अर्थशास्त्र / Economics

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 | राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन | राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के उद्देश्य

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 | राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन | राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के उद्देश्य | National Food Security Act 2013 in Hindi | National Food Security Mission in Hindi | Objectives of National Food Security Mission in Hindi

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013

यद्यपि भारत 1970 के दशक से ही खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं। किंतु आज भी देश का एक बड़ा हिस्सा खाद्यान्न की पर्याप्त पहुंच से दूर हैं। स्वतंत्रता के 7 दशकों बाद भी भूख से दम तोड़ने वालों की खबरों से समाचार पत्र भरे पड़े हैं। भारत मानव अधिकारों पर सार्वभौम घोषणा (1948) का हस्ताक्षरकर्ता देश हैं तथा आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों (1966) के अंतरराष्ट्रीय करारों-जो लोगों के लिए पर्याप्त भोजन के अधिकार को स्वीकार करता हैं, से जुड़ा हुआ हैं। भारत के संविधान के भाग-4 में नीति निर्देशक तत्वोंके अंतर्गत अनुच्छेद 47 में यह बात सन्निहित हैं कि राज्य का यह कर्तव्य हैं कि वह लोगों के पोषण तथा जीवन स्तर को ऊँचा करने एवं लोक स्वास्थ्य में सुधार को सुनिश्चित करे। इन्हीं सामाजिक आर्थिक उद्देश्यों से प्रेरित होकर सरकार द्वारा 10 सितंबर, 2013 के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 अधिसूचित किया गया, जो देश की लगभग दो-तिहाई आबादी को भोजन का कानूनी अधिकार प्रदान करता हैं। इसी के साथ भारत भोजन की गारंटी देने वाला विश्व का प्रथम देश भी बन गया।

परिभाषा

विश्व विकास रिपोर्ट (World development report, 1986) ने खाद्य सुरक्षा को “सभी व्यक्तियों के लिए सभी समय पर एक सक्रिय तथा स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त भोजन की उपलब्धता” के रूप में परिभाषित किया हैं। वहीं खाद्य एवं कृषि संगठन (FAQ) के अनुसार,

“सभी व्यक्तियों को हर समय आवश्यक भोजन तक भौतिक तथा आर्थिक पहुंच को सनिश्चित करना ही खाद्य सुरक्षा हैं।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से खाद्य सुरक्षा के तीन आवश्यक तत्व उभर कर आते हैं-

(i) खाद्यान्नों की अल्पकाल एवं दीर्घकाल में भौतिक उपलब्धता।

(ii) खाद्यान्न हेतु पर्याप्त क्रय शक्ति (आर्थिक पहुंच) ।

(iii) गुणक्तापरक तथा पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न उपलब्धता।

नवम्बर 2016 में केरल व तमिलनाडु द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) को लागू कर दिये जाने के साथ ही यह अधिनियम देश के सभी राज्यों व संघ शासित क्षेत्रों में लागू हो गया। वर्तमान में इस अधिनियम में तहत कुल 81.34 करोड़ लोग आच्छादित हैं। उत्तर प्रदेश में ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013′ प्रथम चरण में जनवरी, 2016 से 28 जिलों में लागू किया गया था तथा द्वितीय चरण में मार्च, 2016 से इसे राज्य के शेष 47 जिलों में लागू किया गया।

गर्भवती महिलाएं गर्भावस्था के दौरान और बचे को जन्म देने के पश्चचात् 6 माह स्तनपान कराने तक, कम से कम 6000 रुपए का मातृत्व लाभ प्राप्त करने की भी हकदार होगी।

निर्धारित पोषाहार मानकों के अनुसार, 14 वर्ष तक की आयु के बच्चे पौष्टिक आहार अथवा राशन घर ले लाने के हकदार होंगे। अधिकृत खाद्यान्न अथवा आहार की आपूर्ति न हो पाने की स्थिति में लाभार्थी खाद्य सुरक्षा भत्ता प्राप्त करेंगे।

इस अधिनियम में जिला और राज्य स्तरों पर शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना किए जाने के लिए भी प्रावधान हैं।

इस अधिनियम में TPDS में सुधार के उपाय भी दिए गए हैं जो केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा किए जाएंगे। इन सुधारों में, अन्य बातो के साथ-साथ, खाद्यान्नों TPDS को दुकानों तक पहुंचाया जाना, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उपकरणों के प्रयोग और विगत कुछ समय में TPDS के तहत वितरित वस्तुओं का विविधिकरण शामिल हैं।

इस अधिनियम के प्रवानों के आधार पर TPDS और अन्य स्कीमों के लिए खाद्यान्नों की आवश्कता 614.3 लाख टन आंकी गई हैं। ध्यातव्य हैं कि वर्ष 2017-18 के दौरान, भारत सरकार ने राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों/अन्य कल्याणकारी योजनाओं इत्यादि हेतु कुल 606.43 लाख टन खाद्य अनाज आवंटित किए थे। जिसमें एन0एफ0एस0ए0 के अन्तर्गत 552.86 लाख टन, त्यौहार व आपदा हेतु 4.48 लाख टन एवं अन्य कल्याणकारी योजना हेतु 49.09 लाख टन था।

वर्ष 2014-15 में देश में कुल खाद्यान्य गेहूं और चावल की वार्षिक अधिप्राप्ति 60.2 लाख टन रही हैं।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन

राष्ट्रीय विकास परिषद ने 29 मई, 2007 को आयोजित 53वीं बैठक में खाद्य सुरक्षा मिशन शुरू करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission NFSM) अक्टूबर, 2007 में प्रारंभ किया गया। खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक (वर्ष 2011-12) चावल के उत्पादन में 10 मिलियन टन, गेहूं के उत्पादन 8 मिलिटन टन तथा दाल के उत्पादन 2 मिलियन टन की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था। इस मिशन को 12वीं पंचवर्षीय योजना में भी जारी रखा गया तथा इस योजना हेतु कुल खाद्यान्न उत्पादन में 25 मिलियन टन (10 मिलियन टन चावल, 8 मिलियन टन गेहूं, 4 मिलियन टन दाल तथा 3 मिलियन टन मोटे अनाज) की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था। 12वीं पंचवर्षीय योजना के बाद भी इसे जारी रखा गया हैं तथा वर्ष 2018-19 के लिए प्रस्तुत बजट में इस मिशन हेतु 1500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के उद्देश्य

(i) राष्ट्र में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु गेहूँ, चावल और दालों के उत्पादन को बढ़ाना।

(ii) देश के चिह्नित जिलों में कृषि भूमि विस्तार और उत्पादकता संवर्धन के द्वारा धारणीय विधि से चावल, गेहूँ, दाल और मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाना।

(iii) निजी फार्म स्तर पर भूमि की उर्वरता और उत्पादता का संवर्धन करना ।

(iv) किसानों के आत्मविश्वास में वृद्धि हेतु खेत स्तर पर लाभ को बढ़ाना।

योजना का संघटक

शुरूआत में इसके तहत तीन संघटक थे, किंतु वर्तमान में इस मिशन में 5 संघटक शामिल हैं-

(i) रा.खा.सु.मि. – चावल,

(ii) रा.खा.सु.मि.गेहूं,

(iii) रा.खा.सु.मि.– दालें,

(iv) रा.खा.सु.मि.मोटे अनाज तथा

(v) रा.खा.सु.मि. वाणिज्यिक फसलें ढांचा

इसके क्रियान्वयन का ढांचा त्रि-स्तरीय हैं- राष्ट्रीय राज्य और जिला स्तर राष्ट्रीय स्तर पर केंन्द्रीय कृषि मंत्री की अध्यक्षता में गठित सामान्य परिषद इस मिशन का नीति निर्माणकारी घटक हैं, तो इस मिशन को दिशा-निर्देश एवं मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। यह योजना से हुई प्रगति एवं विकास की समीक्षा भी करती है। इसकी बैठक वर्ष में कम-से-कम दो बार होती हैं। राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य खाद्य सुरक्षा मिशन कार्यकारी समिति का प्रावधान हैं। जिला स्तर पर योजना का कार्यान्वयन कृषि तकनीकी प्रबंधन एजेंसी (ATMA) द्वारा किया जाता हैं।

अनुदान

NFSM केंद्र प्रायोजित मिशन हैं।

इस मिशन के कार्यक्रमों को लागू करने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन कार्यकारी समिति (NFSMEC) की स्वीकृति से राज्य सरकारों को अनुदान दिए जाते हैं।

विश्लेषण

भारत में खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के लक्ष्य के साथ शुरू हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के घटकों में अब वाणिज्यिक फसलों को भी जोड़ दिया गया हैं। इसके अतिरिक्त मोटे अनाज जो पोषण एवं आर्थिक दोनों ही दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण हैं, के उत्पादन में वृद्धि का लक्ष्य एक सराहनीय कदम हैं। यह मिशन इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हेतु बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाया गया है। इस दृष्टिकोण के तहत फसल उत्पादन आधारित प्रदर्शन, बीच वितरण, मशीनों की सुलभ उपलब्धता, पौधों के संरक्षण, मृदा में सुधार तथा सूक्ष्म पोषकों के भरण का कार्य किया जा रहा हैं। इस मिशने के तहत क्षेत्रीय पहलों के माध्यम से कार्यक्रमों का संचालन हो रहा हैं, जो विविधतापूर्ण भारतीय परिस्थितियों में एक कारगर रणनीति हैं। परंतु कुछ मोर्चों पर यथां तिलहन उत्पादन तथा खाद्य प्रसंस्करण पर भी ध्यान देना होगा तभी यह मिशन सच्चे अर्थों में खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित कर पाएगा तथा किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त भी बना पाएगा।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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