भूमंडलीकरण (वैश्वीकरण) | भूमंडलीकरण की विशेषताएँ | वैश्वीकरण के लाभ | वैश्वीकरण के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क
भूमंडलीकरण (वैश्वीकरण) | भूमंडलीकरण की विशेषताएँ | वैश्वीकरण के लाभ | वैश्वीकरण के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क
अर्थ: भूमंडली
अर्थ: भूमंडलीकरण शब्द से हमारा अभिप्राय अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को प्राप्त करके विश्व बाजार के लिए अर्थव्यवस्था को खोलने से है। यह लेख भूमंडलीकरण (Globalization) और उनके विषयों के अर्थ, फायदे अथवा लाभ, और नुकसान के बारे में बताता है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था का भूमंडलीकरण बस दुनिया के विकसित औद्योगिक देशों के साथ उत्पादन, व्यापार और वित्तीय लेनदेन से संबंधित देश की बातचीत को इंगित करता है।
भूमंडलीकरण (वैश्वीकरण)
पूरे विश्व में एक केंद्रीय व्यवस्था का होना ही भूमंडलीकरण है। भूमंडलीकरण में प्रत्येक राष्ट्र अपनी सीमाओं के बाहर जा कर अन्य देशों के साथ अपने सम्बन्धों को स्थापित करता है। घरेलू बाजार में जो बाजार की शक्तियाँ क्रिया करती हैं उनका राष्ट्रीय सीमाओं से बाहर आकार अपनी क्रिया विधि को करना ही वैश्वीकरण है।
साधारण शब्दों में, वैश्वीकरण की धारणा विश्व के सभी क्षेत्रों में वास्तविक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के द्वारा एक वास्तविक विश्व समुदाय की स्थापना करने की वकालत करती है क्योकि ऐसा होने से ही विश्व के समस्त लोगों का सर्वपक्षीय टिकाऊ विकास के उद्देश्य की प्राप्ति हो सकती है। वैश्वीकरण राष्ट्रीय दृष्टिकोण के स्थान पर शब्द विश्वव्यापी दृष्टिकोण को अपनाती है ताकि विदमान आर्थिक विकास व्यवस्था को एकीकृत विश्व आर्थिक व्यवस्था का स्वरूप दिया जा सके।
वैश्वीकरण का सामान्य अर्थ है- देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ संदर्भ में एकीकृत (Integrate) करना अथवा सम्बद्ध करना। भारत के संदर्भ में इसका अभिप्राय है विदेशी कम्पनियों को भारत की आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति देना और इस प्रकार की विदेशी अनुमति देना, विदेशी विनिमय नियन्त्रण जैसे कानूनों को धीरे-धीरे समाप्त करना, भारतीय कम्पनियों को विदेशी कम्पनियों को साथ सहयोग की अनुमति देना, मात्रात्मक प्रतिबन्धों के स्थान पर प्रशुल्कों को प्रतिस्थापित करना और इसके माध्यम से आयात उदारीकरण के कार्यक्रमों को लागू करना और निर्यात प्रोत्साहनों के रूप में केवल विनिमय दर का प्रयोग करना और नकद मुहावजा, शुल्क वापसी एवं अन्य प्रकार के राजकोषीय प्रोत्साहनों को धीरे-धीरे समाप्त करना। भारत की नई आर्थिक नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू वैश्वीकरण भी है। वैश्वीकरण का तात्पर्य है किसी देश की अर्थ-व्यवस्था को विश्व की अर्थ-व्यवस्था से जोड़ना। भारत ने भी अपनी अर्थ-व्यवस्था को विश्व की अर्थ-व्यवस्था से जोड़ने की नीति बनाई है, अर्थात् भारतीय व्यापारिक क्रिया-कलापों विशेषकर विपणन समबन्धी क्रियाओं का अन्तर्राष्ट्रीय करना है, जिसमें सम्पूर्ण विश्व बाजार को एक ही क्षेत्र के रूप में देखा जाता है। दूसरे शब्दों में वैश्वीकरण और भूमण्डलीकरण वह प्रक्रिया है, जिससे विश्व बाजारों के बीच पारस्परिक निर्भरता उत्पन्न हाती है और व्यापार देश की सीमाओं से प्रतिबन्धित न रहकर विश्व व्यापार में निहित तुलनात्मक लागत लाभ दशाओं का विमोदन करने की दिशा में अग्रसर होता है। भारत की नई आर्थिक नीति के अन्तर्गत प्रशुल्क, कोटा तथा अन्य नियन्त्रात्मक अवरोधों को समाप्त करके घरेलू उद्योगों को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने योग्य बनाये जाने का प्रयास किया गया है। नब्बे के दशक के पूर्व भारत में घरेलू उद्योग को संरक्षण प्रदान किया गया था, जिसने भारतीय उद्योग को गुणात्मक रूप से कमजोर बना दिया। अतः नई आर्थिक नीति के माध्यम से यह प्रयास किया है कि भारतीय उद्योग भी अन्तर्राष्ट्रीय मानदण्डों का ध्यान में रखकर वस्तुओं का उत्पादन करें, ताकि विश्व बाजार में भारतीय वस्तुयें प्रतियोगिता का सामना कर सकें, और अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी सशक्त भागीदारी दर्ज करा सके।
वैश्वीकरण की विशेषताएँ
- उदारीकरण – संस्थाओं एवं कंपनियों को देश – विदेश के सभी भागों में वस्तुओं और सेवाओं का सीमाओं के आर – पार स्वतन्त्रता प्रवाह देता है।
- मुक्त व्यापार – शब्दों के मध्य प्रतिबंध हटता है तथा वस्तुओं, सेवाओं और तकनीकों का मुक्त प्रवाह एवं व्यापार प्रारम्भ होता है।
- आर्थिक गतिविधियों का वैश्वीकरण – आर्थिक गतिविधियों तथा घरेलू अर्थव्यवस्थाओं का विश्व अर्थ व्यवस्था से जुड़ना।
- आयात निर्यात का उदारीकरण – अनावश्यक प्रतिबंधों तथा शुल्क का हटाया जाना|
- निजीकरण – व्यापार तथा आर्थिक सम्बन्धों का मुक्त प्रवाह संभव हुआ है, जहां कुछ कारोबार में सरकार का भी हस्तक्षेप हुआ करता था वह समाप्त होके सिर्फ कारोबारियों तक ही हो गया।
- आर्थिक सहयोग – औध्योगिक तथा तकनीकी विकास के लिए सभी को अधिक सहयोग प्राप्त होता है।
- आर्थिक सुधार – बाजार तथा कंपनियों को आर्थिक सुधार होता है।
वैश्वीकरण के लाभ
- निवेश की सुविधा – किसी भी क्षेत्र में जाकर निवेश करके लाभ अर्जित किया जा सकता है।
- पूंजी का प्रवाह बढ़ना – दूसरे राष्ट्रों के सम्बन्धों में गति आएगी तथा राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक दृष्टि से विकास होगा।
- बाजार का बढ़ना – उपभोगताओं को सस्ती कीमतों पर समान उपलब्ध होता है।
- उत्पादन में वृद्धि – अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की वजह से उत्पादन में वृद्धि।
- समस्याओं का विश्वव्यापी होना – जो भी व्यापार संबंधी समस्याएँ होंगी किसी एक देश से संबधित न हो के सम्पूर्ण विश्व से संबन्धित होंगी।
- तकनीकी का तीव्र विकास – जब लोग एक दूसरे से ज्यादा मिलेंगे तथा व्यापार करेंगे तो उन्हे यह एहसास होगा की क्या क्या नयी तकनीकी आई हैं तथा वो भी उन सभी तकनीकी को प्रयोग में लाना चाहेंगे जिससे तकनीकी का तीव्र विकास तथा विस्तार होगा।
वैश्वीकरण – पक्ष तथा विपक्ष में तर्क
विपक्ष में तर्क
- वैश्वीकरण की प्रक्रिया में अमीर देशों को गरीब देशों की कीमत पर लाभ हुआ – यहा जो अमीर देश है वो गरीब देश से सस्ते में कच्चा माल लेते हैं तथा उन्हे उत्पादित कर उच्च दामों में बेच देते हैं।
- बार बार आर्थिक संकट पैदा जारने का स्रोत – निजीकरण तथा नियमन व्यवस्था के बढ़ते हुए स्वरूप से सरकार तथा गैर – सरकार वित्तीय शक्तियों के बीच अंतर बढ़ता है तथा विश्व स्तर पर वित्तीय संकट आने की संभावनाएं धीरे धीरे बढ़ रही है।
- वैश्वीकरण अमीरों का थोपा हुआ निर्णय है – यह कथन यहाँ इस लिए कहा गया है क्योकि अमीर वर्ग व्यापार के लिए सब तरह की सुविधा गरीब देशों से निम्न दामों में तथा बड़ी सरलता से प्राप्त कर रह है।
- लाभों की आसमान बाँट – यह गैर लोकतंत्रीय प्रक्रिया जो कि लोकतंत्रीय पर्दे में चलाई गयी, वैश्विकर्ण के लाभों तथा खर्चों को बांटने में अनुरूप नहीं तथा तथ्य तो यह है कि इसने विशिष्ट वर्ग के हितों की ही सेवा की है न सभी देशों की।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढ़ती हुई स्थिति और भूमिका – अपने लाभों को बढ़ा कर तथा श्रम को कमजोर करके वैश्वीकरण ने शक्ति संतुलन को व्यापार के पक्ष में कर दिया है तथा चुनावों में राजनीति दलों पर व्यापारी समुदाय के प्रभाव को निर्णयक रूप में बढ़ा दिया है।
- सामाजिक सुरक्षा की कीमत पर निजी लाभों का महत्व – समाज के अंदर लोगो को लोकतन्त्र के समर्थकों ने ऐसी नीतियों केपी अपनाने के लिए विवश किया जोकि ‘शासकों’ की इच्छानुसार थीं। इसी कारण से आज आधे से भी अधिक मतदाता अपने मतदान का प्रयोग नहीं कर रहे हैं।
- सुरक्षावाद और नव उपनिवेशवाद में वृद्धि – व्यापार समुदाय मे एसे अंतर्राष्ट्रीय समझौते तथा विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोश से ऐसी कार्य – नीतियों को पास करवा लिया जिनसे उनकी नियंत्रण क्षमता में और भी वृद्धि हो गयी और लोकतंत्रीय व्यवस्थाएँ भी उनके इशारों पर कार्य करने लगी।
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक निर्णयों पर बड़े व्यवसायों का बढ़ता हुआ प्रभाव और भूमिका – अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक समझौतो की नीति बहुराष्ट्रीय कंपनियों व्यापारिक विशिष्ट वर्ग के पक्षपाती हो गयी है।
- वैश्वीकरण आज उन एक उत्पादकता असफलता, सामाजिक आपदा और स्थिरता के लिए चुनौती बना रहा है।
पक्ष में तर्क
- वैश्वीकरण से उत्पन्न कुछ समस्याएँ वैश्वीकरण के विकास की प्रारम्भिक अवस्था की उत्पाद हैं और वैश्वीकरण के पूर्ण विकास के बाद ये समस्याएँ अपने आप ही हल हो जाएंगी।
- वैश्वीकरण का विकास होना अटल – विश्व के लोग समस्याओं को साझा करना चाहते हैं सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक किसी भी रूप से।
- विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद वैश्वीकरण का शक्तिशाली बनना आवश्यक और स्वाभाविक है।
- वैश्वीकरण के वातावरण में उत्पन्न हुए कुछ दोष वास्तव में कुछ देशों के स्वार्थ का उत्पादन है।
- वैश्वीकरण प्रशासित हो सकता है और इस पर निर्भर किया जा सकता है।
करण शब्द से हमारा अभिप्राय अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को प्राप्त करके विश्व बाजार के लिए अर्थव्यवस्था को खोलने से है। यह लेख भूमंडलीकरण (Globalization) और उनके विषयों के अर्थ, फायदे अथवा लाभ, और नुकसान के बारे में बताता है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था का भूमंडलीकरण बस दुनिया के विकसित औद्योगिक देशों के साथ उत्पादन, व्यापार और वित्तीय लेनदेन से संबंधित देश की बातचीत को इंगित करता है।
भूमंडलीकरण (वैश्वीकरण)
पूरे विश्व में एक केंद्रीय व्यवस्था का होना ही भूमंडलीकरण है। भूमंडलीकरण में प्रत्येक राष्ट्र अपनी सीमाओं के बाहर जा कर अन्य देशों के साथ अपने सम्बन्धों को स्थापित करता है। घरेलू बाजार में जो बाजार की शक्तियाँ क्रिया करती हैं उनका राष्ट्रीय सीमाओं से बाहर आकार अपनी क्रिया विधि को करना ही वैश्वीकरण है।
साधारण शब्दों में, वैश्वीकरण की धारणा विश्व के सभी क्षेत्रों में वास्तविक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के द्वारा एक वास्तविक विश्व समुदाय की स्थापना करने की वकालत करती है क्योकि ऐसा होने से ही विश्व के समस्त लोगों का सर्वपक्षीय टिकाऊ विकास के उद्देश्य की प्राप्ति हो सकती है। वैश्वीकरण राष्ट्रीय दृष्टिकोण के स्थान पर शब्द विश्वव्यापी दृष्टिकोण को अपनाती है ताकि विदमान आर्थिक विकास व्यवस्था को एकीकृत विश्व आर्थिक व्यवस्था का स्वरूप दिया जा सके।
वैश्वीकरण का सामान्य अर्थ है- देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ संदर्भ में एकीकृत (Integrate) करना अथवा सम्बद्ध करना। भारत के संदर्भ में इसका अभिप्राय है विदेशी कम्पनियों को भारत की आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति देना और इस प्रकार की विदेशी अनुमति देना, विदेशी विनिमय नियन्त्रण जैसे कानूनों को धीरे-धीरे समाप्त करना, भारतीय कम्पनियों को विदेशी कम्पनियों को साथ सहयोग की अनुमति देना, मात्रात्मक प्रतिबन्धों के स्थान पर प्रशुल्कों को प्रतिस्थापित करना और इसके माध्यम से आयात उदारीकरण के कार्यक्रमों को लागू करना और निर्यात प्रोत्साहनों के रूप में केवल विनिमय दर का प्रयोग करना और नकद मुहावजा, शुल्क वापसी एवं अन्य प्रकार के राजकोषीय प्रोत्साहनों को धीरे-धीरे समाप्त करना। भारत की नई आर्थिक नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू वैश्वीकरण भी है। वैश्वीकरण का तात्पर्य है किसी देश की अर्थ-व्यवस्था को विश्व की अर्थ-व्यवस्था से जोड़ना। भारत ने भी अपनी अर्थ-व्यवस्था को विश्व की अर्थ-व्यवस्था से जोड़ने की नीति बनाई है, अर्थात् भारतीय व्यापारिक क्रिया-कलापों विशेषकर विपणन समबन्धी क्रियाओं का अन्तर्राष्ट्रीय करना है, जिसमें सम्पूर्ण विश्व बाजार को एक ही क्षेत्र के रूप में देखा जाता है। दूसरे शब्दों में वैश्वीकरण और भूमण्डलीकरण वह प्रक्रिया है, जिससे विश्व बाजारों के बीच पारस्परिक निर्भरता उत्पन्न हाती है और व्यापार देश की सीमाओं से प्रतिबन्धित न रहकर विश्व व्यापार में निहित तुलनात्मक लागत लाभ दशाओं का विमोदन करने की दिशा में अग्रसर होता है। भारत की नई आर्थिक नीति के अन्तर्गत प्रशुल्क, कोटा तथा अन्य नियन्त्रात्मक अवरोधों को समाप्त करके घरेलू उद्योगों को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने योग्य बनाये जाने का प्रयास किया गया है। नब्बे के दशक के पूर्व भारत में घरेलू उद्योग को संरक्षण प्रदान किया गया था, जिसने भारतीय उद्योग को गुणात्मक रूप से कमजोर बना दिया। अतः नई आर्थिक नीति के माध्यम से यह प्रयास किया है कि भारतीय उद्योग भी अन्तर्राष्ट्रीय मानदण्डों का ध्यान में रखकर वस्तुओं का उत्पादन करें, ताकि विश्व बाजार में भारतीय वस्तुयें प्रतियोगिता का सामना कर सकें, और अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी सशक्त भागीदारी दर्ज करा सके।
वैश्वीकरण की विशेषताएँ
- उदारीकरण – संस्थाओं एवं कंपनियों को देश – विदेश के सभी भागों में वस्तुओं और सेवाओं का सीमाओं के आर – पार स्वतन्त्रता प्रवाह देता है।
- मुक्त व्यापार – शब्दों के मध्य प्रतिबंध हटता है तथा वस्तुओं, सेवाओं और तकनीकों का मुक्त प्रवाह एवं व्यापार प्रारम्भ होता है।
- आर्थिक गतिविधियों का वैश्वीकरण – आर्थिक गतिविधियों तथा घरेलू अर्थव्यवस्थाओं का विश्व अर्थ व्यवस्था से जुड़ना।
- आयात निर्यात का उदारीकरण – अनावश्यक प्रतिबंधों तथा शुल्क का हटाया जाना|
- निजीकरण – व्यापार तथा आर्थिक सम्बन्धों का मुक्त प्रवाह संभव हुआ है, जहां कुछ कारोबार में सरकार का भी हस्तक्षेप हुआ करता था वह समाप्त होके सिर्फ कारोबारियों तक ही हो गया।
- आर्थिक सहयोग – औध्योगिक तथा तकनीकी विकास के लिए सभी को अधिक सहयोग प्राप्त होता है।
- आर्थिक सुधार – बाजार तथा कंपनियों को आर्थिक सुधार होता है।
वैश्वीकरण के लाभ
- निवेश की सुविधा – किसी भी क्षेत्र में जाकर निवेश करके लाभ अर्जित किया जा सकता है।
- पूंजी का प्रवाह बढ़ना – दूसरे राष्ट्रों के सम्बन्धों में गति आएगी तथा राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक दृष्टि से विकास होगा।
- बाजार का बढ़ना – उपभोगताओं को सस्ती कीमतों पर समान उपलब्ध होता है।
- उत्पादन में वृद्धि – अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की वजह से उत्पादन में वृद्धि।
- समस्याओं का विश्वव्यापी होना – जो भी व्यापार संबंधी समस्याएँ होंगी किसी एक देश से संबधित न हो के सम्पूर्ण विश्व से संबन्धित होंगी।
- तकनीकी का तीव्र विकास – जब लोग एक दूसरे से ज्यादा मिलेंगे तथा व्यापार करेंगे तो उन्हे यह एहसास होगा की क्या क्या नयी तकनीकी आई हैं तथा वो भी उन सभी तकनीकी को प्रयोग में लाना चाहेंगे जिससे तकनीकी का तीव्र विकास तथा विस्तार होगा।
वैश्वीकरण – पक्ष तथा विपक्ष में तर्क
विपक्ष में तर्क
- वैश्वीकरण की प्रक्रिया में अमीर देशों को गरीब देशों की कीमत पर लाभ हुआ – यहा जो अमीर देश है वो गरीब देश से सस्ते में कच्चा माल लेते हैं तथा उन्हे उत्पादित कर उच्च दामों में बेच देते हैं।
- बार बार आर्थिक संकट पैदा जारने का स्रोत – निजीकरण तथा नियमन व्यवस्था के बढ़ते हुए स्वरूप से सरकार तथा गैर – सरकार वित्तीय शक्तियों के बीच अंतर बढ़ता है तथा विश्व स्तर पर वित्तीय संकट आने की संभावनाएं धीरे धीरे बढ़ रही है।
- वैश्वीकरण अमीरों का थोपा हुआ निर्णय है – यह कथन यहाँ इस लिए कहा गया है क्योकि अमीर वर्ग व्यापार के लिए सब तरह की सुविधा गरीब देशों से निम्न दामों में तथा बड़ी सरलता से प्राप्त कर रह है।
- लाभों की आसमान बाँट – यह गैर लोकतंत्रीय प्रक्रिया जो कि लोकतंत्रीय पर्दे में चलाई गयी, वैश्विकर्ण के लाभों तथा खर्चों को बांटने में अनुरूप नहीं तथा तथ्य तो यह है कि इसने विशिष्ट वर्ग के हितों की ही सेवा की है न सभी देशों की।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढ़ती हुई स्थिति और भूमिका – अपने लाभों को बढ़ा कर तथा श्रम को कमजोर करके वैश्वीकरण ने शक्ति संतुलन को व्यापार के पक्ष में कर दिया है तथा चुनावों में राजनीति दलों पर व्यापारी समुदाय के प्रभाव को निर्णयक रूप में बढ़ा दिया है।
- सामाजिक सुरक्षा की कीमत पर निजी लाभों का महत्व – समाज के अंदर लोगो को लोकतन्त्र के समर्थकों ने ऐसी नीतियों केपी अपनाने के लिए विवश किया जोकि ‘शासकों’ की इच्छानुसार थीं। इसी कारण से आज आधे से भी अधिक मतदाता अपने मतदान का प्रयोग नहीं कर रहे हैं।
- सुरक्षावाद और नव उपनिवेशवाद में वृद्धि – व्यापार समुदाय मे एसे अंतर्राष्ट्रीय समझौते तथा विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोश से ऐसी कार्य – नीतियों को पास करवा लिया जिनसे उनकी नियंत्रण क्षमता में और भी वृद्धि हो गयी और लोकतंत्रीय व्यवस्थाएँ भी उनके इशारों पर कार्य करने लगी।
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक निर्णयों पर बड़े व्यवसायों का बढ़ता हुआ प्रभाव और भूमिका – अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक समझौतो की नीति बहुराष्ट्रीय कंपनियों व्यापारिक विशिष्ट वर्ग के पक्षपाती हो गयी है।
- वैश्वीकरण आज उन एक उत्पादकता असफलता, सामाजिक आपदा और स्थिरता के लिए चुनौती बना रहा है।
पक्ष में तर्क
- वैश्वीकरण से उत्पन्न कुछ समस्याएँ वैश्वीकरण के विकास की प्रारम्भिक अवस्था की उत्पाद हैं और वैश्वीकरण के पूर्ण विकास के बाद ये समस्याएँ अपने आप ही हल हो जाएंगी।
- वैश्वीकरण का विकास होना अटल – विश्व के लोग समस्याओं को साझा करना चाहते हैं सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक किसी भी रूप से।
- विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद वैश्वीकरण का शक्तिशाली बनना आवश्यक और स्वाभाविक है।
- वैश्वीकरण के वातावरण में उत्पन्न हुए कुछ दोष वास्तव में कुछ देशों के स्वार्थ का उत्पादन है।
- वैश्वीकरण प्रशासित हो सकता है और इस पर निर्भर किया जा सकता है।
वस्था का होना ही भूमंडलीकरण है। भूमंडलीकरण में प्रत्येक राष्ट्र अपनी सीमाओं के बाहर जा कर अन्य देशों के साथ अपने सम्बन्धों को स्थापित करता है। घरेलू बाजार में जो बाजार की शक्तियाँ क्रिया करती हैं उनका राष्ट्रीय सीमाओं से बाहर आकार अपनी क्रिया विधि को करना ही वैश्वीकरण है।
साधारण शब्दों में, वैश्वीकरण की धारणा विश्व के सभी क्षेत्रों में वास्तविक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के द्वारा एक वास्तविक विश्व समुदाय की स्थापना करने की वकालत करती है क्योकि ऐसा होने से ही विश्व के समस्त लोगों का सर्वपक्षीय टिकाऊ विकास के उद्देश्य की प्राप्ति हो सकती है। वैश्वीकरण राष्ट्रीय दृष्टिकोण के स्थान पर शब्द विश्वव्यापी दृष्टिकोण को अपनाती है ताकि विदमान आर्थिक विकास व्यवस्था को एकीकृत विश्व आर्थिक व्यवस्था का स्वरूप दिया जा सके।
वैश्वीकरण का सामान्य अर्थ है- देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ संदर्भ में एकीकृत (Integrate) करना अथवा सम्बद्ध करना। भारत के संदर्भ में इसका अभिप्राय है विदेशी कम्पनियों को भारत की आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति देना और इस प्रकार की विदेशी अनुमति देना, विदेशी विनिमय नियन्त्रण जैसे कानूनों को धीरे-धीरे समाप्त करना, भारतीय कम्पनियों को विदेशी कम्पनियों को साथ सहयोग की अनुमति देना, मात्रात्मक प्रतिबन्धों के स्थान पर प्रशुल्कों को प्रतिस्थापित करना और इसके माध्यम से आयात उदारीकरण के कार्यक्रमों को लागू करना और निर्यात प्रोत्साहनों के रूप में केवल विनिमय दर का प्रयोग करना और नकद मुहावजा, शुल्क वापसी एवं अन्य प्रकार के राजकोषीय प्रोत्साहनों को धीरे-धीरे समाप्त करना। भारत की नई आर्थिक नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू वैश्वीकरण भी है। वैश्वीकरण का तात्पर्य है किसी देश की अर्थ-व्यवस्था को विश्व की अर्थ-व्यवस्था से जोड़ना। भारत ने भी अपनी अर्थ-व्यवस्था को विश्व की अर्थ-व्यवस्था से जोड़ने की नीति बनाई है, अर्थात् भारतीय व्यापारिक क्रिया-कलापों विशेषकर विपणन समबन्धी क्रियाओं का अन्तर्राष्ट्रीय करना है, जिसमें सम्पूर्ण विश्व बाजार को एक ही क्षेत्र के रूप में देखा जाता है। दूसरे शब्दों में वैश्वीकरण और भूमण्डलीकरण वह प्रक्रिया है, जिससे विश्व बाजारों के बीच पारस्परिक निर्भरता उत्पन्न हाती है और व्यापार देश की सीमाओं से प्रतिबन्धित न रहकर विश्व व्यापार में निहित तुलनात्मक लागत लाभ दशाओं का विमोदन करने की दिशा में अग्रसर होता है। भारत की नई आर्थिक नीति के अन्तर्गत प्रशुल्क, कोटा तथा अन्य नियन्त्रात्मक अवरोधों को समाप्त करके घरेलू उद्योगों को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने योग्य बनाये जाने का प्रयास किया गया है। नब्बे के दशक के पूर्व भारत में घरेलू उद्योग को संरक्षण प्रदान किया गया था, जिसने भारतीय उद्योग को गुणात्मक रूप से कमजोर बना दिया। अतः नई आर्थिक नीति के माध्यम से यह प्रयास किया है कि भारतीय उद्योग भी अन्तर्राष्ट्रीय मानदण्डों का ध्यान में रखकर वस्तुओं का उत्पादन करें, ताकि विश्व बाजार में भारतीय वस्तुयें प्रतियोगिता का सामना कर सकें, और अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी सशक्त भागीदारी दर्ज करा सके।
वैश्वीकरण की विशेषताएँ
- उदारीकरण – संस्थाओं एवं कंपनियों को देश – विदेश के सभी भागों में वस्तुओं और सेवाओं का सीमाओं के आर – पार स्वतन्त्रता प्रवाह देता है |
- मुक्त व्यापार – शब्दों के मध्य प्रतिबंध हटता है तथा वस्तुओं, सेवाओं और तकनीकों का मुक्त प्रवाह एवं व्यापार प्रारम्भ होता है |
- आर्थिक गतिविधियों का वैश्वीकरण – आर्थिक गतिविधियों तथा घरेलू अर्थव्यवस्थाओं का विश्व अर्थ व्यवस्था से जुड़ना |
- आयात निर्यात का उदारीकरण – अनावश्यक प्रतिबंधों तथा शुल्क का हटाया जाना|
- निजीकरण – व्यापार तथा आर्थिक सम्बन्धों का मुक्त प्रवाह संभव हुआ है, जहां कुछ कारोबार में सरकार का भी हस्तक्षेप हुआ करता था वह समाप्त होके सिर्फ कारोबारियों तक ही हो गया |
- आर्थिक सहयोग – औध्योगिक तथा तकनीकी विकास के लिए सभी को अधिक सहयोग प्राप्त होता है |
- आर्थिक सुधार – बाजार तथा कंपनियों को आर्थिक सुधार होता है |
वैश्वीकरण के लाभ
- निवेश की सुविधा – किसी भी क्षेत्र में जाकर निवेश करके लाभ अर्जित किया जा सकता है |
- पूंजी का प्रवाह बढ़ना – दूसरे राष्ट्रों के सम्बन्धों में गति आएगी तथा राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक दृष्टि से विकास होगा |
- बाजार का बढ़ना – उपभोगताओं को सस्ती कीमतों पर समान उपलब्ध होता है |
- उत्पादन में वृद्धि – अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की वजह से उत्पादन में वृद्धि |
- समस्याओं का विश्वव्यापी होना – जो भी व्यापार संबंधी समस्याएँ होंगी किसी एक देश से संबधित न हो के सम्पूर्ण विश्व से संबन्धित होंगी |
- तकनीकी का तीव्र विकास – जब लोग एक दूसरे से ज्यादा मिलेंगे तथा व्यापार करेंगे तो उन्हे यह एहसास होगा की क्या क्या नयी तकनीकी आई हैं तथा वो भी उन सभी तकनीकी को प्रयोग में लाना चाहेंगे जिससे तकनीकी का तीव्र विकास तथा विस्तार होगा |
वैश्वीकरण – पक्ष तथा विपक्ष में तर्क
विपक्ष में तर्क
- वैश्वीकरण की प्रक्रिया में अमीर देशों को गरीब देशों की कीमत पर लाभ हुआ – यहा जो अमीर देश है वो गरीब देश से सस्ते में कच्चा माल लेते हैं तथा उन्हे उत्पादित कर उच्च दामों में बेच देते हैं |
- बार बार आर्थिक संकट पैदा जारने का स्रोत – निजीकरण तथा नियमन व्यवस्था के बढ़ते हुए स्वरूप से सरकार तथा गैर – सरकार वित्तीय शक्तियों के बीच अंतर बढ़ता है तथा विश्व स्तर पर वित्तीय संकट आने की संभावनाएं धीरे धीरे बढ़ रही है |
- वैश्वीकरण अमीरों का थोपा हुआ निर्णय है – यह कथन यहाँ इस लिए कहा गया है क्योकि अमीर वर्ग व्यापार के लिए सब तरह की सुविधा गरीब देशों से निम्न दामों में तथा बड़ी सरलता से प्राप्त कर रह है |
- लाभों की आसमान बाँट – यह गैर लोकतंत्रीय प्रक्रिया जो कि लोकतंत्रीय पर्दे में चलाई गयी, वैश्विकर्ण के लाभों तथा खर्चों को बांटने में अनुरूप नहीं तथा तथ्य तो यह है कि इसने विशिष्ट वर्ग के हितों की ही सेवा की है न सभी देशों की |
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढ़ती हुई स्थिति और भूमिका – अपने लाभों को बढ़ा कर तथा श्रम को कमजोर करके वैश्वीकरण ने शक्ति संतुलन को व्यापार के पक्ष में कर दिया है तथा चुनावों में राजनीति दलों पर व्यापारी समुदाय के प्रभाव को निर्णयक रूप में बढ़ा दिया है |
- सामाजिक सुरक्षा की कीमत पर निजी लाभों का महत्व – समाज के अंदर लोगो को लोकतन्त्र के समर्थकों ने ऐसी नीतियों केपी अपनाने के लिए विवश किया जोकि ‘शासकों’ की इच्छानुसार थीं | इसी कारण से आज आधे से भी अधिक मतदाता अपने मतदान का प्रयोग नहीं कर रहे हैं |
- सुरक्षावाद और नव उपनिवेशवाद में वृद्धि – व्यापार समुदाय मे एसे अंतर्राष्ट्रीय समझौते तथा विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोश से ऐसी कार्य – नीतियों को पास करवा लिया जिनसे उनकी नियंत्रण क्षमता में और भी वृद्धि हो गयी और लोकतंत्रीय व्यवस्थाएँ भी उनके इशारों पर कार्य करने लगी |
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक निर्णयों पर बड़े व्यवसायों का बढ़ता हुआ प्रभाव और भूमिका – अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक समझौतो की नीति बहुराष्ट्रीय कंपनियों व्यापारिक विशिष्ट वर्ग के पक्षपाती हो गयी है |
- वैश्वीकरण आज उन एक उत्पादकता असफलता, सामाजिक आपदा और स्थिरता के लिए चुनौती बना रहा है |
पक्ष में तर्क
- वैश्वीकरण से उत्पन्न कुछ समस्याएँ वैश्वीकरण के विकास की प्रारम्भिक अवस्था की उत्पाद हैं और वैश्वीकरण के पूर्ण विकास के बाद ये समस्याएँ अपने आप ही हल हो जाएंगी |
- वैश्वीकरण का विकास होना अटल – विश्व के लोग समस्याओं को साझा करना चाहते हैं सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक किसी भी रूप से |
- विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद वैश्वीकरण का शक्तिशाली बनना आवश्यक और स्वाभाविक है |
- वैश्वीकरण के वातावरण में उत्पन्न हुए कुछ दोष वास्तव में कुछ देशों के स्वार्थ का उत्पादन है |
- वैश्वीकरण प्रशासित हो सकता है और इस पर निर्भर किया जा सकता है |
भूगोल – महत्वपूर्ण लिंक
- राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर्यावरण जागरूकता के प्रयास | National and international level environmental awareness efforts
- पर्यावरण संरक्षण का अभिप्राय | पर्यावरण संरक्षण में विभिन्न अभिकारणों का योगदान एवं भूमिका
- पर्यावरण शिक्षा के पाठयक्रम का अर्थ | पर्यावरण शिक्षा का पाठ्यक्रम का महत्व
- औपचारिक पर्यावरण शैक्षिक पाठ्यक्रम | औपचारिक पर्यावरण शैक्षिक कार्यक्रम
- पर्यावरण जागरूकता हेतु विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में आयोजन
- पर्यावरण संरक्षण के लिये पाठ्यू-सहगामी क्रियायें | Text-related activities for environmental protection in Hindi
- पर्यावरण शिक्षा की शिक्षण विधियाँ | औपचारिक विधियाँ तथा अनौपचारिक विधियाँ
- भ्रमण विधि | भ्रमण-विधि से लाभ | भ्रमण या पर्यटन की योजना
- समस्या समाधान विधि | समस्या-समाधान विधि के पद | समस्या-समाधान विधि के गुण तथा दोष
- प्रयोजना विधि | प्रायोजना विधि के सिद्धान्त | योजना विधि के गुण तथा दोष
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