उद्यमिता की मुख्य विशेषताएँ

उद्यमिता की मुख्य विशेषताएँ या मूल तत्व | उद्यमियों के लिये उद्यमिता का महत्व

उद्यमिता की मुख्य विशेषताएँ या मूल तत्व | उद्यमियों के लिये उद्यमिता का महत्व | Salient Features or Basic Elements of Entrepreneurship in Hindi | Importance of Entrepreneurship for Entrepreneurs in Hindi

उद्यमिता की मुख्य विशेषताएँ या मूल तत्व

उद्यमिता के मूल तत्व या विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-

  1. एक जीवन शैली (A Life Style)- उद्यमिता व्यावसायिक व औद्योगिक क्षेत्रों में ही नहीं अपितु मानव जीवन के लिये सुविचारित, अनुशासित, व्यावहारिक एवं संस्कारित जीवन शैली के निर्माण हेतु आधार स्तम्भ का भी निर्धारण करती है। चूँकि उद्यमिता एक जीवन शैली है, अतः यह मानवीय मूल्यों, दृष्टिकोणों व संवेदनाओं को पहचानने व इन्हें विकसित करने का एक माध्यम भी है।
  2. जोखिम की न्यूनता (Minimise the Risk)- उद्यमी की विशिष्ट पहचान किसी भी रूप में आने वाली जोखिमों की न्यूनता को बनाये रखना व उन्हें नियन्त्रित करने में निहित होती है। इसमें व्याप्त कौशलता से स्वतः ही नये व्यावसायिक वातावरण, नये प्रवन्धकीय दृष्टिकोणों व तकनीकी सुधारों के अन्तर्गत जोखिम की सम्भावनाओं को न्यून करने के अवसर बढ़ जाते हैं।
  3. ज्ञान व शिक्षा पर आधारित (Based of Knowledge and Education) – उद्यमिता एक ऐसा पहलू है जिसमें उद्यमीय कार्यों से सम्बन्धित अनन्त ज्ञान व शिक्षा के तत्व अन्तनिर्हित रूप में छिपे हुये हैं। उद्यमियों को अपने उद्योगों की स्थापना व संचालन की विधियों, व्यापारिक सन्नियमों, क्रय-विक्रय व्यवहारों, ग्राहक अभिमुखी विचारों व व्यावसायिक सिद्धान्तों का ज्ञान होना आवश्यक है। अतः उद्यमिता ज्ञान व शिक्षा के समुचित दर्शनों को समाहित कर उद्यमीय प्रवृत्तियों को विकासमान बनाती है।
  4. नवकरण (Innovation)- पीटर एफ० ड्रकर के अनुसार, “नवकरण उद्यमिता का विशिष्ट उपकरण है।” अर्थात् नवकरण उद्यमिता का महत्वपूर्ण व आवश्यक लक्षण है जिसके अन्तर्गत किसी भी औद्योगिक उपक्रम में जब नये विचारों, नये दृष्टिकोणों, नयी अवधारणाओं नयी विधियों व नयी तकनीकी को श्रेष्ठ कार्य निष्पादन के लिये अपनाया जाता है तो यह नवकरण कहलाता है।
  5. जोखिम वहन क्षमता (Risk Bearing Capacity)- व्यवसाय में जोखिम अनेक तत्वों से उत्पन्न होती है उद्यमिता की यह विशेषता है कि इसमें जोखिम नीहित हैं जिसमें ग्राहकों की इच्छाओं व फैशन में परिवर्तन, मूल्यों में उतार-चढ़ाव होने, संसाधनों की आपूर्ति में कमी आना आदि प्रमुख है। उद्यमिता के अन्तर्गत उन क्षमताओं व गुणात्मक स्वरूपों को विकसित किया जाता है जिनसे जोखिम, वहन क्षमता का विकास हो सके। इस हेतु उद्देश्यपूर्ण कार्य, प्रभावी, नियोजन, पूर्वानुमान संस्थापित क्षमता निर्धारण तथा नयी तकनीकी विधियों आदि के माध्यम से जोखिम वहन क्षमता को समुन्नत किया जा सकता है।

उद्यमियों के लिये उद्यमिता का महत्व

उद्यमियों के लिये उद्यमिता की महत्ता व भूमिका का अग्र बिन्दुओं के आधार पर वर्णन किया जा सकता है-

  1. कार्यनिष्ठा, लगन व रुचि का सृजन (Creation of Work Enthusiasm and Interest)- समाज में कई व्यक्ति विशेषतः उद्यमी वर्ग उद्यमिता को अपनी कार्य निष्ठा, लगन व रुचि को पूरा करने का माध्यम बना लेते हैं। इस हेतु वे कारोबार व व्यवसाय भी करना प्रारम्भ कर देते हैं। परिणामतः व्यवसाय के साथ-साथ उनकी निष्ठा, लगन व रुचि भी विकसित हो सके।
  2. महत्वाकांक्षाओं की पूर्णता (Fulfilling of Aspirations)- उद्यमिता उद्यमियों को उनकी महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने में महत्वपूर्ण योगदान देती है। उद्यमी अपनी व्यक्तिगत व संस्थागत संसाधनों व सुअवसरों के माध्यम से अपनी छिपी या अधूरी महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सकते हैं।
  3. कार्य स्वतन्त्रता (Work Independence)- उद्यमिता व्यक्तियों को वैयक्तिक एवं कार्य स्वतन्त्रता प्रदान करती हैं। वे व्यक्ति जो उद्यमिता को आधार बनाते हैं तथा अपना व्यवसाय व रोजगार स्वतन्त्र रूप में चलाना चाहेंगे, उन्हें अपनी अलग पहचान, अस्तित्व व कार्य स्वतन्त्रता की प्राप्ति इसी से सम्भव हो सकती है।
  4. प्रेरक उपाय (Motivating Device)- उद्यमिता व्यक्तियों के अपने कार्य एवं व्यवहार में एक प्रेरक तत्व है। यह उद्यमियों को अपने व्यवसाय व कारोबार के लिये उपयोगी सुअवसर प्राप्त करने के लिये नीतिगत, व्यावहारिक एवं कार्यात्मक उपाय व मार्गदर्शन प्रदान करती है। अतः उद्यमिता उद्यमियों के लिये एक प्रेरक उपाय मानी जाती है।
  5. पहल करने की भावना (Feeling of Initiative)- उद्यमिता की प्रबन्ध अवधारणाएँ बनाती हैं कि प्रत्येक उद्यमी द्वारा अपने अधीनस्थों को उनके द्वारा की जाने वाली क्रियाओं के निष्पादन के लिये उन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता देनी चाहिये। इससे उनकी सृजनात्मकता व कार्य निष्पादन की क्षमता का विस्तार सम्भव होता है।
  6. संगठनात्मक क्षमता विस्तार (Expansion of Organization Capacity) – उद्यमिता द्वारा उन महत्वपूर्ण सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है जो उद्यमियों की संगठनात्मक क्षमता को उन्नत करने में सहायक होते हैं। उद्यमिता द्वारा उद्यमियों में नेतृत्व क्षमता, सहयोग की भावना, समूह भावना, उद्देश्यों की स्पष्ट व्याख्या, उचित संगठन संरचना का निर्माण, उच्च मनोबल आदि गुणों का विकास सम्भव होता है, जो संगठनात्मक क्षमता विस्तार में सहायक होती है।
उद्यमिता और लघु व्यवसाय – महत्वपूर्ण लिंक

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