राजनीति विज्ञान / Political Science

तुलनात्मक राजनीति का इतिहास | तुलनात्मक राजनीति के ऐतिहासिक विकास पर संक्षेप टिप्पणी

तुलनात्मक राजनीति का इतिहास | तुलनात्मक राजनीति के ऐतिहासिक विकास पर संक्षेप टिप्पणी

तुलनात्मक राजनीति का इतिहास

(History of Comparative Study)

तुलनात्मक विश्लेषण की परम्परा राजनीति विज्ञान में अति आधुनिक नहीं है। वास्तव में यह अरस्तु के युग से भी प्राचीन है।

तुलनात्मक राजनीति के विकास का प्रथम सीमा-चिह्न अरस्तू है, उसके पश्चात् अन्य सीमा-चिह्न मैक्यावली, मॉण्टेस्क्यू, मार्क्स आदि हैं।

तुलनात्मक राजनीति का द्वितीय महायुद्ध तक विकास

(Evolution of Comparative Politics up to Second World War)

तुलनात्मक राजनीति के विकास का प्रथम चिह्न अरस्तू है। वह प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक था। इसने ही राजनीति को विज्ञानों में स्थान दिया । अरस्तू ने पॉलिटिक्स की स्थापना करने से पूर्व 158 संविधानों का अध्ययन करके अपने विचार प्रस्तुत किये और प्रत्येक राज्य की राजनीतिक परिस्थितियों का विश्लेषण करने के पश्चात् निकाले हुए निष्कर्षों के आधार पर राज्य के सिद्धान्त निरूपित किए। अरस्तू को ही इस बात का श्रेय है कि उसने आगमनात्मक सिद्धान्त को सर्वप्रथम राजनीतिशास्त्र में अपनाया । उसकी अध्ययन-पद्धति चार भागों में बाँटी जा सकती है:-

(i) कारणों का अध्ययन ।

(ii) तथ्यों तथा आँकड़ों का विश्लेषण ।

(iii) वर्गीकरण एवं विश्लेषण।

(iv) विश्लेषणों में समन्वय द्वारा निष्कर्ष निकालना।

अरस्तू ने विभिन्न राज्यों का विश्लेषण किया तथा उनकी समस्याओं तथा स्वरूपों के विषय में पढ़ा। उनके पतन तथा क्रांति के कारण मालूम किए और सैद्धान्तिक व्यावहारिक नीतियों से क्रान्ति से बचने के उपाय बताए। उसने विश्लेषण द्वारा शासन के विकृत रूप का वर्णन किया । तुलनात्मक अध्ययन के महत्वपूर्ण वरण वर्तमान समय में निम्नलिखित प्रकार हैं-

(i) तथ्य एकत्रित करना;

(ii) वर्गीकरण तथा

(iii) विश्लेषण करना और निष्कर्ष करना ।

मैक्यावली तथा पुनर्जागरण (Machiaveli and Renaissance)-  

मैक्यावली अरस्तू के बाद इस पद्धति को विकसित किया। उसने मनुष्य को ही बौद्धिक पुनर्जागरण के युग में प्रत्येक वस्तु का मापदण्ड माना । उसके अनुसार राज्य ईश्वरीय कृति न होकर मानवीय कृति है। इस विचारधारा के आधार पर ही राज्य समुचित विचारं, सांख्यिकी तथा मूल्यांकन का विषय बन गया। मैक्यावली ने ‘शासन कला’ पर अनेक ऐतिहासिक और क्रान्तिकारी विचार प्रस्तुत किए। बौद्धिक पुनर्जागरण काल में राजनीतिक अनुभव की व्यापक परीक्षा के माध्यम द्वारा राजनीति के अध्ययन पर बल दिया गया तथा राज्य-कला एवं प्रशासन कला से सम्बन्धित कुछ गम्भीर बातें सामने आयीं। इस काल में मानव इन्जीनियरिंग की आवश्यकता में विश्वास उत्पन्न हुआ। मैक्यावली ने राजनीतिक व्यवहार, शासन कला से सम्बन्धित बहुत से गवेषणात्मक प्रश्नों पर विचार किया।

मैक्यावली से पहले मध्ययुगीन विचारकों की अध्ययन-पद्धति पर धर्म का प्रभाव था। मैक्यावली ने इस प्रणाली से हटकर वैज्ञानिक तटस्थता की नीति अपनायी तथा समकालीन परिस्थितियों का अध्ययन किया । इतिहास तथा तर्क के आधार पर तत्कालीन धर्म की शक्ति को गम्भीरतापूर्वक चुनौती दी और मानव-व्यवहार के पथ प्रदर्शक के रूप में ईश्वरीय नियम का बहिष्कार करके राजनीति विज्ञान का आधार परिवर्तित कर दिया।

मैक्यावली के मतानुसार मनुष्य का स्वभाव सभी देशों और कालों में एक-सा रहता है तथा लगभग एक ही प्रकार के उद्देश्य उसे संचालित करते हैं तथा समस्याओं का समाधान करते हैं। मैक्यावली के अनुसार भूत के गहन अनुशीलन द्वारा सफलताओं एवं विफलताओं के कारण ज्ञात किए जा सकते हैं। उसने धार्मिकता, परम्परावादिता, रूढ़िवादिता तथा पांडित्य- प्रदर्शन का विरोध किया। उसकी अध्ययन-पद्धति पर्यवेक्षणात्मक, ऐतिहासिक, यथार्थवादी तथा वैज्ञानिक विशेषताओं से युक्त थी।

मॉण्टेस्क्यू ने उक्त पद्धति को और भी निखारा । उसमें आधुनिकता की छाप अधिक दिखाई देती है। उसने ऐतिहासिक पद्धति को अपनाया, राजनीतिक प्रश्नों का निरपेक्ष राजनीतिक सिद्धान्तों के आधार पर तथा वास्तविक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर उसका विवेचन किया। मॉण्टेस्क्यू ने शासन-कला के क्षेत्र में मैक्यावली की भाँति ही आगमन पद्धति का प्रयोग किया।

इतिहासवाद

(Historicism)

मॉण्टेस्क्यू के पश्चात् इतिहासवाद की विचारधारा प्रारम्भ हुई। यह शैली राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में अधिक मुखर हुई। इसने सभी सामाजिक घटनाओं के अध्ययन को प्रभावित किया। ये सभी परिवर्तन सावयवी अधिक थे।

यद्यपि इतिहास की साख. लम्बे समय से समाप्त हो चुकी है, परन्तु पाश्चात्य सामाजिक चिन्तन में तुलनात्मक राजनीतिक क्षेत्र में इसका बहुत महत्व है। हैरी एक्सटीन के अनुसार इसकी बहुत सी अवधारणाएँ आज भी लाभदायक हैं। इसके अतिरिक्त इसकी अनेक समस्याओं को आज भी उठाया जाता हैं। राजनीतिक अनुभव के विस्तृत क्षेत्र की ओर इतिहासवादी सिद्धान्तों ने ध्यान दिया था। इतिहासवादियों का यह भी उत्तरदायित्व था कि उन्होंने विकासवादी सिद्धान्त में परवर्ती रुचि जाग्रत की, इससे राजनीतिक इतिहासकारों के स्वैच्छिक एकांगी दृष्टिकोण के प्रति संतुलन बनाने में सहायता मिली। अधिक सीमा तक इतिहासवाद द्वारा ही ब्रॉड-स्केल थ्योरी में अभिरुचि उत्पन्न हुई।

19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से कुछ दूसरी शक्तियों के उदित हो जाने से इतिहासवाद की साख गिर गई। परिणामस्वरूप अन्त में इतिहासवाद का सकारात्मक प्रभाव कम हो गया |

इतिहासवाद के विरुद्ध तीन मुख्य प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न हुई-

(i) अमूर्त राजनीतिक विश्लेषण पर बल दिया जाने लगा।

(ii) विचार तथा सामग्री की पृथकता इतिहासवाद के विरुद्ध एक दूसरी प्रतिक्रिया थी।

(iii) आकृतिक विश्लेषण (Configurative Analysis) और विशेष राजनीतिक व्यवस्थाओं के विश्लेषण पर बल दिया जाने लगा।

द्वितीय महायुद्ध से पूर्व स्थिति तथा विकास के अन्य चरण

(Situation up to II War and Other Stages of Development)

Configurative Studies, Political Ethnography site Formal Legal Studies आदि इतिहासवाद के विरुद्ध विभिल प्रतिक्रियाएँ हैं। इनका उद्गम-स्रोत एक होने से वे वृहद् संश्लेषणों में परस्पर संयुक्त हो गई।

राजनीतिक विकासवाद का क्रिया-प्रतिक्रिया में अपना महत्व था। राजनीति के विषय में विकासवादी सिद्धान्तों में इतिहासवाद के विरुद्ध अनुभववादी प्रतिक्रिया और सैद्धान्तिक प्रतिक्रिया थी। विकासवादियों ने आँकड़ों (Data) पर अधिक ध्यान देने के साथ-साथ अधिक सीमित समस्याओं पर, विशेषकर वर्तमान प्रादेशिक राज्य के उदय की समस्या पर भी अपना ध्यान केन्द्रित किया। विकासवादियों ने जटिल राजनीतिक व्यवस्थाओं के विकास के मूल में निहित नियमों तथा प्रक्रियाओं को जानने के प्रयास किए।

तुलनात्मक राजनीति की प्राचीन अवधारणा के विरुद्ध बीसवीं शताब्दी में प्रतिक्रियाएँ होने से कुछ ऐसी रचनाएँ सामने आयीं जिनमें विशेष रूप से दो प्रयास किए गए-(i) वृहद् स्तरीय तुलनात्मक कार्यों में संरूपणात्मक अध्ययनों द्वारा की गई खोजों का समन्वय करना तथा (ii) राजनीतिक सिद्धान्त और आँकड़ों का पुनरेकीकरण करना।

तुलनात्मक राजनीति में युद्धोत्तर विकास

(Post-war Development in Comparative Politics)

तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र में द्वितीय महायुद्ध तक वृहद्-स्तरीय तुलनाओं में रुचि पुनः जाग्रत हुई। राजनीति की विस्तृत अवधारणा बनाई जाने लगी। राजनीति से सम्बन्धित गैर- राजनीतिक तत्वों की ओर ध्यान आकर्षित हुआ तथा कुछ निश्चित राजनीतिक व्यवहारों को निश्चित करने वाले घटकों एवं कुछ राजनीतिक संस्थाओं की आवश्यकताओं से सम्बद्ध मध्य- स्तरीय सैद्धान्तिक समस्याओं के समाधान के लिए अधिक बल दिया जाने लगा। फिर भी अभी तक तुलनाओं का अधिकतर प्रयोग बिना विशेष तकनीकी प्रक्रियाओं के लिए किया जाता था। विषय वस्तु अभी तक मुख्य रूप से ‘सम्प्रभु राज्य’ थी। विश्लेषण अधिकांशतः परम्परागत अवधारणाओं पर होता था।

तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र में युद्धोत्तर काल में कुछ नई प्रवृत्तियों का प्रारम्भ हुआ । राबर्ट्स के अनुसार दो मुख्य धाराओं ने तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र को अधिक व्यापक और विस्तृत बनाया। ये धाराएँ थीं-तुलना की कला तथा पतियों के विषय में आत्मचेतना की प्रवृत्ति की। विकास की दूसरी धारा के अनुसार तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र से बाहर राजनीतिक आधुनिकीकरण, विश्लेषण, राजनीतिक समाजशास्त्र आदि विचारधाराएँ विकसित हुई। परिणामस्वरूप तुलनात्मक विश्लेषण में प्रत्ययीकरण-पद्धति, मॉडल्स’ तथा व्यवहारवादी सिद्धान्तों के रूप में कृत्रिमता तथा जटिलता में वृद्धि हुई।

कुछ विद्वानों ने पिछले दो दशकों से राजनीतिक सिद्धान्त में तुलनात्मक विश्लेषण को एक वृहद् इकाई के रूप में व्यवस्था-सिद्धान्त की दृष्टि से प्रतिपादित किया है। यह सिद्धान्त बहुत महत्वपूर्ण तथा उपयोगी है। इस सिद्धान्त द्वारा राजनीतिक व्यवस्था के कार्यो को पूर्ण करने वाले तथा परस्पर सम्बद्ध अनेक तत्वों के विभेदीकृत समुच्चय के रूप में परिभाषित की गई नई इकाइयाँ भी समाविष्ट हुई हैं। इसमें सर्वाधिक योगदान अमेरिकी विद्वानों ने दिया है। विगत दशाब्दियों में तुलनात्मक राजनीति से नयी शोध-पद्धतियों, तकनीकों, संकल्पनाओं तथा मध्ववर्ती स्तर-सिद्धान्तों का बहुत विकास हुआ है तथा कुछ विश्लेषण बहुत महत्वपूर्ण तथा उच्चकोटि के हैं। तुलनात्मक राजनीति में सुधार के लिए अनेक नई तकनीकों को अपनाया गया है तथा इन तकनीकों के कारण सामाजिक एवं राजनीतिक आधारों को ढूँढ़ना, राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया के अनेक चरणों का विश्लेषण समुचित प्रकार से किया जा सका है। एटर, रोस्टोव, लूसियन पाई आदि विद्वानों ने तुलनात्मक राजनीति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

1969 में टोरिनो राउण्ड टेबल से तुलनात्मक राजनीति के विकास को विशेष गति मिली।

हैरी एक्सटीन के अनुसार युद्धोत्तर काल में तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र में समाविष्ट नई प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित प्रकार हैं:-

(i) तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र की अनुभववादी अभिसीमा में वृद्धि ।

(ii) युद्ध-पूर्व अवस्था में राजनीतिक क्षेत्र में कठोरता तथा व्यवस्था की कमी को दूर करने के लिए विशेष प्रयास किए गए हैं।

(iii) सामाजिक समूहों के राजनीतिक कार्यों के अध्ययन पर और राजनीतिक मूल्यों को ढालने में विशेष भूमिका प्रस्तुत करने दाली सामाजिक संस्थाओं के. अध्ययन पर बल दिया जाने लगा है।

(iv) राजनीतिक व्यवस्थाओं की विश्लेषणात्मक रूप से शल्यक्रिया की गई और संरचनात्मक विश्लेषण पर सर्वाधिक बल दिया गया है।

तुलनात्मक राजनीति की वर्तमान स्थिति

(The Present Status of Comparative Politics)

परम्परागत तुलनात्मक राजनीति के दोष को दूर करने के लिए आधुनिक विद्वानों ने व्यवहारवाद, समाजविज्ञान और समाजशान से प्रभावित होकर अनौपचारिक और अराजनीतिक विषय-सामग्री के अध्ययन का सम्पूर्ण विश्लेषण करना आवश्यक समझा। नवीन, स्वतंत्र एवं गैर-पश्चिमी राष्ट्रों का अध्ययन उनके लिए एक चुनौतीस्वरूप हो गया। सैनिकवाद तथा साम्यवाद के प्रभाव में वृद्धि के कारणों की जाँच और उनके विकास तथा आधुनिकीकरण की समस्याएँ भी अत्यधिक कठिन थीं। परम्परागत राजविज्ञान की पश्चिमी अवधारणाएँ इस नई दिशा को दिखाने में असमर्थ थीं। अतः क्षमता-मापन तथा परिणाम भी एक जटिल समस्या बन गया। अमेरिका की ‘सोशल साइंस रिसर्च कौंसिल’ ने इस पर गम्भीरता से विचार करके कुछ निष्कर्ष निकाले जो निम्नलिखित प्रकार हैं-

(1) सामान्य विश्लेषण के समय उनकी विशिष्टताओं को उचित स्थान प्राप्त होना चाहिए।

(2) विभिन्न देशों की राजनीति, उनकी स्थितियो तथा प्रतिक्रियाओं का उल्लेख अमूर्तिकरण करके विश्लेषण होना चाहिए।

(3) तुलनात्मक विश्लेषण से पूर्व नवीन तुलना, वर्गों तथा अवधारणाओं को विकसित करने के साथ साथ विश्लेषण के अधीन सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं की संगति को जान लेना भी आवश्यक है।

(4) प्राकल्पनाओं की श्रृंखला का निर्माण होना चाहिए।

(5) राजनीति के सामान्य सिद्धान्त और उससे समुचित प्राकल्पनाओं के निर्माण के लिए एक अवधारणात्मक योजना अथवा किसी समस्या विश्लेषण को हाथ में लेना चाहिए।

(6) सूक्ष्म और परिशुद्ध आधार पर प्राकल्पनात्मक सम्बन्धों का निर्धारण तथा निर्माण अनुभव किए गए तत्वों के आधार पर सत्य नहीं सिद्ध किया जा सकता।

(7) तुलनात्मक राजनीति के उक्त अध्ययन के पश्चात् भी यदि सामान्य राष्ट्रीय सिद्धान्त की स्थापना असम्भव है तो भी उसको क्रमिक और संचयनात्मक प्रयास समझना चाहिए। इससे सिद्धान्त के निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री प्राप्त करने हेतु व्यवस्थित आँकड़े एकत्रित हो सकेंगे।

श्री जी० एस० कोलेमन के अनुसार तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन की विशेषताएँ

(1) उनके अनुसार राजनीति का व्यापक अर्थ है।

(2) उन्होंने अपश्चिमी राज्य का अनुभव के आधार पर अध्ययन किया है तथा उनसे सम्बन्धित विभिन्न वर्गीकरण और क्षेत्रीय अध्ययन प्रस्तुत किए हैं।

(3) उनके अध्ययन परम्परा-मुक्त हैं तथा उनमें गुण-चयनात्मकता और विभेद आदि पाए जाते हैं।

(4) अधिकांश विश्लेषकों ने वैज्ञानिक पद्धति को अध्ययन का प्रक्रियात्मक माध्यम रखा है।

(5) तुलनात्मक राजनीति के अध्ययनकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पर्यावरण पर पूरा करध्यान दिया है।

(6) सभी विद्वानों ने मौलिक प्रश्नों पर ध्यान दिया है। ये अपने अध्ययनों के आधारों, माध्यमों तथा उपकरणों के विषय में सजग तथा मूल्यों के प्रश्न पर पूर्णरूप से जागरूक हैं।

(7) लगभग सभी राजनैतिक वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में मॉडल बनाने का कार्य किया है तथा उपर्युक्त विशेषताओं को उचित स्थान दिया है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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