समाज शास्‍त्र / Sociology

शिक्षा का समाजशास्त्र पर प्रभाव | शिक्षा समाजशास्त्र को कैसे प्रभावित करती है?

 शिक्षा का समाजशास्त्र पर प्रभाव | शिक्षा समाजशास्त्र को कैसे प्रभावित करती है?

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शिक्षा का समाजशास्त्र पर प्रभाव

वर्तमान भौतिकवादी सामाजिक परिस्थितियों में शिक्षा ही वह माध्यम है जो बालक का सही मार्ग दर्शन कर सकती है। शिक्षा ही उनका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास कर सकती है। शिक्षा के द्वारा ही उनमें ऐसी क्षमताओं और योग्यताओंa का निर्माण किया जा सकता है, जो समाज में फैली हुई बुराइयों को समाप्त कर सके। वर्तमान औद्योगिक युग में समाज तीव्रता से परिवर्तित हो रहा है और आधुनिकीकरण की इस अंधी दौड़ के कारण समाज में अनेक बुराइयां पनपने लगी हैं। यह शिक्षा ही है जो समाज के सदस्यों को सही दिशा प्रदान करते हुए इन बुराइयों से जूझने और समाज में आवश्यकतानुसार परिवर्तन लाने की क्षमतायें प्रदान कर सकती है। समाजशास्त्र क्योंकि समाज की विभिन्न दशाओं, इकाइयों एवं मानवों के आपसी सम्बन्धों का अध्ययन करने का विज्ञान है अतः समाज के इन विभिन्न अंगों पर पड़ने वाले शिक्षा के प्रभाव का समाजशास्त्र पर भी प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। सक्षेप में हम नीचे की पंक्तियों में शिक्षा के समाजशास्त्र पर प्रभाव को दर्शा रहे हैं।

  1. सामाजिक व्यवस्था पर शिक्षआ का प्रभाव (Effect of Education on Social System) –

सामाजिक व्यवस्था से तात्पर्य समाज की नियमित संरचना एवं प्रक्रिया से है और सामाजिक व्यवस्था का प्रत्यक्ष सम्बन्ध मनुष्यों के आपसी. सम्बन्धों और कायों से है। शिक्षा मनुष्य को उसकी संस्कृति से परिचित कराती है और यथासम्भव उसका विकास करती है। समय के साथ-साथ इस सामाजिक व्यवस्था में कुछ दोषों का आ जाना स्वाभाविक है। शिक्षा ही वह माध्यम है जो इन दोषों को दूर करने के लिए आदर्श सामाजिक व्यवस्था के निर्माण की रूपरेखा तैयार करती है।

  1. परिवार पर शिक्षा का प्रभाव (Effect of Education on Family) –

परिवार शिक्षा का प्राथमिक अनौपचारिक साधन है। बालक परिवार में ही जन्म लेता है और अपना प्रथम पाठ वह अपनी मां से ग्रहण करता है और धीरे-धीरे समाज के अन्य सदस्यों के सम्पर्क में आता हुआ वह विकास की ओर अग्रसर होता है। लेकिन उसके जीवन की प्राथमिक पाठशाला निःसन्देह परिवार ही है। शिक्षा परिवारों के वातावरण में समयानुसार परिवर्तन लाती है। फलस्वरूप परिवार की इन परिवर्तित परिस्थितियों के अनुकूल ही बालक का समाजीकरण सम्भव होता है। परिवार के पड़े लिखे सदस्य इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इस प्रकार शिक्षा परिवार को प्रभावित करती है।

  1. हम उम्र बच्चो के समूह पर प्रभाव (Effect of Education on child’s Group) –

हम उम्र बच्चों के समूह से तात्पर्य उन बच्चों के समूह से है जिनकी उम्र लगभग एक समान होती है और वे आपस में मिलकर खेलते एवं अन्य क्रियायें करते है। इस प्रकार के समूह बच्चों के लिए परिवार से किसी तरह से भी कम महत्व नहीं रखते। इन समूहों में बालक अपनी शिक्षा दीक्षा के अनुकूल ही व्यवहार करते हैं। प्रायः देखा गया है कि इन समूहों में एक नेता होता है और उसके व्यवहारों, आदतों और क्रिया कलापों का प्रभाव अन्य बच्चों पर पड़ता है। यदि यह बालक नेता सही दिशा में शिक्षित होता है तो अन्य बच्चों का व्यक्तित्व भी उसी के अनुरूप विकसित होता है। उच्च वर्ग के शिक्षा प्राप्त बच्चे निम्न वर्ग के बच्चों को प्रभावित करते हैं। स्पष्ट है कि शिक्षा इन बालसमूहों के माध्यम से समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

  1. समुदाय पर शिक्षा का प्रभाव (Effect of Education on Society) –

शिक्षा समुदाय की गतिविधियों को भी प्रभावित करती है। प्रायः देखा गया है कि जिस समुदाय के सदस्य शिक्षित होते हैं वह समुदाय अन्य समुदायों की तुलना में अधिक प्रगति करते हैं। शिक्षा ही समुदाय के सदस्यों को व्यवसायिक और औद्योगिक प्रगति की ओर अग्रसर करती है। शिक्षित सदस्यों वाले समुदायों का रहन सहन व जीवन स्तर अशिक्षित समुदायों के सदस्यों की तुलना में अधिक उन्नत व समृद्धिशाली होता है।

  1. राज्य पर शिक्षा का प्रभाव (Effect of Education on State) –

समुंदाय का ही बड़ा रूप राज्य है। कई समुदायों, संस्थाओं, समितियों से मिलकर ही एक राज्य की स्थापना होती है और प्रत्येक राज्य की एक राजनीतिक सत्ता भी होती है। इस राजनीतिक सत्ता पर समाज के शिक्षित सदस्यों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। शिक्षा राज्य के आर्थिक एवं औद्योगिक स्तर को ऊंचा उठाने में सहायता करती है। शिक्षा ही राज्य के सदस्यों को शिक्षित कर राज्य की आवश्यकताओं के अनुकूल ढालती है। शिक्षा ही राज्य को कुशल कर्मचारी एवं नागरिक प्रदान कर राज्य की व्यवस्था को चलाने में सहायता प्रदान करती है। यह शिक्षा ही है जो किसी राज्य अथवा राष्ट्र की सभ्यता संस्कृति और धर्म की रक्षा करती है व इनका प्रचार एवं प्रसार करती है।

  1. सामाजिक परिवर्तन और शिक्षा (Social changes and education) –

समाज परिवर्तनीय है। इसमें लगातार परिवर्तन होते रहते हैं और शिक्षा इन परिवर्तनों की दिशा के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। समाज में परिवर्तन तभी सम्भव हो पाता है जब नवीन विचारों को समाज के सदस्य स्वीकार करें। प्रायः देखा गया है कि साधारण जनता इन परिवर्तनों को अपनाने में सदैव ही संकोच करती है। केवले समाज के पढ़े लिखे सदस्य ही इन परिवर्तनों को पहले अपनाते हैं और बाद में साधारण जनता इनका अनुकरण करती है। इस प्रकार यह शिक्षा ही है जो समाज में इन परिवर्तनों को लाने के लिए उत्तरदायी है। समाज में परिवर्तन के लिए बाधक तत्वों को भी दूर करने में शिक्षा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

  1. संस्कृति और शिक्षा (Culture and education) –

किसी भी देश की संस्कृति के निर्माण एवं प्रगति में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। यह शिक्षा ही है जो किसी भी समाज की संस्कृति को समृद्धिशाली बनाती है और उसे नयी दिशा प्रदान करती है। शिक्षा ही संस्कृति का संरक्षणा प्रसार एवं विकास करती है। यह शिक्षा ही है जो किसी भी पुरानी संस्कृति की अच्छी बातों का समावेश नयी संस्कृति में कराती है और उसे समाज के लिए उपयोगी बनाती है। इस प्रकार शिक्षा संस्कृति को प्रभावित करते हुए समाज के सदस्यों और सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करती है।

समाज के इन विभिन्न अवयवों का अध्ययन चूंकि समाजशास्त्र द्वारा किया जाता है अतः. समाजशास्त्र भी इन सब से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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