शिक्षाशास्त्र / Education

प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षण से तात्पर्य | निकष सन्दर्भित तथा प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षण में विभेद

प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षण से तात्पर्य | निकष सन्दर्भित तथा प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षण में विभेद | What is meant by model referenced test in Hindi | Difference between criterion referenced and paradigm referenced test in Hindi

प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षण से तात्पर्य

(Meaning of Norm-Referenced Testing NRT)

प्रतिमान किमी समूह, समुदाय, समाज अथवा जनसंख्या के आधार पर तैयार किये जाते हैं। इन प्रतिमानों को तैयार करने का स्पष्ट निष्कर्ष यही होता है कि उस समूह के व्यवहार के सन्दर्भ में किसी व्यक्ति, बालक के व्यवहार तथा अभिव्यक्तियों, कार्य स्थितियों का तुलनात्मक चित्र प्रस्तुत किया जा सके। उन्हें पहचाना जा सके, मूल्यांकन किया जा सके तथा उसकी प्राप्तांकों के आधार पर भावात्मक स्थिति का ज्ञात किया जा सके। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों में इनका यही प्राथमिक महत्त्व रहता है। किन्तु मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के अतिरिक्त इन्हें छात्रों के मूल्यांकन हेतु भी काफी लम्बे  समय में प्रयुक्त किया जाता रहा है जिसके आधार पर छात्र की कक्षा में विद्यालय के विभिन्न सेक्शनों में तथा सम्पूर्ण शहर में उसकी स्थिति को ज्ञात किया जाता है। अतः प्रतिमान एक ऐसा मानक है, जिसके सापेक्ष बालक द्वारा प्राप्त कौशलों, व्यवहारों का मूल्यांकन किया जाता है।

वास्तव में जब प्रतिमानों को विद्यालयी निष्पादन के सन्दर्भ में छात्रों को इस प्रकार मूल्यांकन मापन हेतु प्रयुक्त किया जाता है तो इसी सम्पूर्ण प्रत्यय को प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षण (Norm Referenced Testing- NRT) के नाम से जाना जाता है। यह छात्रों के निष्पादनों, उपलब्धियों को ज्ञात करने की एक परम्परागत विधि है।

प्रतिमान या मानक सन्दर्भित परीक्षण द्वारा हम कक्षा के किसी छात्र के निष्पादन स्तर (Performance Level) की तुलना कक्षा के अन्य छात्रों से कर सकते हैं। इसके आधार पर हम यह मालूम कर सकते हैं कि कक्षा का कोई छात्र किसी योग्यता के सन्दर्भ में किसी दूसरे छात्र से कितना आगे है या पोछ है, परन्तु इस परीक्षण द्वारा यह ज्ञात नहीं हो सकता है कि वह छात्र किसीक्ष’निर्धारित उपलब्ध स्तर’ के सापेक्ष कितना अर्जित कर लिया है।

मानक मन्दर्भित परीक्षण (Norm Referenced Test) का प्रयोग करने से यह कठिनाई उत्पन्न हो जाती है कि बिना किसी विषय सामग्री को पूर्ण जानकारी हुए हो छात्र को आगे के पाठ को पढ़ने के लिए दे दिया जाता है। ऐसी परिस्थिति में आवश्यक पूर्व ज्ञान (Entering Knowledge) के अभाव में छात्र को नए पाठ को सोखने में कठिनाई होती है और कभी-कभी वह नए पाठ को सीखने में असफल हो जाता है।

जब छात्रों को किसी कक्षा में प्रोन्नत एवं उत्तीर्ण करने हेतु प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षण का सहारा लिया जाता है। इसी आधार पर हमें छात्रों की अधिगम स्थिति का पता भी चल जाता है। प्रतिमान मन्दर्भित परीक्षणों को निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  1. प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षणों में छात्रों की अधिगम स्थिति का पता लगाने हेतु प्रतिमानों का सहारा लिया जाता है।
  2. प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षणों का सम्बन्ध छात्रों की समग्र अधिगम स्थिति में होता है, उसके किसी पक्ष अथवा वांछनीय परिवर्तन क्या होंगे, इनके बारे में कुछ भी पता नहीं लगाया जा सकता है।
  3. प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षणों में प्राप्त प्राप्तांक का मूल्य केवल प्रदत्त प्रतिमान के सन्दर्भ में आँका जा सकता है।
  4. प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षणों में व्यवहार के विभिन्न पक्षों, अनुदेशन उद्देश्यों आदि की कोई आवश्यकता नहीं होता है।
  5. प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षणों में छात्र के वांछनीय अधिगमित व्यवहार क्या होंगे, इस तथ्य के बारे में विचार नहीं किया जाता है।
  6. छात्रों के किसी अपेक्षित अधिगम स्तर की प्रत्याशा प्रकट नहीं की जाती है।
  7. छात्रा में वांछनीय मानक अथवा अधिगम उत्पाद किस रूप में प्राप्त होगा, इसकी वस्तु- स्थिति भी स्पष्ट बना रहता है ।
  8. प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षण मूल्यांकन की प्राचीन प्रचलित विधि का हो अनुसरण करते हैं।

निकष सन्दर्भित तथा प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षण में विभेद

(Differences between Criterion Referenced & Norm Referenced Testing)

कक्षा में शिक्षक दो प्रकार से शिक्षण कर सकता है जिसके आधार पर उसके परीक्षण करने की विधियों में भी विभेद स्थापित किये जा सकते हैं। ये दोनों प्रकार के शिक्षण हैं-

(1) निकष मन्दर्भित शिक्षण।

(2) प्रतिमान सन्दर्भित शिक्षण।

निकष सन्दर्भित परीक्षण

प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षण

1. छात्रों का एक छोटी यूनिट का शिक्षण देने के उसमें निहित उद्देश्यों को समग्र योग्यता को जानने हेतु परीक्षण किया जाता है।

1. छात्रों को प्रायः एक बड़े अध्याय को बाद पढ़ाने के बाद परीक्षण किया जाता है। जिसमें छात्र की नवीन प्रश्नों तथा स्थितियों के अनुसार परीक्षा लो जाती है।

2. जब पूर्व सामग्री पर सम्पूर्ण योग्यता हासिल कर ली जाती है तभी छात्रों को आगामी पाठ का शिक्षण दिया जाता है।

2. इससे छात्रों की अधिगम स्थिति का स्पष्ट ज्ञान नहीं हो पाता, अतः छात्रों का पूर्व ज्ञान के अभाव में भो नवीन पाठ को सीखने के लिए दे दिया जाता है।

3. यदि छात्र को पूर्व विषय-वस्तु का उचित ज्ञान नहीं हो पाता तो उसको उपचारात्मक शिक्षण प्रदान किया जाता है।

3. छात्रों को विषय-वस्तु के उचित ज्ञान का बिना पता लगाये सम्पूर्ण कक्षा के साथ आगामी पाठ का शिक्षण दे दिया जाता है।

4. छात्र का उपचारात्मक शिक्षण देने के उपरान्त उनका पुनः मूल्यांकन किया जाता है कि उसने अपने विषय-वस्तु के ज्ञान में कहा तक उन्नति कर ली हैं।

4. छात्रों को आगामी पाठ्य-वस्तु तथा नवीन सामग्री का शिक्षण दिया जाता है।

5. छात्रों को बार-बार उपचारात्मक शिक्षण उस समय तक प्रदान किया जाता है जब तक कि उसमें पूर्ण अधिगम की प्राप्ति नहीं कर लेते है।

5. नवीन विषय-वस्तु के सन्दर्भ में छात्रों को अंक प्रदान किये जाते हैं तथा मूल्यांकन पूर्ण कर लिया जाता है।

6. अन्त में पुन: एक बार छात्रों के व्यावहारिक उद्देश्यों का गहन मूल्यांकन किया जाता है।

6. छात्र पुनः आगामी अध्याय के शिक्षण की ओर बढ़ जाते हैं।

इस प्रकार उपर्युक्त दोनों उपागमों में जो मौलिक अन्तर हैं, उनकी स्पष्ट व्याख्या में एक तथ्य समझ में आता है कि जब निकष सन्दर्भित परीक्षण (CRT) को लक्ष्य बनाया जाता है तो शिक्षक का सम्बन्ध छात्रों के शत-प्रतिशत अधिगम से तथा अधिगम प्रोन्नति से होता है किन्तु दूसरी और प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षणों का उद्देश्य मात्र छात्रों की उपलब्धियों को मापने का होता है। संक्षेप में प्रतिमान सन्दर्भित परीक्षणों का सम्बन्ध किसी भी कसौटी से नहीं होता है, जबकि निकष सन्दर्भित परीक्षणों में प्रत्येक स्तर एवं व्यवहार का सम्बन्ध किसी न किसी कसौटी के सापेक्ष ही ज्ञात किया जाता है। यद्यपि यह एक स्ववर्गीकरण एवं कसौटी होती है किन्तु फिर भी वह मूल्यांकन की सत्यता. शुद्धता तथा व्यावहारिकता को ही लक्ष्य बनाती हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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