अर्थशास्त्र / Economics

मुद्रा की परिभाषा | मुद्रा का जन्म एवं विकास | मुद्रा के जन्म का ऐतिहासिक विवेचन

मुद्रा की परिभाषा | मुद्रा का जन्म एवं विकास | मुद्रा के जन्म का ऐतिहासिक विवेचन

मुद्रा की परिभाषाएँ-

अमेरिकी अर्थशास्त्री प्रो. मिल्टन फीडमैन के मुद्रा सम्बन्धी तथ्य उचित हैं- “बैंकों में जमा वह धनराशि जो भुगतान के लिए शीघ्र उपलब्ध हो सके मुद्रा समझी जानी चाहिए, अतः चेक व अन्य साख पत्र भी मुद्रा में सम्मिलित होने चाहिए”

श्रेष्ठ परिभाषा-

“मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसका प्रयोग जनता द्वारा निःसंकोच वर्तमान व भावी भुगतान के लिए किया जाये, लेकिन उसे सरकारी वैधता प्राप्त हो।”

अन्य शब्दों में “सही वस्तु मुद्रा कहलाने की अधिकारी है, जिसे विनिमय का माध्यम, मूल्य मापक, अर्थ-संचय, ऋण के भुगतान का मापदण्ड के रूप में स्वतन्त्र, विस्तृत व सामान्य स्वीकृति प्राप्त हो।”

मुद्रा का जन्म एवं विकास

(Origin & Development of Money)-  

वर्तमान युग में मुद्रा का आविष्कार एक महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि मुद्रा ने अर्थव्यवस्थाओं को जहाँ गतिमान कर दिया है, वहीं अर्थव्यवस्थाएँ अब मुद्रा के सहारे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तक में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर रही हैं, आज समृद्धि का पैमाना जहाँ मुद्रा का आधार हैं वहीं पूँजी निवेश में मौद्रिक क्रियाये ही प्रभावशाली हैं।

यदि प्राचीनकाल में मुद्रा के जन्म का कारण क्या रहा होगा? इस पर विचार करें तो ज्ञात होता है कि वस्तु विनिमय (Barter System) की व्यवस्था सर्वप्रथम प्रारम्भ हुई, लेकिन सीमित मात्रा में ही वस्तु विनिमय सम्भव था, इस सम्बन्ध में प्रो. जेवन्स का कथन प्रासंगिक है, उन्होंने कहा कि “कम आवश्यक वस्तु से अधिक आवश्यक वस्तु के आदान-प्रदान को वस्तु विनिमय कहते हैं।” लेकिन वस्तु विनिमय विभिन्न कठिनाइयों के कारण त्यागना पड़ा। प्रसिद्ध विद्वान केमेरोन का मनोरंजक उदाहरण वस्तु विनिमय की कठिनाइयों को उजागर कर देता है कि सईद नामक व्यक्ति के पास नाव थी, उसका कारिन्दा मुझसे नाव के उपयोग के बदले हाथी दाँत चाहता था, परन्तु हाथी दाँत मेरे पास नहीं थे, तो मैं कैसे नाव का उपयोग करता, फलस्वरूप केमेरोन ने खोज प्रारम्भ की, तो एक व्यक्ति मोहम्मद इब्न गरीब का पता चला जिसके पास हाथी दाँत थे, लेकिन वह हाथी दाँत के बदले कपड़ा चाहता था, फलतः दूसरे व्यक्ति की तलाश प्रारम्भ कर दी, काफी खोज के बाद दूसरा व्यक्ति ऐसा मिला जिसके पास हाथी दाँत थे लेकिन वह हाथी दाँत के बदले तार चाहता था, सौभाग्य से तार मेरे पास थे, मैंने हाथी दाँत देकर प्राप्त कर लिए और सईद के कारिन्दे को हाथी दाँत देकर नौका प्राप्त की। उक्त उदाहरण से सिद्ध है कि वस्तु विनिमय कितना कठिन था, क्योंकि दोहरे संयोग का आभाव, वस्तु की अविभाज्यता, विनिमय का अनुपात निश्चित करना कठिन, समय की बरबादी, धन संग्रह में कठिनाई, मूल्य हस्तान्तरण में कठिनाई आदि ऐसी व्यावहारिक कठिनाइयाँ थी, जिसके कारण मुद्रा को जन्म मिला और मुद्रा द्वारा व्यावहारिक महत्व उस समय समझ में आया, जब अर्थव्यवस्थाओं को मुद्रा के द्वारा गति प्राप्त हुई और उपभोक्ता जगत से लेकर उत्पादक क्षेत्र भी पोषित हुआ।

मुद्रा के जन्म का ऐतिहासिक विवेचन

(Historical Analysis of Origin of Money)-

यों तो मुद्रा के जन्म का इतिहास ज्ञात करना अत्यन्त जटिल है, क्योंकि एक समय विशेष में कब मुद्रा का जन्म हुआ, कहना कठिन है, लेकिन आर्थिक विकास के विभिन्न चरणों में मुद्रा किन-किन रूपों में प्रसारित हुई, इन तथ्यों पर प्रकाश अवश्य डाला जा सकता है। जैसे-

  1. आखेट युग में मुद्रा (Money in Hunting Age)- मानव की प्रारम्भिक अवस्था आखेट युग के नाम से विख्यात है, जिस समय मानव जंगली जानवरों की भाँति नंगा एवं कबीलों के

रूप में रहकर पशु पक्षियों को मारकर कच्चा माँस, खाकर भोजन ग्रहण करता था। उस समय मानव की आवश्यकतायें अत्यन्त सीमित थीं। अतः किसी प्रकार का विनिमय कार्य नहीं होता था। शनैः शनैः मानव ने अपने अंगों को छुपाने के लिए पेड़ों की छालें, पशुओं की खालें, आखेट के लिए हड्डियों के तीर आदि बनाये, जो मानव के लिए महत्वपूर्ण थे। इतिहास के पन्ने खोजने पर ज्ञात होता है कि आखेट युग में तीर-कमान, छाले, खालें, सीपियों की मालाएँ आदि के बदले में पशु पक्षियों का माँस एक कबीला दूसरे को हस्तगत करता था। इससे सिद्ध होता है कि तत्कालीन जटिल समस्या एवं भूख से छटपटाते मानव ने केवल पेट की आग बुझाने के लिए विनिमय को स्वीकार किया।

  1. चारागाह युग में मुद्रा (Money is Pastoral Age)- चारागाह युग को पशुपालन युग कहते हैं, इस युग का सूत्रपात मानव ने भूख मिटाने के लिए पशुओं का संग्रह किया। उस समय जंगली जानवरों का शिकार एवं पालतू जानवरों का संग्रह किया जाता था, जिन्हें मानव चारा खिलाकर पोषण करता था। इन पशुओं में मुख्यतः गाय, बैल, घोड़ा, भैंस, बकरी, कुत्ता, ऊँट, आदि थे। चारागाह युग में पशुओं का विनिमय करने का पैमाना 20 बकरियाँ = एक चीते की खाल जबकि 1 स्त्री = 10 आदर्श बकरियों के बराबर मानी जाती थी चारागाह युग में पशु पक्षियों के अलावा मानव की निर्भरता जंगली फल-फूलों पर भी बढ़ने लगी थी, क्योंकि प्रतिदिन माँस खाना सम्भव तो था, लेकिन माँस प्राप्त होना दुर्लभ था। उसी समय पत्थरों को घिस-घिस कर आग (Fire) को जन्म दिया गया। चारागाह युग भी आत्मनिर्भरता का युग था, लेकिन विनिमय के लिए पशुओं को धन माना जाता था। यूनान में बैंल, अफ्रीका मे कौड़ी, साउथ वेल्स मे रम आदि विनिमय का माध्यम बनी। अतः मुद्रा का रूप उपरोक्त पशु अथवा वस्तुएँ थी।
  2. औद्योगिक युग में मुद्रा (Money in Industrial Age)- औद्योगिक युग प्रारम्भिक चरण में कुटीर उद्योग प्रचलित हो गये थे, जो वस्तु विनिमय की कठिनाइयों के निराकरण के लिए चलाये गये जिससे बाजार का विस्तार हो सकें। कालान्तर में वस्तु विनिमय के लिए मूल्य- अनुपात निर्धारित हुए। इस सम्बन्ध में प्रो. क्राउथर ने कहा” आज हमें मुद्रा का आविष्कार बहुत साधारण प्रतीत होता है जबकि माप के लिए दुःखी होकर किसी आलसी किन्तु चालाक व्यक्ति ने लम्बाई का माप ‘फुट’ एवं ‘मीटर’ भार का माप ‘पाउण्ड’ अथवा ग्राम व तापक्रम का माप डिग्री में किया होगा। इसी समस्या से ग्रसित होकर कितना अनाज एक चीते की खाल के लिए, तीन बुशल (Bushel) अनाज=5 केला, 20 केला = 1 बकरी, 20 बकरी 32 चीते की खाल आदि है। अतः मानव को वस्तु विनिमय प्रणाली से मुद्रा प्रणाली की ओर जाने के लिए सजग एवं तर्क शक्ति का उपयोग करना पड़ा होगा।”

ओद्यौगिक युग के मध्य में धातुओं की खोज हो चुकी थी, जिसमें मुख्य रूप से सोना, चाँदी, ताँबा के टुकड़ों के अलावा लोहा, जस्ता, अभ्रक, मैंगनीज आदि की खोज सम्मिलित है। इस युग में मनुष्य ने अनाज, दास, वस्तुओं की तुलना में धातुओं को विशेष प्राथमिकता दी एवं इन धातुओं को मुद्रा का स्थान मिलने लगा।

  1. आधुनिक युग में मुद्रा (Money is Modern Age)- आधुनिक युग में विनिमय का साधन मुद्रा है जो 20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक कुछ वर्षों तक तो स्वर्ण एवं चाँदी के सिक्कों के रूप में प्रचलित रही, लेकिन सोने एवं चाँदी जैसे बहुमूल्य पदार्थों में घिसावट एवं चोरी के भय से अल्पकाल में ही देशों ने स्वर्ण मुद्रा को त्याग दिया। इसके पश्चात् पत्र-मुद्रा जिसे धातु मुद्रा का प्रतिनिधि समझा गया को निर्गमित किया गया जिसे विभिन्न देशों ने रुपया, डॉलर, पौण्ड, मार्क, येन, स्टलि आदि नाम से पुकारा गया। शनैः शनैः आधुनिक युग में पत्र मुद्रा का चलन बढ़ता गया, इसमें सरलता के लिए साख मुद्रा का प्रयोग होने लगा अतः साख मुद्रा के रूप में चेक, ड्राफ्ट, हुण्डी एवं बिल आदि का चलन बढ़ता जा रहा है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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