वुड का घोषणा पत्र- 1854

वुड का घोषणा पत्र- 1854 | वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें

वुड का घोषणा पत्र- 1854 | वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें |

वुड का घोषणा-पत्र- 1854

(Wood’s Despatch, 1854)

विलियम बैटिक ने सन् 1835 की विज्ञप्ति में अंग्रेजी भाषा के प्रसार करने की घोषणा की थी। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अंग्रेज मिशनरियों द्वारा भारत में अनेक नई संस्थाये खोली गयीं।

ब्रिटिश संसद को यह अनुभूति हो चुकी थी कि भारतीय शिक्षा नीति में कुछ परिवर्तन किया जाना चाहिये एवं एक स्थायी नीति का निर्माण किया जाना चाहिये। इसलिए ब्रिटिश संसद ने एक संसदीय समिति नियुक्त की तथा इस समिति द्वारा प्रस्तुत कुछ आधार भूत सिद्धांतों के आधार पर सन् 1854 में शिक्षा सम्बन्धी एक घोषणा-पत्र प्रस्तुत किया गया जिसे संचालन समिति के अध्यक्ष सर चाल्से वुड के नाम पर वुड का घोषणा-पत्र (Wood’s Despatch) कहा जाता है। इस घोषणा-पत्र में तत्कालीन शिक्षा-व्यवस्था के पुनरीक्षण तथा भविष्य में शैक्षिक पुनर्निर्माण हेतु सुनिश्चित तथा बहु-आयामी नीति को सूचीबद्ध करने का प्रयास किया गया था।

वुड के इस घोषणा-पत्र ने शिक्षा का एक उचित ढाँचा प्रस्तुत किया। घोषणा-पत्र की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं-

(1) समस्त भारत में विभिन्न स्तरों (प्राथमिक, मिडिल तथा हाईस्कूल आदि) के स्कूलों की स्थापना करना।

(2) भारत के नागरिकों का मानसिक विकास करना।

(3) चरित्र का विकास करना।

(4) भारतवासियों को पाश्चात्य ज्ञान के माध्यम से समूह बनाना।

(5) इस पत्र में मुम्बई, कलकत्ता तथा मद्रास में उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालयों के खोलने की घोषणा की गयी।

(6) प्रान्तों में शिक्षा विभागों की स्थापना करना तथा प्रत्येक प्रांत में एक शिक्षा-निदेशक (Director) और उसकी सहायता के लिए उपशिक्षा निदेशक तथा दूसरे निरीक्षकों की नियुक्ति करना।

(7) शिक्षा-व्यवस्था किसी वर्ग विशेष के लिए न होकर जन साधारण के लिए हो।

(8) अध्यापकों के प्रशिक्षण की कक्षायें प्रारंभ की जायें।

(9) भारत के पाँच राज्यों में ‘लोक शिक्षा विभाग’ की स्थापना करना।

(10) शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाओं व अंग्रेजी को समंवित रूप से स्वीकार किया गया।

(11) राज्य के पदों के लिये योग्य व्यक्तियों को तैयार करना।

(12) सभी भारतीय भाषाओं में उचित पाठ्य-पुस्तकों का प्रबन्ध किया जाये।

(13) औद्योगिक विकास हेतु विद्यालयों एवं महाविद्यालयों की स्थापना की जाये।

(14) नारी शिक्षा के प्रसार के लिए अनुदान दिया जाये।

(15) अनुदान के सम्बन्ध में स्पष्ट किया गया कि प्राइवेट स्कूलों में स्थानीय प्रबन्ध समिति कार्य करे और वे फीस लगायें, किन्तु इन संस्थाओं का निरीक्षण शिक्षा विभाग के सरकारी अधिकारी करेंगे और अध्यापकों के वेतन, पुस्तकालय, भवन निर्माण एवं छात्रवृत्ति आदि के लिए सरकार अनुदान दे।

(16) शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक तटस्थता को अपनाया जाये।

उपरोक्त सिफारिशों से स्पष्ट है कि वुड के घोषणा-पत्र का भारतीय शिक्षा में एक महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। यह पहला घोषणा-पत्र था जिसने ब्रिटिश कालीन शिक्षा को प्रारंभिक ढाँचा प्रदान किया वुड के घोषणा-पत्र के सम्बन्ध में ए० एन० बसु ने लिखा है कि –

“वुड का घोषणा-पत्र भारतीय शिक्षा का शिलाधार था।”

सर फिलिप हट्टांग के शब्दों में-

“यह घोषणा-पत्र भारत के कल्याण हेतु बुद्धिमत्ता को विकसित करने वाली नीति का निर्धारक था।”

इस घोषणा-पत्र का इतना अधिक महत्त्व होने के कारण इस घोषणा-पत्र को भारत में अंग्रेजी शिक्षा का मेग्नाकाटी (Magna Carta of English Education in India) अर्थात् शिक्षा का महाधिकार पत्र भी कहा जाता है।

किन्तु क्या वास्तव में वुड का घोषणा-पत्र भारतीय शिक्षा का महाधिकार-पत्र था, यह बात विवादास्पद है। कुछ भारतीय शिक्षाविदों का मत था कि घोषणा-पत्र में शिक्षा का उद्देश्य-निर्धारण अनुचित था। इसमें भारतीय संस्कृति की अवहेलना की गयी तथा घोषणा-पत्र के पीछे सरकार का अपना राजनैतिक व आर्थिक स्वार्थ निहित था। कुछ शिक्षाविदो ने इसकी कड़ी आलोचना भी की है। यह नेतृत्व प्रदान करने, छात्रों की शिक्षा में राज्य का दायित्व निभाने, निर्धन छात्रों को सुविधा प्रदान करने एवं लाल फीताशाही से शिक्षा के नियंत्रण तथा संचालन को मुक्त करने में सर्वथा असफल रहा। इसने धर्म को शिक्षा से पृथक् कर दिया। विश्वविद्यालय लंदन विश्वविद्यालय के अनुरूप केवल परीक्षा लेने वाली संस्था रही और अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व रहा।

उपरोक्त वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वुड का घोषणा-पत्र भारतीय शिक्षा के इतिहास में एक अपरिवर्तनीय बिन्दु है। इस घोषणा-पत्र की संस्तुतियों के आधार पर ही भारतीय शिक्षा में समानता आ सकी, प्रत्येक प्रांत में शिक्षा विभागों की स्थापना की जा सकी तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना हो सकी। यद्यपि इस घोषणा-पत्र के द्वारा भारतीय शिक्षा में कतिपय असमानताओं का विकास हुआ, तथापि यह घोषणा-पत्र भारत के कल्याण हेतु बुद्धिमत्ता को विकसित करने वाली नीति का निर्धारक था।

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