शुंगों का उत्कर्ष | शकों एवं पल्लवों का इतिहास | शुंगों के उत्कर्ष पर एक संक्षिप्त टिप्पणी

शुंगों का उत्कर्ष | शकों एवं पल्लवों का इतिहास | शुंगों के उत्कर्ष पर एक संक्षिप्त टिप्पणी

शुंगों का उत्कर्ष

शुंग-वंशावली का परिचय देते हुए पुराण हमें सूचित करते हैं कि मौर्यवंशीय दस राजाओं ने 137 वर्षों तक राज्य किया जिसके बाद पृथ्वी शुंगों के अधिकार में चली गयी। अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ का सेनापति पुण्यमित्र शुंग 36 वर्षों तक राज्य करेगा। शुंगों के राज्यारोहण के सम्बन्ध में आगे संकेत देते हुए बाणभट्ट के हर्षचरित का कहना है-“अपनी सेना के निरीक्षण के बहाने विजयवाहिनी के स्वागत के समय अनार्य सेनापति पुण्यमित्र ने अपने स्वामी उस बृहद्रथ मौर्य को समाप्त कर दिया जो अपने अभिषेक की प्रतिज्ञा के निर्वाह करने में दुर्बल था। “प्रज्ञादुर्बलं च बलदर्शनव्यपदेशदर्शितशेषसैन्यः सेनानीरनार्यों मौर्यो बृहद्रथ पिपेष पुण्यमित्रः स्वामिनम्”। हमारे स्रोतों से उपलब्ध ये कथन यह सिद्ध करते हैं कि शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र ने मौर्य वंश के उस अन्तिम सम्राट को मारकर सत्ता प्राप्त की जिनकी सेना में वह सेनापति था। हर्षचरित में प्रयुक्त विश्लेषण अनार्य यह सिद्ध करता है कि हत्या विश्वासघातपूर्ण थी। किन्तु इस कथन में अन्तर्विरोध का भी एक तत्व वर्तमान है क्योंकि बृहद्रथ पर भी अभिषेक के समय प्रतिज्ञा को भंग करने का आरोप लगाया गया है। यदि पुष्यमित्र ने उसका वध प्रतिज्ञापालन न करने के कारण किया तो उसकी हत्या एक विश्वासघातपूर्ण कार्य नहीं हो सकती। ऊपर से यह एक देश भक्तिपूर्ण और प्रशंसनीय कार्य भी होता। अतः हम इस बलात् सत्ता परिवर्तन के स्वरूप का अभिनिश्चयन अपने स्रोतों में इसके उल्लेखों के आधार पर नहीं कर सकते।

मौर्यों के पतन से लेकर कनिष्क के अधीन कुषाण साम्राज्य के अभ्युदय तक विकेन्द्रीकरण के युग का एक विहंगम सर्वेक्षण प्रस्तुत किया गया है। इसमें देशी तथा विदेशी किन्तु स्थानीय सत्ताओं के उत्थान-पतन की झांकी प्रधानतया समय के सन्दर्भ में प्रदर्शित की गयी थी। प्रस्तुत पाठ का उद्देश्य उसी युग के कुछ चुने हुए क्षेत्रों का गहराई में लम्बवत् अध्ययन प्रस्तुत करना है जिसे पिछले पाठ में क्षैतिज विश्लेषण का विषय बनाया गया था। हमने अपने विषय को देश और काल दोनों में ही सीमित कर दिया है, सामान्य धारणाओं के अनुसार शुंगों ने 187 ई० पू० से लेकर 75 ई० पू० तक शासन किया, जबकि हिन्द-यवनों ने शासन सत्ता का उपयोग लगभग इसी समय से लेकर प्रथम शताब्दी ई०पू० में शकों के अभ्युदय तक किया। वह क्षेत्र जिस पर शुंगों ने शासन किया केवल उत्तरी भारत का कुछ भाग था, जिसमें मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्र भी शामिल थे। इसी प्रकार हिन्द-यवन विजयों के परिणामस्वरूप जो विजित क्षेत्र उनके राज्यों के अंग बन गए थे, वे भारतीय उप महाद्वीप के उत्तरी पश्चिमी भागों तक ही सीमित थे।

शकों एवं पल्लवों का इतिहास

खानाबदोश लोग अपने अस्तित्व के लिए एकमात्र स्टेप्स घास के मैदानों के प्राकृतिक चरागाहों पर निर्भर करते थे। यही वजह है कि किसी एक बिन्दु पर दबाव का क्रमिक प्रभाव बड़े लम्बे क्षेत्र के लोगों के स्थान परिवर्तन का कारण बन जाता था। इस बात की विशेष संभावना है कि चीन के चाऊ (चु) शासकों द्वारा खानाबदोश लोगों को पश्चिम की ओर खदेड़ने के फलस्वरूप व्यापक पैमाने पर यायावर लोगों के विस्थापन का जो सिलसिला शुरू हुआ उसकी वजह से सीथियन (शक) लोग पूर्वी ईरान होते हुए पश्चिमोत्तर भारत में पहुंचे। चीनी साक्ष्यों के अनुसार जब हियंगनू (हूण) लोगों ने ता-यू-ची लोगों पर विजय किया तब ता-यू-ची (कुषाण) लोग पश्चिम की ओर आगे बढ़े और इन लोगों ने ता-हिया क्षेत्र को विजित किया जिसके फलस्वरूप सैवांग (शक राज) ने दक्षिण की दिशा में प्रस्थान किया और कि-पिन शासन करने लगे।

शक प्रजाति के लोग सीथियन मूल (वंश) से सम्बन्धित थे। सीथियन लोग प्रधानरूपेण यायावर (खानाबदोश) थे जो स्टेप्स घास के मैदानों में निवास के आदी थे। इन स्टेप्स घास के मैदानों की उत्तरी सीमा जंगलों द्वारा एवं दक्षिण की ओर कालासागर और बोल्गा नदी के पूर्व की ओर स्थित मरुद्यान (नखलिस्तान) निर्धारित करते थे। एक चारागाह से दूसरे चारागाह की ओर हमेशा प्रयाणरत पुरुष समुदाय टटुओं में सवार होकर करते थे। इस बात की सम्भावना है कि जब किसी स्थान पर ये पड़ाव डालते थे तब तम्बुओं में निवास करते थे। यह सच है कि पांचवीं शताब्दी ई० पू० तक कतिपय समुदायों ने स्थायी जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के सम्पर्क से कृषि करना सीख लिया था एवं यहां तक कि कस्बों में रहने लगे थे।

जिन लोगों ने भारत में यूनानी शासन पर घातक प्रहार किया और उत्तरापथ पश्चिमी भारत के विस्तृत क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित किया, वे शक ही थे। वे लोग इस देश में दक्षिण-पश्चिम के रास्ते से प्रविष्ट हुए। शक लोगों का यवनों के साथ-साथ रामायण, महाभारत और महाभाष्य में उल्लेख हुआ है। तक्षशिला, मथुरा और पश्चिम भारत से खोजे गये कई अभिलेखों में शक नामधारी राजकुमारों का उल्लेख मिलता है। प्रसिद्ध सातवाहन राजा गौतमपुत्र शातकर्णी और गुप्त शासक समुद्रगुप्त की प्रशस्तियों में भी शकों का उल्लेख किया गया है।

इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक

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