कर गयी।

बेल्जियम ने अक्टूबर, 1830 में एक संविधान सभा बनाई और अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। नया संविधान शीघ्र ही बनाया गया। बेल्जियम ने ड्यूक द नमूर (Duke the Namours) को अपना राजा चुना। इंगलैण्ड के पर राष्ट्र लार्ड पामस्टेन (Lord Pelmerston) को यह अच्छा नहीं लगा। वह बेल्जियम को फ्रांस के प्रभुत्व में नहीं जाने देना चाहता था। अतः बेल्जियम पामर्स्टन की बात मानकर इंगलैण्ड में रहने वाले जर्मन राजकुमार लियोपोल्ड आफ सैक्सोबर्ग को अपना राजा मान लिया।

पोलैंड में क्रांति का प्रभाव-

1830 ई० में क्रांति का प्रभाव पोलैंड पर भी पड़ा। पोलैंड में अन्य जातियाँ भी निवास करती थीं। जिनमें जर्मन तथा रूसी भी थे। पोल रोमन कैथोलिक जर्मन प्रोटेस्टेन्ट और रूसी पीक चर्च के अनुयायी थे। 18वीं शताब्दी के मध्य में पोलैण्ड में जागीरदारों को अधिक बात मानी जाती थी, परंतु पोलैण्ड की सरकार को उन लोगों के सामने किसी भी प्रकार के निर्णय लेने का अधिकार नहीं था। यदि नये राजा का निर्वाचन होता था तो पड़ोसी राजाओं का भाग लेना अनिवार्य सा था। पोलैंड की सीमा से रूस आस्ट्रिया और प्रशा के राज्यों की सीमाओं से मिली हुई थी। ये राज्य पोलैण्ड की बढ़ती हुई शक्ति पर बराबर चोट करते रहते थे। 1793 ई० में पोलैण्ड के राजा आगस्टस तृतीय को मृत्यु के बाद नये राजा के चुनाव पर मतभेद शुरू हो गया रूस और प्रशिया ने स्टनीस्लास द्वितीय को पोलैण्ड का राजा बना दिया।

1815 ई० में वियना कांग्रेस के द्वारा पोल जाति को तीन भागों में बांट दिया गया। तीनों परतंत्र हो गए। पोलैंड का मुख्य भाग रूस की अधीनता में था। 1830 की क्रांति ने पोल लोगों के ऊपर भी प्रभाव डाला, पोलों ने अनेक रूसी अधिकारी मार डाले। रूस ने पोल क्रांति का बुरी तरह दमन किया, अनेक नेता मौत के घाट उतार दिए गए। और कुछ कैद करके साइवेरिया (Siberia) भेज दिए गए। इस प्रकार पोलैंड पर रूस का अधिकार हो गया।

जर्मनी पर प्रभाव-

1815 ई. संधि के बाद जर्मनी में कई छोटे-छोटे राज्य बना दिए गए थे जिनमें प्रशिया तथा आस्ट्रिया का शासन शक्तिशाली था। इन राज्यों पर 1830 ई० की क्रांति का प्रभाव पड़ा विद्रोह का वातावरण व्याप्त हो गया। ब्रुन्सिवक को जनता ने अपने राजा को गद्दी से उतार दिया और वैध राजसत्ता की पुनः स्थापना कर दी। इसी प्रकार सैक्सोनी हनोवर आदि राज्यों में भी प्रजातंत्रात्मक विधान बनाये गए। परन्तु एकता के अभाव में 1830 ई० की क्रांति अपना विशेष प्रभाव नहीं डाल सकी। आस्ट्रिया के मैटर्निख ने राज्य परिषद द्वारा ऐसे कानून पास कराये जिनके परिणामस्वरूप प्रेस लेखन और भाषण की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया गया। छात्र संघ गैर कानूनी घोषित कर दिए गए। अनेक राजभक्त देश से निष्कासित कर दिए गए। इस प्रकार मैटर्निख ने जर्मनी की क्रांतिकारी भावना को कुचल दिया।

क्रांति का इटली पर प्रभाव-

इटली का अनेक राज्यों में विभाजन वियना की कांग्रेस में हो गया था, सभी राज्य अपना अलग संगठन बनाने के लिए आंदोलन कर रहे थे। इटली की जनता को बेल्जियम् हालैण्ड आदि के राज्यों की क्रांति से प्रेरणा मिली। अब इटली के नागरिक विद्रोह करने पर उतर आये। मोडोना (Modena), पुरमा (Perma), आदि के राजाओं को गद्दी से उतार दिया गया। इटली के अन्य शासकों में मैटर्निख से सहायता मांगी। मैटर्निख ने आस्ट्रिया की सेनाएँ इटली की ओर भेज दी । इटली के छोटे-छोटे राज्य संगठन के अभाव में एक न हो सके। अत: मैटर्निख ने क्रांति की लहर को कुचल डाला।

स्पेन पर क्रांति का प्रभाव-

स्पेन के शासक फनडनिन्ड ने 1812 ई० के संविधान को स्थगित कर दिया था, संविधान सभा भी समाप्त कर दी गई, कुलीन वर्ग तथा चर्च को फिर से विशेषाधिकार दे दिए गए और विद्यार्थियों पर भी अत्याचार होने लगे। अतः सन् 1820 ई० के आते ही स्पेन में दंगे होने लगे। फनिन्ड को गद्दी छोड़कर भागना पड़ा। सुन् 1822 ई० को बेरोना सम्मेलन में फ्रांस की क्रांति को दबाने का अधिकार फ्रांस को सौंपा गया। फ्रांस ने सेना की सहायता से विद्रोहियों को कुचल दिया और राजा फर्डनिन्ड को पुनः गद्दी पर बिठा दिया गया। सन् 1830 ई. तक नागरिकों ने कोई उपद्रव नहीं किया परन्तु सन् 1830 की फ्रांस की क्रांति की लहर जव स्पेन में पहुंची तो पुनः स्पेन में भी क्रांति भड़क उठी। उस समय तो क्रांति का दमन कर दिया गया परंतु पार्लियामेंट में उदारवादियों का प्रभुत्व हो गया, और 1837 में राजा ने बाध्य होकर जनता को एक नया संविधान दिया। अतः स्पेन में वैध शासन की स्थापना हो गई।

पुर्तगाल पर क्रांति का प्रभाव-

सन् 1826 तक राजा जोन का स्वेच्छाचारी शासन पुर्तगाल पर रहा। जोन की मृत्यु के पश्चात् उसका लड़का डोनपैड्रो ब्राजील से आकर पुर्तगाल का राजा बना। वह अपनी सात वर्षीय लड़की डोनामारिया को पुर्तगाल की गद्दी सौंपकर वापस चला गया। 1828 ई० में डोनामारिया के चाचा डोनमिबुएल ने पुर्तगाल के सिंहासन पर अधिकार कर लिया। पुर्तगाल के कुलीन वर्गीय लोग उसके पक्ष में थे। डोनमिबुएल ने वचन दिया कि वह शीघ्र ही पुर्तगाल में वैधानिक शासन की स्थापना कर देगा। इस प्रकार 1828 से 1834 तक पुर्तगाल में एक प्रकार से गृह-युद्ध का वातावरण रहा। जनता अपने अधिकारों को पाने के लिए बराबर प्रयल करती रही।

फ्रांस की जुलाई क्रांति ने पुर्तगाल के देश-भक्तों में एक नयी प्रेरणा का संचार किया। उन्होंने स्पेन, फ्रांस और इंगलैण्ड के उदारवादियों से मिलकर अपनी चतुर्मुखी मैत्री स्थापित की। 1834 में डोनपैडो ने बाजील से लौटकर फ्रांस और इंगलैण्ड की सहायता से डोनामारिया को वापस पुर्तगाल की गद्दी पर बिठा दिया । डोनामारिया ने संविधान स्वीकार कर लिया। इस प्रकार राजसत्ता जनता के प्रतिनिधियों के हाथ मे आ गयी।

क्रांति का इंगलैण्ड पर प्रभाव-

फ्रांस की जुलाई क्रांति से इंगलैण्ड की जनता भी अधिकारों की मांग करने लगी। जिस समय फ्रांस की क्रांति का समाचार इंगलैंड पहुंचा उस समय टोरी पार्टी की ओर से वैलिंग्टन ड्यूक’ इंगलैण्ड का प्रधानमंत्री था। वह घोर प्रतिक्रियावादी था। उस समय इंगलैण्ड में मताधिकार केवल धनियों, कुलीनों तथा भू-पतियों को ही प्राप्त था। इस कारण जनता में असंतोष की भावना थी।

जुलाई-क्रांति के फलस्वरूप मताधिकार सार्वजनिक करने तथा निर्वाचन प्रणाली में सुधार करने की मांग प्रबल हो उठी। स्थान-स्थान पर सभाएँ होने लगी, प्रदर्शन भी किए गए। सरकार ने जनता की मांग अस्वीकार कर दी जिससे लोग क्रोधित हो उठे। सरकार की नीति के कारण संसदीय चुनावों में टोरी पार्टी को भारी हानि उठानी पड़ी। अब संसद में उदारवादी बिग पार्टी का जोर हो गया। बिग दुल का लार्ड जानसन नया प्रधानमंत्री बना। उसके द्वारा प्रस्तावित सुधार बिल लोकसभा में तो पारित हो गया परंतु लार्ड सभा ने उसे अस्वीकृत कर दिया। इस घटना से साधारण जनता लाई सभा के विरुद्ध हो गयी। अनेक स्थानों पर जनता ने आन्दोलन करने शुरू कर दिए। ब्रिटिश जनता में फ्रांस की जुलाई क्रांति के समान विचार फैलने लगे। सभाएँ, जुलूस आदि निकाले जाने लगे। जनता संशस्त्र क्रांति की भी तैयारियाँ करने लगी। दूसरी ओर सरकार में भी मतभेद हो गए। अतः लार्ड सभा के सदस्यों ने सन् 1832 में विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे दी। इस प्रकार इंगलैण्ड में मताधिकार पहले की अपेक्षा विस्तृत हो गया। जनता के राजनीतिक अधिकार बढ़ जाने के कारण इंगलैण्ड क्रांति से बच गया।

निष्कर्ष (Conclusion)

फ्रांस की जुलाई-क्रांति तथा इस क्रांति से प्रभावित होकर यूरोप के विभिन्न राज्यों में जो हलचलें हुई उनसे उदार विचारों को बल मिला। उदार विचारों के प्रबल हो जाने से प्रतिक्रियावादी मैटर्निख का प्रभाव घट गया। मैटर्निख ने उदारविचारों को पनपने न देने के लिए जो संघ बना रखा था, उसका भी अंत हो गया। क्रांति का एक प्रभाव यह भी हुआ कि धर्माधिकारियों की प्रभुता कम हो गयी।

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