भारतीय रिजर्व बैंक

भारतीय रिजर्व बैंक | भारतीय रिजर्व बैंक के प्रमुख कार्य | भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना के उद्देश्य

भारतीय रिजर्व बैंक | भारतीय रिजर्व बैंक के प्रमुख कार्य | भारतीय अर्थव्यवस्था में रिजर्व बैंक आफ इंडिया की भूमिका | भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना के उद्देश्य

भारतीय रिजर्व बैंक

भारत में सर्वप्रथम 1 अप्रैल, 1935 को ‘रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया’ की स्थापना हुई, जिसने स्थापना के बाद स्वतंत्र रूप से मौद्रिक स्थायित्व हेतु कार्य प्रारम्भ कर दिया।

रिजर्व बैंक का कार्य क्षेत्र 1935 से 1948 ई० तक परिवर्तित हुआ है। क्योंकि 193 ई० में बर्मा व 1947 ई० में पाकिस्तान भारत से अलग हो गया। अतः 1948 ई0 से पूर्व तक पाकिस्तान में रिजर्व बैंक कार्यरत थी लेकिन विभाजन के बाद रिजर्व बैंक का कार्य क्षेत्र भारतवर्ष की सीमाओं तक रह गया।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के कार्य-

भारतवर्ष की केन्द्रीय बैंक ‘रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया’ है जो भारत के मौद्रिक कार्यों में मुख्य रूप से केन्द्रीय बैंकिंग सम्बन्धी कार्य, आर्थिक विकास में सहायता सम्बन्धी कार्य व बैंकिंग के अन्य साधारण कार्य करके मुद्रा प्रसार एवं संकुचन पर नियंत्रण रखती है। रिजर्व बैंक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. नोट निर्गमन का कार्य- रिजर्व बैंक का प्रमुख कार्य नोट निर्गमन है। इस परिप्रेक्ष्य में रिजर्व बैंक मुख्य रूप से नोट निर्गमन व बैंकिंग विभाग सम्बन्धी कार्य सम्पन्न करता है।

रिजर्व बैंक अधिनियम 44 के अनुसार रिजर्व बैंक, 2 रु0, 5 रू0, 10 रु0, 20 रु0 ,50 रु0, 100 रु0, 200 रु0, 500 रु0 व 2000 रु0 के नोट निर्गमन करता है। 1 रु0 के नोट की निकासी का कार्य वित्त-मंत्रालय भारत सरकार के अधीन है। रिजर्व बैंक के नोट विधिग्राह्यमुद्रा व परिवर्तनशील होते हैं। इस दृष्टि से रिजर्व बैंक भारत की एक केंद्रीय बैंक है।

  1. सरकार का बैंकर- रिजर्व बैंक सरकार के बैंकर के रूप में महत्वपूर्ण कार्य करती है। यदि सरकार के बैंकर के रूप में जैसे एक व्यक्ति व्यापारिक बैंक से ग्राहक बनाकर धन को जमा व ऋण प्राप्त करता है, उसी प्रकार सरकार भी रिजर्व बैंक का ग्राहक है जो संपूर्ण आगम को रिजव बैंक में खाता खोलकर जमा करती है, आवश्यकता पड़ने पर व्यय हेतु निकालती है। यदि सरकार के निक्षेप कम हैं, तो वह रिजर्व बैंक से ऋण भी प्राप्त करती है।

इस प्रकार रिजर्व बैंक सरकारी कोषों के स्थानान्तरण की व्यवस्था व विदेशी मुद्रा का प्रबन्ध करती है। रिजर्व बैंक सरकार को मौद्रिक व आर्थिक नीतियों में उचित सलाह भी देती है क्योंकि मौद्रिक नीति के क्रियान्वयन में रिजर्व बैंक की अहम् भूमिका होती है। ध्यान रहे कि रिजर्व बैंक जब केन्द्र अथवा प्रान्तीय सरकारों को ऋण देती है, तो वह ऋण के लिए अधिकतम 90 दिन व बैंक दर से 1% कम ब्याज पर ऋण प्राप्त होता है। इसके अलावा रिजर्व बैंक सरकार क सभी आय व ऋण सम्बन्धी धनराशि का लेखा-जोखा रखती है। अतः रिजर्व बैंक भारत सरकार की बैंकर है, जो सरकार के आर्थिक क्रियाकलापों से ऋणदाता या खाताधारक के रूप में प्रत्यक्ष सम्बद्ध है।

  1. बैंकों का बैंक- रिजर्व बैंक बैंकों का बैंक के रूप में कार्य करती है क्योंकि रिजर्व बैंक केवल व्यापारिक बैंकों का जन्मदाता ही नहीं है, बल्कि उनका पोषक एवं अन्तिम ऋणदाता भी है। यदि बैंकों के बैंक के रूप में कार्यों का मूल्यांकन करें तो बैंकिग संस्थाओं पर नियंत्रण व बैंकों को प्रदत्त ऋण सुविधाएँ आदि सम्मिलित होती हैं।

इसी प्रकार नवीन शाखाओं की स्थापना भी रिजर्व बैंक की अनुमति बगैर सम्भव नहीं है। रिजर्व बैंक सदस्य बैंकों का अन्तिम ऋणदाता है जो बिलों को पुनः भुनाने के साथ 90 दिन के लिए ऋण देती है। इसी प्रकार रिजर्व बैंक व्यापारिक बैंकों को समाशोधन गृह सुविधा भी देती है। ध्यान रहे, जब कोई व्यापारिक बैंक संकट में होती है तो रिजर्व बैंक कोष से पर्याप्त सहायता देकर बैंक की साख जनता में बनाती है।

  1. विदेशी विनिमय सम्बन्धी कार्य- रिजर्व बैंक का विदेशी विनिमय दायित्व भी महत्वपूर्ण है। इस परिप्रेक्ष्य में रिजर्व बैंक रुपये का बाह्य मूल्य निर्धारित करके विदेशी मूल्य में स्थायित्व रखती है तो दूसरी ओर विनिमय नियंत्रण सम्बन्धी कार्य भी करती है। इस दृष्टि से रिजर्व बैंक विदेश निनिमय वियमन सम्बन्धी उपयोगी कार्य करती है।
  2. समाशोधन गृह कार्य- रिजर्व बैंक का समाशोधन-गृह कार्य एक ऐसा कार्य है, कि रिजर्व बैंक सभी व्यापारिक बैंक सदस्यों की जटिल कार्य प्रणाली को सरल बनाने का कार्य करती. है। आपको ज्ञात है कि वर्तमान युग में 9 बैंकों ने साख पत्रों के रूप में चेक ग्राहकों को प्रदान किये हैं, जिससे साख-पत्रों का चलन बढ़ रहा है।‘ परिणाम यह है कि प्रत्येक बैंक के पास ढेरों चैक विभिन्न बैंकों के प्राप्त होते हैं जिन्हें प्रत्येक बैंक एकत्र करके रिजर्व बैंक को कुल योग लिखकर भेजती हैं, चूंकि सभी बैंकों के खाते रिजर्व बैंक के यहाँ होते हैं।
  3. कृषि साख का विस्तार- भारतीय अर्थव्यवस्था में रिजर्व बैंक ने कृषि साथ सुविधाओं का विस्तार किया है। रिजर्व बैंक ने एक अधिनियम द्वारा ‘कृषि साख विभाग’ की स्थापना की है, जो कृषि समस्याओं का अध्ययन करके सहकारी बैंकों व अन्य बैंकों को सलाह देती है। दूसरा कृषि साख से सम्बन्धित राज्य सहकारी बैंकों व अन्य बैंकों के मध्य समन्वय स्थापित करती है।
  4. औद्योगिक वित्त का विस्तार- भारतवर्ष के औद्योगिक विकास में रिजर्व बैंक का अभूतपूर्व योगदान है, क्योंकि रिजर्व बैंक की बैंक दर नीति ने ही औद्योगिक विकास की दिशा प्रशस्त की है। विकास परक मुद्रा प्रसार बनाये रखा है। इसके अलावा औद्योगिक वित्त के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया है।
  5. अनुसंधान एवं आँकड़ों का संकलन- रिजर्व बैंक भारतवर्ष के मौद्रिक एवं आर्थिक विषयों पर आंकड़े एकत्रित करके प्रकाशन का कार्य करती है, प्रकाशित आंकड़ों के आधार पर आर्थिक ढांचे का सरलता से अध्ययन किया जा सकता है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों से ज्ञात होता है कृषि साख, औद्योगिक साख, साख नियंत्रण आदि के परिप्रेक्ष्य में रिजर्व बैंक की कार्यप्रणाली कितनी उपयोगी है। रिजर्व बैंक, प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा नवीनतम आर्थिक आंकड़ों को संकलित करता है ताकि मौद्रिक नीति में हुए परिवर्तनों का जनता पर कैसा प्रभाव पड़ रहा है? विशेषज्ञों के द्वारा रिजर्व बैंक अनुसंधान कार्य भी सम्पन्न कराती है, जिससे देश में मौद्रिक स्थायित्व के अंतर्गत आय, कीमत, रोजगार व विनिमय दरों में अस्थिरता उत्पन्न न हो सके।
  6. साख-नियंत्रण सम्बन्धी कार्य- भारतीय अर्थव्यवस्था में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ने साख नियंत्रण के अंतर्गत परिमाणात्मक व गुणात्मक नियंत्रण विधियाँ अपनायी हैं। जिससे साख मुद्रा की मात्रा में विस्तार एवं संकुचन में अपेक्षित परिवर्तन किये जाते हैं।
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