समाज शास्‍त्र / Sociology

जाति से आप क्या समझते हैं? | ग्रामीण समाज में जाति एवं राजनीति के मध्य सम्बन्ध | जाति और राजनीति के बीच सम्बन्ध | जाति व्यवस्था का लौकिक रूप | जाति व्यवस्था का एकीकरण रूप | जाति व्यवस्था का चैतन्य रूप

जाति से आप क्या समझते हैं? | ग्रामीण समाज में जाति एवं राजनीति के मध्य सम्बन्ध | जाति और राजनीति के बीच सम्बन्ध | जाति व्यवस्था का लौकिक रूप | जाति व्यवस्था का एकीकरण रूप | जाति व्यवस्था का चैतन्य रूप | What do you understand by caste in Hindi | Relationship between caste and politics in rural society in Hindi | Relationship between caste and politics in Hindi | Cosmic form of caste system in Hindi | Unification form of caste system in Hindi | conscious form of caste system in Hindi

जाति व्यवस्था | जाति से आप क्या समझते हैं?

“कास्ट” एक अंग्रेजी शब्द है जिसकी उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द “कास्टा” (Casta) से हुई है जिसका अर्थ है समूह। जाति एक प्रदत्त समूह है जिसकी सदस्यता जन्म से ही निर्धारित होती है। एक व्यक्ति एक जाति में जन्म लेता है और यह परिस्थिति साधारणतया स्थायी होती है। आरंभ में यूरोपीय विद्वानों ने भारतीय वर्ग एवं वर्ण की अवधारणा को जाति का समानार्थक माना लेकिन बाद में जाति एवं उपजाति के लिए भी यही शब्द प्रयोग होने लगा। सम्प्रति अधिकांश समाजशास्त्री “कास्ट” ste) को जाति के रूप में परिभाषित करते हैं न कि वर्ण के रूप में।

जाति को परिभाषित करते हुए कूले (Cooley) ने कहा है कि – “जब एक वर्ग पूर्णतया वंशानुक्रम पर आधारित है, तब हम इसे एक जाति कहते हैं।”

मजूमदार एवं मदान कहा कहना है-“जाति एक बन्द वर्ग है।”

उपर्युक्त परिभाषओं से यह स्पष्ट होता है कि जाति की प्रमुख विशेषता जन्म के आधार पर एक समूह की सामाजिक स्थिति का निर्धारण होना है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत किसी भी सदस्य को अपनी जाति के बाहर जाने की अनुमति नहीं दी जाती, इसलिए जाति को एक बन्द वर्ग कहा जाता है।

एस.सी. केतकर के अनुसार, “जाति एक सामाजिक समूह है जिसकी सदस्यता उन्हीं लोगों को प्राप्त होती है जिन्होंने उसी समूह में जन्म लिया हो तथा जिसके सदस्यों पर एक दृढ़ सामाजिक नियम के द्वारा अपने समूह से बाहर विवाह करने पर निषेध लगा दिया जाता है।”

सेनार्ट के अनुसार, “जाति एक बन्द वंशानुगत कार्पोरेशन है।”

रिजले महोदय ने जाति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि जाति कुछ परिवारों अथवा समूह का ऐसा संकलन है जिसका एक सामान्य नाम होता है, जो एक ही काल्पनिक पूर्वज (मानव या देवता) से अपनी वंश परम्परा होने का दावा करते हैं, एक ही परम्परागत व्यवसाय को करने पर जोर देते हैं, और एक सजातीय समुदाय के रूप में उनके द्वारा मान्य होते हैं।

रिजले द्वारा दी गई परिभाषा में एक दोष दिखाई पड़ता है, उन्होंने जाति तथा गोत्र में कोई भेद नहीं माना है। एक ही पूर्वज से वंश की परम्परा का विश्वास, गोत्र की विशेषता है न कि जाति की।

इस प्रकार निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जाति सामाजिक स्तरीकरण की वह व्यवस्था है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति, अधिकार तथा कर्तव्य जन्म से निर्धारित होते हैं तथा किसी भी व्यक्ति को खान-पान, व्यवसाय, विवाह तथा सामाजिक सम्बन्धों के क्षेत्र में अपने जातिगत समूह से बाहर निकलने की स्वतंत्रता नहीं होती। लेकिन कुछ विचारकों का मानना है कि जाति-व्यवस्था परम्परागत शक्ति के रूप में कार्य करती है तथा राजनीतिक विकास एवं आधुनिकीकरण के मार्ग में बाधक है। लेकिन वस्तुतः यह विचारधारा सही नहीं है। इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण यह है कि प्रथम, कोई भी सामाजिक तन्त्र कभी भी पूर्णतया समाप्त नहीं हो सकता, अतः यह कल्पना करना कि भारत में जाति का अन्त हो रहा है, सही नहीं है। द्वितीय जाति व्यवस्था, आधुनिकीकरण और सामाजिक परिवर्तन में रुकावट नहीं डालती बल्कि इसके विकास में सहायक बनती है।

स्थानीय और राज्य स्तर की राजनीति में जातीय संघ और समुदाय निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करने में उसी प्रकार की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिस प्रकार पश्चिमी देशों में दबाव गुट। हमारे राजनीतिज्ञ एक अद्भुत अभिनय करते हैं। एक तरफ वे जातिगत भेदभाव को मिटाने का कार्य करते हैं वहीं दूसरी ओर वे जाति आधारित वोट रूपी सीढ़ी का इस्तेमाल राजनीतिक गद्दी प्राप्त करने में करते हैं।

जाति और राजनीति के बीच सम्बन्ध

(Relation Between Caste and Politics)

आधुनिक राजनीतिक संस्थाओं की परम्परावादी भारतीय समाज में स्थापना, भारतीय राजनीति की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। भारत में राजनीति आधुनिकीकरण के बाद से यह विधारधारा तीव्रता से फैली कि पश्चिमी ढंग की राजनीतिक संस्थायें और लोकतन्त्रात्मक मूल्यों को अपनाने के फलस्वरूप परम्परागत संस्था जातिवाद का अन्त हो जायेगा, परन्तु स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय राजनीति में जाति का प्रभाव लगातार विकराल रूप धारण करता गया। एक तरफ जहाँ सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में जाति की शक्ति का ह्रास हुआ है वहीं दूसरी ओर राजनीति और प्रशासन पर इसके लगातार बढ़ते हुए प्रभाव को राजनीतिज्ञों, समाजशास्त्रियों तथा प्रशासनाधिकारियों एवं केन्द्र व राज्य सरकारों ने स्वीकार किया है।

कुछ समाजशास्त्रियों का यह मानना है कि लोकतान्त्रिक तथा प्रतिनिधियात्मक संस्थाओं की स्थापना के परिणामस्वरूप जाति व्यवस्था का भारतीय समाज से खात्मा हो जाना चाहिए।

जाति का राजनीतिक रूप- प्रो. रजनी कोठारी ने अपनी पुस्तक “Caste in Indian Politics” में भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका का विस्तृत विवेचन किया है। उन्हीं के शब्दों में, “जाति को अपने दायरे में खींचकर राजनीति उसे अपने काम में लाने का प्रयत्न करती है। दूसरी ओर राजनीति द्वारा जाति या बिरादरी को देश की राजनीतिक व्यवस्था में भाग लेने का मौका मिलता है।” राजनीतिक नेता सत्ता प्राप्त करने के लिए जातीय संगठनों का उपयोग करते हैं और जातियों के रूप में उनको बना बनाया संगठन मिल जाता है जिससे राजनीतिक संगठन में आसानी होती है। जाति व्यवस्था और राजनीति में अन्तःक्रिया के संदर्भ में प्रो. रजनी कोठारी ने जाति-प्रथा के तीन रूपों को मान्यता दी है-

(i) लौकिक रूप (The Secular aspect)

(ii) एकीकरण का रूप (The integration Aspect)

(iii) चैतन्य रूप (The Aspect of Consciousness)

जाति व्यवस्था का लौकिक रूप

(The Secular Aspect of Caste System)

प्रो. रजनी कोठारी ने जाति-व्यवस्था के लौकिक रूप को व्यापक दृष्टि से देखने का प्रयत्न किया है। जाति व्यवस्था की कुछ बातों पर सबका ध्यान गया है जैसे जाति के अन्दर विवाह, छुआछूत और रीति-रिवाजों के द्वारा जाति की पृथक् इकाई को कायम रखने का प्रयत्न। लेकिन इस बात की ओर बहुत ही कम लोगों का ध्यान गया है कि जातियों में अपनी प्रतिद्वन्द्विता एवं गुटबन्दी रहती है, प्रत्येक जाति प्रतिष्ठा और सत्ता की प्राप्ति के लिए संघर्षरत रहती है।

जाति व्यवस्था का एकीकरण रूप

(The Integration Aspect of Caste System)

जाति का दूसरा रूप एकीकरण का है अर्थात् व्यक्ति को समाज से बांधने का है। जाति-प्रथा जन्म के साथ ही प्रत्येक व्यक्ति का समाज में स्थान नियत कर देती है। जाति के आधार पर ही उस व्यक्ति का व्यवसाय और आर्थिक भूमिका निश्चित हो जाती है। चाहे जितना ही बड़ा व्यक्ति क्यों न हो, उसका अपनी जाति से लगाव पैदा हो जाता है, जाति के प्रति उसकी निष्ठा बढ़ने लगती है। यही निष्ठा आगे चलकर बड़ी निष्ठाओं अर्थात् लोकतन्त्र और राजनीतिक व्यवस्था के प्रति भी विकसित हो जाती है। इस प्रकार जातियाँ जोड़ने वाली कड़ियाँ बन जाती हैं।

जाति व्यवस्था का चैतन्य रूप

(The Aspect of Consciousness Caste System)

जाति प्रथा का तीसरा रूप चेतना बोध है। कुछ जातियां, अपने को उच्च समझती हैं और इस कारण समाज में उनकी विशेष प्रतिष्ठा होती है। इस कारण कुछ निम्न समझी जाने वाली जातियां भी अपने को उनके साथ जोड़ने की चेष्टा करती हैं। क्षत्रिय वर्ग के साथ जो प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है उसके कारण देश के विभिन्न भागों में अनेक जातियों ने इस वर्ण का दावा किया है। कुछ जातियों ने इसी प्रकार ब्राह्मण पद का दावा भी किया है। राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति में परिवर्तन के परिणामस्वरूप जाति विशेष की स्थिति बदलती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि विभिन्न रूपों में राजनैतिक चेतना ने गाँव में राजनैतिक जागरूकता और गतिविधियों को गति प्रदान की है। व्यक्ति अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करने लगा है। जातिगत चेतना ने जातिगत वर्ग संघर्ष को प्रोत्साहित किया है। इसके परिणामस्वरूप अनेक राजनैतिक दल जातिगत हित और कल्याण की दृष्टि से बनने लगे हैं। हरिजन, पिछड़ी जातियों और जनजातियों के व्यक्ति भी विधायक, सांसद और मन्त्री होने लगे हैं। इन्होंने अपनी जातियों में राजनैतिक चेतना को उत्पन्न करने का सराहनीय कार्य किया है। हालांकि यह राजनैतिक चेतना संकीर्ण स्वार्थों के घेरे में बन्द है, किन्तु इतना सत्य है कि व्यक्ति देश, विदेश की राजनैतिक गतिविधियों से परिचित होने लगे हैं। वह अपने वोट के महत्व को जानने लगा है। राजनैतिक जागरूकता ने सभी जाति के व्यक्तियों को समान समझने के लिए प्रेरित किया। बिना भेद-भाव के समाज की सेवा करने के लिए प्रोत्साहित किया। ये सभी चीजें जहाँ ग्रामीण समाज में मानवतावादी दृष्टिकोण को जन्म देती हैं वहीं राजनैतिक स्वार्थों की प्राप्ति के लिए ग्रामीण व्यक्ति को संकीर्ण भी बनाती है।

वास्तव में भारतीय ग्रामीण समाज संक्रमण के काल से निकल रहा है। इस प्रकार की स्थिति अनेक प्रकार के अच्छे और खराब परिवर्तन गाँव में देखे जा सकते हैं। किन्तु यह विश्वास है कि विज्ञान और शिक्षा के विकास से ग्रामीण समाज में रचनात्मक परिवर्तन आयेंगे जो अन्ततः मानव समाज का निर्माण करेंगे।

समाजशास्त्र / Sociology – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!