शिक्षाशास्त्र / Education

स्किनर के सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त | Skinner’s Theory of Operant Conditioning in Hindi

स्किनर के सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त | Skinner’s Theory of Operant Conditioning in Hindi

स्किनर के सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त (Skinner’s Theory of Operant Conditioning)

बी. एफ स्किनर ने अधिगम के क्षेत्र में अनेक प्रयोग किये हैं। इन प्रयोगों के निष्कर्षों के आधार पर उसने अधिगम के ‘सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त’ का प्रतिपादन किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार, “यदि किसी क्रिया के पश्चात् कोई बल प्रदान करने वाला उद्दीपन मिलता है तब उस क्रिया की शक्ति (सक्रियता) में वृद्धि हो जाती है। अतः स्किनर का मानना है कि पुनर्बलक उद्दीपक अथवा अभिप्रेरणा के कारण ही अधिगम में सक्रियता आती है।

इस प्रकार ‘सक्रिय अनुबन्धन’ (Operant Conditioning) एक अधिगम बल या शक्ति है जो किसी अनुक्रिया के तुरन्त बाद किसी पुनर्बलक उद्दीपन को प्राप्त करने से अपेक्षित व्यवहार की बार-बार पुनरावृत्ति की सम्भावना में वृद्धि करती है। इस प्रकार के अधिगम का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त यह है कि व्यवहार में परिवर्तन अनुक्रिया के तात्कालिक परिणामों के अनुसार होता है। अनुक्रिया के संतोषजनक परिणाम अपेक्षित व्यवहार को सुदृढ़ करते हैं जबकि असतीषजनक परिणामों से व्यवहार की पुनरावृत्ति की सम्भावना में कमी आती है। स्किनर के श्रयोग में भी एक कबूतर बक्से के लाल गोली वाले बिन्दु पर चोंच मारता हैं तथा चोंच मारते ही भोजन की खिड़की से कुछ भोज्य पदार्थ गिरने लगता है। भोज्य पदार्थ (पुनर्बलक उद्दीपन) के कारण कबूतर की क्रिया के प्रति सक्रियता बनी रहती है तथा वह लाल बिन्दु पर बार-बार चोच मारता है।

सक्रिय अनुबन्धन के अन्तर्गत अपेक्षित व्यवहार को सुदृढ़ तथा भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति के लिए तीन बाह्य परिस्थितियाँ आवश्यक है। ये परिस्थितियां हैं- पुनर्बलन, समीपता एवं अभ्यास।

पुनर्बलन का अर्थ यह है कि प्राणी को एक विशिष्ट अनुक्रिया करने के तुरन्त पर्चात् एक विशिष्ट उद्दीपक ( पुनर्बलक) प्रदान किया जाना। समीपता से तात्पर्य यह है कि अनुक्रिया करने और पुनर्बलक उद्दीपक प्रदान करने के बीच समय का अन्तर न्यूनतम हो। अभ्यास से तात्पर्य यह है कि पुनर्बलन के द्वारा अनुक्रिया की बार -बार पुनरावृत्ति कराई जाये जिनमें अपेक्षित व्यवहार सुदृढ़ हो ।

सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ (Educational Implications of Operant Conditioning Theory)

शैक्षिक क्रियाओं में सक्रिय अनुबन्धन के बुनियादी निहितार्थ या उपयोग का स्पष्ट प्रमाण यह है कि हमें उद्देश्यों, की प्राप्ति के ज्ञान अथवा पुष्टि के लिए बाह्य व्यवहारों एवं अभिव्यक्तियों पर निर्भर रहना पड़ता है। स्किनर के अनुसार पुनर्बलन अधिगम को आगे बढ़ाने में सहायक होता है। उसका यह भी मानना है कि उपयुक्त उपकरणों के प्रयोग से मानव अधिगम को अधिक प्रभावशाली ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में अपने सिद्धान्त के आधार पर उसके कुछ शैक्षिक योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण है जिससे प्रमुख हैं शिक्षण मशीन एवं अभिक्रमित अनुदेशन।

शिक्षण मशीन (Teaching Machine) 

शिक्षण मशीन शिक्षण का एक व्यवस्थित उपागम है तथा इसने आधुनिक शिक्षा (विशेष रूप से दूरवर्ती शिक्षा) को सिद्धान्त एवं व्यवहार दोनों रूपों में बहुत अधिक प्रभावित किया है। इसके अन्तर्गत मशीन एकल विद्यार्थी के सम्मुख इस प्रकार के कार्यक्रम प्रस्तुत करती है जिसमें कुछ प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं अथवा किसी समस्या को हल करना होता है या कुछ अभ्यास कार्य करना होता है। शिक्षार्थी की अनुक्रिया के तुरन्त बाद मशीन में ही उसकी पुष्टि का भी प्रावधान होता है। इस प्रकार शिक्षार्थी को स्वतः पृष्ठपोषण प्राप्त होता है तथा वह आगे क्रिया करने के लिए सक्रिय होता है। इस प्रकार यांत्रिक शिक्षण प्रक्रिया से शिक्षार्थी उसमें सदैव सक्रिय रहता है। इस यांत्रिक शिक्षण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) सही उत्तर को तुरन्त पुनर्बलन प्राप्त होता है। इस प्रकार यह मशीन शिक्षार्थी को सही उत्तर की ओर ले जाने के लिए प्रोत्साहित करती है।

(ii) इसके अन्तर्गत एक साधारण विद्यार्थी भी अध्ययन के प्रति उत्साहित रहता है तथा उस पर पर्याप्त समय एवं ध्यान देता है।

(iii) इसमें प्रत्येक शिक्षार्थी अपनी योग्यता एवं अधिगम क्षमता के अनुसार अपनी गति से सीखता एवं आगे बढ़ता है।

(iv) यदि किसी शिक्षार्थी को किसी कारणवश बीच में ही कुछ समय के लिए अधिगम प्रक्रिया से अलग होना पड़ता है। तो वह पुनः वापस आकर वहीं से अधिगम प्रक्रिया को पुनः जारी रख सकता है।

(v) इसके अन्तर्गत शिक्षक को विषय-वस्तु को बड़ी सावधानी से एक निश्चित क्रम में निरूपित एवं व्यवस्थित करना नितान्त आवश्यक होता है।

(vi) इसमें शिक्षार्थी एवं शिक्षण सामग्री के बीच निरन्तर अन्तःक्रिया होती रहती है जिससे वह क्रियाशील रहता है।

(vii) इसके अन्तर्गत शिक्षार्थी की प्रगति की सही जानकारी होते रहने से शिक्षक यथोचित सहायक पुनर्बलन भी प्रदान कर सकता है।

(vii) इसमें शिक्षार्थी प्रारम्भ में प्रस्तुत की गई शिक्षण सामग्री को अच्छी तरह समझ लेने के पश्चात् ही अगली शिक्षण सामग्री की ओर बढ़ सकता है।

अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction)

अभिक्रमित अनुदेशन एक स्वतः अधिगम प्रविधि है। इसके अन्तर्गत विषय-सामग्री को छोटे-छोटे पदों में विभाजित करक ताकिक क्रम में प्रस्तुत किया जाता है। तार्किक क्रम में प्रस्तुतीकरण से प्रत्येक पद अपने पूर्ववर्ती पद के आधार पर निर्मित होता है। प्रत्येक पद कुछ नवीन सूचनाओं से युक्त होता है तथा ये सूचनाएँ अभिक्रमित शिक्षण सामग्री से ही जडी हुई होती हैं। प्रत्येक पद के अध्ययन के बाद शिक्षार्थी को हल करने के लिए कुछ प्रश्न दिये गये होते हैं । शिक्षार्थी को अपने उत्तरों की जाँच करने के लिए अभिक्रमित सामग्री के साथ ही सही उत्तर भी दिये गये होते हैं। उत्तर की पुष्टि अर्थात् सही उत्तर की जानकारी एक पुनर्बलक उद्दीपन का कार्य करती है। इस प्रकार पुनर्बलन की प्रक्रिया अभिक्रमित अनुदेशन की एक अनिवार्य विशेषता है। दूरवर्ती शिक्षा में अभिक्रमित पाठ्य-सामग्री की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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