अर्थशास्त्र / Economics

अन्तर्राष्ट्रीय बैंक | विश्व बैंक के उद्देश्य | विश्व बैंक की सदस्यता एवं संगठन | विश्व बैंक के कार्यों की प्रगति

अन्तर्राष्ट्रीय बैंक | विश्व बैंक के उद्देश्य | विश्व बैंक की सदस्यता एवं संगठन | विश्व बैंक के कार्यों की प्रगति

अन्तर्राष्ट्रीय बैंक

विश्व बैंक की स्थापना मुद्रा-कोष की एक पूरक संस्था के रूप में 27 दिसम्बर, 1947 को हुई और 25 जून, 1948 से इसने कार्य आरम्भ किया। जबकि मुद्रा-कोष ‘स्थायित्व’ पर जोर देता है, विश्व बैंक ‘विकास’ पर। वास्तव में युद्ध जर्जरित अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण और अविकसित व अल्प विकसित देशों के आर्थिक विकास के लिए दीर्घकालीन पूँजी की व्यवस्था करने हेतु विश्व बैंक की स्थापना की गई है।

अन्तर्राष्ट्रीय बैंक के उद्देश्य

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा परिषद् की रिपोर्ट के दूसरे भाग की धारा 1 के अनुसार विश्व बैंक के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. राष्ट्रों का पुनर्निर्माण और आर्थिक विकास- विश्व बैंक का मुख्य उद्देश्य युद्ध जर्जरित राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण और अविकसित अथवा कम उन्नत देशों को अपने प्राकृतिक साधनों का अधिकतम शोषण करके विकास करने में आर्थिक सहायता प्रदान करना था। युद्ध-जर्जरित राष्ट्रों में इंग्लैंड, फ्रांस, हालैण्ड, डेनमार्क आदि को तथा कम उन्नत देशों में भारत, पाकिस्तान, चीन, बर्मा आदि को शामिल किया गया।
  2. पूँजी के विनियोग को प्रोत्साहन- पिछड़े हुए या कम उन्नत देशों में पूँजी की विकट समस्या थी और आज भी है। पूँजी के अभाव के कारण वहाँ प्राकृतिक साधनों का शोषण समुचित प्रकार से नहीं हो पाया है। अतः विश्व बैंक का दूसरा महत्त्वपूर्ण उद्देश्य विदेशी प्राइवेट विनियोजकों को उनकी पूँजी की गारण्टी देकर या उनके विनियोग अथवा ऋणों में भाग लेकर उन्हें ऐसे देशों में उत्पादक विनियोग करने के लिए प्रोत्साहित करना है। यदि प्राइवेट विनियोग पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न हो सकें तो बैंक इसकी पूर्ति के लिए अपनी ही पूँजी में से या अन्य कोषों से, जो कि उसे प्राप्त हों, कुछ रकम उक्त देशों को उत्पादक कार्यों के लिए ऋण देगा। इस प्रकार, बैंक का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय ऋण द्वारा विभिन्न राष्ट्रों की विनियोग क्रियाओं में स्थायित्व लाना है।
  3. दीर्घकालीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा- विश्व बैंक का तीसरा उद्देश्य विदेशी व्यापार की दीर्घकालीन उन्नति की व्यवस्था करना है। वह सदस्य राष्ट्रों के उत्पादक साधनों का विकास करने के लिए, अन्तर्राष्ट्रीय विनियोगों को प्रोत्साहित करके एक ऐसी दशा उत्पन्न करेगा जिसमें राष्ट्रों के भुगतान सन्तुलनों में भारी विषमताएँ न रहें, अर्थात् विश्व बैंक का उद्देश्य सन्तुलित व्यापार को जन्म देना है।
  4. शान्तिकालीन अर्थव्यवस्था की स्थापना- विश्व बैंक का एक अन्य उद्देश्य अपने कार्य इस प्रकार करना था कि जिससे युद्धकालीन अर्थव्यवस्था का प्रतिस्थापन शान्तिकालीन अर्थव्यवस्था से हो सके।

विश्व बैंक की सदस्यता एवं संगठन

जो देश अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा-कोष के सदस्य बन चुके हैं वे ही विश्व बैंक के सदस्य बनने की पात्रता रखते हैं। हाँ, यदि 75% मत-शक्ति से प्रस्ताव पास कर दिया जाए, तो वे देश भी विश्व बैंक के सदस्य बन सकते हैं या बने रह सकते हैं, जो कि मुद्रा कोष के सदस्य नहीं हैं। 1944 में जो देश मुद्रा-कोष के सदस्य बने थे, उनको विश्व बैंक का प्रारम्भिक सदस्य माना गया। नये सदस्य तब ही बन सकते हैं जबकि उसे तीन चौथाई वर्तमान सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो। 30 जून 1986 को बैंक के 150 सदस्य थे। वर्तमान सितम्बर 1992 में सदस्य संख्या 171 हो गई है। यदि कोई देश की सदस्यता छोड़ देता है, तो भी वहाँ की सरकार बैंक के प्रति ऋणों के लिए दायी रहेगी जब तक कि ये चुकता नहीं कर दिए जाते। विश्व बैंक के प्रबन्ध हेतु एक बोर्ड आफ गवर्नर्स तथा कार्यकारी संचालक मण्डल है।

बैंक की पूँजी

बैंक की अधिकृत पूँजी 1000 करोड़ डालर रखी गई थी। उसे 3/4 बहुमत द्वारा बढ़ाया जा सकता है। 940 करोड़ डालर का अंशदान बैंक की स्थापना के समय ही प्राप्त हो गया था। रूस /विश्व बैंक का सदस्य नहीं बना। प्रत्येक देश को अपने कोटे का अंशदान निम्न प्रकार करना होता था- (i) 20% स्वर्ण अथवा अमरीकी डालर में (यह राशि बिना कठिनाई के ऋण हेतु उपलब्ध हो जाती है); (ii) 18% अंशदान स्थानीय मुद्रा के रूप में (इसे सम्बन्धित देश की सहमति से ही प्राप्त किया जा सकता है) एवं (iii) शेष 80% को बैंक आवश्यकता पड़ने पर माँग सकता है (साधारणतया यह राशि ऋण हेतु उपलब्ध नहीं होती) । विश्व बैंक के समझौता-पत्र के अनुसार सदस्य देशों से खरीदे जाने वाले अंशों की संख्या प्रत्येक सदस्य की सहमति से तय की जाती है। जून 1985 को विश्व बैंक की अधिकृत पूँजी 78650 Million SDR तथा स्वीकृत पूँजी 58948 Million SDR थी।

विश्व बैंक के कार्यों की प्रगति

विश्व बैंक ने 25 जून 1946 से कार्य शुरू किया था। इस प्रकार 30 जून 1988 को इसने अपने जीवन के 42 वर्ष पूरे कर लिए। इस अवधि में बैंक ने अनेक ऋण प्रदान किए। बैंक केवल उत्पादक कार्यों के लिए ऋण प्रदान करता है। इसने विकास सम्बन्धी मूल अवधारणाओं की पूर्ति पर ध्यान दिया है। इसके द्वारा जिन कार्यों के लिए ऋण दिए गए हैं उनमें प्रमुख बिजली, परिवहन, उद्योग, कृषि, शिक्षा, जलपूर्ति आदि हैं।

विश्व बैंक ने 1983-84-85 की वित्तीय वर्षों में क्रमश: 11,136.3 मिलियन डालर, 11947.3 मिलियन डालर और 11358.3 मिलियन डालर के ऋण प्रदान किए।

बैंक ने 1985 में 44 देशों को 131 ऋण प्रदान किए। बैंक की 1986 की वार्षिक रिपोर्ट में विश्व बैंक समूह की ऋण देय नीतियों में दो बड़े परिवर्तन किए गए हैं-(1) परम्परा परियोजना वित्त के अतिरिक्त समायोजन कार्यक्रमों के लिए ऋण में वृद्धि तथा (2) निर्धनतम देशों की जिनकी प्रति व्यक्ति आय 400 डालर से कम है के लिए अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ IDA के कोषों में से अनुपातिक रूप से कम सहायता उपलब्ध होने की समस्या। पहले परिवर्तन का सम्बन्ध 14 सर्वाधिक ऋणी देशों की सहायता से है।

दूसरे परिवर्तन के सम्बन्ध में 1977-81 की अवधि में अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ द्वारा निर्धनतम देशों को दिए गए ऋण कुल ऋणों (विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ) के 81% थे किन्तु 1984-85 तक घटकर 49% रह गए। इस समस्या के समाधान की आवश्यकता पर विचार किया गया।

वर्ष 1988 में विश्व बैंक द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में किए गए कार्यों का विवरण निम्न प्रकार था-

  • नयी सहायता का वायदा …….14.8 विलियन डालर
  • कुल सहायता …….155.0 विलियन डालर
  • 425 डालर से कम प्रति व्यक्ति आय वाले देशों को ऋण ……. 3.4 विलियन डालर
  • ऋणों की संख्या …….118 विलियन डालर
  • ऋण लेने वाले देशों की संख्या ………..37 विलियन डालर
  • भुगतान की राशि …………. 11.6 विलियन डालर

विश्व बैंक तीन प्रकार के ऋण देता है-

  1. प्रत्यक्ष ऋण- ये ऋण बैंक अपने निजी साधनों से देता है या खुले बाजार में ऋण-पत्र निर्गमित करके दिए जाते हैं।
  2. गारन्टी युक्त ऋण- ये ऋण निजी विनियोगकर्ताओं को गारन्टी देकर ऋण दिलाये जाते हैं जो बहुधा विकास योजनाओं के लिए होते हैं। गारन्टी के लिए बैंक 1% कमीशन लेता है। नियमानुसार गारन्टी युक्त ऋण राशि बैंक की स्वीकृति पूँजी से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  3. संयुक्त ऋण- व्यापारिक बैंकों के साथ मिलकर भी बैंक ऋण देता है। इस समय अधिकांश ऋण संयुक्त प्रकार के ही होते हैं।

बैंक में प्रारंभ से लेकर जून 1985 तक 137 देशों को 112921.8 मिलियन डॉलर के 2560 ऋण दिए। 30 जून 1988 तक विश्व बैंक द्वारा 155048 मिलियन डालर के ऋण स्वीकृत किए गए।

तकनीकी सहायता- बैंक अपने सदस्य देशों को तकनीकी सहायता भी दे रहा है। अविकसित सदस्य देशों के प्राकृतिक साधन, आर्थिक एवं औद्योगिक सम्भावनायें, परिवहन के साधन आदि की एक ही साथ कुल जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से बैंक ने सम्पूर्ण आर्थिक सर्वेक्षण कराए हैं और करा रहा है। इसके अतिरिक्त, वह अपने विशेषज्ञों को नियोजन सम्बन्धी कार्यों में सहायता देने के लिए सदस्य देशों में भेजता रहा है। वह अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले आर्थिक सर्वेक्षणों और अनुसन्धानों में सहयोग देता है। अफ्रीकी देशों के आर्थिक सर्वेक्षण प्रकाशित हो गए हैं। बैंक ने जिन परियोजनाओं के अध्ययन कराए हैं। उनमें निम्न  महत्त्वपूर्ण हैं-(i) अर्जेण्टाइना की विद्युत शक्ति एवं विकास योजनाएं, (ii) वाइजर नदी बाँध परियोजना, (iii) ग्वाटेमाला की शक्ति एवं सिंचाई विकास योजना, (iv) भारत का परिवहन विकास, (v) अफगानिस्तान में नदी पर बाँध परियोजना, (vi) ईरान में बन्दरगाह योजना, (vii) पाकिस्तान में बाँध और शक्ति विकास परियोजना।

प्रशिक्षण सुविधाएं- बैंक ने 1 जनवरी, 1949 को सदस्य देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के लिये एक वर्षीय प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया। सन् 1950 से कनिष्ठ अधिकारियों के लिए भी लोकवित्त एवं हिसाब-किताब रखने सम्बन्धी प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए। प्रशिक्षण कार्यक्रमों के अन्तर्गत भाषण मालाओं और व्यावहारिक अध्ययनों का आयोजन किया जाता है। कम विकसित देशों की विभिन्न क्षेत्रों में योजनाओं के संचालन हेतु प्रशिक्षित अधिकारियों की बड़ी आवश्यकता है। स्पष्टतः विश्व बैंक उनकी इस आवश्यकता को भरसक पूरा कर रहा है। सन् 1955 में बैंक ने एक आर्थिक विकास विद्यालय (The Economic Development Institute) स्थापित किया, जिसका उद्देश्य समस्त देशों के वरिष्ठ कर्मचारियों को विकास कार्यों से सम्बन्धित विषयों में नियमित और गहन प्रशिक्षण देना है। इसमें प्रतिवर्ष 1,000 प्रशिक्षार्थियों को लिया जाता है जिन्हें सदस्य देशों की सरकारें निर्वाचित करती हैं। विद्यालय के प्रारम्भिक वर्षों के कुल व्यय का फोर्ड और रोकफेलर संस्थाओं ने उठाया।

अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में सहायता-

एक निष्पक्ष संगठन होने के कारण विश्व बैंक ने कई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक समस्याओं को सुलझाने में सफलता प्राप्त की और यह सिद्ध कर दिया है कि वह एक उपयुक्त माध्यम बन सकता है। विश्व बैंक ने जिन विवादों को सुलझाने में सफलता पाई है, उनमें से निम्न दो विवाद महत्त्वपूर्ण हैं-

(अ) भारत पाक नहरी विवाद- देश का विभाजन होने से अनेक नई समस्यायें उत्पन्न हो गयीं। इसमें एक कठिन समस्या पंजाब की नदियों के जल का भारत और पाकिस्तान में विभाजन होने से सम्बन्धित थी। दोनों देशों के बीच इस समस्या पर मतभेद बढ़ते ही चले गए। अन्ततः विश्व बैंक के मध्यस्थ बनने को कहा गया। बैंक ने दोनों देशों के अधिकारियों के बीच वार्ताओं का आयोजन किया। सन् 1954 में बैंक ने सिन्धु घाटी के जल विभाजन की योजना प्रस्तुत की। विचार-विमर्श के बाद इस विवाद का निपटारा 19 जनवरी, 1960 को हो गया। झगड़े को समाप्त कराने हेतु विश्व बैंक ने स्वयं तो 80 मि० डालर का ऋण दिया ही, साथ ही आस्ट्रेलिया, अमेरिका, न्यूजीलैण्ड, इंग्लैण्ड, कनाडा और जर्मनी जैसे सदस्य देशों से भी सिन्धु घाटी कोष की स्थापना के लिए 6,400 मि० डालर की सहायता के लिए प्रार्थना की।

(ब) स्वेज नहर विवाद- 1956 के अन्तिम दिनों से मिस्र ने स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषण की। राजनैतिक निपटारा तो हो गया लेकिन स्वेज नहर कम्पनी में ब्रिटेन के अंशों की क्षतिपूर्ति के प्रश्न पर विवाद पैदा हो गया। लगातार छह मास तक विचार विनिमय के बाद बैंक दोनों देशों में समझौता कराने में सफल रहा। इस हेतु उसने मिस्र अब संयुक्त अरब गणराज्य से क्षतिपूर्ति की किश्तें प्राप्त करके ब्रिटेन को हस्तान्तरित करने की जिम्मेदारी ग्रहण की और इस प्रकार समस्या को अन्तिम रूप से निपटा दिया। इस प्रकार के राजनैतिक उलझन से भरे विवाद को शान्तिपूर्वक निपटा देना विश्व बैंक के लिए सचमुच ही गौरवपूर्ण सफलता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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