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संवातन का तात्पर्य | संवातन के प्रकार | संवातन के सिद्धान्त | संवातन की विधियां

संवातन का तात्पर्य | संवातन के प्रकार | संवातन के सिद्धान्त | संवातन की विधियां | Meaning of ventilation in Hindi | Types of ventilation in Hindi | Principles of ventilation in Hindi | methods of ventilation in Hindi

संवातन का तात्पर्य

प्रत्येक स्थान पर वायु उपस्थित रहती है। लेकिन यह वायु स्थान-स्थान पर बाह्य परिस्थितियों के कारण अशुद्ध हो जाती है। उत्म स्वास्थ्य के लिए वायु का शुद्ध होना परम आवश्यक है। घर में शुद्ध वातावरण उचित संवातन पर निर्भर करता है।

‘संवातन’ से तात्पर्य घर, स्कूल व रहने के स्थान में लगातार शुद्ध वायु के प्रवेश तथा अशुद्ध वायु के बाहर निकलने से है। ऑक्सीजन जिसे प्राणवायु कहते हैं, वह मानव जीवन और स्वास्थ्य दोनों के लिए परम आवश्यक है। ऑक्सीजन हमें शुद्ध वायु से हो मिलती है। शुद्ध वायु हमारे  शरीर के सभी क्रियाकलापों को नियन्त्रित व संचालित रखती है। रक्त जो कि हमारे जीवन, का आधार है, इसकी शुद्धि भी ऑक्सीजन से ही होती है। रक्त के माध्यम से ही जीवनदायी शरीर निर्माणक कोशिकाओं को पोषण होता है। रक्त ही इन कोशिकाओं से अशुद्धियां व कार्बन डाइ- ऑक्साइड एकत्र कर श्वसन क्रिया के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में बाहर निकालता है। अतः हमारे रक्त की शुद्धता उस वायु पर निर्भर करती है जो हम श्वांस द्वारा लेते हैं। अगर हम अशुद्ध उस वायु पर निर्भर करती है जा हम श्वांस द्वारा लेते हैं। अगर हम अशुद्ध वायु में श्वांस लेते हैं तो हमारा रक्त भी अशुद्ध रहता है। निरन्तर अशुद्ध वायु के सेवन से वेचनी, सिरदर्द, जी मिचलाना, आलस्य, शरीर में भारीपन तथा शारीरिक व मानसिक कमजोरी आती है। अतः जहां मनुष्य अपना समय व्यतीत करता है, वहां वायु आवागमन का उचित प्रबन्ध (संवातन) होना चाहिए। जो व्यक्ति रात में खिड़की दरवाजे बन्द कर और मुंह ढंककर सोते हैं, वे अपने ही श्वांस द्वारा छोड़ी गयी अशुद्ध वायु को बार-बार ग्रहण करते हैं। इस प्रकार को दूषित वायु गले और श्वांस की बीमारियों को जन्म देती है और शरीर की रोग अवरोधक क्षमता को कम करती है।

यदि स्कूल, घर या अन्य किसी स्थान पर जहां वायु आवागमन का उचित प्रबन्ध न हो और अधिक लोग एकत्रित हो तो वहां अधिक देर बैठने पर दम घुटने लगता है और व्यक्ति बेचैन हो जाता है। इसके कई कारण होते हैं, जैसे-

(1) कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता,

(2) वायु संचालन में कमी,

(3) गर्मी की अधिकता,

(4) वायु में वाष्प कणों की अधिकता।

अधिक व्यक्तियों या विद्यार्थियों के एक साथ एक स्थान पर एकत्रित होने पर उस स्थान की वायु को अधिकांश ऑक्सीजन श्वास लेने में खत्म हो जाती है। छोड़ी गयी सांसों से कार्बन डाइ- ऑक्साइड की अधिकता हो जाती है। वायु में वाष्य कणों का परिमाण बढ़ जाता है और हवा में इतनी नमी आ जाती है कि शरीर से निकला पसीना सूख नहीं पाता है और जब पंखा किया जाता है तो वायु में गति पैदा होती है जिससे कुछ अंशों में दूषित वायु का निष्कासन होता है और उसका स्थान ताजी हवा लेती है जिससे व्यक्ति कुछ राहत महसूस करता है। शरीर की गर्मी श्वांस तथा पसीने से निकलती रहती है और ऑक्सोजन प्रवेश करती रहती है। इन क्रियाओं के बन्द होने पर मानव जीवन की सम्भावना नहीं की जा सकती है। इसलिए रहने व कार्य करने के स्थान का हवादार तथा प्रकाशयुक्त होना आवश्यक है। प्राकृतिक प्रकाश सूर्य से प्राप्त होता है और सूर्य की किरणें रोग के जीवाणुओं को नष्ट कर देती है। अतः घर के अधिकांश भागों में सूर्य का प्रकाश जाना आवश्यक है। घर के प्रत्येक भाग में सूर्य का प्रकाश और हवा का प्रवेश उचित संवातन व्यवस्था पर निर्भर करता है। संवातन का अर्थ है प्राकृतिक या कृत्रिम साधनों से किसी भी स्थान को वायु को शुद्ध और स्वास्थ्यकर रखा जा सके।

संवातन के सिद्धान्त

संवातन को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) भीतरी संवातन या आन्तरिक संवातन,

(2) बाहरी संवातन।

स्वास्थ्य की दृष्टि से बाह्य तथा आन्तरिक दोनों संवातन उचित होना आवश्यक है। यदि दोनों में से कोई भी दोषपूर्ण होता है तो उससे स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।

आन्तरिक संवातन

आन्तरिक संवातन से तात्पर्य किसी भी स्थान; जैसे-घर, स्कूल, सिनेमा, अस्पताल, दफ्तर आदि को दूषित, गमर और नमीदार हवा को बाहर निकालना और बाहरी ताजी, अनुपात में ठण्डी एवं शुष्क हवा का भीतर संचार करना तथा हवा की गति को बनाये रखना है। सन्तोषजनक भीतरी संचालन के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं-

  1. घर के अन्दर शुद्ध व ताजी वायु प्रवेश करें।
  2. कमरे के अन्दर हवा का उचित तापमान हो।
  3. वायु में गति हो जिससे शरीर का ताप स्थिर न हो सके।

आन्तरिक संवातन को प्रभावित करने वाले तत्त्व- घर के आन्तरिक वातावरण का संतोषजनक संवातन निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-

(1) कमरे का क्षेत्रफल – आन्तरिक संवातन कमरे के क्षेत्रफल से प्रभावित होता है। एक बड़े कमरे में एक छोटे कमरे की तुलना में अधिक वायु रहती है। एक आदर्श घर में 50 वर्गफुट प्रति व्यक्ति के अनुपात में स्थान होना चाहिए।

(2) कमरे में उपस्थित सदस्यों की संख्या- किसी स्थान पर कितने व्यक्ति हैं इस बात पर आन्तरिक संवातन निर्भर करता है। एक छोटे कमरे में यदि अधिक व्यक्ति एकत्र हो जाते हैं तो आन्तरिक वातावरण शीघ्र ही दूषित हो जाता है क्योंकि छोड़ी गई श्वांस में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा शुद्ध वायु से अधिक होती है।

(3) कमरे में स्थिर वायु की मात्रा – उचित भीतरी संवातन के लिए वायु का गतिशील होना आवश्यक है। घर के आन्तरिक वातावरण में वायु को गतिशील बनाने के लिए पंखों आदि का प्रयोग किया जाता है। वायु में गति होने से अशुद्ध वायु ऊपर उठती रहती हैं और शुद्ध वायु नीचे  उसका स्थान लेती रहती है।

(4) उचित संवातन- उचित संवातन से तात्पर्य कमरे की दूषित वायु के निकलने तथा शुद्ध वायु के प्रवेश करने के पर्याप्त व उचित मार्गों से है। यदि किसी कक्ष में कमरे के आकार के अनुसार पर्याप्त खिड़को, दरवाजे व रोशनदान होता हैं तो आन्तरिक वातावरण कम दूषित होता है।

(5) कमरे में ठोस वस्तुओं तथा फर्नीचर आदि की संख्या- किसी भी कमरे में विद्यमान सामान आन्तरिक संवातन को प्रभावित करता है। कमरे में नीचे की ओर जितना अधिक सामान होता है, शुद्ध वायु को प्रवेश के लिए उतना ही कम स्थान मिलता है। शुद्ध वायु भारी होने  के कारण नीचे की ओर ही रहती है।

(6) सीलन व नमी– वायु में बाष्प व नमी की अधिकता वातावरण को प्रदूषित करती है। अतः कमरे की सीलन आन्तरिक संवातन को प्रभावित करती है यदि कमरे में सीलन व नमो है तो उसको दूर करने के लिए शुष्क वायु की अधिक आवश्यकता पड़ती है।

बाह्य संवातन

बाह्य संवातन से तात्पर्य घर के आस-पास के वातावरण में शुद्ध वायु के संचरण से है। अतः बाह्य संवातन के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि हवा गतिशील रहे, हवा में नमी न हो, अधिक ताप भी न हो तथा उसमें धुंआ, धूल, रेतीले कण, गेसोय तत्त्व, कूड़ा-करकट के सूक्ष्म अंश, दुन्धि तथा मोटर वाहनों आदि से निकले दूषित तत्व न हों। उत्तम बाह्य संवातन के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं-

  1. घर के आस-पास की गलियां चौड़ी, पक्को और स्वच्छ हों।
  2. घर दूर-दूर हों उनके बीच पर्याप्त फासला हो।
  3. हानिकारक उद्योग शहर से दूर हों।
  4. सड़कों आदि की पर्याप्त सफाई की व्यवस्था हो।
  5. स्थान-स्थान पर खुले मैदान, पार्क आदि हों।
  6. मकान एक सीधी लाइन में बने हों, आगे पीछे नहीं क्योंकि ऐसा होने से वायु का प्रवाह सभी घरों में नहीं जा पाता।
  7. व्यर्थ पटार्थों को शीघ्र हटाने की व्यवस्था हो।
  8. व्यर्थ पदार्थों को समुचित तरीके से किसी एक स्थान पर इकट्ठा करने को उचित व्यवस्था हो।

संवातन की विधियां

संवातन की दो विधियां हैं-

  1. प्राकृतिक विधि, 2. कृत्रिम विधि।

प्राकृतिक विधि- संवातन की प्राकृतिक विधियां वे विधियां हैं जिनसे प्राकृतिक रूप से ही  शुद्ध वायु प्रवेश करती रहती है और अशुद्ध वायु बाहर निकलती है। प्राकृतिक संवातन चार बातों  पर निर्भर करता है-

(1) अंतरावहन (Petrifaction),

(2) आचूषण (Aspiration).

(3) प्रसरण (Diffusion),

(4) तापमान (Temperature).

(1) अंतरावहन – जब वातावरण को शुद्ध हवा वेग से खिड़कियों और दरवाजों से भीतर प्रवेश करती है तो दूसरी ओर से कमरे को अशुद्ध हवा अन्य दरवाजों से बाहर निकल जाती है। इस प्रकार के स्वतः शुद्धीकरण को ‘अंतरावहन’ कहते हैं।

(2) आचूषण- जब किसो कमरे के खिड़की और दरवाजे बन्द हो और बाहर वायु का‌वेग तेज हो तो खिड़की दरवाजे बन्द रहते हुए भी भीतरी वायु बाहरी वायु को अपनी ओर खींचती है। इस विधि को ‘आचूषण’ कहते हैं।

(3) प्रसरण- ठोस, द्रव और गैस तीनों में यह गुण होता है कि जब इन्हें आपस में मिलाया जाता है तो ये आपस में मिलकर एक हो जाते हैं। मिलने की इस क्रिया को प्रसरण कहते है। प्रसरण प्रक्रिया संवातन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। निःश्वास किया द्वारा कमरे की हवा कार्बन डाइऑक्साइड व नगोयुक्त हो जाती है जो हल्की हो जाने के कारण कमरे से बाहर निकलना चाहती है और बाहर की वायु भी विसरण करके अन्दर आना चाहती हैं। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि कमरे बाहर और भीतर दोनों ओर वायु समान नहीं हो जाती।

(4) तापमान- गैसों का यह प्राकृतिक गुण है कि गर्म होने पर हल्की हो जाती हैं और ऊपर की ओर उड़ती हैं और उसका रिक्त स्थान भरने के लिए ताजो शुद्ध हवा अन्दर आ जाती है। यदि किसी स्थान पर पर्याप्त खिड़की, दरवाजे व रोशनदान होते हैं तो शुद्ध वायु निरन्तर आती रहती है और अशुद्ध वायु प्राकृतिक रूप से निकलती रहती है।

प्राकृतिक संवातन के साधन-

प्राकृतिक संवातन के लिए निम्नलिखित साधन प्रयोग में लाये जाते हैं-

(1) दरवाजे व खिड़कियां- घर के प्रत्येक कक्ष में प्राकृतिक संवातन के लिए पर्याप्त खिड़की व दरवाजों का होना आवश्यक है। यदि दरवाजे व खिड़कियां कमरे की आमने-सामने की दीवारों पर स्थित हों तो वायु का प्रवेश व निकास दोनों ही भली प्रकार होते हैं। इससे हवा का आर-पार संचालन सुगम हो जाता है। ऐसी संवातन व्यवस्था को आर-पार संवातन (cross ventilation) कहते हैं। खिड़कियां कमरे के फर्श से कम से कम 1 मीटर ऊंची होनी चाहिए।

(2) रोशनदान- रोशनदान कमरे की अशुद्ध वायु को बाहर निकालने के उत्तम साधन हैं। ये कमरे के ऊपरी भाग में बनाये जाते हैं। इनके द्वारा अशुद्ध कार्बन डाइऑक्साइड जो गर्म होकर ऊपर आ जाती है, आसानी से बाहर निकल जाती है। इसके अतिरिक्त ये सूर्य के प्रकाश को प्रवेश कराने का कार्य भी करती हैं। दरवाजे, खिड़कियां व रोशनदान आदि का कुल क्षेत्रफल का कम-से-कम छटवां भाग होना चाहिए।

(3) चिमनी- किसी भी प्रकार का ईंधन जलाने पर वातावरण में कार्बन डाइ-ऑक्साइड की अधिकता हो जाती है। अतः घरों में रसोईघर में चिमनी का प्रबन्ध होना चाहिए जिसमें धुआं  बाहर निकलता रहे और उसका स्थान शुद्ध ताजी हवा लेती रहे।

कृत्रिम संवातन- जब कृत्रिम विधियों को प्रयोग कर कमरे की अशुद्ध वायु को बाहर निकाला जाता है और कमरे में निरन्तर शुद्ध यागु का प्रवेश कराया जाता है तो उसे कृत्रिम संवातन कहते हैं। कृत्रिम संवातन के लिए यांत्रिक उपकरण प्रयोग में लाया जाता है। कृत्रिम संवातन की कई विधियां हैं-

(1) प्लीनम विधियां (Plenum Method)— इस विधि में बाहर को शुद्ध हवा बड़े बड़े पंखों द्वारा धक्का देकर कमरे में पहुंचायी जाती है जिससे अशुद्ध वायु दबाव के कारण स्वतः ही  रोशनदान द्वारा बाहर निकलती जाती है। बिजली के पंखे इस विधि के यांत्रिक साधन है। पंखों से हवा में गतिशोलता आ जाती है। यह शरीर की गर्मी को वाप्प में बदल देती है जिससे आराम का अनुभव होता है।

(2) निर्वात विधि (Vaccine Method)- इस विधि में बिजली के विशेष पंखो निर्वातक पंखा (Exhaust Fan) द्वारा कमरे की अशुद्ध वायु को जबरदस्ती बाहर निकाला जाता है। जितनी  जल्दी गरम वायु निकलती हैं, उतनी हो शीघ्रता से शुद्ध वायु उसका स्थान लेतो रहता है। इस विधि का प्रयोग प्रयोगशालाओं, अस्पतालों, सिनेमा, सामूहिक सभा स्थानों पर किया जाता है।

(3) मिश्रित विधि (Mixed Method)- यह विधि प्लीनम विधि और निवांत विधि का मिला-जुला रूप हैं। इसमें बिजली के साधारण छत के पंखों और निवांत पंखों का प्रयोग एक साथ, एक स्थान पर किया जाता है। निर्वात पंखे दूषित वायु को बाहर फेंकते हैं और छत के पंखे वायु की गति प्रदान कर वायु को शीतल बनाते हैं।

(4) वातानुकूलन विधि (Air Conditioning Method)— संवातन की यह अत्यधिक मंहगी विधि हैं। इसके लिए विशेष प्रकार के पंखों का प्रयोग किया जाता है जिसमें बाहर की वायु छनकर, स्वच्छ और उचित ताप व नमीयुक्त हो जाती है। फिर इसे शीतल, स्वच्छ तथा स्वसन क्रिया योग्य बनाकर कमरे में धकेल दिया जाता है। कमरे की दूषित वायु को भी यहां यन्त्र एकत्र करने का कार्य भी करता है। पुनः उसका शुद्धीकरण करता है और कमरे में प्रवाहित कर देता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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