समाज शास्‍त्र / Sociology

वैश्वीकरण का अर्थ एव परिभाषा | भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण का प्रभाव | भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण से होने वाले लाभ-हानि

वैश्वीकरण का अर्थ एव परिभाषा | भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण का प्रभाव | भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण से होने वाले लाभ-हानि | Meaning and definition of globalization in Hindi | Impact of globalization on Indian agriculture in Hindi | Advantages and disadvantages of globalization on Indian agriculture in Hindi

वैश्वीकरण का अर्थ एव परिभाषा

बीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक से ही भारत सहित संसार के कई देशों में सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया अत्यन्त तीव्र हो गई है। संसार के लोग आज एक, ऐसी जटिल एवं आर्थिक कड़ी में बंध गये हैं कि उन्हें अलग करके समझा ही नहीं जा सकता है। आज हम जिस दुनिया में रह रहे हैं, उसमें अन्योन्याश्रितता बढ़ गई है। पहले दुनिया के देश या एक ही देश के लोग एक- दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इतने अधिक अन्तःनिर्भर नहीं थे। भारत में तो एक गाँव में ही अपने आप में एक अलग दुनिया थी। मानव जाति के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि स्थानीय और वैश्वीय लोग एक कड़ी में बंध गए हैं। यह सब कुछ पिछले दो दशकों में हुआ है। दुनिया भर के सामाजिक सन्दर्भों को गहरा और घनिष्ठ करने वाली प्रक्रिया को समाजशास्त्रियों ने वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण की संज्ञा प्रदान की है।

वैश्वीकरण से अभिप्राय किसी देश की कृषि अर्थव्यवस्था को विश्व की कृषि व्यवस्थाओं के साथ जोड़ने से है। वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा अर्थव्यवस्था का भी अन्तर्राष्ट्रीयकरण हो जाता है। स्पष्ट है कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में वैश्वीकरण का आशय है- किसी देश की कृषि व्यवस्था को संसार के अन्य देशों की कृषि व्यवस्थाओं से सम्बद्ध करना। व्यालिश एवं स्मिथ के अनुसार, “वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा अपेक्षाकृत सामाजिक सम्बन्ध दूरी रहित और सीमा रहित गुणों को ग्रहण करते हैं।

भारत के संदर्भ में वैश्वीकरण का आशय है- विदेशी व्यापारिक कम्पनियों को भारत में विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में पूंजी निवेश करने की स्वीकृति प्रदान कर अपनी अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोलना अर्थात् देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्थाओं के साथ एकीकृत करना।

वैश्वीकरण के अन्तर्गत मुख्यतः निम्नलिखित क्रियाएँ आती हैं-

  1. कृषि पर आधारित आयात-निर्यात सम्बन्ध हो जाते हैं।
  2. 2. आयात के शुल्क में भारी कमी हो जाती है।
  3. 3. संसार में कोई भी देश, किसी भी देश को निर्बाध रूप से अपना माल बेच सकता है। तथा खरीद सकता है।
  4. आयात-निर्यात हेतु किसी भी प्रकार के कोटा-परमिट की जरूरत नहीं रहती है।
  5. विदेशी पूंजी के आगमन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं रहता है।
  6. विदेशी विनिमय सम्बन्धी प्रतिबन्ध शिथिल हो जाते हैं।
  7. देशी कृषि पर आधारित धन्धों/उद्योगों को संरक्षण नहीं दिया जाता है।
  8. व्यापारिक क्रियाओं में राज्य का हस्तक्षेप नहीं रहता है।
  9. विदेशी कम्पनियों के प्रवेश पर कोई प्रतिबन्ध नहीं रहता है।
  10. विदेशी माल/वस्तुएँ स्थानीय बाजारों में बिना कोई प्रतिबन्ध के बिकती हैं।

वैश्वीकरण के कारण उदारीकरण तथा निजीकरण भी आए हैं, जिन्होंने राष्ट्र राज्यों की भूमिका को कमजोर बना दिया है। वैश्वीकरण ने स्वास्थ्य सेवाओं तथा पर्यावरण को समस्त संसार की समस्या बना दिया है, अर्थात चेचक उन्मूलन, पोलियो उन्मूलन, मलेरिया की समाप्ति अब सामान्य स्वास्थ्य समस्याएँ बन गई हैं। कुल मिलाकर वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कि भौगोलिक दबाव कमजोर हो गये हैं। इसी प्रकार सामाजिक सांस्कृतिक सम्बन्धों की जमावट भी ढीली पड़ गई है। वैश्वीकरण केवल अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का समाजशास्त्र ही नहीं है। इसकी विश्व व्यवस्था का सिद्धान्त भी अलग है। वैश्वीकरण के सिद्धान्तवेता ‘परम्परागत समाजशास्त्र’ को नकारते हैं, क्योंकि ये सिद्धान्त आज भी राष्ट्र राज्यों को अपना केन्द्र मानकर चलते हैं।

स्पष्ट है कि “विभिन्न लोगों और दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के बीच में बढ़ती हुई अन्योन्याश्रितता अथवा पारस्परिकता ही वैश्वीकरण है। यह पारस्परिकता सामाजिक तथा आर्थिक सम्बन्धों में दिखाई देती है और इसमें समय तथा स्थान दोनों ही सिमट जाते हैं।” वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा विभिन्न देशों के बाजार तथा उत्पादन परस्पर एक दूसरे पर अधिक से अधिक निर्भर रहते हैं। इस निर्भरता के कारण व्यापार एवं वस्तुओं की गतिशीलता तथा पूँजी और तकनीकी तंत्र का प्रवाहित होना है। मैलकॉम के अनुसार, “वैश्वीकरण एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें सामाजिक तथा सांस्कृतिक व्यवस्था पर जो भौगोलिक दबाव होते हैं, पीछे हट जाते हैं तथा लोग भी इस तथ्य से अवगत हो जाते हैं कि भूगोल की सीमाएँ अब बेमतलब हैं।”

भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण का प्रभाव

  1. वैश्वीकरण अपनाने के बाद प्रत्येक भारतीय की व्यक्तिगत आय में वृद्धि हुई है। सन् 1950 में देश की प्रति व्यक्ति आय 1, 121 रुपये थी, जो सन् 2003 में बढ़कर 10,953 रुपये पहुंच गयी थी। वैश्वीकरण के मात्र 6 वर्षों में ही व्यक्तिगत आय में 24.2 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गयी, जो औसतन 3.7 प्रतिशत प्रतिवर्ष है। यदि व्यक्तिगत आय में इसी वृद्धि दर को बनाए रखा जाए तो आगामी एक दशक में यह दो गुनी हो जाएगी।
  2. वैश्वीकरण को अंगीकार करने के याद कृषि उत्पादों तथा खाद्यान्न के उत्पादन में आशातीत वृद्धि है। सन् 1950-51 में भारत में खाद्यान्न का कुल उत्पादन 508 लाख टन था, जो कि सन् 1990-91 में 1.764 लाख टन, 1996-97 में 1,993 लाख टन और सन् 2002-03 में बढ़कर 2174 लाख टन तक पहुँच गया। स्पष्ट है कि खाद्यान्न उत्पादन की दृष्टि से देश आत्मनिर्भर बना है। अब कुछ खाद्यान्न निर्यात भी किया जाता है।
  3. कृषि उत्पादों और तत्सम्बन्धी वस्तुओं के उपयोग में वृद्धि हुई है। प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोत्तरी होने के कारण देश में खाद्य तेलों, दूध, मक्खन, कपड़े, फर्नीचर, टेलीविजन, मोबाइल, मोटर साइकिलों और कारों आदि का उपयोग बढ़ा है। जीवन की अन्य सुविधाएँ भी बढ़ी हैं। दैनिक जीवन के लिए आवश्यक वस्तुएँ आसानी से उपलब्ध हैं। फलस्वरूप भारतीयों का जीवन स्तर भी काफी कुछ सुधरा है। अब उपभोक्ताओं को उत्तम किस्म की वस्तुएँ न्यूनतम मूल्यों पर बाजार में उपलब्ध हैं।
  4. वैश्वीकरण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ा है। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बने हैं। फलस्वरूप तनाव कम होकर सहयोग का मार्ग खुल रहा है। वैश्वीकरण के कारण अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों से सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए हैं।
  5. वैश्वीकरण के फलस्वरूप देश में विदेशी पूंजी का आगमन हुआ है। कृषि क्षेत्र को इससे पर्याप्त लाभ पहुंच रहा है। पूँजी के प्रभाव से नई तकनीकी खुल रही है। भारतीय कृषि में इस तकनीकी का प्रयोग किये जाने लगा है। फलस्वरूप कृषि एव कृषक दोनों को लाभ मिला है।

अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग तथा सद्भावना में वृद्धि, उत्पादकता में वृद्धि, तीव्र आर्थिक विकास, विदेशी मुद्रा कोष में वृद्धि, स्वस्थ औद्योगिक एवं औद्योगिक प्रगति, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, विदेशी व्यापार में वृद्धि, आदि वैश्वीकरण के सकारात्मक व लाभकारी प्रभाव हैं।

दूसरी ओर वैश्वीकरण के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी दिखाई देते हैं। विद्वानों के एक वर्ग का विचार है कि भारत जैसे विकासशील देश में वैधीकरण के परिणाम अच्छे नहीं होंगे। भारत में वैश्वीकरण को लगभग दो दशक पूरे होने जा रहे हैं, किन्तु कई समस्याएँ और कठिनाइयाँ आज भी वैसी ही है। आर्थिक विकास के बाद भी देश में गरीबी और बेरोजगारी समस्या बनी हुई है। सन् 2002 में 26.1 प्रतिशत भारतीय गरीबी की रेखा के नीचे गुजर-बसर कर रहे थे। आलोचकों के अनुसार, भारत में वैश्वीकरण से केवल धनी वर्ग ही लाभान्वित होगा। देश में महंगाई, आर्थिक, भ्रष्टाचार और विलासितापूर्ण उपयोग बढ़ेगा। कृषक को कुछ विशेष लाभ नहीं मिलेगा। उसकी खेती की मलाई पहले की भाँति मध्यस्य चाटते रहेंगे। वैश्वीकरण के कुछ दोष निम्नानुसार हैं।

  1. वैश्वीकरण के कारण भारतीय उद्योग एवं कृषि दोनों पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं निगमों का शिंकजा तथा प्रमुत्व बढ़ रहे हैं, अथवा उनके अधीन होते जा रहे हैं।
  2. विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, गैट, आदि अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के दबाव में अपने राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा की जा रही है। भारत सरकार को अपनी कृषि, आर्थिक, वाणिज्यिक तथा वित्तीय नीतियाँ इन संस्थाओं के निर्देशानुसार बनानी पड़ती हैं।
  3. वैश्वीकरण के दुष्प्रभाव से देशी उद्योग धन्थे धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। विदेशी माल के सामने देशी माल बिकता नहीं। चीन द्वारा भारत में बिजली का सामान, वस्त्र, खिलौने एवं अन्य वस्तुओं से पाट दिया गया है। कृषि आधारित प्रसंस्करण उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक, टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग उद्योग विदेशी प्रतिस्पर्धा का सामना न कर सकने के कारण पतन की ओर बढ़ते जा रहे हैं।
  4. वैश्वीकरण के फलस्वरूप विकासशील भारत की आर्थिक निर्भरता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा रहा है। हमें विदेशी राष्ट्रों और विदेशी पूँजी निवेश करने वालों की सभी शर्तों को स्वीकार करना पड़ता है।
  5. वैश्वीकरण के फलस्वरूप भारतीय बाजारों में विदेशी माल मुक्त रूप से आने लगा है। अतः स्थानीय उद्योग बन्द हो रहे हैं। फलस्वरूप देश में बेरोजगार सेना बढ़ रही है। औद्योगिक श्रमिकों की संख्या निरन्तर कम होती जा रही है।
  6. वैश्वीकरण राष्ट्र-प्रेम तथा स्वदेशी भावना के लिए भी हानिकारक सिद्ध हुआ है। आज के भारतीय विदेशी ब्राण्ड की वस्तुओं का उपयोग करने में स्वयं को गौरवान्वित समझते हैं। वे देश में निर्मित वस्तुओं को घटिया और तिरस्कृत योग्य बताते हैं।
  7. वैश्वीकरण के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय पेटेण्ट कानून, वित्तीय कानून मानव सम्पदा अधिकार कानून की आड़ में पूँजीवादी शक्तियाँ शोषण कर रही हैं। अनेक परम्परागत उत्पादन पेटेण्ट के फलस्वरूप महंगे हो गये हैं। हल्दी और नीम जैसी वस्तुओं देश में हजारों वर्ष से इस्तेमाल की जा रही हैं, उनका पेटेण्ट करके भारत की कृषि को क्षति पहुँचायी जा रही है।
  8. वैश्वीकरण के कारण भारत में पश्चिम का भोग विलास अपनाया जा रहा है। भारतीय बाजारों में अश्लील साहित्य, विलासिता के साधन/वस्तुओं निर्बाध रूप से प्रवेश कर गये हैं। इससे भारत में सांस्कृतिक पतन की संभावना प्रबल हुई है। समलैंगिकता को स्वीकृति, स्त्री-पुरुष का बिना विवाह किए साथ-साथ रहना, अवैध मातृत्व, नशाखोरी में वृद्धि इस बात की पुष्टि करते हैं।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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