भूगोल / Geography

शहरीय परिवहन | यातायात में व्यवधान सिद्धांत | परिवहन की समस्याएं एवं समाधान 

शहरीय परिवहन | यातायात में व्यवधान सिद्धांत | परिवहन की समस्याएं एवं समाधान 

शहरीय परिवहन

यातायात साधनों द्वारा नगरों के विकास तथा स्थापना दोनों पर प्रभाव पड़ता है। सबसे पहले जल यातायात फिर क्रमिक रूप से रेल व सड़क मार्गों का विकास हुआ है। यातायात साधन प्रारंभ से ही विकास तथा स्थापना पर प्रभाव डालते हैं। निम्नलिखित कुछ यातायात के साधन हैं जिनके द्वारा हमें यह ज्ञात होता है कि शहरीय परिवहन द्वारा शहरीय विकास किस प्रकार से सहायक होते हैं।

जल यातायात का प्रभाव – सबसे पहले परिवहन साधनों में जल परिवहन आया जिसने कि नगरीय विकास पर एक विशेष प्रभाव डाला। जल परिवहन के समय नगरों का विकास जल मार्गो के किनारे ही विकसित होता गया। मुख्यतः इन मार्गों का प्रयोग प्रायः व्यापार के लिए किया जाता था। 19वीं शताब्दी के मध्य तक लगभग सभी प्रमुख नगर प्राकृतिक जल मार्गो के किनारे या समीप स्थित थे। उदाहरण स्वरूप नील नदी की घाटी में एफ्रोडिटोपोलिस तथा थेवेस, मोहन जोदड़ो सिंधु घाटी के किनारे तथा हड़प्पा रावी नदी के किनारे स्थित था।

वैदिक काल में यदि हम कुछ उदाहरण ले तो जैसे कि अयोध्या सरयू नदी के किनारे, काशी गंगा नदी के किनारे, मथुरा यमुना नदी के किनारे स्थापित हो गए हैं, समुद्र तटीय स्थित नगर समुद्र मार्ग द्वारा जुड़े होते हैं। जैसे पुराने समय में ग्रीक तथा यूनानी सभ्यता समुद्र के किनारे मिलते हैं। वर्तमान में उदाहरण में हम कालीकट, मुंबई, सिंगापुर, हांगकांग, टोक्यो सभी प्रसिद्ध बंदरगाह है।

रेल यातायात का प्रभाव – 19वीं शताब्दी के मध्य से 1890 तक इसका बहुत तेजी से विकास हुआ। रेल मार्ग द्वारा उन क्षेत्रों का विकास हुआ जहां पर जलमार्ग का पहुंच पाना संभव नहीं था। रेलमार्ग जल से तीव्र थे जिस कारण इनका प्रचलन तेजी से बड़ा तथा नगरों की स्थापना इनके आस पास होने लगी। रेल मार्गों के आने से नगरों की स्थापना तथा विकास दोनों में तेजी से वृद्धि होने लगी। इस प्रकार के नगर हैं जैसे दिल्ली, मुंबई, गाजियाबाद, इत्यादि।

सड़क यातायात साधन का प्रभाव – यह परिवहन का साधन बीसवीं शताब्दी में प्रकाश में आया। यह रेल मार्गों के सहायता सहायक के रूप में विकसित किए गए थे। सड़कों के आने से दैनिक कार्यों में सुविधा उत्पन्न हुई। दो प्रमुख सड़क मार्गों के मिलन स्थान पर नगरों का विकास होने लगा। इस प्रकार के नगर फरीदाबाद, मेरठ, नोएडा, दिल्ली इत्यादि हैं।

वायु यातायात का प्रभाव – अंतरराष्ट्रीय परिवहन में सुविधा हुई। इस तरह के नगर जिनका विकास अंतरराष्ट्रीय मार्गों द्वारा हुआ है जैसे लंदन, शिकागो, बैंकऑफ, टोक्यो आदि।

यातायात में व्यवधान सिद्धांत

चार्ल्स हार्टन कूले ने 1930 में एक सिद्धांत दिया जो कि समाजशास्त्रीय सिद्धांत है और सामाजिक शोध में प्रकाशित हुआ था। इस सिद्धांत में बताया गया है कि यातायात में व्यवधान पैदा हो जाता है तथा वहां पर जनसंख्या तथा आर्थिक कार्य एकत्र होने शुरू हो जाते हैं। यहां व्यवधान का अर्थ है किसी प्रकार का अवरोध होना या एक प्रकार की यातायात साधन के समाप्त होने पर दूसरे का प्रारंभ हो जाना। जैसे कि रेल मार्ग समाप्त होकर सड़क मार्ग का प्रारंभ हो जाना। या जलमार्ग का समाप्त हो कर रेल मार्ग का प्रारंभ हो जाना। उदाहरण स्वरूप देहरादून में रेल मार्ग समाप्त होकर मसूरी के लिए सड़क से जाना।

यह स्थानांतरण कई प्रकार का है जैसे –

  1. भौतिक स्थानांतरण – इस प्रकार के स्थानांतरण के अंदर हम पृथ्वी की भौगोलिक स्थिति के अनुसार यातायात में रूपांतरण प्राप्त करते हैं जैसे कि यदि कहीं पर मैदानी इलाका है यह समुद्री जलमार्ग है या नदी है या और किसी प्रकार के मार्ग की सुविधा है तो हम इस तरह के मार्गों में आने वाले व्यवधान के कारण किसी और प्रकार के परिवहन की सुविधा लेते हैं इस प्रकार की सुविधा भौतिक स्थानांतरण के अंतर्गत आती है। उदाहरण समुद्री मार्ग द्वारा लाया गया माल फिर रेल मार्ग की सहायता से कहीं और पहुंचाना है जैसे कि मुंबई में आगे माल को रेल या सड़क मार्ग द्वारा आगे बढ़ाया जाता है।
  2. यांत्रिक स्थानांतरण – यहां पर किसी भी एक प्रकार के साधन द्वारा परिवहन नहीं होता बल्कि इसमें परिवहन साधन समय अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं जैसे कभी हमें जलमार्ग के परिवहन साधनों की आवश्यकता पड़ती है तो कभी हमें भू मार्ग परिवहन साधनों की आवश्यकता पड़ती है उदाहरण स्वरूप देश के विभिन्न भागों में अनाज को विभिन्न साधनों से लाकर गोदामों में पहुंचाया जाता है।
  3. व्यापारिक स्थानांतरण – यहां पर साधनों में परिवर्तन आवश्यक नहीं है परंतु जैसा कि किसी माल का स्थानांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता है इसमें स्वामित्व में परिवर्तन हो जाता है यदि हम कोई एक सामान एक स्थान से परिवहन द्वारा किसी और स्थान पर स्थानांतरित कर रहे हैं तब उसका स्वामित्व किसी और के पास है अर्थात जब वह किसी और स्थान पर पहुंचता है और उसका स्वामित्व किसी और को मिल जाता है तो इस प्रकार के परिवहन को हम व्यापारिक स्थानांतरण कहते हैं।
  4. भौतिक एवं व्यापारिक स्थानांतरण – यहां पर साधन तथा स्वामित्व दोनों में परिवर्तन होता है। इस बात को हम कुछ इस प्रकार से समझ सकते हैं कि यदि कोई एक प्रकार की वस्तु किसी एक देश से हमारे किसी दूसरे देश मंगाई जा रही है और वह सर्वप्रथम जलमार्ग द्वारा जल साधन से आ रही है तथा उस सामान को किसी और देश में स्थानांतरित करने के लिए जल मार के साधन से हटाकर भौतिक साधन में परिवहन द्वारा उसको पहुंचाता है तथा उसका स्वामित्व में परिवर्तन हो जाता है, वह माल उस देश का हो जाता है इस तरह के परिवर्तन को हम भौतिक एवं व्यापारिक स्थानांतरण परिवर्तन में शामिल करते हैं।

यातायात व्यवधान जो नगरीय विकास में सहायक हैं-

  1. थल व जल यातायात मार्ग के बीच का व्यवधान – न्यूयॉर्क, लंदन, मुंबई, कोलकाता जैसे शहर जो जल मार्ग पर स्थित है उन स्थानों पर जल मार्ग का व्यवधान उत्पन्न हो जाता है जिस कारण व्यापार नगर का विकास होता है।
  2. धरातलीय दशा, यातायात साधन के रूप में – पर्वत व मैदान के मिलन स्थानों पर ऐसा देखने को मिलता है। वहां रेल मार्ग समाप्त होकर सड़क मार्ग शुरू हो जाते हैं। भारत में देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, काठगोदाम इसी प्रकार के नगर है।
  3. किसी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के कारण यातायात में व्यवधान – खनिज क्षेत्र या वन प्रदेश की उपजे इत्यादि भी नगर तथा यातायात दोनों के विकास में प्रभाव डालती हैं। उदाहरण स्वरूप खनिज पदार्थ या वन उपजे ऐसे स्थानों पर एकत्र करते हैं जहां पर बड़े-बड़े यातायात मार्ग प्रारंभ होते हैं। जैसे शिवालिक पहाड़ी का भाग वन प्रदेशों की उपजों के लिए यातायात का विकास।
  4. यातायात व्यवधान बनाने में राजनीतिक बातों का प्रभाव – देश की सीमाओं पर कर इत्यादि तथा साधन परिवर्तन के कारण भी यातायात द्वारा नगर के विकास पर प्रभाव पड़ता है।

परिवहन की समस्याएं एवं समाधान-

परिवहन मार्गों की कमी – नगर विकास के कारण परिवहन मार्गों के विस्तार में उसी अनुपात में प्रगति नहीं हो पा रही है। इसका प्रमुख कारण इनका निर्माण मरम्मत और रख रखाव में भारी खर्च का होना है।

  • परिवहन मार्गों के बढ़ने बढ़ाने हेतु नए-नए योजनाओं को निर्मित करना चाहिए तथा उनका रखरखाव व्यवस्थित तरीके से होना चाहिए।

परिवहन मार्ग की अनुपयुक्तता – मार्गो की लंबाई में वृद्धि के साथ-साथ उनकी परिवहन शीलता में वृद्धि और उनके विकास तथा रखरखाव में प्रयास आवश्यक है।

  • इन मार्गों का निर्माण वर्तमान आवश्यकता के अनुसार होता है जिससे कि यह भविष्य में समस्या का कारण बनते हैं, इसलिए नगर के भावी विकास को ध्यान में रखकर इसका निर्माण किया जाना चाहिए। नहीं तो दुर्घटनाएं इत्यादि अधिक होती हैं।

परिवहन साधनों की अपर्याप्तता – जनसंख्या के बढ़ने के कारण साधनों में अपर्याप्तता होती जा रही है। माल परिवहन उपभोग के वस्तुओं की उचित समय पर वितरण आवश्यक है जो कि माल परिवहन की कमी के कारण ही अव्यवस्था के कारण समय पर माल न पहुंचने से माल के कारण आपूर्ति बाधित हो जाती है जिससे कि सामानों की कीमतें बढ़ जाती हैं।

  • माल आपूर्ति की वाहनों में वृद्धि तथा उनकी गुणवत्ता में वृद्धि की जानी चाहिए जिससे कि माल आपूर्ति समय पर हो सके।

मार्ग अवरोध एवं गति अवरोध – बड़े बड़े नगरों में सक्रिय पुलों, रेल क्रॉसिंग, पतली सड़कों, अधिक व्यावसायिक क्रियाओं आदि के कारण परिवहन मार्ग में अवरोध उत्पन्न हो जाता है। जिससे समय एवं ईंधन के अपव्यय के साथ-साथ प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है।

  • मार्गों का चौडीकरण तथा नए मार्गों का निर्माण कराया जाना चाहिए।

परिवहन दुर्घटनाएं – परिवहन मार्गो पर भीड़ बढ़ रही है, वाहनों की गति में तेजी आ रही है और दुर्घटनाओं की संख्या में वृद्धि हो रही है।

  • यातायात नियमों का ज्ञान सभी को होना चाहिए जिससे सड़क दुर्घटना की दर कम हो सके।

यात्री किराया और माल भाड़ा का अधिक होना – यात्री किराया और आवश्यक वस्तुओं को पहुंचाने का माल भाड़ा काफी अधिक होता है नगर के भीतर जाने का माल भाड़ा भी काफी अधिक होता है।

  • बड़े साधनों का प्रयोग छोटे साधनों की जगह किया जाना चाहिए जिससे भाड़ा कम हो जाएगा। तथा सार्वजनिक यातायात साधनों में वृद्धि की जानी चाहिए।

प्रदूषण – यातायात के कारण बहुत तेजी से प्रदूषण वृद्धि होती है।

  • प्रदूषण से बचाव हेतु धोने वाली गाड़ी को नहीं चलाना चाहिए पूर्णविराम साथ ही साथ साइकिल का प्रयोग कम दूरी के लिए किया जाना चाहिए सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना चाहिए तथा वृक्षों को किसी और जगह स्थापित करना चाहिए या किसी और स्थान पर पौधा लगाना चाहिए।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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