अर्थशास्त्र / Economics

सामुदायिक विकास कार्यक्रम | सामुदायिक विकास कार्यक्रम के उद्देश्य | प्राकृतिक योजना सामुदायिक विकास कार्यक्रम

सामुदायिक विकास कार्यक्रम | सामुदायिक विकास कार्यक्रम के उद्देश्य | प्राकृतिक योजना सामुदायिक विकास कार्यक्रम | सामुदायिक विकास-कार्यक्रम की प्रगति | सामुदायिक विकास कार्यक्रम की उपलब्धियाँ | सामुदायिक विकास कार्यक्रम की आलोचना | सामुदायिक विकास-परियोजनाओं की दार्शनिक धारणा

सामुदायिक विकास कार्यक्रम

संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार- “सामुदायिक विकास, एक ऐसी प्रक्रिया है, जो जनता के प्रयासों को, सरकारी सत्ता के प्रयासों से सम्बद्ध करती है, ताकि समुदायों की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दशा उन्नत की जा सके। इन समुदायों का एक राष्ट्र के रूप में गठन किया जा सके और उन्हें राष्ट्रीय प्रगति में पूर्णतया योगदान देने के योग्य बनाया जा सके।” बेरोजगार ग्रामीणों को उत्पादक कार्यों में लगाने के लिए शिक्षा-प्रसार एवं नई प्रविधियों का ज्ञान कराने के लिए सामुदायिक विकास परियोजनाओं की अत्यन्त आवश्यकता है। आज ग्रामीण जनता को उचित सलाह व आर्थिक सहायता की, उनकी समस्याओं के आधार पर विकास की योजनाएँ बनाने की और उन योजनाओं को कार्यान्वित करने की आवश्यकता है। आज जब ग्रामीण जनता में निराशा, गरीबी और अदूरदर्शिता का साम्राज्य फैला हुआ है, तो आवश्यक है कि उन सबको दूर करने के लिए तथा कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए हर संभव तरीकों का प्रयोग किया जाय। ग्रामीण छोटे उद्योगों का विकास किया जाय, स्वच्छ पानी की व्यवस्था की जाय और ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर उचित ध्यान दिया जाये। इसके अतिरिक्त सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास किया जाये। इन सबके द्वारा ग्रामीण जनता की शारीरिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति में उत्थान होगा।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम के उद्देश्य

सामुदायिक विकास परियोजनाओं एवं राष्ट्रीय विस्तार सेवा का एकमात्र उद्देश्य, ग्राम्य जीवन का सर्वांगीण विकास करना है। इसका उद्देश्य गाँव वालों में आत्म-निर्भरता, आपसी सहयोग से कार्य करने की शक्ति, सोचने की शक्ति तथा स्वयं के प्रयत्नों द्वारा अपना विकास करने की शक्ति उत्पन्न करना है। हमारे देशों में सामुदायिक विकास परियोजनाओं के मुख्य सलाहकार फोर्ड फाउन्डेशन के विशेष प्रतिनिधि डॉ० डगलस रस्पिंजर के अनुसार- “सामुदायिक विकास परियोजना के उद्देश्य, दृष्टिकोण में परिवर्तन, गाँवों का उचित नेतृत्व, शिक्षक वर्ग और युवकों का ग्रामीण विकास परियोजनाओं में उचित सहयोग, जनसहयोग, ग्रामीणों के रहन-सहन के स्तर में वृद्धि आदि हो सकते हैं।”

इस प्रकार सामुदायिक विकास कार्यक्रम का आदर्श, कल्याणकारी राज्य की स्थापना है, जहाँ पर जनता एवं सरकार, अधिकांश जनसमूह के अधिकतम कल्याण के उद्देश्य से मिलकर कार्य करें। यह कार्यक्रम गाँवों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में परिवर्तन की एक प्रक्रिया है, जो कि आर्थिक विकास के इंजन के रूप में कार्य करता है। उसका उद्देश्य ग्रामीण जीवन के तीन शत्रुओं, यथा- निर्धनता, बीमारी तथा अज्ञानता से छुटकारा दिलाना तथा आत्म-सहायता द्वारा आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है। इस कार्यक्रम के द्वारा उनमें यह विश्वास पैदा करना कि वे सब कुछ कर सकते हैं एवं करने की परिस्थितियाँ पैदा कर सकते हैं। ग्रामीण समुदाय को जीने का अधिकार, अर्जन करने का अधिकार तथा जो कुछ अर्जित करते हैं, उसे प्राप्त करने का अधिकार उसके अन्तर्गत निहित है। अतः सामुदायिक विकास कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य, ग्रामीण समुदाय को परम्परावादी ढाँचे से अधुनिकतम ढाँचे की ओर परिवर्तित करना एवं उन्हें अपने अस्तित्व का बोध कराना है। सामुदायिक विकास परियोजनाओं के अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाएँ स्वीकार की गई हैं-

(i) कृषि एवं संगामी कार्यइसके अन्तर्गत कृषि तथा अधिक अत्र उपजाने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। बंजर भूमि का उद्धार, उत्तम बीज एवं खाद की व्यवस्था, कृषि के उत्तम तरीकों का प्रचार, कृषि-बाजार एवं साख की समुचित व्यवस्था की सुविधा, भूमि के कटाव को रोकना, पशुओं का सुधार करना, कृषि-क्षेत्र में सिंचाई की समुचित व्यवस्था करना तथा कम्पोस्ट खाद आदि का प्रयोग करना शामिल है

(ii) परिवहन एवं संचार- इस कार्यक्रम के अन्तर्गत गाँवों में सड़कों के विकास पर जोर दिया जाता है प्रत्येक क्षेत्र में सड़कों का विकास इस प्रकार से किया जाय जिससे कि कोई भी गाँव मुख्य सड़क से 1 किमी0 से अधिक दूरी पर न हो और इन सड़कों का निर्माण यथासम्भव स्वैच्छिक श्रम द्वारा ही होना चाहिए।

(iii) शिक्षा- सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत शिक्षा की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अन्तर्गत गाँवों से निरक्षरता मिटाने के लिए प्राथमिकता और माध्यमिक शिक्षा का प्रसार तथा विकास होना चाहिए। स्त्री-शिक्षा के विकास पर ध्यान देना चाहिए। इसके साथ-ही- साथ लघु ग्रामोद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए कारीगरों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए।

(iv) स्वास्थ्य- प्रत्येक योजना-क्षेत्र में एक प्रारम्भिक चिकित्सा-केन्द्र, एक अस्पताल तथा एक गतिशील चिकित्सालय की व्यवस्था होनी चाहिए। ये चिकित्सालय न केवल मनुष्यों के लिए होना चाहिए बल्कि पशुओं के लिए भी होना चाहिए। इनमें संक्रामक रोगों को रोकने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

(v) पूरक रोजगार- इस कार्यक्रम के अन्तर्गत गाँवों में पूरक उद्योग-धन्धों के विकास का यथासम्भव प्रयत्न किया जाना चाहिए, जिससे गाँवों के बेकार तथा अर्द्ध बेकार लोगों को काम मिल सके।

(vi) भवन-निर्माण प्रशिक्षण एवं सामाजिक कल्याण- इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत मनोरंजन के साधन प्रदान किये जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त सामुदायिक मेलों का संगठन, गाँव के श्रमिकों के लिए प्रशिक्षण केन्द्र, खेल के मैदानों का विकास तथा भवन निर्माण आदि में सहायता प्रदान की जानी चाहिए।

प्राकृतिक योजना सामुदायिक विकास कार्यक्रम

भारतवर्ष में ग्रामोन्नति के लिए सामुदायिक विकास व प्रसार कार्यक्रम के पहले भी विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम अपनाये गये थे। महात्मा गांधी ने ग्राम्य-विकास के लिए 1920 में वर्धा शिक्षा कार्यक्रम चलाया। यह कार्यक्रम गाँवों का पुनर्निर्माण करने के लिए एवं पददलितों का उत्थान पाने के लिए बनाया गया था। प्रौढ़ एवं बुनियादी शिक्षा, खादी एवं ग्रामोद्योग, विभिन्न धर्मों के प्रति आदर और अस्पृश्यता निवारण इस कार्यक्रम के विभिन्न पहलू थे। 1921 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी कलकत्ते के निकट ग्रामोन्नति कार्यक्रम आरम्भ किये थे। सन् 1935-36 में केन्द्र सरकार ने ग्रामीण विकास कार्यक्रम के लिए प्रान्त सरकारों को एक करोड़ रुपये का अनुदान देने की घोषणा की। उत्तर-प्रदेश के इटावा जिले में 1948 में अलबर्ट मेयर के नेतृत्व में इटावा अग्रगामी कार्यक्रम लागू किया गया था। इस कार्यक्रम में लोगों में सामुदायिक भावना, स्वावलम्बन व आत्म-विश्वास की भावना जागृत कराने के प्रयास किये गये थे।

इन सभी कार्यक्रमों से कुछ जगहों पर अच्छे परिणाम प्राप्त हुए, लेकिन सामान्य रूप से ये अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सके। ये सभी कार्यक्रम भी ग्राम्य जीवन के किसी एक ही पहलू से सम्बन्धित थे। इसके अतिरिक्त इन कार्यक्रमों में व्यवहारिक कठिनाइयाँ थीं।

सामुदायिक विकास-कार्यक्रम की प्रगति

सामुदायिक विकास-कार्यक्रम को प्रथम योजनाकाल में प्रारम्भ किया गया। प्रारम्भ में यह कार्य एक प्रयोग के रूप में किया गया, किन्तु बाद में इसे गाँवों तक पहुँचा दिया गया। पहली योजना में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के लक्ष्य लगभग पूरे हो गये थे। पहली और दूसरी योजनाओं के मध्य सामुदायिक विकास पर कुल 233 करोड़ रुपये व्यय किये गये। तीसरी योजना में इस मद पर वास्तविक व्यय 269 करोड़ रुपये और तीन वार्षिक योजनाओं में 80करोड़ रुपये थे। तीसरी योजना के अन्त तक इस कार्यक्रम का विस्तार लगभग सारे देश में हो गया था। चौथी योजना के प्रारम्भ में देश भर में 5,365 सामुदायिक विकास-खण्ड थे, लेकिन अनेक राज्यों में पुनर्गठन के पश्चात् अप्रैल, 1974 तक 4,117 खंड देश में रह गये। चौथी योजना में 116 करोड़ रुपये व्यय किये गये। चौथी योजना अवधि में सम्मिलित की गई परियोजनाएं निम्नलिखित थीं-

(1) ग्राम्य मानव-शक्ति प्रोग्राम, जिसके द्वारा कृषि श्रमिकों, विशेषकर भूमिहीन मजदूरों को काम के अभाव में अतिरिक्त रोजगार उपलब्ध कराना।

(2) ग्राम्य रोजगार की महान् योजना लागू की गई। इसके द्वारा 808 लाख मानव-दिन का रोजगार कायम रखने की व्यवस्था की गई।

(3) इसके अतिरिक्त सामुदायिक विकास-परियोजना द्वारा सिंचाई-प्रोग्राम आदि भी चालू किये गये।

पाँचवीं योजना में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के लिए 161 करोड़ रुपये व्यय किये गये। सन् 1977-78 के वर्ष के लिए 28.54 करोड़ रुपये स्वीकृत किये गये हैं। छठी योजना (1978-83) में लघु उद्योगों पर 1,410 करोड़ रुपये, स्वास्थ्य और परिवार-कल्याण पर 2,095 करोड़ रुपये व्यय किये गये। सन 1978-83 के मध्य प्राथमिक शिक्षा में लगभग 320 लाख बच्चों (6 से 14 वर्ष की आयु) को शामिल किया गया। सन् 1983 तक 15 वर्ष की आयु वर्ग के लगभग, 1,000 लाख प्रौढ निरक्षरों में से 660 लाख प्रौढों को साक्षर बनाने का प्रयत्न किया गया। सामुदायिक विकास कार्यक्रम अब सम्पूर्ण देश में फैल चका है और यह कार्यक्रम विकास के पथ पर हैं।

छठी योजना में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत राष्ट्रीय स्वरोजगार कार्यक्रम, न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम, जैसे- प्राथमिक एवं प्रौढ़ शिक्षा, ग्राम स्वास्थ्य, जल संभरण, ग्राम सड़कें एवं ग्राम विद्युतीकरण, पर्यावरण में सुधार आदि पर भी विशेष ध्यान दिया गया है।

जहाँ तक पंचायत राज एवं सामुदायिक विकास कार्यक्रम के परिव्यय का प्रश्न है, वह कुल 1980-85 तक के लिए 352.07 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया था। इसमें 7.17 करोड़, रुपये केन्द्रीय क्षेत्र और 344.90 करोड़ रुपये राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में व्यय किया जाना था। सातवीं योजना में कुल 416.15 करोड़ रुपये व्यय किये जाने थे।

सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को चलाने के लिए केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार और जनता के द्वारा साधन जुटाये जाते हैं। इस कार्यक्रम के विकास की सफलता जनसहयोग और सरकार दोनों पर निर्भर है।

तालिका : सामुदायिक विकास योजनाओं पर व्यय

योजना व्यय (करोड़ रुपये में)
प्रथम योजना 45.00
द्वितीय योजना 187.00
तृतीय योजना 269.00
चतुर्थ योजना 116.00
पाँचवीं योजना 129.80
छठी योजना 352.07
सातवीं योजना 416.15
आठवीं योजना 500
नौवीं योजना 562
दसवीं योजना N.A.

सामुदायिक विकास कार्यक्रम की उपलब्धियाँ

सामुदायिक विकास-कार्यक्रमों की उपलब्धियों पर पूर्ण रूप से प्रकाश डालना कठिन है, क्योंकि इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम पूर्ण जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिर भी हम यह कह सकते हैं कि सामुदायिक विकास कार्यक्रमों द्वारा सामान्य जनता में उन्नत जीवन के निर्माण की आशा निर्मित हुई है। सामुदायिक विकास योजनाओं की सराहना करते हुए पं० नेहरू ने कहा था कि “सामुदायिक परियोजनायें क्रान्तियुक्त, अत्यन्त आवश्यक और गतिमान चिंगरियाँ हैं जिनसे शक्ति, आशा और उत्साह की किरणें प्रवाहित हो रही हैं। कुछ विद्वानों ने सामुदायिक विकास- ऐकार्यक्रम का अध्ययन किया और बताया कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम कृषि सुधार एवं ‘सामाजिक सुधार की प्रमुख अवधारणा है। सामुदायिक विकास कार्यक्रमों ने ग्रामीण जीवन को श्रेष्ठकर बनाने की दिशा में अपने कदम तेजी से बढ़ाये हैं। कृषि को विकसित करने के लिए उन्नतशील बीज, रासायनिक उर्वरक, सुधरे हुए कृषि यंत्र तथा कीटनाशक दवाओं आदि नवीन निवेशों का प्रयोग तीव्र गति से बढ़ा है। सिंचाई सुविधाओं एवं चकबन्दी तथा मेड़बन्दी में भी प्रगति हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार, शिक्षा, विद्युतीकरण एवं पंचायत भवनों के निर्माण आदि की सुविधाएँ उपलब्ध करायी जा सकती हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ तकनीकी मिशन के अनुसार, भारत में सामुदायिक विकास कार्यक्रम बीसवीं शताब्दी के सबसे प्रमुख प्रयोगों में से है, जिसमें सम्पूर्ण विश्व रुचि ले रहा है। कार्यक्रम भविष्य में सम्पूर्ण विश्व को ग्रामीण विकास कार्यक्रम के क्षेत्र में से एक नई दिशा दे सकता है। ग्रामीण विकास के लिए चलाया गया अन्त्योदय कार्यक्रम एवं समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम तथा अन्य ग्रामीण विकास के कार्यक्रम अपने आप में एक उदाहरण है। अब भारत में यह भी प्रयास किया जा रहा है कि स्थानीय आवश्यकताओं एवं संसाधनों को नजर रखते हुए, खण्ड स्तरीय नियोजन किया जाय, इस दिशा में कार्यक्रम की शुरुआत भी हो गयी है। आज सामुदायिक विकास कार्यक्रम को देश के सभी विकास खण्डों के द्वारा सभी गाँवों तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रकार इस कार्यक्रम ने ग्रामीण विकास के क्षेत्र में काफी सफलता प्राप्त की है।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम की आलोचना

सामुदायिक विकास कार्यक्रम की पूर्व में वर्णित उपलब्धियों के बावजूद इसमें कुछ कमियाँ भी विद्यमान हैं। सामान्यतः यह कहा जाता है कि यह कार्यक्रम जिन उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए चलाया गया था, उसे पूर्ण रूप से सम्पन्न नहीं कर सका। अतः इस कार्यक्रम की निम्नलिखित त्रुटियों के आधार पर आलोचना की जाती है-

(i) लाभों का असमान वितरण- यह कार्यक्रम बहुमुखी विकासार्थ बनाया गया था, लेकिन इससे कृषि क्षेत्र को ही अधिक लाभ हुआ। इस कार्यक्रम से कुछ विशेष गाँवों को ही लाभ हुआ। इस विषय में उत्तर-प्रदेश सामुदायिक विकास-विषयक गोविन्द सहाय अध्ययन दल तथा विकास मन्त्री श्री एस0के0 डे आदि की भी यह धारणा रही है कि यह सम्पूर्ण कार्यक्रम केवल कुछ व्यक्तियों के लाभार्थ ही चला है। इसके अन्तर्गत भूमिहीन कृषकों एवं छोटे किसानों को बहुत कम लाभ हुआ।

(ii) कर्मचारियों की उदासीनता- इस कार्यक्रम में कर्मचारियों में सेवा भावना का अभाव भी है। सरकारी कर्मचारी दफ्तरशाह की तरह कार्य करते हैं और वे सक्रिय समाज-सेवा भावना द्वारा परिवर्तन के अभिकर्ता नहीं बने। समाज के उच्च और निम्न, दोनों ही वर्ग इस कार्यक्रम में पूर्ण सहयोग नहीं दे पाये हैं। इस कारण भी यह कार्यक्रम असफल रहा।

(iii) निर्धन जनसमुदाय की उपेक्षा- अध्ययन के पश्चात् ऐसा महसूस किया गया कि समाज का जो इस कार्यक्रम में सहयोग प्राप्त हुआ, वह समाज के लिए भार-स्वरूप रहा। जनता से श्रमदान की आशा की गई थी, लेकिन आशानुसार श्रमदान नहीं हो पाया। श्रमदान कार्यक्रम में बड़े खेतिहरों ने अपनी स्थिति के कारण निरीक्षण और निर्देशन कार्य के लिए तथा गरीब वर्ग या छोटे खेतिहरों को बड़े काम सौंप दिये गये। इस प्रकार समाज ने इसे भारस्वरूप महसूस किया जो इस कार्यक्रम की सफलता में बाधक बना।

(iv) कार्यक्रम का सुदृढ़ विस्तार असम्भव- सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को अत्यन्त शीघ्रता के साथ कार्यान्वित किया गया। विकास खण्डों की स्थापना तीव्रगति से की गई है, परन्तु उन्हें ठोस आधार पर नहीं प्रस्तुत किया जा सका है। वित्त-व्यवस्था की कमी, कार्यालयों के भवन की कमी. तकनीकी कर्मचारियों की कमी एवं कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों के कारण इस कार्यक्रम का विस्तार नहीं हो सका।

(v) कृषि विकास के अपर्याप्त प्रयत्न- इन कार्यक्रमों में कृषि को विशेष महत्व दिया गया, लेकिन कृषि-क्षेत्र में सफलता के लक्ष्य पूरे नहीं हो सके, जैसे उन्नत बीजों, उर्वरकों, कम्पोस्ट और प्राकृतिक खादों का उपयोग, पौधों के संरक्षण आदि के सम्बन्द में किये गये अध्ययन इस तथ्य का निर्देश करते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नहीं किये जा सके।

इस कार्यक्रम के अन्तर्गत समुचित प्राथमिकताओं का अभाव रहा है। कार्यक्रमों के निर्णय उच्च स्थरीय संगठन से लिए गये हैं जिसमें अधिकारियों के अधिकार और कर्तव्यों में मतभेद हैं। इस कार्यक्रम को यदि सफल बनाना है तो प्रजातन्त्रात्मक विकेन्द्रीकरण की स्थापना होनी चाहिए तथा बहुधन्थी सरकारी समितियों की स्थापना की जानी चाहिए।

सामुदायिक विकास-परियोजनाओं की दार्शनिक धारणा

(Philosophical Approach of Community Development)

सामुदायिक विकास कार्यक्रम को चलाने के लिए प्रो0 इरविन सेन्डर्स ने चार बातों की ओर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया है : सर्वप्रथम यह एक विधि है; द्वितीय यह एक तरीका है; तृतीय, यह एक कार्यक्रम है और चतुर्थ, यह एक आन्दोलन है। इस आन्दोलन का अपना एक दर्शन है, क्योंकि यह देहाती दुनिया के सामने ऐसा व्यावसायिक कार्यक्रम रखता है, जो क्षेत्रीय परिस्थितियों और उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखकर, प्रशासन पंचायती राज तथा तकनीकी ज्ञान के समन्वय से ग्रामीण जगत् को आर्थिक विकास तथा सामाजिक सुधार की प्रेरणा देता है तथा अपनी सहायता आप करने के सिद्धांत और सहकारिता के आधार पर विशाल ग्रामीण समुदाय को अवसर देता है कि वह अपनी आकांक्षाओं व आदर्शों को मूर्तरूप देने में पहल करें।

संक्षेप में, सामुदायिक विकास परियोजनाओं के तीन मुख्य तत्वों का विवरण दिया गया है-

(i) स्वयं अपनी सहायता करना, (ii) अनुभूत आवश्यकताएँ, और (iii) सम्पूर्ण समुदाय। इनमें तीसरा तत्व आधारभूत है। सम्पूर्ण समुदाय कुछ आवश्यकताओं को अनिवार्य रूप से अनुभव करता है और वह इस योग्य भी है कि उनकी पूर्ति कर सके। इसके लिए एक इच्छा और दृढ़ संकल्प होना वांछनीय है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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