समाज शास्‍त्र / Sociology

एंथोनी गिडिन्स का संरचनावादी परिप्रेक्ष्य | गिडिन्स का संरचनावादी परिप्रेक्ष्य

एंथोनी गिडिन्स का संरचनावादी परिप्रेक्ष्य | गिडिन्स का संरचनावादी परिप्रेक्ष्य | The structuralist perspective of Anthony Giddins in Hindi | Giddins’ structuralist perspective in Hindi

एंथोनी गिडिन्स का संरचनावादी परिप्रेक्ष्य

एंथोनी गिडिन्स ने अल्प समय में इंग्लैण्ड एवं विश्व के सामाजिक सिद्धांत के लेखन एवं प्रतिपादन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है। आप किंग्स कालेज, कैम्ब्रेज में फैलो के पद पर रहे हैं तथा अनेक कृतियाँ लिखी हैं। इनकी कुछ कृतियाँ निम्न प्रकार हैं-

  1. Studies in Social and Political Theory.
  2. New Rules of Sociological Method.
  3. Capitalism and Modern Social Theory.
  4. The Class Structure of the Advanced Societies.
  5. Politics and Sociology in the Thought of Max, Weber.
  6. Durkheim
  7. Central Problems in Social Theory.
  8. Sociology: A Brief but Critical Introduction.
  9. A Contemporary Critique of Historical Materialism.
  10. Profiles and critiques in Social Theory.
  11. Classes, Power and conflict.

गिडिन्स को संरचनावादी समाजशास्त्री माना जाता है। उन्होंने सामाजिक संरचना की अवधारणा के स्पष्टीकरण के साथ-साथ ‘संरचितता’ (Structuration) की अवधारणा भी दी है।

गिडिन्स का संरचनावादी परिप्रेक्ष्य

(Structural Perspective of Giddens)

‘संरचना’ की अवधारणा संरचनावाद एवं संरचनात्मक प्रकार्यवाद में एक मुख्य अवधारणा मानी जाती है। गिडिन्स के अनुसार, संरचनावादी परंपरा के कुछ विचार जोकि संरचना की अवधारणा से संबंधित हैं, सामाजिक सिद्धांत में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। जब कभी अंग्रेजी भाषा बोलने वाले समाजशास्त्री ‘संरचना’ (Structure) अथवा ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) शब्दों का प्रयोग करते हैं तो उनके मस्तिष्क में एक विशेष प्रकार की स्वगुणार्थ होती है जिसमें संरचना को ‘सामाजिक’ संबंधों का दृष्टिगोचर प्रतिमान’ (Visible Pattern of Social Relations) माना जाता है, ठीक उसी प्रकार जैसे एक मकान के गर्डर (शहतीर) या शरीर की रचना या अवयव- संघटन। इस प्रकार के विश्व विधान में संरचना को ‘दबाव’ (Constraint) के रूप में देखा जाता है।

गिडिन्स के अनुसार संरचनावादी लेखन में ‘सरचना’ शब्द का प्रयोग उपर्युक्त अर्थ में नहीं किया जाता है। इन्होंने साउसर (Saussure) के विचारों के अनुरूप संरचना की अवधारणा का स्पष्टीकरण किया है। साउसर ने ‘संरचना’ शब्द का प्रयोग न करके ‘व्यवस्था’ (System) शब्द का प्रयोग किया है। इन्होंने क्षण (Moment) तथा समग्रता (Totality) के संबंधों के लिये इस शब्द का प्रयोग किया है जोकि उपस्थिति व अनुपस्थिति के ‘द्वंद्वात्मक संबंधों’ को व्यक्त करता है। गिडिन्स ने इस बात को नहीं नकारा है कि व्यक्तियों व समग्रताओं में सामाजिक संबंध, जोकि समय व स्थान के आधार पर स्थायी हो जाते हैं, प्रतिमानों का रूप लेते हैं किंतु इनके अनुसार इसे ‘व्यवस्था’ कहना अधिक उचित है। लेदी-स्ट्राउस तथा अनेक संरचनावादी एवं प्रकार्यवादी विद्वानों ने ‘संरचना’ व ‘व्यवस्था की अवधारणाओं को अंतर्बदल शब्दों के रूप में प्रयोग किया है। इसमें व्यवस्था’ शब्द का अर्थ है ‘प्रकार्यरत संरचना’ (Functioning Structure) है अर्थात ‘व्यवस्था’ का अर्थ संरचना + प्रकार्य है परंतु यह सादृश्यता जीव (सावयव) के लिये तो ठीक है समाज के लिये नहीं।

गिडिन्स ने ‘सामाजिक व्यवस्था’ शब्द को ‘सामाजिक संबंधों के पुनरुत्पादित प्रतिमानों’ (Reproduced Patterns of Social Relations) के लिये सुरक्षित रखा है। इन्होंने सामाजिक सिद्धांत में संरचना शब्द का प्रयोग उन नियमों के लिये किया है जो सामाजिक पुनरुत्पादन में समय और स्थान को बांधते हैं न कि इनके कुलक बनाते हैं। अतः सरचना शब्द एक व्यापक शब्द है- ‘संरचनाओं’ को नियमों के कुलक या मैट्स के रूप में, सबल गुण जो रूपान्तरण को नियंत्रित करते है, पहचाना जा सकता है।

गिडिन्स ने लेवी-स्ट्राउस की संरचना की अवधारणा में संरचितता की धारणा के अभाव के कारण आलोचना की है। गिडिन्स के अनुसार, संरक्षितता का अर्थ वे दशायें हैं जो संरचनाओं की निरंतरता अथवा रूपांतरण को नियंत्रित करती हैं और इस प्रकार व्यवस्थाओं को पुनरुत्पादित करती हैं।” अतः संरचनावादी विश्लेषण का उद्देश्य सामाजिक व्यवस्थाओं की संरचितता का पता लगाना है। उदाहरण के लिये पूँजीवादी आर्थिक व्यवस्था में संरचनावादी संबंधों को अग्रांकित रूपांतरणों के कुलक के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

व्यक्तिगत संपत्तिः मुद्रा : पूँजी : श्रम अनुबंध : लाभ

(Private Property: Money: Capital: Labour of Contract: Profit)

बांये से दायें को रूपांतरण का क्रम ‘पूँजीवादी अर्थव्यवस्था‘ (Capitalistic Economy) में उत्पादन व पुनरुत्पादन को व्यक्त करता है। इनके अनुसार सामाजिक जीवन की आवर्ती प्रकृति के स्वरूप सामाजिक संरचना में द्वैतता पायी जाती है। इसलिये सामाजिक व्यवस्थाओं के संरचनात्मक गुण इन व्यवस्थाओं को बनाये रखने वाली प्रथाओं के साधन एवं परिणाम दोनों है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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