अर्थशास्त्र / Economics

रुपया-पौण्ड सम्बन्ध विच्छेद | नयी विनिमय दर व्यवस्था | सम्बन्ध विच्छेद के कारण

रुपया-पौण्ड सम्बन्ध विच्छेद | नयी विनिमय दर व्यवस्था | सम्बन्ध विच्छेद के कारण

रुपया-पौण्ड सम्बन्ध विच्छेद

(Break-down Rupee-Sterling Link)

1971 में पौण्ड की मार्क तथा डालर से 29% मूल्य वृद्धि के कारण भारत सरकार ने रुपये का पौण्ड स्टर्लिंग से सम्बन्ध, सितम्बर, 1975 से समाप्त कर दिया। विदेशी मुद्रा विनिमय के लिए अब भारतीय रुपये का सम्बन्ध उन देशों की मुद्राओं (basket of currencies) से कर दिया गया है, जिनसे भारत का ज्यादा व्यापार चलता है, जैसे-डालर, पौण्ड, स्टर्लिंग, प० जर्मन की मुद्रा मार्क येन आदि। तेल निर्यात करने वाले पश्चिमी एशियाई देशों में से एक की मुद्रा भी इस समूह में शामिल कर ली गई। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजारों की बदली हुई परिस्थतियों को देखते हुए यह जरूरी हो गया था कि विदेशी मुद्रा विनिमय की नयी व्यवस्था अपनायी जाये, जिससे हमारी विदेशी मुद्रा दर तथा अन्तर्राष्ट्रीय सौदों को नया बल मिले।

नयी विनिमय दर व्यवस्था

(New System of Exchange Rate)

(1) नयी व्यवस्था में भारतीय रुपये का विदेशी मुद्रा में मूल्यांकन प्रतिदिन कुछ चुने हुए देशों की विदेशी मुद्राओं में निर्धारित किया जाता है, जिनसे हमारा ज्यादा व्यापार चलता है। इस पर भी रिजर्व बैंक स्टर्लिंग पौण्ड का प्रयोग बीच की दखल या हस्तक्षेप-मुद्रा (Currency of  Intervention) के रूप में करता रहता है।

(2) पौण्ड की खरीद व बिक्री के लिए समय-समय पर रिजर्व बैंक मूल्य घोषित करता रहता है।

सम्बन्ध विच्छेद के कारण

(Causes of Delinking)

भारत सरकार ने रुपये को पौण्ड स्टर्लिंग से जोड़े रखने की व्यवस्था खत्म करके सही कदम उठाया था। यह बात अग्रांकित विवेचन से स्पष्ट हो जायेगी-

(1) उन दिनों रुपया-रुबल विनिमय दर तय करने की बातचीत में आई अड़चनों से स्पष्ट हो गया था कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में चाहे रुपये की स्थिति कितनी ही मजबूत क्यों न हो, परन्तु पौण्ड से जुड़े होने के करण रुपये को भी गटर में गिरना पड़ता है।

(2) पौण्ड से जुड़े रहने की उपयोगिता तब तक थी, जब तक भारत का अधिकांश व्यापार पौण्ड स्टलिंग क्षेत्र से होता था। लेकिन, अब देश का तिहाई व्यापार स्टलिंग-भिन्न क्षेत्र (Non- Sterling area) से होता है। अत: सिर्फ 25-30 प्रतिशत व्यापार के लिए को सौ फीसदी पौण्ड से बांधे रखना उचित नहीं था।

(3) 1974 के अन्त में जब लन्दन ने स्टलिग विनिमय-गारण्टी खत्म कर दी, तब रुपया पौण्ड सम्बन्ध का रहा-सहा आधार भी टूट गया।

(4) यदि पौण्ड स्टर्लिंग अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में अपनी साख बनाये रखता और स्मिथ सोनियन समझौते के अनुसार उसकी विनिमय दर में घट-बढ़ 2.25 प्रतिशत के आस-पास रहती, तो विदेशी मुद्रा का हिसाब-किताब करने और तब 10 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक के हमारे विदेशी ऋणों के भुगतान के लिए रुपया पौण्ड रिश्ता कायम रखने की बात मान ली जाती। लेकिन, विगत तीन वर्षों में पौण्ड के मूल्य में लगभग 30 प्रतिशत गिरावट आयी।

(5) विनिमय दर गारण्टी खत्म कर दिये जाने के बाद भारत का विदेशी व्यापार बढ़ने और उसमें विविधता आने से भारत सरकार ने सम्बद्ध देशों में डालर, फ्रेंक, डूश, मार्क येन आदि में अपने खाते खोल लिए। इस व्यवस्था को जारी रखते हुए भी पौण्ड-रुपया रिश्ता कायम रह सकता था। परन्तु, स्मिथ-सोवियत समझौता भी प्रायः असफल सिद्ध होने और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार की स्थिति डांवाडोल हो जाने के बाद निरन्तर नीचे गिरते-पौण्ड स्टर्लिंग से बँधे रहने का नतीजा भारतीय रुपये के लिए आत्मघाती होने का डर था। पौण्ड को विनिमय का मापदण्ड बनाये रखकर परोक्ष रूप से भारतीय रुपये का लगातार अवमूल्यन हो रहा था। सम्भव है कि इससे भारतीय निर्यात की होड़ करने की समाग्रं बढ़ी हो परन्तु गैर स्टर्लिंग क्षेत्र से अधिक व्यापार होने और वहाँ की स्थिति पौण्ड के मुकाबले अधिक मजबूत होते जाने के कारण निर्यात-वृद्धि से प्राप्त लाभ आयात में भारी बढ़ोत्तरी हो जाने से हाथ से निकल गया। कुल मिलाकर भारत के विदेशी व्यापार में असन्तुलन ही बढ़ा।

(6) उन दिनों हांगकांग के मुद्रा बाजार में भारतीय रुपये के मूल्य में एक पखवारे में ही लगभग सात प्रतिशत की मजबूती आयी थी लेकिन पौण्ड की हालत अच्छी न होने के कारण भारतीय रुपया इस स्थिति से लाभ उठाने में असमर्थ रहा।

इस प्रकार आर्थिक दबावों के कारण भारत सरकार रुपये को पौण्ड स्टर्लिंग से जोड़े रखने की व्यवस्था समाप्त करने के लिए विवश हो गई।

स्वर्ण से सम्बन्ध तोड़ने के निर्णय के परिणामस्वरूप रुपये की विनिमय दर को निर्धारित करने और उसकी व्यवस्था करने की हमें काफी छूट और स्वतन्त्रता मिल गई है। अब पौण्ड हस्तक्षेप मुद्रा के रूप में है। अब विश्व की प्रमुख मुद्राओं के साथ विनिमय दर समायोजन भी किये गये हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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