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सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त | स्किनर का सिद्धान्त | Skinner’s Theory of Operant Conditioning in Hindi

सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त | स्किनर का सिद्धान्त | Skinner’s Theory of Operant Conditioning in Hindi

अधिगम के सिद्धान्तो में सक्रिय अनुबन्धन के नाम से जाने जाने वाले सिद्धान्त के प्रतिपादक अमेरिकन मनोवैज्ञानिक बी. एफ. स्किनर हैं। इन्होंने अपने इस सिद्धान्त की रचना के लिए चूहे, कबूतर आदि प्राणियों पर काफ़ी महत्त्वपूर्ण प्रयोग किए। उनके कुछ प्रयोगों की झांकी आगे प्रस्तुत की जा रही है।

स्किनर द्वारा किये गये प्रयोग (Experiments done by Skinner)

चूहों पर प्रयोग करने के लिये स्किनर महोदय ने एक विशेष संयंत्र बनाया। यह संयंत्र स्किनर बाक्स के नाम से प्रसिद्ध है। थोर्नडाइक ने बिल्लियों के साथ किए जाने वाले प्रयोगों में उलझन पेटी (Puzzle Box ) का उपयोग किया था। स्किनर बाक्स को उसी का एक यथानुकूल सशोधित रूप समझा जा सकता है। स्किनर के द्वारा किए गए एक प्रयोग में विशेष रूप से अंधकार युक्त शब्द विहीन इस बाक्स में भूखे चूहे को ग्रिलयुक्त संकरे रास्ते से गुज़र कर लक्ष्य तक पहुचना होता था।

स्किनर बाक्स मे एक चूहा

स्किनर बाक्स मे एक चूहा

प्रयोग प्रारम्भ करने से पूर्व चूहे को निश्चित दिनों तक भूखा रख कर उसे भौजन प्राप्त करने के लिये सक्रिय रहने का प्रबन्ध कर लिया जाता था व्यवस्था ऐसी की गई थी कि जैसे ही चूहा उपयुक्त मार्ग पर अग्रसर होता, लीवर पर चूहे का पैर पड़ता था, खट् की अआवाज होती थी (अरथवा प्रकाश युक्त कबल्व जलता था) और उसे प्याले में कुछ खाना प्राप्त हो जाता था लीवर को दबाने से होने वाली आवाज़ और प्राप्त हुआ भौजन पुनर्बलन (Reinforcement) का कार्य करता था। इस प्रकार चूहे द्वारा लक्ष्य प्राप्ति के लिए किए जाने पर सही व्यवहार अथवा अनुक्रिया का लीवर दबाने से उत्पन्न आवाज़ और प्याले में उपस्थित थोड़े से खाने द्वारा पुनर्बलन होने का प्रयास इस प्रयोग में किया गया चूहे द्वारा सक्रिय रह कर जैसे-जैसे पुनर्बलन मिलता चला गया, वैसे-वैसे ही सही अनुक्रिया करने और लक्ष्य तक पहुंचने की प्रक्रिया में तीव्रता आती चली गई।

कबूतरों पर प्रयोग करने के लिए स्किनर ने एक अन्य विशेष संयंत्र, जिसे कबूतर पीटिका (Pigeon Box) कहा जाता है, का उपयोग किया। कबूतरों के साथ किये जाने वाले अपने एक प्रयोग में स्किनर ने यह लक्ष्य सामने रखा कि कबूतर दाहिनी ओर एक पूरा चक्कर लगा कर एक सुनिश्चित स्थान पर चोच मारना सीख जाए। इस प्रयोग में कबूतर पेटिका में बंद भूखे कबूतर ने जैसे ही दाहिनी ओर घूम कर सुनिश्चित स्थान पर चाँच मारी, उसे अनाज का एक दाना प्राप्त हुआ। इस दाने द्वारा कबूतर को अपने सही व्यवहार की पुनरावृत्त्ति के लिये पुनर्बलन प्राप्त हुआ और उसने फिर दाहिनी और घूम कर चोंच मारने की अनुक्रिया की। परिणामस्वरूप उसे फिर अनाज का एक दाना प्राप्त हुआ। इस प्रकार धीरे-धीरे कबूतर ने दाहिनी ओर सर घुमा कर चोच मारने की क्रिया द्वारा प्राप्त करने का ढंग सीख लिया।

कबूतर पेटिका में कबूतर

कबूतर पेटिका में कबूतर

अपने इसी प्रकार के प्रयोगों द्वारा स्किनर ने अधिगम के क्षेत्र में एक नए सिद्धान्त सक्रिय अनुबन्धन को जन्म दिया। उसने निष्कर्ष निकाला कि हमारे सीखने संबंधी व्यवहार को सक्रिय अनुबन्धन संचालित करता है। हमारा व्यवहार और अनुक्रिया बहुत कुछ सीमा तक सक्रिय व्यवहार का ही रूप होती है। आइये, अब यह जानने का प्रयत्न किया जाए कि सक्रिय व्यवहार (Operant Behavior) और सक्रिय अनुबन्धन क्या कुछ होता है।

सक्रिय व्यवहार (Operant Behaviour)

अधिगम के क्षेत्र में स्किनर से पूर्व के मनोवैज्ञानिकों की यह धारणा थी कि अनुक्रिया या व्यवहार के मूल में अवश्य ही कोई न कोई ज्ञात उद्दीपन (Known Stimulus) होता है। स्किनर ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध किया कि बहुत सी अनुक्रियाएं ऐसी होती हैं जिनको हम ज्ञात उद्दीपन से नहीं जोड़ सकते। इस आधार पर उसने दो प्रकार की अनुक्रियाओं या व्यवहारों की चर्चा की ।

ऐसे सभी व्यवहार अथवा अनुक्रियाओं को जो किसी ज्ञात उद्दीपन के कारण होती हैं, उसने अनुक्रिया व्यवहार (Respondent Behaviour) की सज्ञा दी तेथा उन व्यवहार अथवा अनुक्रियाओं को जो किसी ज्ञात उद्दीपन के कारण नहीं होती, इन्हें सक्रिय व्यवहार (Operant Behaviour) का नाम दिया।

अनुक्रिया व्यवहार के उदाहरण के रूप में सभी प्रकार के सहज व्यवहार (Reflexive Behaviour) जैसे पिन चुभने पर हाथ का तुरन्त खीचना, खाना दिखाई देने पर लार आना और तीव्र प्रकाश में आंखों की पुतलियों का गिरना आदि का नाम लिया जा सकता है जबकि सक्रिय व्यवहार में बच्चे द्वारा एक खिलौने को छोड़ कर दूसरे को खेलने के लिए लेना, किसी व्यक्ति द्वारा अपने हाथ या पांव को यू ही इधर-उधर हिलाना, खड़े होकर इधर-उधर चहल कदमी करना, कुछ खाना, लिखना पढ़ना आदि, इस प्रकार के व्यवहार शामिल हैं जिनके लिये कोई ज्ञात कारण या उद्दीपन नज़र नही आता।

इस तरह से अनुक्रिया व्यवहार में अनुक्रिया के लिए उत्तरदायी उद्दीपन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है जबकि सक्रिय व्यवहार में कोई भी ज्ञात उद्दीपन व्यवहार का कारण नही बनता। यहां व्यवहार की कुंजी उद्दीपन के हाथ में न होकर अनुक्रिया या व्यवहार द्वारा उत्पन्न परिणामों के पास होती है। इस तरह सक्रिय व्यवहार उद्दीपन पर आधारित न होकर अनुक्रिया अथवा व्यवहार पर निर्भर करता है। यहां व्यक्ति को पहले कुछ न कुछ करना होता है। इसके पश्चात् ही उसे परिणाम के रूप में कुछ न कुछ प्रकार की प्राप्ति होती है और उसके व्यवहार को पुनर्बलन मिलता है।

सक्रिय अनुबन्धन क्या है? (What is Operant Conditioning?)

स्किनर के अनुसार सक्रिय अनुबन्धन से अभिप्राय एक ऐसी अधिगम प्रक्रिया से है जिसके द्वारा सक्रिय व्यवहार की सुनियोजित पुनर्बलन (Planned Reinforcement Schedules) द्वारा पर्याप्त बल मिल जाने के कारण वांछित रूप में जल्दी-जल्दी पुनरावृत्ति होती रहती है और सीखने वाला अंत में जैसा व्यवहार सिखाने वाला चाहता है, वैसा सीखने में समर्थ हो जाता है।

अधिगम की इस प्रक्रिया में सीखने वाले को पहले कोई न कोई क्रिया करनी पड़ती है जैसे चूहे द्वारा लीवर दबाने या कबूतर द्वारा दाहिनी ओर घूम कर निश्चित स्थान पर चोच मारने की क्रिया यही व्यवहार (Operant behaviour) पुनर्बलन (Reinforcement) उत्पन्न करने में माध्यम (Instrumental) का कार्य करता है। भोजन, पानी आदि के रूप में पुरस्कार की प्राप्ति होने पर सीखने वाला उसी व्यवहार की पुनरावृत्ति करता है जिसके परिणामस्वरूप उसे पुरस्कार अथवा पुनर्बलन प्राप्त हुआ था। व्यवहार की यह पुनरावृत्ति उसे फिर पुरस्कार या पुनर्बलन प्राप्त कराती है और फिर वह अधिक गति से अपने व्यवहार की पुनरावृत्ति करता है। इस तरह से अंत में सीखने वाला बांछित व्यवहार सीख लेता है।

कई बार यह आवश्यक नहीं होता कि जिस तरह के व्यवहार को हम सिखाना चाहते हैं और उसे पुनर्बलन प्रदान करना चाहते हैं वैसा ही अपेक्षित व्यवहार सीखने वाला शुरू से करना प्रारम्भ कर दे। उस दिशा में सक्रिय अनुबंधन की प्रक्रिया के पहले चरण में उचित पुनर्बलन द्वारा सीखने वाले को वांछित व्यवहार करने की दिशा में धीर-धीरे मोडा जाता है। इसे मनोविज्ञान की भाषा में व्यवहार का रूपण (Shaping of Behaviour) कहते हैं। उदाहरण के लिए स्किनर के कबूतर वाले प्रयोग को ही लेते हैं। लक्ष्य है कबूतर को दाहिनी ओर पूरा चक्कर लगाकर सुनिश्चित स्थान पर चौंच मारना सिखाना। इस प्रकार का वांछित व्यवहार कबूतर जब करेगा तभी उसे अनाज के दाने द्वारा पुनर्बलन दिया जायेगा, ऐसा सोचना भूल होगी इसकी अपेक्षा जैसे ही वह निश्चित स्थान के थोड़ा भी निकट आता दिखाई दे, दाहिनी और घूमने का प्रयत्न करे अथवा सही चोंच मारने की क्रिया के निकट हो, उसे अपने इस प्रकार के सभी प्रयत्नों और व्यवहारों के लिए क्रमशः पुनर्बलन प्राप्त होता रहना चाहिए ताकि वह पहली बार वांछित व्यवहार करने में सफल हो सकें चूहे को भी सही रास्ते का चुनाव करने, लीवर दबाने का प्रयास करने आदि संबंधित प्रथम वांछित व्यवहार करने के लिये धीरे-धीरे पुनर्बलन द्वारा सही मोड प्रदान किया जा सकता है एक वार जब इस प्रकार के वांछित व्यवहार की शुरूआत हो जाए तो इसकी पुनरावृत्ति पुनर्बलन के समुचित आयोजन द्वारा तब तक करते रहना चाहिए जब तक सीखने वाला अपेक्षित व्यवहार को ठीक प्रकार सीख कर उसमें कुशलता न अर्जत कर ले।

सक्रिय व्यवहार एवं पुनर्बलन (Operant Conditioning and Reinforcement)

पुनर्बलन सक्रिय व्यवहार को बल प्रदान करके वांछित व्यवहार के रूप में सीखने के कार्य में भरपूर सहायता देता है व्यवहार अथवा अनुक्रिया के घटने के पश्चात् उसे पुनर्बलन प्रदान करने से तात्पये कुछ इस प्रकार के आयोजन से है जिसके द्वारा उस प्रकार की अनुक्रिया अथवा व्यवहार के पुनः घटित होने की सम्भावना को बढ़ा दिया जाए। किसी भी प्राणी द्वारा की गई किसी अनुक्रिया अथवा व्यवहार को हम दो प्रकार से पुनबेलन कर सकते हैं। कुछ देकर जिसे पाना उसे अच्छा लगे अथवा उसके पास से कुछ हटा कर जिसका हटना उसे अच्छा लगे। पहले प्रकार के पुनर्बलन को धनात्मक पुनर्बलन (Positive Reinforce) कहते हैं जैसे भोजन, पानी, लैगिक संपर्क, धन-दौलत मान-सम्मान, प्रशंसा एवं सामाजिक स्वीकृति आदि की प्राप्ति । दूसरे प्रकार का पुनबेलन ऋणात्मक पुनर्वबलन (Negative Reinforce) कहलाता है। बिजली के आघात, डरावनी आवाज़, अपमान एवं डाट-फटकार आदि से बचना दूसरे पुनर्बलन के उदाहरण है।

सक्रिय अनुबंधन द्वारा प्राणी को वांछित व्यवहार सिखाने की दिशा में पुनर्बलन अपनी भूमिका अच्छी तरह तभी निभा सकता है जबकि उसे यथोचित रूप में दिया जा सके। उस दिशा में मुख्य रूप से निम्न चार प्रकार का पुनर्बलन आयोजन (Reinforcement Schedule) प्रयोग में लाया जाता है-

  1. सतत् पुनर्बलन आयोजन (Continuous reinforcement schedule)- यह शत-प्रतिशत पुनर्बलन आयोजन है जिसमें सीखने वाले की प्रत्येक सही अनुक्रिया या व्यवहार को पुनर्वलित (पुरस्कृत) किया जाता है।
  2. निश्चित अन्तराल पुनर्बलन आयोजन (Fixed interval reinforcement schedule)- इस आयोजन में सीखने वाले को एक निश्चित समय के पश्चात् पुनर्बलन दिया जाता है। जैसे किसी प्रयोग में चूहे को 3 मिनट के बाद भोजन का कुछ अंश प्रदान करना, किसी नौकर को एक सप्ताह के बाद वेतन देना आदि।
  3. निश्चित अनुपात पुनर्बलन आयोजन (Fixed ratio reinforcement schedule)- इस आयोजन में यह निश्चित करके पुनर्बलन प्रदान किया जाता है कि कितनी बार सही अनुक्रिया करने पर पुनर्बलन दिया जाए। उदाहरण के लिए कबूतर को 50 बार सही चोंच मारने पर एक दाना देना, पूछे जाने वाले प्रश्नों में प्रत्येक तीन के ठीक उत्तर देने पर पुरस्कार देना आदि।
  4. परिवर्तनशील पुनर्वबलन आयोजन (Variable reinforcement schedule)- कई बार पुनर्बलन प्रदान करने में निश्चित अंतराल और अनुक्रियाओं के निश्चित अनुपात को ध्यान में नहीं रखा जाता बल्कि उसे किसी भी समय कितनी भी अनुक्रियाओं के पश्चात् प्रदान कर दिया जाता है। इस प्रकार के पुनर्बलन आयोजन को परिवर्तनशील पुनर्बलन आयोजन का नाम दिया जाता है।

पुनर्बलन आयोजन के उपरोक्त प्रकारों की उपयुक्तता के बारे में अगर सोचा जाए तो सतत् या अविछिन्न

पुनर्बलन (Continuous Reinforcement) द्वारा जितनी शीघ्रता से व्यवहार को पुनर्वलित किया जाता है उतनी ही शीघ्रता से पुनर्वलित न करने पर व्यवहार के विलुप्तिकरण (Extinction) की सम्भावना बढ़ जाती है। सीखे हुए वांछित व्यवहार को कम से कम भूलने अथवा उसके विलुप्तिकरण की संभावना को कम करने की दिशा में परिवर्तनशील पुनर्बलन (Variable Reinforcement) आयोजन सबसे अधिक उपयुक्त रहता है। इस तरह से पुनर्बलन के आयोजन में शुरुआत शत-प्रतिशत पुनर्बलन द्वारा की जानी चाहिए। इसके पश्चात् निश्चित अन्तराल अथवा निश्चित अनुपात पुनर्बलन का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा अन्त में सीखे हुए वांछित व्यवहार को स्थायी रूप प्रदान करने की दिशा में परिवर्तनशील पुनर्वबलन का उपयोग किया जाना चाहिए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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