शिक्षाशास्त्र / Education

भारत में दूरस्थ शिक्षा का विकास एवं वृद्धि । वर्तमान भारत में दूरवत्ती शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व

भारत में दूरस्थ शिक्षा का विकास एवं वृद्धि । वर्तमान भारत में दूरवत्ती शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व

भारत में दूरस्थ शिक्षा का विकास एवं वृद्धि

दूरवर्ती शिक्षा आज के युग में एक साधन बनकर के उभर रही है, जिसके कारण समाज का सशक्त प्रारूप निर्माण एवं सवरधन निर्भर करता है। विकास पथ अवलोकित करने एवं नई सामाजिक चेतना का अभिन्न घटक हैं-दूरस्थ शिक्षा प्रणाली। ऐसे लोग जो दूर भारत के गाँवों, पहाड़ों, विहंगम टापू इत्यादि में रहते हैं उनको शैक्षिणक सुविधाऐं प्रदान करना एवं अभावों में शिक्षा ज्योति को उद्दीत्त करने का कार्य कर रही है दूरवर्ती शिक्षा।

इन विशेषताओं के आधार पर- दूरवर्ती शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए कुलश्रेष्ठ एवं रावत ने कहा है कि, “दूरवर्ती शिक्षा, एक ऐसी सुगठित व व्यवस्थित प्रणाली है, जिससे शिक्षक और छात्रों में कितनी भी भौतिक दूरी क्यों न हों, शैक्षिक तकनीकी में मुद्रित/अमुद्रित माध्यमों का प्रयोग करते हुए शिक्षा के लिए छात्रों तक रोचक, बोधगम्य तथा वैज्ञानिक विधियों के द्वारा पूर्व परिचित तथा विशिष्ट उद्देश्यों के अनुरूप शिक्षा प्रदान करने में अपना योगदान देती है। दूरवर्ती शिक्षा स्व-अनुदेशन के सिद्धांत पर आधारित, अन्तरप्रेरणा जागृत कर छात्रों को उनकी योग्यता, स्तर तथा आवश्यकताओं के अनुरूप उनकी गति एवं क्षमता के अनुसार, व्यावसायिक या अव्यावसायिक विषयो का शिक्षण देती है और उनके जीवन के लिए इस शिक्षण के द्वारा एक नयी रोशनी, तथा प्रकाश एवं नवीन परिवर्तन लाने में सफल होती है।”

वर्तमान भारत में दूरवत्ती शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व

आज के युग में दूरवर्ती शिक्षा दिन प्रतिदिन एक महत्वपूर्ण शिक्षा के साधन के रूप में विकास के पथ पर अग्रसर है । निम्नांकित बिन्दु दूरवर्ती शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व के विशेष परिचालक बिन्दु हैं।

  1. ऐसे लोग जो दूर दराज के गाँवों में वन्य तथा पहाड़ी प्रदेशों में रहते है और जहां शैक्षिक सुविधाओं का अभाव है या वे बहुत सीमित मात्रा में हैं, वहां दूरवर्ती शिक्षा की ज्योति फैलाने का एक शक्तिशाली साधन है।
  2. दूरवर्ती शिक्षा ऐसे लोगों के लिए भी वरदान है जो अपनी शिक्षार्थ अन्यत्र जाने में पूर्णतया असमर्थ हैं।
  3. जो लोग जीवन में किसी कारणवश जीविकोपार्जन के लिए नौकरी-धन्धे में लग जाते हैं और औपचारिक शिक्षा से वंचित रहते है।
  4. दूरवर्ती शिक्षा निरक्षर किसानों, मजदूरों, गृहणियों तथा विकलांग व्यक्तियों आदि के लिए भी महत्वपूर्ण है जो औपचारिक विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ है।
  5. अतः कहा जा सकता है कि दूरवर्ती शिक्षा आधुनिक युग में सभी के लिए, सभी स्तरों पर तथा सभी क्षेत्रों में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो रही है। यह नव साक्षरों के लिए, नव युवकों के लिए तथा प्रौढ़ों के लिए आज आकर्षण एवं उपादेयता का केन्द्र बन गयी है। दूरवर्ती

शिक्षा अब औपचारिक शिक्षा की तुलना में ज्यादा व्यावहारिक, महत्वपूर्ण तथा साथिक होती जा रही है, भारत जैसे जनतंत्र में आज दूरवर्ती शिक्षा के गमन के लिये यह एक अनिवार्यता बन चुकी है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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