अर्थशास्त्र / Economics

मुक्त या स्वतंत्र व्यापार | स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष में तर्क | संरक्षण का अर्थ | संरक्षण व्यापार के पक्ष में तर्क | सस्ते श्रम का तर्क | संरक्षित व्यापार के सम्बन्ध में शिशु उद्योग तर्क की व्याख्या

मुक्त या स्वतंत्र व्यापार | स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष में तर्क | संरक्षण का अर्थ | संरक्षण व्यापार के पक्ष में तर्क | सस्ते श्रम का तर्क | संरक्षित व्यापार के सम्बन्ध में शिशु उद्योग तर्क की व्याख्या | free or free trade in Hindi | Arguments in favor of free trade in Hindi | Meaning of protection in Hindi | Arguments in favor of protection trade in Hindi | cheap labor argument in Hindi | Explanation of infant industry argument regarding protected trade in Hindi

मुक्त या स्वतंत्र व्यापार

(Free Trade)

‘एक देश द्वारा किन्हीं निश्चित वस्तुओं के उत्पादन में उपलब्ध प्राकृतिक सुविधा कभी-कभी दूसरे देश के ऊपर इतनी अधिक होती है कि सम्पूर्ण विश्व द्वारा यह अनुभव किया जाता है कि उन वस्तुओं के उत्पादन के लिये संघर्ष करना व्यर्थ है। घासों, खाद देकर तैयार की गयी भूमि तथा कृत्रिम गर्म दीवारों के माध्यम से स्काटलैंड में बहुत अच्छा अंगूर उगाया जा सकता है और इस अंगूर से बहुत अच्छी शराब, विदेशी शराब से करीब तीस गुना महंगी, बनाई जा सकती है। ऐसी स्थिति में क्या फ्रांस में बनी मदिरा (Claret और Burgundy) को स्काटलैंड में केवल उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये समस्त विदेशी मदिरा के आयात को कानून बनाकर रोक देना तर्कसंगत होगा ?

स्मिथ द्वारा इतनी दक्षतापूर्वक चर्चित स्वतंत्र व्यापार के लाभों को बाद में उनके योग्य अनुयायियों, जिनमें डेविड रिकार्डो, जॉन स्टुआर्ट मिल एवं बेस्टेबल का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, ने और आगे बढ़ाया। फिर भी स्वतंत्र व्यापार के सबसे प्रबल समर्थक डेविड रिकार्डों थे जिन्होंने स्वतंत्र व्यापार के कारण के समर्थक मुख्य यंत्र के रूप में ततुलनात्मक लाग सिद्धांत को विकसित किया।

स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष में तर्क

(Case for free trade)

स्वतंत्र व्यापार के पक्ष में निम्न तर्क दिये जाते हैं:

  1. सामाजिक उत्पादन का अधिकतमकरण

(Maximization of Social Output)

अधिकतम सामाजिक कल्याण तथा समानता के प्रश्न के अतिरिक्त सामाजिक उत्पादन को अधिकतम करने के आधार पर ही स्वतंत्र व्यापार का समर्थन किया गया है। यह तर्क दिया जाता,  है कि स्मिथ की ‘अदृश्य शक्ति’ (Invisible Hand) जो ही स्वतंत्र व्यापार में क्रियाशील होती है, स्वतंत्र व्यापार से श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण का लाभ प्राप्त करना संभव होता है तथा इससे देश विश्व उत्पादन को अधिकतम करने में समर्थ होते हैं। स्वतंत्र व्यापार के अन्तर्गत मूल्य-यंत्र विनियोग के क्षेत्र में एक पथ-प्रदर्शक का कार्य करता है और यह प्रेरित करता है कि प्रत्येक देश उन वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में विशिष्टीकरण करें जिनमें उन्हें सापेक्षित रूप से लाभ प्राप्त होता है तथा उन वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात करें जिनको स्वयं देश में उत्पन्न करने की अपेक्षा विदेश से अपेक्षाकृत अधिक सस्ते मूल्य पर प्राप्त किया जा सकता है। इससे व्यापार में संलग्न समस्त देशों की वास्तविक आय में वृद्धि होती है।

  1. प्रतियोगिता

(Competition)

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स्वतंत्र व्यापार की, प्रकृति में असामाजिक, एकाधिकारों की स्थापना न होने की गारन्टी रहती है। स्वतंत्र व्यापार में प्रतियोगिता होने की निश्चितता के कारण उपभोक्ता, उत्पादकों के एकाधिकारात्मक शोषण से सुरक्षित रहता है। परन्तु स्वतंत्र व्यापार एकाधिकारों के निर्माण के नियद्ध पूर्ण सुरक्षा प्रदान नहीं करता। स्वतंत्र व्यापार के अन्तर्गत भी अन्तर्राष्ट्रीय तथा स्थानीय एकाधिकार प्रगट हो सकते हैं जो उत्पादन में कटौती तथा मूल्यों में वृद्धि करके उपभोक्ताओं का शोषण कर सकते हैं।

संरक्षण का अर्थ

(Meaning of Protection )

साधारण भाषा में संरक्षण शब्द का प्रयोग एक ऐसी नीति के लिए किया जाता है जो विश्व- सापेक्षिक मूल्यों की तुलना में घरेलू सापेक्षिक मूल्यों में वृद्धि करके, घरेलू उद्योग को प्रोत्साहित करती है। आयात योग्य वस्तुओं के घरेलू सापेक्षिक मूल्यों में विश्व-सापेक्षिक मूल्यों की तुलना में वृद्धि करने का कार्य अनेकों प्रतिबन्धात्मक विधियों, जैसे विनिमय नियंत्रण, बहुल विनिमय दरें, आयात प्रतिबन्ध आदि, द्वारा आयातों एवं निर्यातों को प्रतिबन्धित करके, सम्पन्न किया जा सकता है। परन्तु आयात योग्य वस्तुओं के उत्पादकों द्वारा प्राप्त किये गये घरेलू सापेक्षित मूल्य विश्व सापेक्षिक मूल्यों से अधिक या तो आयात तटकर लगाने पर हो सकते हैं या इसके समकक्ष अन्य विधियों का प्रयोग करने से जो उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं दोनों के लिये घरेलू मूल्यों में विश्व मूल्यों की तुलना में अधिक वृद्धि करती है अथवा उत्पादन पर अधिदान (Subsidy) या इसी प्रकार के वैकल्पिक उत्पाद पर उत्पादन कर जो केवल उत्पादक के लिये घरेलू मल्यों में वृद्धि करती है तथा उपभोक्ता को विश्व मल्यों पर खरीदने के लिये स्वतंत्र कर देती है, का प्रयोग करने पर विश्व मूल्यों की अपेक्षा उत्पादकों को अधिक मूल्य प्राप्त हो सकते हैं। उपरोक्त वर्णित दोनो साधनों के माध्यम से विश्व मूल्यों की अपेक्षा घरेलू सापेक्षिक मूल्यों में वृद्धि करने की नीति को संरक्षण कह हैं। परन्तु जॉनसन संरक्षण के इस अर्थ से सहमत नहीं हैं। वे ‘संरक्षण’ शब्द का प्रयोग उन नीतियों के लिये करते हैं जो घरेलू उपभोक्ताओं तथा उत्पादकों के लिये वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों में भिन्नता उत्पन्न करती हैं।’

संरक्षण व्यापार के पक्ष में तर्क

(Case for Protection Trade)

संरक्षण के समर्थन में दिये गये तर्क इतने सरल एवं स्पष्ट नहीं हैं जितने ही स्वतंत्र व्यापार के पक्ष में दिये गये तर्क हैं। सुविधा के लिए हम उनका अध्ययन निम्नलिखित तीन वर्गों के अन्तर्गत करेंगे। (अ) भ्रमपूर्ण तर्क, (ब) अनार्थिक तर्क तथा (स) आर्थिक तर्क।

भ्रमपूर्ण तर्क (Fallacious Argument)- स्वतंत्र व्यापार के समर्थकों के मतानुसार संरक्षण के पक्ष में दिये गये समस्त तर्क भ्रमपूर्ण एवं गलत है। परन्तु हम यहां पर केवल उन्हीं तर्कों की भ्रमपूर्ण तर्कों के रूप में व्याख्या करेगे जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उत्तम नहीं हैं।

सस्ते श्रम का तर्क

(Pauper Labour Argument)

विश्व के औद्योगिक रूप से विकसित देशों में संरक्षण के पक्ष में सर्वाधिक प्रचलित तर्क श्रमिक के हितों की रक्षा करने के भ्रमपूर्ण तर्क पर आधारित है। इस प्रसिद्ध शोषित श्रमिक तर्क के प्रस्तुतकर्ता अमरीकन तथा अन्य यूरोपियन व्यक्तियों का यह तर्क है कि संरक्षण की अनुपस्थिति में औद्योगिक देशों में ऊंची मजदूरी प्राप्त करने वाले को सस्ते श्रमिक से प्रतियोगिता के खतरों का सामना करना पड़ेगा। इस प्रकार जबकि अमेरिका के निवासी किसी महाद्वीप के सस्ते विदेशी श्रम के विरुद्ध संरक्षण की मांग करते हैं तो बहुधा वह भी अमरीका के अपेक्षाकृत श्रेष्ठ कुशल श्रम के विरुद्ध संरक्षण देने का निर्णय करता है।

इस तर्क की भ्रमपूर्ण प्रकृति के विषय में अधिकांश अर्थशास्त्रियों ने स्पष्ट रूप से मत व्यक्त किये हैं। हैबरलर के अनुसार जिन तर्कों के विषय में गंभीर चिंतन की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्हें संरक्षण के विशिष्ट तर्कों में सम्मिलित किया गया है और यह भी इन्हीं में से एक है।

(ब) अनार्थिक तर्क (Non-Economic Argument)

आर्थिक तथा अनार्थिक तर्कों के मध्य कोई विभाजक रेखा खींचना सम्भव नहीं है। इन दोनों में भिन्नता केवल वांछित उद्देश्यों में अंतर के कारण ही है। अनार्थिक तर्कों को राष्ट्रीय सुरक्षा, आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीयता के वाक्यांशों से संबंधित है। इसमें सुरक्षा एवं परिवेक्षण आते हैं।

(स) आर्थिक तर्क (Economic Argument)

इसके अंतर्गत घरेलू बाजार की विकृतियां एवं शिशु उद्योग आते है। अन्य विकृतियां उद्योग की विविधीकरण, राशिपातन तथा आर्थिक पुनरुत्थान हैं।

शिशु उद्योग

(Infant Industry)

शिशु उद्योग (Infant Industry)- संरक्षण के पक्ष में बुद्धिमतापूर्ण तर्क शिशु उद्योग है। शिशु उद्योग वह है जिसे विकास के लिए गुप्त तुलनात्मक लाभ प्राप्त है किन्तु विकास के प्रारम्भिक चरण में अनुभवहीनता के कारण परिचालन लागत बहुत अधिक है। यदि इन उद्योगों को कुशल, बड़े, पुराने और सुस्थापित विदेशी पूर्तिकर्ताओं का सामना करना पड़ता है तो वे शैशवावस्था में ही समाप्त हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में संरक्षण की स्वीकृति को इन्कार करना तुलनात्मक लागतों पर आधारित अन्तर्राष्ट्रीय श्रम विभाजन के लाभों की अवहेलना के समान है। परिणामस्वरूप जीवित रहने तथा विकास के लिए उन्हें वैद्य रूप से संरक्षण देने की आवश्यकता है। फेड़िक लिस्ट के अनुसार ‘इसका कारण उसी के समान है जैसे कि कोई बच्चा या लड़का किसी शक्तिशाली आदमी से लड़ रहा है तो उसे यह आशा करना व्यर्थ है कि वह जीत जाएगा अथवा मुकाबला भी कर सकेगा’ परन्तु शिशु उद्योग को विकास के लिए हमेशा ही संरक्षण की आवश्यकता नहीं हो सकती। जब उद्योग का संभावित तुलनात्मक लाभ वास्तविक लाभ का रूप  धारण कर ले तो संरक्षण समाप्त कर देना चाहिए। इसीलिए लिस्ट ने लिखा है कि संरक्षण की तब तक आवश्यकता है जब तक कि निर्माण शक्ति इतनी प्रबल न हो जाये कि विदेशी प्रतियोगिता से भय समाप्त हो जाये और आगे से आन्तरिक निर्माण शक्ति के केवल जड़ की ही रक्षा के लिए संरक्षण आवश्यक हो। शिशु उद्योग तर्क स्वतंत्र व्यापार के समर्थकों द्वारा भी परम्परागत रूप से स्वीकार किया गया था। स्वतंत्र व्यापार के समर्थक जॉन स्टुआर्ट मिल ने शिशु उद्योग को संरक्षण देने के पक्ष का समर्थन इन शब्दों में किया है ‘एक संरक्षणात्मक कर जिसे किसी तर्क संगत समय के लिए जारी रखा गया, किसी राष्ट्र द्वारा नवीन प्रयोग के समर्थन (अर्थात नवीन उद्योग स्थापित करने) के लिए अपने को करारोपित करने का सबसे कम असुविधाजनक तरीका है। इस प्रकार शिशु उद्योग तर्क विशुद्ध गतिशील है तथा यह केवल अप्लकालीन विकृति को ठीक करने में अस्थायी बाधा को दबाता है। भविष्य में प्रतिफल की आशा से सीमित समय के लिए लागतों का व्यय ‘परिचर्या पूंजी’ (Nursing Capital) के विनियोग का एक रूप है। यदि वह विनियोग नहीं किया जाता है तो संभव है कि स्वतंत्र प्रतियोगिता से साधनों का अकुशल आबंटन हो।

इस सिद्धांत को, सैद्धांतिक वैद्यता एवं जनमानस के लिए चित्ताकर्षकता के होते हुए भी, व्यावहारिक जीवन में अपनाने में अनेक गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्रथम, निर्णायक समस्या यह है कि प्रभावकारी तुलनात्मक लाभ प्राप्त उद्योग का निर्धारण संरक्षण से पूर्व किस प्रकार हो? यदि उद्योग का चयन सही हो जाता है तो शैशवावस्था में व्यय की गई लागत को प्रौढ़ावस्था में वसूल कर लिया जाता है। इसके विपरीत यदि गलत उद्योग को संरक्षण प्राप्त हो जाता है तो समाज को इसकी भारी कीमत चुकानी पडती है। द्वितीय, एक उद्योग को जब शैशवावस्था में एक बार संरक्षण मिल जाता है तो उसे हटाना बड़ा कठिन हो जाता है क्योंकि उद्योग संरक्षण के अभाव में विकसित होने में असमर्थता व्यक्त करता है। मालिक और श्रमिक दोनों के हित इसमें निहित होते हैं, अतः वे दोनों ही संरक्षण को बनाये रखने के लिए संघर्ष करेंगे। इस प्रकार राष्ट्र निरंतर चलने वाले भार के बोझ से दब जाता है। तृतीय, संरक्षण के कारण गृह उद्योग को आत्म संतोष प्राप्त होता है और कुशलता की जगह अकुशलता में वृद्धि होती है। किंडलबर्गर के अनुसार ‘यदि घरेलू उद्योग को प्रशुल्क लगाकर विदेशी प्रतियोगिता से रोका जाता है तो वह सुस्त, मोटा और आलसी हो जाता है।’

इन कठिनाईयों के कारण अर्थशास्त्री तर्क देते हैं कि निर्णय का भार बाजार की शक्तियों पर छोड़ देना चाहिए। यदि किसी उद्योग से प्रभावकारी लाभ की आशा है तो साहसी इसको स्वयं ढूंढ लेंगे और प्रशिक्षण अवधि की लागत को वे उसी तरह सहन कर लेंगे जिस तरह पूंजीगत यंत्र, बिल्डिंग, श्रम प्रशिक्षण आदि पर व्यय को सहन कर लेते हैं। किन्तु यह तर्क अर्द्धविकसित देशों, जहाँ उद्यमी शर्मीला (Shy) होता है, के संदर्भ में सही नहीं हैं। यही कारण है कि शिशु उद्योग तर्क अर्द्धविकसित देशों में बहुत प्रचलित है। गुन्नार मिर्डाल ने तो शिशु उद्योग तर्क के स्थान पर तीव्र औद्योगीकरण के लिए ‘शिशु अर्थव्यवस्था’ के तर्क को स्वीकार किया है। संरक्षित उद्योग के अनुभव से यह ज्ञात होता है कि संरक्षण से गृह उद्योग को आत्मसंतोष प्राप्त नहीं होता है। तृतीय, यदि एक बार शिशु उद्योग को संरक्षण दे दिया जाता है तो विकसित होने पर भी उनका विकास करने के लिए संरक्षण देना पड़ता है तथा संरक्षण से उपभोक्ता पर स्थायी भार पड़ता है, साथ ही देश को भी कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है।

परन्तु इन आलोचनाओं के बावजूद भी, शिशु उद्योग तर्क अर्द्धविकसित देशों में बहुत प्रचलित है। यह तर्क दिया जाता है कि तीव्र औद्योगिकरण तथा निरन्तर विकास के लिए  अर्द्धविकसित देशों को संरक्षण देना आवश्यक है। गुन्नार मिर्डाल ने ‘शिशु उद्योग’ तर्क के स्थान पर ‘शिशु अर्थव्यवस्था’ की वैधता को स्वीकार किया है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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