अर्थशास्त्र / Economics

उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था | उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था के घटक

उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था | उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था के घटक | Economy of Uttar Pradesh in Hindi | Components of the economy of Uttar Pradesh in Hindi

उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था

उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था के घटक-

प्रदेश की अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के योगदान प्रतिशत में निरन्तर परिवर्तन होता रहा है। कृषि क्षेत्र (प्राथमिक क्षेत्र) का योगदान निरन्तर घट रहा है, सेवा क्षेत्र (तृतीयक क्षेत्र) का योगदान निरन्तर बढ़ रहा है और उद्योग क्षेत्र (द्वितीयक क्षेत्र) का योगदान 1997-98 से 2001-02 तक निरन्तर घटा है लेकिन 2002-03 से थोड़ी वृद्धि हुई है। प्राथमिक क्षेत्र के प्रतिशत योगदान में कमी और तृतीयक क्षेत्र के प्रतिशत योगदान में वृद्धि आर्थिक विकास का सूचक है लेकिन द्वितीयक क्षेत्र का प्रदर्शन निराशाजनक है।

कृषि क्षेत्र- प्रदेश के कुल कर्मकारों में सर्वाधिक लगभग (66) प्रतिशत लोग कृषि क्षेत्र में नियोजित हैं। कृषि के जोतों में सीमानत आकार वाली जोतों (1 हेक्टेयर या कम ) का प्रतिशत निरन्तर बढ़ रहा है, जो कि वर्तमान में कुल जोतों का 77.87% है।

  1. फसल सघनता बढ़कर 2006-07 में 153.3% हो गयी, जो कि राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है।
  2. कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए निरन्तर नये-नये तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। 2003-04 में कुल 444.38 लाख मेट्रिक टन खाद्यात्र उत्पादित हुआ था जबकि 2008- 09 में 420.9 लाख टन का ही उत्पादन हुआ। 11वीं योजना में कृषि विकास का लक्ष्य 3.0% रख गया है। इस क्षेत्र में कुल व्यय का 10.52% व्यय प्रस्तावित है।

प्रति व्यक्ति आय- प्रदेश में यद्यपि प्रति व्यक्ति आय (राज्य के आय के सन्दर्भ में) निरन्तर वृद्धि रही है, लेकिन प्रति व्यक्ति राष्ट्रीयआय तथ प्रति व्यक्ति राज्य आय का अन्तर लगातार बढ़ रहा है।

पूँजी निवेश- प्रदेश में आर्थिक पिछड़ेपन में पूँजी निवेश की कमी एक महत्वपूर्ण कारण है। भारत के कुल योजना परिव्यय में प्रदेश का प्रतिशत अंश प्रथम योजना में 10 वीं योजना का क्रमशः  8.47,4.88,6.53,6.83, 15.15,14.80,6.81, 13.48,13.23, 5.61, 11.62, 8.08 तथा 10.22 प्रतिशत रहा।

  1. प्रदेश के त्वरित विकास के लिए यह आवश्यक है कि कृषि पर निर्भरता कम की जाय और उद्योगों एवं सेवा क्षेत्रों में निवेश बढ़ाया जाय।
  2. राज्य सरकार द्वारा 25अप्रैल, 2005 को जारी अधिसूचना के अनुसार प्रदेश में औद्योगिक विकास की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 22 सदस्यीय निवेश बोर्ड का गठन किया गया है।

उद्योग-प्रदेश के औद्योगिक वृद्धि दर के आँकड़े दर्शाते हैं कि प्रदेश के औद्योगिक विकास की स्थिति ठीक नहीं है। प्रथम पंचवर्षीय योजना से योजना से 10वीं योजना तक प्रदेश की औसत वार्षिक वृद्धि दर क्रमशः 2.3.1.7,5,7,3,4,94 (5वीं में), 10, (7वीं में), 4.2-4.3,6.3 प्रतिशत रही। ।। वीं योजना में 8.0 प्रतिशत का उच्च लक्ष्य रखा गया हैं

योगदान- प्रदेश में कुल आय में प्रचलित भावों एवं स्थायी भावों पर निरन्तर वृद्धि हो रही है, लेकिन देश के कुल राष्ट्रीय आय में प्रदेश का दोनों भावों पर योगदान प्रतिशत बीच-बीच में थोड़ा बढ़कर निरन्तर घट रहा है। इससे सम्पूर्ण राष्ट्र की अपेक्षा प्रदेश के आर्थिक विकास की गति मन्द रहने की पुष्टि होती है।

विद्युत- विद्युत उत्पादन और उपभोग दोनों में ही प्रदेश की स्थिति का स्थिति काफी निराशाजनक है। 2003-04 में प्रदेश की अधिष्ठापति क्षमता 4614.5 मेगावाट थी, जो 2007- 08 में 5011 मेगावाट हो गई, अर्थात् क्षमता में वृद्धि बहुत कम हुई। लेकिन उपभोग 26711 मिलियन यूनिट हो गया। अतः उपभोग और उत्पादन के इस अन्तर को इस अन्तर को बाहर से विद्युत क्रय करके और कटौती करके पाटा जाता है।

  1. देश के कुल विद्युत उत्पादन में प्रदेश की भागीदारी मात्र 3.4% है और इस दृष्टि से देश में इसका स्थान महाराष्ट्र (10.6%) तमिलनाडु (7.6%) आन्ध्रा (6.8%) और गुजरात (6.2%) के बाद पाँचवाँ है।
  2. 2006-07 में प्रति व्यक्ति विद्युत उत्पादन व उपयोग 124व 186 यूनिट रहा जो कि राष्ट्रीय औसत (597व 405 यूनिट) से कम है।
  3. देश के कुल विद्युत उपभोग में प्रदेश का (प्रतिशत भाग की दृष्टि से ) देश में स्थान महाराष्ट्र (10.3) गुजरात (6.6) तमिलनाडु (6.1) तथा आन्ध्रा (5.7) के बाद 3.4 के साथ आठवाँ है।
  4. प्रदेश के लगभग 13 से 14 प्रतिशत गाँवों में अभी विद्युतीकरण भी नहीं हो पाया है।

राजस्व विभाग

भूमि सम्बन्धी अभिलेखों के समुचित रख-रखाव, बिखरे जोतों की चकबन्दी, कृषि उपज सम्बन्धी आँकड़ों के संकलन, कृषकों के लिए व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना, भूमि विवादों के निपटारे, भूमि सुधार सम्बन्धी कार्यक्रमों का सृजन एवं उनका कार्यान्वयन तथ राजस्व वृद्धि के लिए विभिन्न देयों की वसूली आदि कार्य राजस्व विभाग के अन्तर्गत आते हैं। लेखपाल, तहसीलदार, जिला कलेक्टर, कमिश्नर आदि राजस्व प्रशासन के अंग हैं।

  1. प्रदेश में स्वतन्त्रता के बाद जमींदारी प्रथा समाप्त करने के लिए 1950 में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 में पारित कर शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जमींदारी प्रथा समाप्त करने के लिए कई कानून बने और भूमिहीनों को भूमि का आबंटन किया गया।
  2. 1953 में भूमि सुधार की दिशा में दूसरा महत्त्वपूर्ण कदम उत्तर प्रदेश जोत चकबन्दी अधिनियम 1953 पारित कर उठाया गया और प्रदेश में चकबन्दी योजना 1954 से लागू किया गया। वितरण के लिए अधिकतम सीमा निर्धारित की गई और सिंचित अर्थों में 18 एकड़ की प्रयोज्य अधिकतम सीमा के अतिरिक्त भूमि राज्य में निहित करके समाज के निर्बल वर्ग के व्यक्तियों में वितरित किए जाने की व्यवस्था की गई।
  3. प्रदेश के 2.41 करोड़ जोत धारकों को उनकी जोतों की जानकारी कराने के उद्देश्य से पूत्र प्रचलित जोत बही/ पास बुक के स्वरूप में परिवर्तन कर 1992 से किसान बही योजना लागू की गयी। इसमें खातेदार का नाम व पता तथा भौमिक विवरण के साथ ही विक्रय, बंधक, पट्टे व विनिमयन से सम्बन्धित प्रविष्टियों का उल्लेख रहता है।
  4. 16 सितम्बर, 2004से प्रदेश में मेसर्स ICICI लोम वार्ड जनरल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, लखनऊ के माध्यम से कृषकों के लिए व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना शुरू की गयीं इस योजना में किसान की प्रीमियम सरकार जमा करती है और किसी दुर्घटना में किसान की मृत्यु होने पर उसके वारिस को 1 लाख रूपया मिलता है।
  5. राजस्व विभाग द्वारा ही सूखा पड़ने (सूखाग्रस्त जिलों की घोषणा), अतिवृष्टि, बाढ़, अग्निकाण्ड, आँधी/चक्रवात, तथा शीतलहरी आदि आने पर सहायता उपलब्ध करायी जाती है।
  6. आपदा राहत निधि में 75% अंश केन्द्र का और 25% अंश राज्य सरकार का होता है। इसका संचालन वित्त आयोग एवं भारत सरकार के निर्देशों के अनुरूप राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा किया जाता हैं यह राजस्व विभाग से सम्बन्धित है।
  7. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा संचालित आपदा प्रबन्ध परियोजना (डिसास्टर, रिस्क मैनेजमेण्ट प्रोजेक्ट) 2003 से भूकम्प के प्रति अति संवेदनशील 6 शहरों (बरेली, वाराणसी, मेरठ, आगरा, कानपुर, एवं लखनऊ) में शहरी भूकम्पीय भदेयता न्यूनीकृत कार्यक्रम के रूप में तथा 13 जिलों (बहराइच, बलरामपुर, बिजनौर, बदायूँ, देवरिया, गोरखपुर, गोण्डा, रामपुर, गाजीपुर, सहारनपुर, कबीरनगर, सिद्धार्थनगर, सीतापुर) में ग्रामीणों को आपदा प्रबन्ध कार्यों हेतु जागरूक एवं प्रशिक्षित करेन के कार्यक्रम के रूप में चलाया जा रहा है।

व्यापार कर

प्रदेश में व्यापार कर राज्य सरकार के आय का सबसे बड़ा स्त्रोत है। स्वतन्त्रता से पूर्व 1939 में बिक्री कर अधिनियम पारित किया गयां स्वतन्त्रता के बाद 1948 में उत्तर प्रदेश विक्री कर अधिनियम 1948 नाम से नया कानून बना जिसे 1994 से उ.प्र. व्यापार कर अधिनियम 1948 नाम दिया गया 1999 में प्रदेश सरकार द्वारा एक नया कानून उत्तर प्रदेश माल के प्रवेश पर कर अधिनियम-1999 पास किया गया।

  1. प्रदेश में व्यापार कर के कुल 14 जोन हैं जिनमें व्यापार कर का सर्वाधिक संग्रहण लखनऊ जोन फिर क्रमशः कानपुर, गाजियाबाद एवं नोएडा जोन से किया जाता है। सबसे कम संग्रहण झांसी जोन में किया जाता है।
  2. राज्य में 1 जनवरी, 2008 से मूल्य संवर्द्धित कर (वैट) प्रणाली लागू हुआ। 16 फरवरी 2008 कोई इससे संबंधित कानून भी पारित किया गया है।
  3. वैट प्रणाली को लागू करने के बाद अब व्यापार कर के 15 दरों के स्थान पर केवल 5 दरें निर्धारित की गयी हैं।

आबकारी कर

संविधान के अनुच्छेद-47(मद्यनिषेध) के अनुरूप प्रदेश सरकार के आबकारी विभाग की मौलिक नीति मादक वस्तुओं के अनौषधीय उपयोग के निषेध का उन्नयन, प्रवर्तन एवं प्रभावीकरण है। तद्नुसार मद्यनिषेध की नीति को प्रमुखता देते हुए आबकारी विभाग यह सुनिश्चित करता है। कि उपयुक्त पर्यवेक्षण एवं नियन्त्रण द्वारा मादक वस्तुओं की वैधानिक बिक्री से अधिकतम राजस्व प्राप्त किया जाय।

  1. प्रदेश में व्यापार कर के बाद आबकारी कर की प्राप्तियां ही सर्वाधिक हैं। आबकारी विभाग अपने आय का मात्र 1% अपने पर खर्च करता है शेष 99% राशि राज्य के विकास कार्यों में प्रयुक्त किया जाता है।.
  2. प्रदेश में 2001-02 से मदिरा व्यवसाय की ठेकेदारी/ सिंडीकेट व्यवस्था के स्थान पर नयी व्यवस्था लागू की गयी, जिसमें लॉटरी सिस्टम से छोटे-छोटे व्यावसायियों को ठेके दिये जाते हैं।
  3. प्रदेश में अल्कोहल की 62 फैक्ट्रियाँ हैं, जिनमें से 59 शारे से अल्कोहल बनाती हैं। प्रदेश से अन्य राज्यों तथा विदेशों में भी अल्कोहल का निर्यात किया जाता है, इससे राज्य को पर्याप्त राजस्व प्राप्त होता है।
  4. प्रदेश के कुल 19 तीर्थ स्थानों, यथा वृन्दावन, अयोध्या, नैमिषारण्य, पीरान कलियर, देवाशरीफ देवबन्द, जैन तीर्थों तथा कृष्ण जनमस्थली, संगम और काशी विश्वनाथ के एक किमी. चारों ओर पूर्ण मद्यनिषेध लागू है। जैन तीर्थों में मांस निषेध भी लागू है।
  5. अम्बेडकर जन्मदिन (14 अप्रैल), 2 अक्टूबर, 15 अगस्त, 26जनवरी तथा जिलाधिकारी के विवेकाधीन तीन अन्य दिन दुकानें बन्द रखी जाती हैं।
  6. दलित एवं मलिन बस्तियों, अम्बेडकर ग्रामों तथा गाँधी ग्रामों के आस-पास मदिरा बिक्री पर प्रतिबन्ध लागू है।
  7. उ.प्र. एवं अल्कोहल बाहुल्य प्रदेश हैं। अत; विभाग का यह प्रयास है कि अल्कोहल एवं शीरे पर आधारित उद्योग राज्य से अधिक से अधिक स्थापित किये जायें।
  8. प्रदेश में भारत सरकार के सहयोग से 2001-02 में पावर अल्कोहल से गैसोहाल बनाने की योजना शुरू की गयी। इस योजना के तहत बेरली को छोड़कर प्रदेश क अन्य डिस्टलरियों में पेट्रोल में 5% पावर अल्कोहल मिलाकर गैसोहाल बनाया जाता हैं जबकि बेरेली में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 10% मिलाकर पेट्रोल बनाया जाना शुरू हुआ है।

मनोरंजन कर

मनोरंजन कर भी प्रदेश के आय का एक स्त्रोत है। मनोरंजन विभाग द्वारा कार्य संचालन उत्तर प्रदेश चलचित्र (विनियमन) अधिनियम, 1955 एवं सम्बन्धित नियमावली 1951, उत्तर प्रदेश आमोद एवं पणकर अधिनियम 1979 एवं सम्बन्धित नियमावली 1981, विडियों प्रदर्शन (विनियमन) नियमावली 1981, विडियों प्रदर्शन विनियमन) नियमावली 1988 तथा केबिल टी.वी. कार्यक्रम (प्रदर्शन ) नियमावली 1997 के तहत किया जाता है।

  1. प्रदेश में मनोरंजन कर की आय का लगभग 70 भाग सिनेमाहालों से प्राप्त होता है। शेष 30 अन्य स्त्रोतों से प्राप्त होता है। प्रदेश में इस समय 32 मल्टीप्लेक्स के, 115 स्क्रीन तथा 697 सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर, 71 अन्तवर्ती सिनेमाघर, 187 वीडियों सिनेमाघर तथा 4300 केबिल ऑपरेटर हैं। सिनेमा पर मनोरंजन कर की दर 60% है।
  2. प्रदेश में केबिल टी.वी. सेवा 1991- 92 से चल रही है। इस पर 30% कर लिया जाता है।

प्रदेश में नियोजन तन्त्र

केन्द्र सरकार के नियोजन विभाग और योजना आयोग के अनुरूप उत्तर प्रदेश में भी एक नियोजन विभाग और 5 नवम्बर, 1971 को गठित एक योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष मुख्य्यमंत्री होता हैं उपाध्यक्ष के रूप में नियोजनमन्त्री अथवा राज्यपाल के द्वारा नामित व्यक्ति कार्य करता है। इसके सदस्यों के रूप में राज्य मन्त्रिपरिषद् के तीन सदस्य, विभिन्न विकास विभागों के 9 सचित तथा 12 अन्य विशेषज्ञ होते हैं।

  1. राज्य नियोजन संस्थान के वर्तमान में 8 प्रभाग और एक भूमि उपयोग परिषद् नामक संस्था है।
  2. प्रदेश में 1982-83 से नियोजन की विकेन्द्रित प्रणाली लागू की गई। इस प्रणाली में जिला स्तर पर राज्य मन्त्रिमण्डल के सदस्य की अध्यक्षता में ‘जिला जन एवं अनुश्रवण ‘समिति’, ब्लॉकस्तर पर ‘नियोजन एवं विकास समिति’ तथा पंचायत स्तर ‘ग्राम पंचायत स्तर पर ‘ग्राम नियोजन एवं विकास समिति’ के गङ्गन की व्यवस्था की गयी है।
  3. अर्न्तजनपदीय समन्वय, सफल कार्यान्वयन एवं योजनाओं में आने वाली कठिनाइयों के निराकरण हेतु मण्डल स्तर पर मन्त्रिपरिषद् के सदस्य की अध्यक्षता में एक ‘मण्डलीय समिति’ गठित की गई है।
  4. इस विकेन्द्रित प्रणाली में राज्य सरकार का यह प्रयास रहता है कि सम्पूर्ण योजना धनराशि के 30 प्रतिशत तक की योजनाएं जिले स्तर के नीचे तक बनाये जाएँ।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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