विश्व बैंक के प्रमुख उद्देश्य | विश्व बैंक से प्राप्त ऋणों से भारत को लाभ

विश्व बैंक के प्रमुख उद्देश्य | विश्व बैंक से प्राप्त ऋणों से भारत को लाभ

विश्व बैंक के प्रमुख उद्देश्य

भारत और विश्व बैंक

भारत ने प्रारम्भ में ही विश्व बैंक की सदस्यता प्राप्त कर ली थी। अत: वह बैंक के मौलिक सदस्यों में से एक है। उसकी प्रारम्भिक पूँजी 40 करोड़ डालर निर्धारित हुई थी और अधिकतम पूँजी वाले प्रथम 5 देशों में होने के कारण उसे विश्व बैंक में एक स्थायी प्रशासनिक संचालक नियुक्त करने का अधिकार मिला था। 1972-73 में यह स्थान अब जापान को उसकी पूँजी बढ़ने के कारण प्राप्त हो गया है और लंका व बंगला देश के मतों की सहायता से निर्वाचित होकर ही भारतीय प्रतिनिधि प्रशासनिक संचालक मण्डल में स्थान पा सका है। विश्व बैंक की सदस्यता से भारत को जो लाभ हुए हैं उनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार हैं-

  1. सर्वाधिक ऋण मिलना- 30 जून, 1981 तक विश्व बैंक से भारत को 3,201 मि० डालर की राशि स्वीकृत हुई। 1985 में भारत को विश्व बैंक से 7 परियोजनाओं के लिए 167.4 करोड़ डालर ऋण के रूप में प्राप्त हुए। वर्ष 1990-91 में भारत को विश्व बैंक से 1112.0 मिलियन डालर का ऋण प्राप्त हुआ जो विश्व बैंक द्वारा स्वीकृत कुल ऋणों का 6.8 प्रतिशत था जबकि वर्ष 1988-89 में भारत को 2136.3 मिलियन डालर का ऋण प्राप्त हुआ था जो कुल स्वीकृत ऋणों का 13 प्रतिशत था। विभिन्न वर्गों में भारत का विश्व बैंक से प्राप्त ऋणों का विवरण निम्न प्रकार है-
(करोड़ रुपये)
वर्ष स्वीकृत ऋण उपयोग किया गया ऋण
1980-81

1985-86

1990-91

1991-92

362.2

2362.3

2219.0

1168 मि० डालर

138.8

394.6

2184.6

  1. विकास कार्यों के लिए ऋण- विश्व बैंक ने भारत को जिन विकास परियोजनाओं के लिए ऋण दिए हैं उनमें निम्न प्रमुख हैं-(i) रेलों के लिए आवश्यक सामग्री और कल पुर्जों का आयात, (ii) खरपतवार वाली तथा जंगली भूमि को साफ करके कृषि-योग्य बनाने के लिए आवश्यक कृषि मशीनों की खरीद; (iii)दामोदर घाटी निगम की बिजली परियोजनायें; (iv) एयर इण्डिया द्वारा विमानों की खरीद; (v) कलकत्ता और मद्रास बन्दरगाहों का विकास और कलकत्ता के निकट नए बन्दरगाह हल्दिया का निर्माण, (vi) कोयला (महाराष्ट्र) की पन बिजली परियोजना, (vii) टाटा आयरन एण्ड स्टील कं० तथा इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कं० के विकास कार्यक्रम, (viii) बम्बई के निकट ट्राम्बे तापीय विद्युतगृह की स्थापना, (ix) राज्य बिजली मण्डलों और कुछ बिजली कम्पनियों द्वारा बिजली लाइनों के निर्माण के लिए सामग्री और उपकरणों का आयात, (x) आन्ध्र प्रदेश में कोत्त-गुडेम स्थित तापीय बिजली घर का विस्तार, (xi) गैर सरकारी क्षेत्र में कोयला उद्योग का विकास, (xii) औद्योगिक विकास बैंक (IDBI) और (xiii) भारत के औद्योगिक साख और विनियोग नियम (ICICI) को सहायता, जिससे ये गैर सरकारी कम्पनियों का ऋण दे सकें।
  2. सामान्य ऋणों की सुविधा- बैंक से भारत ने सामान्य ऋण देने का अनुरोध किया था, जिनका प्रयोग वह अपनी इच्छानुसार कर सके। बैंक ने भारत का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया है।
  3. विदेशी विनिमय के संकट में सहायता- जब-जब भारत का सामना गम्भीर विदेशी मुद्रा-संकट से हुआ, बैंक ने उसकी सहायता की। उदाहरणार्थ, 1958 में उसने भारत को विदेशी मुद्रा के संकट के समय 100 मि० डॉलर का ऋण दिया।
  4. भारत सहायता क्लब- योजनाकाल में भारत की विदेशी सहायता सम्बन्धी आवश्यकतायें बहुत बढ़ गई हैं। भारत की इन आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखकर ही विश्व बैंक के प्रयासों से सन् 1958 में भारत सहायता क्लब (Aid India Club) स्थापित की गई। (शुरू में इसमें 10 विकसित देश थे किन्तु बाद में बेल्जियम, इटली, आस्ट्रिया व नीदरलैण्ड के शामिल हो जाने से क्लब में अब 13 राष्ट्र सदस्य हो गए हैं) मई 1961 में भारत सहायता क्लब के देशों का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें फ्रांस ने भी भाग लिया। इस सम्मेलन ने भारत की तीसरी पंचवर्षीय योजना के लिए अतिरिक्त ऋण देने का करार किया। 1965-66 तक इसने 5049 मि० डालर के तुल्य सहायता दी। बाद के 14 वर्षों अर्थात् 1979-80 तक क्लब ने 13 अरब डालर की सहायता दी। क्लब की 80% ऋण राशि किसी विशेष प्रायोजना से बँधी नहीं है।
  5. प्राविधिक सहायता सलाह एवं प्रशिक्षण- ऋण के अतिरिक्त कुछ अन्य रीतियों से भी विश्व बैंक भारत की सहायता करता है। उसने भारतीय अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण सुविधायें प्रदान की हैं और अपने तकनीकी विशेषज्ञ भी समय-समय पर भारत को भेजे हैं।
  6. उद्योगों की स्थापना एवं वित्त-व्यवस्था में सहयोग- विश्व बैंक ने उद्योगों को सलाह देकर, विशेषज्ञ भेजकर एवं उच्चाधिकारियों को प्रशिक्षण देकर देश के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उसने सरकार की गारन्टी पर मध्यम एवं दीर्घकालीन ऋण प्रदान किए हैं। उसने भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम (ICICI) और भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI) के ऋण दिए हैं ताकि ये देश के लिए औद्योगिक वित्त की व्यवस्था कर सकें।
  7. पाकिस्तान के साथ विवाद में मध्यस्थता- भारत और पाकिस्तान के नहरी पानी के विवाद को सुलझाने में विश्व बैंक ने महत्त्वपूर्ण योग दिया। झगड़े को समाप्त कराने हेतु न केवल उसने स्वयं ऋण दिया वरन् अमेरिका इंग्लैण्ड आदि देशों से भी ऋण दिलाये।

विश्व बैंक से प्राप्त ऋणों से भारत को लाभ

विश्व बैंक ने भारत को निम्न परियोजनाओं में ऋण प्रदान किया है-

(i) भारतीय रेलों का विकास, (ii) सिंचाई परियोजनाओं का संचालन, (iii) उर्वरक कारखानों की स्थापना, (iv) ग्रामीण विकास, (v) चम्बल बीहड़ विकास योजना, (vi) सरकारी गोदामों का निर्माण, (vii) गहन कृषि विस्तार एवं अनुसंधान परियोजनाएँ, (viii) कृषि विकास योजना।

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