शिक्षाशास्त्र / Education

अनुबन्धन सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता | Educational Implication of the Theory of Conditioning in Hindi

अनुबन्धन सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता | Educational Implication of the Theory of Conditioning in Hindi

अनुबन्धन सिद्धान्त अपने आप को मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला की दुनिया तक ही सीमित नहीं रखता। सीखने-सिखाने के व्यावहारिक क्षेत्र में भी इस सिद्धान्त की उपयोगिता असंदिग्ध है जिसका अनुमान नीचे दिए हुए तथ्यों के आधार पर भली-भांति हो सकता है। (अनुबन्धन सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता)

  1. अनुबन्धन के फलस्वरूप भय, प्रेम और घृणा आदि के भाव आसानी से जागृत किए जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर एक सामान्य बच्चे के साथ गणित का एक अध्यापक अपनी कक्षा में ठीक व्यवहार नहीं करता, प्रायः वह बात-बात में उसकी खिल्ली उड़ाता है अथवा उसे मारता-पीटता है। ऐसी अवस्था में धीरे-धीरे बच्चा उस अध्यापक, यहां तक कि उसके द्वारा पढ़ाए जा रहे विषय के प्रति भी घृणा एवं भय के भाव तथा अभिवृत्तियां विकसित कर लेता है।

दूसरी ओर, अध्यापक द्वारा बच्चों के साथ किया गया सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार और उसके पढ़ाने के रोचक एवं प्रभावपूर्ण तरीके के अनुबन्धन के फलस्वरूप बच्चों पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ता है। वे विषय में रुचि प्रदर्शित करने लगते हैं तथा अध्यापक को भी स्नेह और आदर की दृष्टि से देखने लगते हैं।

  1. अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया में दृश्य-श्रव्य सामग्री के प्रयोग द्वारा तरह-तरह की बातें सिखाने में भी अनुबन्धन सिद्धान्त को अच्छी तरह उपयोग में लाया जा सकता है। उदाहरण के लिए अगर बच्चे को कोई शब्द जैसे बिल्ली’ कहना सिखलाना हो तो अध्यापक लिखे हुए शब्द, ‘बिल्ली’ के साथ उसका चित्र भी दिखाता है। अब जब लिखे हुए शब्द के साथ बिल्ली का चित्र दिखाया जाता है तो अध्यापक उसकी ओर इशारा करके बिल्ली’ कहता है और बच्चे को भी बिल्ली कहने के लिए कहा जाता है। कुछ समय पश्चात बिल्ली का चित्र नहीं दिखाया जाता, केवल लिखा हुआ शब्द बिल्ली’ दिखाया जाता है। चित्र न होने पर भी इस लिखे हुए शब्द को बच्चा बिल्ली कह कर संबोधित करता है और इस तरह बिल्ली कहने की अनुक्रिया कृत्रिम उद्दीपन, लिखे हुए शब्द के साथ अनुबंधित हो जाती है और बच्चा अनुबंधन क्रिया के परिणामस्वरूप बिल्ली कहना सीख जाता है।
  2. उचित आदतों, रुचियों, अभिरुचियों, अभिवृत्तियों, सौन्दर्यात्मक भावनाओं आदि के समुचित विकास में अनुबंधन की प्रक्रिया अध्यापकों के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकती है । इसकी सहायता से बच्चों को न केवल ठीक प्रकार से व्यवहार करना सिखाया जा सकता है बल्कि व्यवहार संबंधी बहुत सी गलत आदतो, अभिवृत्तियों, अन्धविश्वासों, भय और मानसिक तनावों से पीछा छुड़ाने में भी यह सिद्धान्त बहुत मदद कर सकता है। एक बच्चा जो किसी वस्तु विशेष से डरता है उसी वस्तु से आनन्द प्राप्त करने के योग्य बनाया जा सकता है। दूसरे बच्चे की, जो बिल्ली द्वारा रास्ता काटने या अचानक किसी के छींक देने को अपशकुन मानता है ऐसे अन्धविश्वासों से छुटकारा दिलाने के कार्य में सहायता की जा सकती है । इस प्रकार से अनुबंधन सिद्धान्त सीखने की विभिन्न प्रतिक्रियाओं में बच्चे की हर स्तर पर पूरी सहायता करता है और अध्यापक और माता-पिता को भी अपना कर्त्तव्य निभाने में पूरी-पूरी मदद कर सकता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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