तुलनात्मक पद्धति की तकनीक तथा प्रयोग

तुलनात्मक पद्धति की तकनीक तथा प्रयोग | तुलनात्मक पद्धति

तुलनात्मक पद्धति की तकनीक तथा प्रयोग | तुलनात्मक पद्धति

तुलनात्मक पद्धति की तकनीक तथा प्रयोग

(Technique and Method of Comparative System)

सुस्पष्ट वर्तमान तथा ‘गौरवमय अतीत’ के पश्चात् भी राजनीति में तुलनात्मक अध्ययन की वर्तमान स्थिति श्री मैक्रीडिस तथा ब्राउन के अनुसार-एक प्रवाह की स्थिति’ है। दूसरे अर्थ में कहा जा सकता है कि यह परम्परागत दृष्टिकोण के बन्धन से तो मुक्त हो गई है, परन्तु सुनिश्चित तथा सर्वमान्य सिद्धान्तों की कमी अभी तक बनी हुई है। परन्तु उनके लिए भारी प्रयास तथा गवेषणाएँ जारी हैं। इसलिए यह समय तुलनात्मक राजनीति के लिए ‘संक्रमण का काल’ कहा गया है।

(1) परम्परागत पद्धति के दोष (Shortcomings of Comparative System)-

वर्तमान तुलनात्मक पद्धति के जन्म का श्रेय परम्परागत पद्धति का दोषयुक्त होना है। क्योंकि इन दोषों को दूर करने के लिए ही तुलनात्मक पद्धति का जन्म हुआ। परम्परागत पद्धति का मुख्य दोष उसका वर्णन विवरणात्मक होना था। इसमें नये तथ्यों की खोज या प्राप्त तथ्यों के समुचित विश्लेषण का पूर्ण अभाव था। इस पद्धति में मुख्य रूप से पाश्चात्य राजनीतिक संस्थाओं तथा व्यवस्थाओं का बोलबाला था। इस पद्धति में राजनैतिक व्यवस्थाओं को प्रभावित करने वाली गैरराजनीतिक बातों का उल्लेख बिल्कुल नहीं किया जाता था। परिणामस्वरूप उसमें राजनीतिक संस्थाओं के केवल राजनीतिक आधार ही प्रस्तुत किए गए। संसार के अर्द्धविकसित और विकासशील पूर्वी देशों की अवहेलना होती रही। परम्परागत पद्धति में केवल पाश्चात्य देशों में कार्यरत राजनैतिक संस्थाओं की तुलना की गई।

(2) वर्तमान तुलनात्मक पद्धति का जन्म (Origin of Modern Political System)-

द्वितीय महायुद्ध की क्रान्तिकारी घटनाओं तथा नवीन देशों के महत्व के कारण यह सिद्ध हो गया कि संसार. में पश्चिमी देश ही सब कुछ नहीं हैं। अन्य देशों को भी राजनीतिक अध्ययन के अन्तर्गत सम्मिलित करना आवश्यक है। इस विचार के जन्म से गैर- पश्चिमी देशों की भी राजनैतिक व्यवस्थाओं और संस्थाओं के अध्ययन में रुचि ली जाने लगी। परिणामस्वरूप राजनीतिक अध्ययन में से प्रजातंत्रीय व्यवस्थाओं की अग्रता का अन्त हो गया तथा राजनीतिक विषयों के अध्ययन में विविधता उत्पन्न हुई। वस्तुतः विविधता के कारण ही तुलनात्मक पद्धति का जन्म हुआ। विषयों की विविधता तथा अधिकता के कारण प्राप्त ज्ञान को व्यवस्थित बनाने की इच्छा भी उत्पन्न हुई। इस इच्छा के क्रियान्वयन के लिए ‘युद्ध  परिकल्पनात्मक अवधारणाओं’ का निर्माण करना, उनकी जाँच के लिए आँकड़े एकत्र करना, व्यवस्थित ढंग से उसे तालिकाबद्ध करना और उसके पश्चात् अनेक राजनैतिक उदाहरणों द्वारा जाँच करने के पश्चात् सामान्य नियमों के निर्माण के लिए अग्रसर होने की क्रिया वर्तमान तुलनात्मक पद्धति का आवश्यक अंग हो गई। इसके पश्चात् अनेक राजनैतिक व्यवस्थाओं के विषय में तुलनात्मक समीक्षा, टिप्पणियाँ प्रस्तुत करना आदि का वर्तमान तुलनात्मक पद्धति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है।

मैकोडिस तथा ब्राउन ने वर्तमान तुलनात्मक पद्धति के विषय में लिखा है-“यह नया दृष्टिकोण अधिक परीक्षण करने वाला, अधिक खोजबीन करने वाला और अधिक व्यवस्थित है।” वर्तमान तुलनात्मक पद्धति का एक यह महत्व भी है कि वह विभिन्न राजनैतिक व्यवस्थाओं और संस्थाओं का अध्ययन सावयवी रूप में करता है और अपनी अध्ययन सामग्री को अधिक विस्तृत करके उसे सामाजिक संस्थाओं, विचारधाराओं तथा परम्पराओं, संस्कृति और वातावरण तक पहुँचाता है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि वर्तमान तुलनात्मक अध्ययन में इन सभी नए विषयों की तुलनात्मक समीक्षा सावयवी रूप में की जाती है। इस प्रकार सभी के विषय में पूर्ण तथा स्पष्ट ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

वर्तमान तुलनात्मक अध्ययन में विशेष बात अनुभवजन्य पर्यवेक्षण और क्षेत्रीय कार्य है। वास्तव में इस प्रकार के कार्य वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक है। इन दोनों की ओर ध्यान दिए बिना वृद्ध-परिकल्पनाओं की जाँच के लिए तुलनात्मक अध्ययन अपूर्ण रह जाएगा।

इस प्रकार संक्षेप में अन्य लेखक के अनुसार कहा जा सकता है कि तुलनात्मक राजनीति राजनीतिक संस्थाओं के कार्य-कलापों तथा राजनीतिक व्यवहार के साथ संरचना से सम्बन्धित विवरण भी देती है और उचित विश्लेषण द्वारा उक्त तुलना को सुदृढ़ता प्रदान करती है।

(3) राजनैतिक विश्लेषण में तुलनात्मक पद्धति (Political Analysis in Comparative System)-

राजनैतिक विश्लेषण के लिये विकसित की गई नई तुलनात्मक पद्धति में अनेक समस्याओं का अध्ययन विभिन्न अमूर्त स्तरों पर किया जा सकता है। वास्तव में नवीन विधि के विकास में मॉडल-पद्धति को तुलनात्मक अध्ययन के लिए  प्रमुखता दी गई है।

उपर्युक्त पद्धति के अतिरिक्त तीन अन्य समस्या-पद्धतियों का समावेश भी वर्तमान तुलनात्मक पद्धति में किया गया है जो कि निम्न प्रकार है-

(i) नीति निर्धारण समस्या-पद्धति (Policy Oriented Problem Method)- अनेक राजनीति-विचारकों ने तुलनात्मक अध्ययन में विकसित इस वर्तमान समस्या-पद्धति का समर्थन किया है। इस पद्धति के अनुसार विभिन्न विषयों से सम्बन्धित नीति तथा उद्देश्य निर्धारण के लिए विभिन्न समस्याओं को चुन कर एक विशेष ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। इस पद्धति की मुख्य समस्या चयन की है। क्योंकि सभी समाजों में एक विषय से सम्बन्धित घटनाओं की समानता के विषय में निश्चितता नहीं है। अतः एक विषय से सम्बन्धित घटनाओं को चुनने की आवश्यकता अनिवार्य नहीं हो जाती है।

(ii) मध्यम श्रेणी सिद्धान्त-समस्या-पद्धति (Middle Range Theory Problem)- राबर्ट के० मर्टन ने इस समस्या पद्धति की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार से दी है-“ये सिद्धान्त दैनिक शोधों के दौरान बहुलता से विकसित लघु कार्यकारी परिकल्पनाओं और उस सर्वोत्कृष्ट अवधारणात्मक योजना को सम्मिलित किए हुए अनुमानों के मध्य स्थित सिद्धान्त है, जिनसे यह आशा की जाती है कि सामाजिक व्यवहार की अनुभवात्मक रूप से पर्यवेक्षित एकरूपताएँ बड़ी संख्या में प्राप्त की जा सकेंगी।”

(iii) सीमित सिद्धान्त-पद्धति (Narrow Range Theory Approach)- जहाँ समस्याओं का विस्तार सीमित होता है और उनमें अनेक विभिन्नताएँ होती हैं वहाँ इस पद्धति का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है तथा इसका विशेष प्रयोग विशाल सिद्धान्तों का परिचय देने में किया जाता है। क्योंकि मुख्य रूप से इसका प्रयोग ‘समान सामाजिक सन्दर्भो में घटित घटनाओं’ के विषय में किया जाता है। वास्तव में यह पद्धति विविधताओं से युक्त विस्तृत सिद्धान्तों के प्रयोग के लिए उपयुक्त नहीं है। यह केवल नये विस्तृत सिद्धान्तों का परिचय देकर उनके प्रति रुचि उत्पन्न करती है।

(4) तुलनात्मक अध्ययन की कठिनाइयाँ (Difficulties in the study of Comparative Study)- 

यह तो स्पष्ट ही है कि तुलनात्मक अध्ययन-पद्धति किसी निर्णायक स्थिति में नहीं है। अतः अध्ययन में रुचि उत्पन्न होने के साथ-साथ इसके अध्ययन में कुछ समस्याएँ भी सामने आयी हैं। सर टोरी ने इस प्रकार की एक समस्या के विषय में कहा है-“जब तक वृहद स्तर पर कुछ ऐसे प्रयत्नों का निर्माण न हो, जिनके आधार की अत्यधिक जानकारी हो और जो अतुलनीय हो, तब तक राजनीति में तुलनात्मकता सम्भव नहीं है।” इसी प्रकार हैक्सर ने कहा है-“तुलना की न्यूनतम अनिवार्यता कम से कम एक वैचारिक संरचना है।” राबर्ट्स ने एक नई समस्या के विषय में बताते हुए कहा है-“तुलनात्मक अध्ययन करते समय विभिन्न राष्ट्रों की संस्कृतियों का अध्ययन एवं विदेशी भाषाओं का प्रयोग अनिवार्य होता है।”

इस प्रकार उक्त कठिनाइयों के साथ साथ आँकड़े प्राप्त करने तथा वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग राजनीतिशास्त्र में, जिसमें मनुष्य तथा उसके कार्य-कलाप केन्द्रस्वरूप हैं, स्वर में एक समस्या है। परन्तु धीरे-धीरे इन समस्याओं का समाधान किया जा रहा है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि परम्परागत पद्धति में वैज्ञानिक पद्धति का पूर्ण अभाव था। वह केवल पाश्चात्य देशों की राजनैतिक व्यवस्थाओं तथा संस्थाओं के ज्ञान से युक्त तथा प्रजातन्त्र का मात्र गुणगान करती थी। इसी कारण द्वितीय महायुद्ध के समय तथा बाद में अनेक नई राजनैतिक व्यवस्थाओं और संस्थाओं का राजनीति के अध्ययन क्षेत्र में जन्म हुआ, जिससे राजनीतिशास्त्र में अनेक विभिन्नताएँ तथा विविधताएँ व्याप्त हो गईं। परिणामस्वरूप तुलनात्मक अध्ययन-क्षेत्र में गैर-पश्चिमी देशों की विभिन्न राजनैतिक व्यवस्थाओं का विस्तार हुआ।

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