इतिहास / History

वैज्ञानिक इतिहास की अवधारणा | वैज्ञानिक इतिहास की अवधारणा की विवेचना

वैज्ञानिक इतिहास की अवधारणा

वैज्ञानिक इतिहास की अवधारणा | वैज्ञानिक इतिहास की अवधारणा की विवेचना

वैज्ञानिक इतिहास की अवधारणा

अरस्तू के अनुसार विशिष्ट व्यक्तियों के कार्यों तथा अनुभवों का विवरण है। और अधिक व्यापक अर्थ में इतिहास वह है जो इतिहासकार करते हैं। क्या इतिहास उस रूप में एक विज्ञान है जिस रूप में भौतिक शास्त्र, जीवशास्त्र अथवा मनोविज्ञान विज्ञान है? यदि नहीं तो क्या इसे विज्ञान बनाने का प्रयास करना चाहिए? यदि यह नहीं बन पाता तो इसके बाधक तत्त्व क्या हैं? यह असफलता मानवीय त्रुटियों तथा दुर्बलता के कारण हैं अतवा इस विषय का स्वरूप ही ऐसा है? इन प्रश्नों पर उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही पर्याप्त वाद-विवाद होता रहा है, किन्तु लगभग दो शताब्दियों पूर्व ही देकार्त ने इतिहास के एक गम्भीर अध्ययन-विषय होने का निराकरण किया था। तब से सदैव ऐतिहासिक अध्ययन के स्वरूप पर चिन्तन करने वाले मनीषियों ने इस दोषारोपण के संदर्भ में विचार किया है। कुछ ने आग्रह किया कि इतिहास को भौतिक विज्ञान के किसी एक प्रकार में सम्मिलित कर एवं उसकी विधाओं का इसमें प्रयोग कर, प्रतिष्ठित स्थान प्रदान किया जा सकता है। कुछ के अनुसार यह वस्तुतः एक विज्ञान है, किन्तु एक भिन्न प्रकार का विज्ञान जिसकी अपनी विशिष्ट विधाएं हैं। कुछ ने इस समीकरण का दृढ़ प्रत्याख्यान किया तथा इसे पूर्णतया व्यक्तिपरक तथा आत्माभिव्यक्ति का एक प्रकार बताया। कुछ अन्यों ने समाजशास्त्र जो वस्तुतः विज्ञान है तथा इतिहास में विभेद किया एवं इतिहास को कला बताया अथवा एक सर्वथा स्वतन्त्र शास्त्र माना जिसका अपना विशिष्ट स्वरूप तथा उद्देश्य है।

इतिहास को प्राकृतिक विज्ञान मानने की तीव्र इच्छा के कई कारण हैं। इतिहास तथ्यों से संबद्ध होने का आग्रह करता है। तथ्यों के प्रतिष्ठापन, अनुसंधान इत्यादि के विषय में वैज्ञानिक पद्धति सर्वाधिक सफल रही है और स्वाभाविक है कि इतिहास में भी इसके व्यवहार की इच्छा की जाय। प्रत्यक्षवादी दार्शनिकों का यही दृष्टिकोण है। इसके अनुसार मनुष्य भी प्राकृतिक जगत का एक अंग है। उसकी मूलभूत भौतिक तथा शारीरिक आवश्यकताओं में आदिकाल से कोई विशेष परिवर्तन हुआ नहीं प्रतीत होता है। विशेष रूप से यह मनुष्यों के सामूहिक कार्य- व्यापारों के निष्कर्षों में दिखाई पड़ता है जिन्हें पूर्णतया यांत्रिक रूप में व्याख्यायित किया जा सकता है, इनका यह आग्रह था कि यदि किसी प्रकार एक ओर मनुष्य की जैवी तथा शरीर संबंधी स्थितियों एवं प्रक्रियाओं एवं दूसरी ओर, समानरूपेण दर्शनीय उसके आचरण को जोड़ने वाली प्राकृतिक नियमों की श्रृंखला पाई जा सके तो हमें मानव व्यवहार का एक विज्ञान प्राप्त हो सकता है।

इतिहास के अब तक विज्ञान न बन सकने के कारण पर विचार करते हुए बकल (Buckle) नामक विद्वान ने यह व्याख्या प्रस्तुत की कि इतिहासकारों की ‘मानसिक क्षमता’ गणितज्ञों, भौतिकशास्त्रियों तथा रसायनशास्त्रियों की अपेक्षा हीनतर रही है। यदि इतिहास में गैलिलियों तथा न्यूटन जैसे प्रतिभावान व्यक्ति हुए होते तो इतिहास भी विज्ञान बन गया होता। तथापि कतिपय चिन्तकों ने यह आशा व्यक्त की। यह आशा आज भी पूरी नहीं हो पाई है। इतिहास में विज्ञान के समान नियम नहीं बनाये जा सके यहां तक कि ऐसे सूत्र या निर्देश भी नहीं जिनकी सहायता से इतिहासकार यह जान सके कि भविष्य में क्या होगा अथवा यह कि अतीत में क्या हुआ।

भौतिक विज्ञान का उपयुक्ततः एक लक्षण यह माना जाता है कि इसमें भविष्यवाणी करने की क्षमता होती है; अथवा, इतिहास के दृष्टान्त में, अतीत में स्थित उन रिक्त स्थानों की प्रासंगिक नियमों के आधार पर पूर्ति कर सकना जिनके विषय में अन्य प्रमाण उपलब्ध नहीं है। पुरातत्वविज्ञान में इस प्रकारकी अनुमानात्मक विधा का प्रयोग किया जाता है। किन्तु इतिहासकारों द्वारा रिक्त स्थानों की इस प्रकार के पूर्ति-कर्म को अधिक विश्वसनीय नहीं माना जाता और किसी भी प्रकार का अन्य प्रमाण उपलब्ध होने पर कोई भी इनका आश्रय लेना नहीं चाहेगा।

इतिहास तथा भौतिक विज्ञानों में एक महत्त्वपूर्ण अन्तर है। किसी भी विकसित भौतिक विज्ञान में विशिष्ट वृत्तों की अपेक्षा सामान्य प्रस्थापनाओं अथवा नियमों में विश्वास रखा जाता है, जबकि यह नियम इतिहास में सफलतापूर्वक काम नहीं करता। उदाहरण के लिये यह एक सामान्य तथ्य है कि कोई भी स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन सूर्य को पूर्व में उदित होते देख सकता है। यदि किसी दिन कोई व्यक्ति प्रातः उठकर यह कहे कि उसने सारे प्रयासों के बावजूद सूर्योदय नहीं देखा, तो इस कारण वैज्ञानिक अपना सामान्य नियम बदलने की अपेक्षा इसकी कोई अन्य व्याख्या ढूँढने का प्रयास करेगा उदाहरण के लिये उस दिन आकाश मेघाच्छन्न रहा होगा या व्यक्ति की दृष्टि में दोष था, इत्यादि। इस सामान्यीकरण में वह परिवर्तन कर सकता है,जब बार-बार विभिन्न व्यक्तियों के प्रसंग में इसी प्रकार की बात हो। इसके विपरीत इतिहास में इस प्रकार के सामान्य नियमों से सत्यनिरूपण नहीं होता । उदाहरण के लिये यदि कोई यह कहे कि आस्टरनिटज के युद्ध में नैपोलियन ने एक विशेष प्रकार का टोप पहन रखा था तो इस कथन को इस प्रकार के किसी सामान्य सिद्धान्त के आधार पर मिथ्या नहीं कहा जा सकता कि फ्रांसीसी सेनापति अथवा राष्ट्राध्यक्ष कभी भी युद्ध में इस प्रकार का टोप नहीं पहनते थे। इतिहासकार को इस विशिष्ट बात को सत्यता का निर्धारण इस घटना से सम्बन्धित साक्ष्यों अथवा प्रमाणों के आधार पर करना होगा। सिद्धान्त में आस्था अथवा मता ग्राहिता इतिहासकारों के लिये गाली के समान है। किन्तु वैज्ञानिक इस प्रकार के सामान्य सिद्धान्त में विश्वास किए बिना अपना काम ही नहीं कर सकता। वैज्ञानिक समानताओं पर ध्यान केन्द्रित करता है, वह सामान्य रुचि रखता है; इतिहासकार विभेदों पर ध्यान देता है। उदाहरणार्थ, जब इतिहासकार फ्रांसीसी क्रान्ति की चर्चा करता है जब वह यह नहीं ढूँढता कि इस क्रान्ति में अन्य क्रान्तियों के समान क्या है अपितु वह यह जानने का प्रयास करता है कि यह अन्य क्रान्तियों से किस प्रकार भिन्न है; वह इसका एक विशिष्ट क्रान्ति के रूप में अध्ययन करता है।

भौतिक विज्ञान का जगत एक ऐसा जगत होता है जिसमें इससे बाहर स्थित दृष्टा इसके प्रत्यभूत लक्षणों का सावधानी से अध्ययन करता है। वैज्ञानिक अनुमान के नियमन में कम से कम सिद्धान्ततः यह माना जाता है कि अगले क्षण कुछ भी हो सकता है। वैज्ञानिक अपने सारे द्वार खोल कर रखता है प्राकृतिक जगत आश्चर्यों से भरपूर है पूर्व स्वीकृत के रूप में वह कम से कम लेना चाहता है। प्राकृतिक विज्ञान का दायित्व है प्रायः अथवा सदैव घटने के आधार पर सामान्य सिद्धान्त का निर्माण। किन्तु, मानवीय व्यापारों में इस प्रकार प्रारम्भ कर सकना असंभव है। मैं स्वयं मनुष्य और इस कारण दूसरों की अनुभूतियों, इच्छाओं तथा प्रयोजनों का मुझे ज्ञान रहता है और इसी के आधार पर मैं अपनी व्याख्या देता हूँ।

कार्यविधि के अतिरिक्त, वैज्ञानिक अध्ययन तथा ऐतिहासिक अध्ययन के उद्देश्यों में भी अन्तर होता है। इतिहास में प्रायः एक घटना के विविध कारण बताए जाते हैं। उदाहरणार्थ, फ्रांस की क्रान्ति के कई कारण दिए जाते हैं-

(1) फ्रांसीसी कृषक-वर्ग का सामन्तों, राजा तथा चर्च द्वारा शोषण

(2) फ्रांसीसी अर्थव्यवस्था का अव्यवस्थित स्वरूप,

(3) लुई चौदहवें की मूर्खता,

(4) वोल्टेयर, रूसो इत्यादि लेखकों का प्रभाव, इत्यादि।

इनमें से कोई कारण अर्थशास्त्र से संबद्ध है, कोई मनोविज्ञान से एवं कोई प्रशासन से। इतिहास को विज्ञान में रूपान्तरित करने का इच्छुक व्यक्ति इन विभिन्न कोटियों के परस्पर सम्मिश्रण से घबरा उठेगा। किन्तु, इतिहास की यही विशिष्टता है कि वह इन सबको मिला कर एक घटना या फल के उत्पादन के रूप में देखता है। मनुष्य के व्यक्तित्व के बहुविध आयाम हैं और इतिहासकार इन पृथक- पृथक आयामों को एक ही रस्सी में बट कर एक संपूर्ण के रूप में देखता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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