समाज शास्‍त्र / Sociology

उत्तर संरचनावाद | उत्तर संरचनावाद की विशेषतायें | संरचनावाद और उत्तर संरचनावाद में अन्तर

उत्तर संरचनावाद | उत्तर संरचनावाद की विशेषतायें | संरचनावाद और उत्तर संरचनावाद में अन्तर | Post-structuralism in Hindi | Features of Post-structuralism in Hindi | Difference between structuralism and post-structuralism in Hindi

उत्तर संरचनावाद (Post Structuralism)

संरचनावाद अथवा नव-संरचनावाद समाजशास्त्र में विकसित एक नवीन अवधारणा है। उत्तर संरचनावाद का जन्म संरचनावाद एवं प्रकार्यवाद के दोषों के कारण हुआ। उत्तर संरचनावाद में संरचनावाद एवं प्रकार्यवाद की कमियों को दूर करने का प्रयत्न किया गया है। इसे ही उत्तर संरचनावाद कहा गया है। लेमर्ट ने उत्तर संरचनावाद की प्रतीक के रूप में जन्मतिथि 15 जुलाई 1972 समय 3.32सायंकाल घोषित की थी। यह वह समय था जब पेरिस में आधुनिक शिल्पकला की प्रतीक प्रुईत इगो (Pruit-lgoe) नामक आवसन परियोजना को समाप्त कर दिया गया था। यह परियोजना गरीबी एवं मानव त्रासदी की प्रतीक मानी गई थी। लेमर्ट की इस घोषणा ने यह स्पष्ट किया कि आधुनिकता ने समाज के कमजोर और पददलित वर्गों की उपेक्षा की है, जो भविष्य में किसी प्रकार भी सहन नहीं की जा सकती है। इसी प्रकार के विचार फ्रांस के उत्तर संरचनावादियों के भी रहे हैं तथा उनकी रुचि भी समाज के उपेक्षित एवं पददलित लोगों में थी।

उत्तर संरचनावाद की विशेषतायें

(Characteristics of Post Structuralism)

उत्तर संरचनावाद की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं- (1) उत्तर संरचनावाद, संरचनावाद को विस्तृत स्वरूप प्रदान करता है तथा इसमें कई अन्य सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्यों को सम्मिलित किया गया है।

(2) परंपरागत संरचनावाद का संबंध आधुनिक विश्व से था जबकि उत्तर-संरचनावाद उत्तर आधुनिक विश्व की तरफ देखता है।

(3) उत्तर संरचनावाद वस्तुनिष्ठता पर जोर देता है।

(4) उत्तर संरचनावाद का जन्म परंपरागत संरचनाबाद में संशोधन के परिणामस्वरूप हुआ। यह उत्तर आधुनिकता से प्रेरित एवं प्रभावित हैं।

(5) संरचनावाद का संबंध आधुनिक विश्व से था जबकि उत्तर संरचनावाद उत्तर आधुनिक विश्व की तरफ देखता है।

(6) उत्तर संरचनावाद समाज के उपेक्षित, दलित गरीब वर्ग की उपेक्षा नहीं करता है बल्कि यह पददलित जन समुदाय के उत्थान हेतु प्रयास करता है।

(7) उत्तर संरचनावादी समाज में एकता के स्थान पर विभिन्नता की तलाश करते हैं। उनका मत है कि समाज की संरचना विभिन्नता में निहित हैं।

(8) उत्तर संरचनारवादी भाषा विज्ञान को अपने विश्लेषण का आधार बनाते हैं। लेग में भाषा को उत्तर संरचनावाद का प्रमुख आधार माना है।

संक्षेप में, उत्तर संरचनावाद का विश्लेषण करें तो कहा जा सकता है कि संरचनावाद ने व्यक्तिनिष्ठा (Subjective) से विदा ले ली है तथा अब वह वस्तुनिष्ठा (Objective) की ओर बढ़ रहा है। उत्तर संरचनावाद में यह प्रयत्न किया गया है कि इसका विस्तार इस प्रकार किया जाये कि इसके अंतर्गत अनेक सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्यों (Theoretical Perspective) का समावेश हो सके। उत्तर संरचनावाद का रूपांतरण सामाजिक संसार से हो गया है। जहाँ संरचनावाद आधुनिक संसार  से संबंधित था वहीं उत्तर संरचनाबाद उत्तर आधुनिक संसार से संबद्ध हो गया है।

लेमर्ट ने उत्तर संरचनावाद के विषय में निम्नलिखित चार विचारणीय बिंदु गए किये है

(1) प्रवचन, बातचीत, संवाद, भाषण आदि सिद्धांत के स्वरूप हैं और इनमें मूलपाठ (Text) उत्पन्न होता है।

(2) आनुभाविकता को जानने हेतु हम साक्षात्कार लेते हैं, अवलोकन करते हैं तथा जनगणना की तथ्य सामग्री एकत्रित करते हैं, यह सब मूलपाठ हैं।

(3) हमें जो आधुनिक मूलपाठ प्राप्त होता है उसकी तुलना हम सैद्धांतिक मूलपाठ से करने हैं। यदि हम आनुभविक मूलपाठ को सैद्धांतिक मूलपाठ के संदर्भ में देखते हैं तो इससे समाज विषयक हमारी समझ अधिक गहरी हो जाती है।

(4) मूलपाठ की शृंखला का पारस्परिक अध्ययन समाज को उसकी संपूर्णता (Totality) में देखने का प्रयत्न है।

लेमर्ट द्वारा उत्तर संरचनावाद के संदर्भ में स्पष्ट किये गये ना विचारणीय बिंदुओं से स्पष्ट है कि उत्तर संरचनावादी इस तथ्य पर बल देते हैं कि विश्व की केंद्रीयता विभिन्नता में है। लेमर्ट का मानना है कि उत्तर संरचनावाद एकता की खोज करने की अपेक्षा विभिन्नता को पहचानने का प्रयास करते हैं। उत्तर संरचनावाद में समाजशादी माइकल फोकाल्ट का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

संरचनावाद और उत्तर संरचनावाद – माइकल फोकाल्ट

(Structuralism and Post-Structuralism-M. Foucalt)

अथवा

माइकल फोकाल्ट के शक्ति और ज्ञान संबंधी दृष्टिकोण

माइकल फोकाल्ट एक प्रबुद्ध फ्रांसीसी समाजशास्त्री हैं। उनका लेखन संरचनावाद और उत्तर संरचनावाद दोनों से संबंधित है। उनका लेखन विविध पक्षीय है। उन्होंने जो लेखन कार्य किया है वह समाजशास्त्र तक ही समिति न रहकर अन्य समाज विज्ञानों तक विस्तृत है। उन्होंने अनेक प्रकार के अध्ययन किये हैं एक तरफ जहाँ उन्होंने पागलपन और औषधिशास पर आनुभाविक अध्ययन किया है वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अपराध और सेक्स के सामाजिक नियंत्रण पर भी कार्य किया है।

फोकाल्ट के लेखन को अनेक विचारकों ने प्रभावित किया है। मार्क्स का प्रभाव उनके उत्तर  संरचनावाद में दिखलायी पड़ता है। वे मार्क्स के ज्ञान के समाजशास्त्र से प्रभावित थे किंतु मार्क्स के आर्थिक संबंधी विचार से सहमत नहीं थे। फोकाल्ट वेबर के तार्किक सिद्धांत से भी अत्यधिक प्रभावित थे। फोकाल्ट पर प्रमुख दार्शनिक नीत्से का भी प्रभाव पड़ा था। जीतो की शक्ति और ज्ञान की अवधारणा को लेकर उन्होंने उत्तर संरचनावाद का निर्माण किया। फोकाल्ट को उत्तर संरचनावाद के साथ-साथ उत्तर आधुनिकतावादी भी माना जाता है।

फोकाल्ट ने विज्ञान, ज्ञान तथा वार्तालाप, प्रवचन आदि की अनेक विधाओं पर अध्ययन किया है। कालांतर की रचनाओं में वे शक्ति के उद्गम और विकास की परंपरा का अध्ययन करते हैं जिस प्रकार लोग स्वयं पर तथा दूसरों पर शासन करते हैं। इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने स्पष्ट किया है कि निश्चित रूप से प्रजा या जनता पर जो शासन किया जाता है उसका माध्यम ज्ञान तथा उसकी उपज है। समाज में कुछ लोग जनता पर शासन करने के लिये शक्ति और ज्ञान की खोज करते हैं। यह शक्ति ही उन्हें शासन करने के लिये योग्यता प्रदान करती है। उत्तर संरचनावाद का आधार फोकाल्ट ने ज्ञान की शक्ति (Power of Knowledge) को स्वीकार किया है। फोकाल्ट का मानना है कि जिस व्यक्ति के पास जितना अधिक ज्ञान होगा उसकी शक्ति भी उतनी अधिक प्रभावी होगी। फोकाल्ट अपराध, सेक्स अथवा पागलों से संबंधित अपनी सभी कृतियों में उस ज्ञान की तलाश करते हैं जो शक्ति देता है। फोकाल्ट ने शक्ति के उद्गम एवं विकास पर जिस कार्य को किया है उसे शक्ति की वंशावली (Genealogy of Power) के नाम से जाना जाता है। फोकाल्ट का मानना है कि ज्ञान के आधार पर ही लोग शासन करते हैं। फोकाल्ट ज्ञान के संस्तरीकरण (Hierarchization) के बड़े भारी विरोधी हैं। फोकाल्ट ज्ञान से प्राप्त तकनीकी में अधिक रुचि रखते थे। वह यह भी जानना चाहते थे कि विभिन्न संस्थायें व्यक्तियों पर शक्ति का प्रयोग करने के लिये इन तकनीकों का प्रयोग किस तरह करती है। फोकाल्ट इस बात से सहमत नहीं थे कि शक्ति के प्रयोग के पीछे आभिजात्य जनों (Elites) का कोई षडयंत्र है। फोकाल्ट का मत है कि जिस व्यक्ति के पास जितना अधिक ज्ञान है उसके पास शासन करने की उतनी ही शक्ति है। फोकाल्ट ने पुनर्जागरण काल से लेकर आधुनिक काल तक ज्ञान एवं शक्ति के पारस्परिक संबंधों की विवेचना की है।

समाजशास्त्र / Sociology – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!