अर्थशास्त्र / Economics

सीमान्त प्रतिस्थापन दर | सीमान्त प्रतिस्थापन दर का अर्थ एवं परिभाषाएँ | घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन दर का सिद्धान्त | घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन दर का सिद्धान्त तथा उपयोगिता ह्रास नियम

सीमान्त प्रतिस्थापन दर

सीमान्त प्रतिस्थापन दर | सीमान्त प्रतिस्थापन दर का अर्थ एवं परिभाषाएँ | घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन दर का सिद्धान्त | घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन दर का सिद्धान्त तथा उपयोगिता ह्रास नियम

सीमान्त प्रतिस्थापन दर का अर्थ एवं परिभाषाएँ

(Meaning and Definitions of Marginal Rate of Substitution)

सीमान्त प्रतिस्थापन दर उदासीनता वक्र विश्लेषण का महत्त्वपूर्ण आधार है। प्रो० मार्शल के माँग विश्लेषण में जो स्थान सीमान्त उपयोगिता का है, उपभोक्ता व्यवहार के उदासीनता वक्र विश्लेषण में वही स्थान सीमान्त प्रतिस्थापन दर का है।

सरल शब्दों में, सीमान्त प्रतिस्थापन दर से आशय उस दर से है जिस पर कोई व्यक्ति एक वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों का दूसरी वस्तु से विनिमय करता है। इसकी प्रमुख परिभाषाएँ निम्नांकित हैं-

(1) हिक्स के अनुसार, “हम Y के लिए X की सीमान्त प्रतिस्थापन दर Y की उस मात्रा को कहते हैं जो उपभोक्ता को x की सीमान्त इकाई न मिलने से होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति कर सके।

(2) मेयर्स के अनुसार, “X की Y के लिए सीमान्त प्रतिस्थापन दर Y की वे इकाइयाँ होंगी जिनके लिए X की इकाई स्थानापन्न है।”

(3) लैफ्टविच के शब्दों में, “X की Y के लिए स्थानापन्नता की सीमान्त दर (MRSXY) वस्तु X की वह मात्रा है जिसका X की हर अतिरिक्त इकाई को प्राप्त करने के लिए त्याग किया जायेगा।”

संक्षेप में, “जिस दर पर कोई व्यक्ति एक वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों को दूसरी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों के साथ बदलने के लिए तैयार हो जाता है, उस दर को सीमांत प्रतिस्थापन दर कहते हैं।” इसकी एक आवश्यक शर्त यह है कि X का Y या Y का X के साथ स्थानापन्न करते समय उपभोक्ता के संतुष्टि स्तर में कोई अंतर नहीं आना चाहिए।

उदासीनता वक्र का ढाल तथा सीमांत प्रतिस्थापन दरदो वस्तुओं के बीच पाई जाने वाली सीमांत प्रतिस्थापन दर का अनुमान उदासीनता वक्र के डाल द्वारा भी लगाया जा सकता है। उदासीनता वक्र के किसी बिंदु विशेष पर उसका ढाल उस दर को बताता है जिस पर उपभोक्ता अपनी एक वस्तु को दूसरी वस्तु के साथ बदलने को तैयार रहता है।

घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन दर का सिद्धान्त

(The Principle of Diminishing Marginal Rate of Substitution)

सीमांत प्रतिस्थापन घर के संबंध में तीन संभावनाएं हो सकती हैं- यह घट सकती है ,बढ़ सकती है अपना स्थिर रह सकती है। सामान्यतः किन्हीं दो वस्तुओं से सम्बन्धित सीमान्त प्रतिस्थापन दर घटती हुई होती है। न उपभोत्ता X वस्तु की अधिक इकाईयों का प्रयोग करता है तो Y वस्तु की इकाईयों की संख्या, जो कि वह X वस्तु की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए परित्याग करने को तैयार है, में कमी होती चली जाती है। इसे ही ‘घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन दर का सिद्धान्त’ कहते हैं। हिक्स ने इस सिद्धान्त को इस प्रकार समझाया है- “माना कि हम दो वस्तुओं की एक दी हुई मात्रा से प्रारम्भ करते हैं और X की मात्रा में वृद्धि और Y की मात्रा में कमी इस प्रकार से करते जाते है कि उपभोक्ता की स्थिति न तो पहले से अच्छी ही होती है और न बुरी ही, तब Y की मात्रा जो कि X की दूसरी अतिरिक्त इकाई की प्रतिक्रिया में घटायी जाती है, वह Y की उस मात्रा से कम होगी जो कि X की पहली अतिरिक्त इकाई की प्रतिक्रिया में घटायी जाती है। अन्य शब्दों में, जितना ही अधिक X.Y के लिए प्रतिस्थापित की जाती है, उतनी ही X की Y के लिए सीमान्त प्रतिस्थापन दर कम होती जायेगी।”

सिद्धान्त के अपवाद-

(1) पूर्ण स्थानापन्न वस्तुएँ- यदि दोनों वस्तुएँ पूर्ण स्थानापन्न हैं तो उनके बीच सीमान्त प्रतिस्थापन दर स्थिर रहेगी, घटेगी नहीं। ऐसी स्थिति में तटस्थता वक्र X-अक्ष के साथ 45° का कोण बनाती हुई एक रेखा होगी।

(2) पूर्ण पूरक वस्तुएँ- यदि दोनों वस्तुएँ पूर्णतया पूरक हैं तो वे हमेशा एक निश्चित अनुपात में ही मांगी जायेंगी। उनके बीच सीमान्त प्रतिस्थापन की दर घटती हुई न होकर शून्य होगी। पूर्णतया पूरक वस्तुओं के तटस्थता वक्र L आकृति के होते हैं।

घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन दर का सिद्धान्त तथा उपयोगिता ह्रास नियम

कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन दर का सिद्धान्त सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम का रूपान्तरण मात्र है, क्योंकि-

(1) इस सिद्धान्त में एक वस्तु से दूसरी वस्तु का प्रतिस्थापन सीमान्त उपयोगिता के आधार पर होता है।

(2) सीमान्त प्रतिस्थापन दर भी सीमान्त उपयोगिता की भाँति ही घटती जाती है।

प्रो. हिक्स के अनुसार, ‘घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन का सिद्धान्त’ ‘घटती हुई उपयोगिता के नियम’ का केवल रूपान्तरण मात्र नहीं है, क्योंकि-

(1) घटती हुई उपयोगिता का नियम उपयोगिता के परिमाणात्मक मापन पर आधारित है जबकि ‘घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन दर के नियम’ के लिए उपयोगिता को मापने की आवश्यकता नहीं है।

(2) उपयोगिता हास नियम द्रव्य की सीमित उपयोगिता को स्थिर मान लेता है जबकि घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन दर का नियम ऐसा नहीं मानता।

(3) उपयोगिता हास नियम केवल एक वस्तु का अध्ययन करता है। यह सम्बन्धित वस्तुओं के प्रभाव पर ध्यान नहीं देता । परन्तु घटती हुई प्रतिस्थापन दर का नियम दो सम्बन्धित वस्तुओं का अध्ययन करता है।

(4) सीमान्त उपयोगिता के विना परिमाणात्मक मापन के ही प्रो० हिक्स दो वस्तुओं की सीमान्त उपयोगिताओं के अनुपात को एक निश्चित अर्थ प्रदान करते हैं।

प्रो. हिक्स के शब्दों में, “सीमान्त उपयोगिता हास नियम का ह्रासमान सीमान्त प्रतिस्थापन दर के सिद्धान्त द्वारा प्रतिस्थापन केवल अनुवाद मात्र नहीं कहा जा सकता । वास्तव में यह उपभोक्ता मांग के सिद्धान्त में एक वास्तविक परिवर्तन है।”

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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