भूगोल / Geography

पर्यावरण जागरूकता के विकास में शिक्षा की भूमिका | पर्यावरण शिक्षा तथा जागरूकता में अन्तर

पर्यावरण जागरूकता के विकास में शिक्षा की भूमिका | पर्यावरण शिक्षा तथा जागरूकता में अन्तर

पर्यावरण जागरूकता के विकास में शिक्षा की भूमिका

(Role of Education in Developing Environmental Awareness)

विभिन्न पर्यावरण के अध्ययन विषयों में सेमीनार तथा सम्मेलन हुए हैं और राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण जागरूकता की आवश्यकता का अनुभव सभी ने किया है। परन्तु इससे समस्या का समाधान संभव नहीं है। इसलिए पर्यावरण शिक्षा की तत्काल आवश्यकता का अनुभव किया। इसमें सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों पक्षों को महत्व दिया जाता है। पर्यावरण जागरूकता के केवल सैद्धानि्तिक पक्ष पर बल दिया जाता है अर्थात् ज्ञानात्मक पक्ष तक ही सीमित रहता है। पर्यावरण शिक्षा के अन्तर्गत ज्ञानात्मक, क्रियात्मक तथा भावात्मक तीनों पक्षों के विकास को समान महत्व दिया जाता है। प्रभावी विकास हेतु लगन, अभिवृत्ति तथा मूल्यों का विशेष महत्व होता है।

पर्यावरण शिक्षा की व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षक छात्रों को पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान तथा जानकारी ही नहीं देता है अपितु अधिगम हेतु परिस्थितियां भी उत्पन्न करता है जिससे उनमें कौशल, बोध, अभिवृत्तियों तथा मूल्यों का विकास किया जा सके। कक्षा-शिक्षण की व्यवस्था को भी बदलना होगा, जिससे छात्रों की सामूहिक क्रियाओं को अवसर दिया जा सके और छात्रों को सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। शिक्षक को कक्षा की सामूहिक क्रियाओं का पर्यवेक्षण करना होगा तथा निर्देशन प्रदान करना होगा। शिक्षकों को छात्रों में धनात्मक विकास को महत्व देना होगा केवल पुस्तकीय ज्ञान पर्याप्त नहीं होगा।

शिक्षकों को कक्षा तथा विद्यालय से बाहर के पर्यावरण का भी अनुभव प्रदान करना होगा, क्योंकि विभिन्न स्थानों में अन्तर अधिक होता है। इसलिए शिक्षकों को छात्रों को विविध प्रकार के पर्यावरण सम्बन्धी जानकारी, कौशल अभिवृत्ति तथा मूल्यों का विकास करना होगा। जिससे छात्रों को पर्यावरण सम्बन्धी ठोस अनुभव प्रदान किये जा सकेंगे। शिक्षक को इन क्रियाओं की व्यवस्था हेतु पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए। छात्रों को पौधे लगाने तथा अन्य पर्यावरण सम्बन्धी कार्यों के लिए अवसर प्रदान करने होंगे। छात्रों को इस प्रकार फिल्म भी दिखलानी चाहिए। शैक्षिक पर्यटनों की व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे प्राकृतिक स्रोतों को देखने तथा समझने का अवसर मिल सके। जिससे छात्र इस प्रकार के कार्यक्रमों को दूरदर्शन पर देखकर नयी जानकारी प्राप्त कर सकें। समाचार पत्रों को भी पढ़ें, रेडियो के कार्यक्रमों को सुनें। पर्यावरण सम्बन्धी, चार्ट, मॉडल तथा शिक्षण सहायता सामग्री को भी कक्षा में दिखाना चाहिए । जिससे छात्रों को पर्यावरण सम्बन्धी संपूर्ण जानकरी प्रदान की जा सके। पर्यावरण प्रदूषण के कारणों का भी बोध हो सके जिसे वे अपने कार्यों में सावधानी रख सकें।

पर्यावरण शिक्षा तथा पर्यावरण जागरूकता में अन्तर (Difference Between Environmental Education & Environmental Awareness)

पर्यावरण शिक्षा के द्वारा पर्यावरण जागरूकता की जानकारी का विकास किया जाता है। पर्यावरण जागरूकता, पर्यावरण शिक्षा का महत्वपूर्ण पक्ष है। इनमें अधोलिखित ढंग से अन्तर कर सकते हैं-

  1. पर्यावरण शिक्षा का मुख्य कार्य उत्पादकता है जिनसे जीवन का विकास होता है। तथा गुणवत्ता लाई जाती है जबकि पर्यावरण जागरूकता में भौतिक तथा जैविक पक्षों की जानकारी तथा पारस्परिक निर्भरता का बोध होता है।
  2. पर्यावरण जागरूकता में प्राकृतिक, भौतिक तथा जैविक पर्यावरण तथा मानव सामग्री एवं क्रियाओं की जानकारी विशेष स्थान तथा समय के संदर्भ में दी जाती है। प्राकृतिक स्रोतों के उपयोग के ढंग का बोध होता है जबकि पर्यावरण शिक्षा में भौतिक, जैविक, सांस्कृतिक तथा मनोवैज्ञानिक पर्यावरण तथा मनुष्य द्वारा निर्मित वातावरण को सम्मिलित करते हैं। पर्यावरण में सुधार हेतु विधियाँ, प्रविधियाँ तथा आयामों की खोज की जाती है जिनके उपयोग में मनुष्य में गुणवत्ता लाई जाए सम्पूर्ण समुदाय का विकास किया जाए।
  3. पर्यावरण शिक्षा में सांस्कृतिक तथा मनोवैज्ञानिक पर्यावरण का विशेष महत्व होता है। जबकि पर्यावरण जागरूकता में भौतिक तथा जैविक पर्यावरण को प्राथमिकता दी जाती है। पर्यावरण शिक्षा में विद्यालय व्यवस्था तथा स्वास्थ्य की भूमिका अहम होती है तथा कक्षा का वातावरण उसका क्रियात्मक पक्ष होता है। पर्यावरण जागरूकता में परिस्थिति विज्ञान को ही महत्व दिया जाता है।
  4. पर्यावरण शिक्षा में समुचित वातावरण उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं। जिससे बालकों तथा व्यक्तियों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाया जाता है। इसमें वातावरण का सम्पादन शिक्षक द्वारा किया जाता है और पर्यावरण जागरूकता में उसका ज्ञान प्रदान किया जाता है। यह सैद्धान्तिक पक्ष तक ही सीमित रहती है।
  5. पर्यावरण शिक्षा में सभी स्तरों पर कार्य करने तथा परिस्थितियों व वातावरण उत्पन्न करने हेतु अवसर प्रदान करती है जिससे समस्याओं का समाधान किया जाता है। पर्यावरण जागरूकता में समस्याओं तथा उनके समाधान की जानकारी ही दी जाती है व्यवहारिक कार्य नहीं किया जाता है।
  6. पर्यावरण शिक्षा का सम्बन्ध ज्ञानात्मक, क्रियात्मक तथा भावात्मक पक्षों के विकास से होता है जबकि पर्यावरण जागरूकता ज्ञानात्मक पक्ष के विकास तक ही सीमित रहती है। इस प्रकार जागरूकतां पर्यावरण शिक्षा का ही महत्वपूर्ण पक्ष है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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