उद्यमिता और लघु व्यवसाय / Entrepreneurship And Small Business

प्रवर्तन की परिभाषाएं | प्रवर्तन की मुख्य विशेषतायें अथवा तत्व | व्यवसाय के समग्र योजनाओं के प्रमुख अंग

प्रवर्तन की परिभाषाएं | प्रवर्तन की मुख्य विशेषतायें अथवा तत्व | व्यवसाय के समग्र योजनाओं के प्रमुख अंग | Definitions of Enforcement in Hindi | Main features or elements of enforcement in Hindi | Key components of overall business plans in Hindi

प्रवर्तन की परिभाषाएं

प्रवर्तन की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) सी0डब्ल्यू० गटनबर्ग के अनुसार, “प्रवर्तन से आशय व्यापार सम्बन्धी सुअवसरों की खोज करने और उनमें लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से पूँजी, सम्पत्ति और प्रबन्धकीय योग्यता को व्यावसायिक संस्था के रूप में संगठित करने से है।”

(2) गुथमैन एण्ड डूगल के अनुसार, “प्रवर्तन उस विचारधारा के साथ आरम्भ होता है जिससे किसी व्यवसाय का विकास किया जाना है और इसका कार्य तब तक चलता रहता है जब तक कि वह व्यवसाय एक चालू संस्था के रूप में अपना कार्य पूर्ण रूप से प्रारम्भ करने के लिए तैयार नहीं हो जाता है।”

(3) प्रो० ई० एस० मीड के अनुसार, “प्रवर्तन में चार तत्व निहित हैं- खोज, जाँच (अन्वेषण), एकत्रीकरण तथा वित्त।”

(4) डॉ० एच०ई० हॉगलैण्ड के अनुसार, “प्रवर्तन एक विशिष्ट व्यावसायिक उपक्रम में निर्माण की प्रक्रिया है। उन सबकी क्रियाओं का योग प्रवर्तन है जो ऐसे निर्माण में भाग लेते हैं।”

निष्कर्ष- उपयुक्त परिभाषाओं के अध्ययन के पश्चात् निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सकता है कि “प्रवर्तन ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी उद्यम (कम्पनी) की स्थापना के विचार के उत्पन्न होने से लेकर उसकी वास्तविक स्थापना तक के समस्त कार्यों को सम्मिलित किया जाता है।” प्रवर्तन के अन्तर्गत कानूनी, वित्त एवं प्रारम्भिक प्रबन्ध सम्बन्धी कार्यवाही की जाती है।

प्रवर्तन की मुख्य विशेषतायें अथवा तत्व

(Main Characteristics or Elements of Promotion)

प्रवर्तन की उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने के बाद प्रवर्तन की निम्नलिखित विशेषतायें या लक्षण अथवा तत्व दृष्टिगोचर होते हैं-

(1) प्रवर्तन का प्रारम्भ किसी उद्यम की स्थापना करने के विचार से होता है और उसे प्रारम्भ करने की स्थिति में लाने पर समाप्त हो जाता है।

(2) प्रवर्तन से आशय उद्यम के प्रारम्भ से है। अतएव यह उद्यम निर्माण की आधारभूत एवं प्राथमिक सीढ़ी है।

(3) प्रवर्तन सम्बन्धी विचार की उत्पत्ति किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के मस्तिष्क में हो सकती है, जिनके मस्तिष्क में प्रवर्तन के विचार की उत्पत्ति होती है, उन्हें उद्यमी कहते हैं।

(4) प्रवर्तन किसी उद्यम के निर्माण की एक प्रक्रिया है।

(5) प्रवर्तन उद्यम के निर्माण की विभिन्न क्रियाओं, (जैसे- उद्यम के व्यवसाय की खोज, अन्वेषण (जाँच), विभिन्न संसाधनों का एकत्रीकरण (जैसे, भवन, यन्त्र, सामग्री, कच्चा माल, श्रम-शक्ति, बिजली, पानी आदि) तथा वित्तीय व्यवस्था करना है। जो व्यक्ति प्रवर्तन का कार्य सम्पन्न  करता है, वह ‘उद्यमी’ (Entrepreneur) अथवा प्रवर्तक (Promoter) कहलाता है।

व्यवसाय के समग्र योजनाओं के प्रमुख अंग

व्यवसाय की समग्र योजनाओं के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं-

(a) उत्पाद नियोजन (Product Planning) – प्रस्तावित वस्तु के सम्बन्ध में योजना बनाते समय निम्नांकित बातों को ध्यान में रखा जाता है-

(i) उद्यमी को यह पता लगाने का प्रयास करना चाहिए कि लोगों की आवश्यकता क्या है एवं आवश्यकता की पूर्ति हेतु उत्पाद को डिजाइन करना चाहिए।

(ii) विशिष्ट उत्पाद के सभी सम्भावित परिणामों पर विचार करें।

(iii) उस उत्पाद के सुधार के तरीकों पर विचार करें। आप विभिन्न विचारों एवं परिकल्पनाओं को एकत्र करते हुये उनके विषय में अपने मित्रों एवं परिचितों से चर्चा कर सकते हैं।

(iv) उन कारणों के विषय में सोचें कि ग्राहक क्यों इस उत्पाद का प्रतिरोध करेंगे।

(v) एक मितव्ययी उत्पादन पद्धति अपनाएं।

(vi) यह सुनिश्चित करें कि आपका उत्पाद प्रौद्योगिकी के सन्दर्भ में नवीनतम है।

(vii) उसकी पैकिंग, ब्राण्ड, नाम एवं अन्य सम्बन्धित तथ्यों की योजना बना लें।

(b) उत्पादन नियोजन (Product Planning)- अपनी निर्माण इकाई स्थापित कर लेने के बाद की डिजाइन, अन्य सम्बन्धित तत्वों की योजना बन जाने के पश्चात् उत्पादन के सम्बन्ध योजना तैयार करनी होती है जिसमें उद्यमी का प्रमुख उद्देश्य अपनी इकाई के इष्टतम क्षमता संचालित करना होता है, जिसके लिए उद्यमी को-

(i) एक विशिष्ट अवधि जैसे आगामी एक माह के लिए उत्पादन की एक विस्तृत योजना करनी चाहिए।

(ii) कार्य का परिचालन करने के लिए निर्धारित तिथियों पर निर्देश जारी करने चाहिए।

(iii) उत्पादन की विभिन्न मदों की समय तालिका तैयार करनी चाहिए।

(iv) अब उद्यमी इन गतिविधियों का विस्तारपूवर्क परीक्षण करते हैं। उत्पादन की अनुसूची तैयार करने के पश्चात् कौन-सा आर्डर किस मशीन पर और कब क्रियान्वित होता है इससे सम्बन्धित विस्तृत जानकारी जब उद्यमी के पास होती है। यह विवरण कार्य आदेश फार्म पर भरकर उद्यमी अपनी अपेक्षाओं के अनुरूप बना लेता है।

(v) एक अनुसरण कार्यवाही के द्वारा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह कार्य योजना के अनुरूप निष्पादित किये जा रहे हैं।

(c) वित्तीय नियोजन (Financial Planning)- वित्तीय नियोजन का आशय उन सम्पत्तियों के प्रकार सम्बन्धी निर्णय लेने एवं इन सम्पत्तियों में निवेश की सीमा से है, जिसमें वित्तीय संसाधन निवेशित होने हैं। इनमें इस बात का निर्धारण किया जाता है कि उद्यमी निजी पूँजी के रूप में कितनी राशि निवेशित करने की स्थिति में होंगे एवं बाहरी स्रोतों से आप कितना धन उधार लेने की स्थिति में होंगे। सामान्यतया उद्यमी को इस प्रकार का कदम उठाना होता है कि वह कुल फण्ड में से कम-से-कम पूँजी निवेशित करें व अधिकतम सामान उधार ले ले।

(d) फण्ड नियोजन (Fund Planning) – वित्त के एकत्रीकरण के पश्चात् उद्यमी का अगला महत्वपूर्ण कार्य कोषों का बुद्धिमतापूर्वक सदुपयोग करना होता है। आधुनिक उद्यमी को फण्ड निवेश के विषय में वैज्ञानिक ढंग से सोचना होता है। व्यवसाय में उपलब्ध कोषों का सदुपयोग करने हेतु उद्यमी को निम्न प्रश्नों पर विचार करना चाहिए-

(i) व्यवसाय में कितना धन होना चाहिए?

(ii) सम्पत्ति किस रूप में रखनी चाहिए? एवं

(iii) अल्पावधि की सूचना पर अतिरिक्त धनराशि किस प्रकार एकत्र करनी चाहिए?

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन प्रश्नों के लिए उद्यम के आकार एवं प्रौद्योगिकी का ज्ञान तथा धन एकत्रीकरण एवं व्यय सम्बन्धी जानकारी आवश्यक होती है।

(e) लाभ नियोजन (Profit Planning)- लाभ नियोजन उत्पादन लाइन के चयन में मूल निर्धारण, लागत तथा उत्पादन परिणाम ओर संकेत करती है अतएव लाभ नियोजन निवेश एवं वित्त सम्बन्धी निर्णय की एक पूर्वापेक्षा है।

(f) विपणन नियोजन (Marketing Planning)- विपणन नियोजन उपक्रम के समग्र का भाग है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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