1917 की रूसी क्रान्ति का महत्व

1917 की रूसी क्रान्ति का महत्व | 1917 की रूसी क्रान्ति की परिभाषा

1917 की रूसी क्रान्ति का महत्व | 1917 की रूसी क्रान्ति की परिभाषा

1917 की रूसी क्रान्ति का महत्व

1917 की रूसी क्रान्ति आधुनिक यूरोप के इतिहास की एक युगान्तरकारी घटना मानी जाती है। इसके फलस्वरूप विश्व में पहली बार मार्क्सवादी सिद्धान्तों पर आधारित सरकार बनी जिसने रूस की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन किये। इस क्रान्ति का केवल रूस पर ही नहीं, अपितु विश्व के अधिकांश देशों पर भी क्रान्तिकारी प्रभाव पड़ा। 1917 की रूसी क्रान्ति के निम्नलिखित परिणाम हुए-

(1) जारशाही का अन्त-

1917 की रूसी क्रान्ति के परिणाम स्वरूप रूस में जारशाही का अन्त हुआ। 1918 में जार तथा उसके परिवार के सदस्यों का वध कर दिया गया। इस प्रकार रूस ने 300 वर्षों से चले आ रहे रोनोनाव वंश के शासन की समाप्ति हुई। जारशाही के निरंकुश शासन से रूसियों को मुक्ति प्राप्त हुई।

(2) पूंजीवाद व्यवस्था का अन्त-

1917 की क्रान्ति के परिणामस्वरूप रूस में पूँजीवादी व्यवस्था समाप्त हो गयी। प्रमुख उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया तथा जमीदारों की जमीनें छीनकर उन्हें किसानों में बाँट दिया गया। देश के उत्पादन तथा वितरण के समस्त साधनों पर सरकार का नियन्त्रण स्थापित हो गया। निजी लाभ की भावना समाप्त कर दी गई।

(3) जमींदारों तथा सामन्तों के अत्याचारों से किसानों को मुक्ति-

1917 की रूसी क्रान्ति ने जमीदारों तथा पूँजीपतियों का उन्मूलन कर दिया। अब किसानों तथा मजदूरों को जमींदारों, कुलीनों आदि के अत्याचारों से मुक्ति मिली। इस क्रान्ति के बाद उन्हें अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई तथा उनकी दशा में महत्वपूर्ण सुधार हुए।

(4) सर्वहारा वर्ग की सरकार की स्थापना-

1917 की क्रान्ति के फलस्वरूप रूप में वुर्जुवा शासन की समाप्ति हुई तथा सर्वहारा वर्ग की स्थापना हुई। इस क्रान्ति के फलस्वरूप विश्व में पहली बार मार्क्सवादी सिद्धान्तों पर आधारित सर्वहारा वर्ग की सरकार बनी जिसने रूस की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिया।

(5) रूस पर प्रभाव-

1917 की रूसी क्रान्ति के फलस्वरूप रूस में सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। कृषि उद्योग एवं व्यापार की अत्यधिक उन्नति हुई। शिक्षा के क्षेत्र में बहुत उन्नति हुई। उच्च शिक्षा का प्रसार हुआ। 1941 तक रूस की 90 प्रतिशत जनता साक्षर हो गई थी। इसकी सैन्य शक्ति में भी अत्यधिक वृद्धि हुई। जो रूस 1904-05 में जापान जैसे देश से पराजित हो गया था, उसी रूस ने द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी को पराजित करके अपनी उत्कृष्ट सैन्य शक्ति का परिचय दिया। स्त्रियों की दशा में भी काफी सुधार हुआ। उन्होंने शैक्षणिक, प्रशासनिक सांस्कृतिक आदि सभी क्षेत्रों में भी काफी सुधार हुआ। उन्होंने शैक्षणिक, प्रशासनिक, सांस्कृति आदि सभी क्षेत्रों में भाग लेना शुरू कर दिया। उन्होंने उच्च पदों पर नियुक्त होकर अपनी योग्यता का परिचय दिया। धार्मिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। चर्च को राज्य से पूर्णतः पृथक कर दिया गया तथा उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली गई।

(6) गृह युद्ध

रूसी क्रान्ति के फलस्वरूप देशको भीषण गृह युद्धका भी सामना करना पड़ा। 1917 में बोल्शेविकों तथा मेन्शेविकों के बीच गृह युद्ध छिड़ गया। कुछ पूजीवादी देशों ने भी क्रान्ति-विरोधी तत्वों का साथ दिया। इस गृह-युद्ध में धन-जन की भीषणहानि हुई तथा लाखों रूसियों को मौत के मुँह में जाना पड़ा। अन्त में इस गृह युद्ध में बोल्शेविक दल की विजय हुई और रूस में उसकी स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ हो गई।

(7) समाजवादी धारा का प्रसार-

1917 की रूसी क्रन्ति ने समाजवादी विचारधारा का प्रसार किया। आधुनिक विश्व के इतिहास में पहली बार रूस में साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई। समाजवादी विचारधारा का प्रसार अन्य देशों में भी हुआ। जिसके फलस्वरूप, पोलैण्ड हंगरी, रूमानिया, युगोस्लाविया, बल्गारिया, चेकोस्लोवाकिग, क्यूबा, वियतनाम, चीन आदि अनेक देशों में साम्यवादी सरकारों की स्थापना हुई। परन्तु 1990 के पश्चात् रूस तथा अनेक पूर्वी यूरोपीय देशों में साम्यवादी सरकारों का पतन हो चुका है।

(8) अधिनायक वाद का उदय-

सभी क्रान्ति के फलस्वरूप यूरोप के अनेक देशों में अधिनायकवाद का उदय हुआ। जर्मनी में नाजीवाद तथा इटली में फासिस्टवाद का उदय हुआ। जर्मनी में हिटलर ने तथा इटली में मुसोलिनी ने अपना अधिनायक तन्त्र स्थापित किया।

(9) गुटबन्दी को प्रोत्साहन-

1917 की बोल्शेविक क्रान्ति के फलस्वरूप विश्व में पूँजीवादी तथा साम्यवादी गुटों की स्थापना हुई। साम्यवादी गुट का नेता सोवियत रूस तथा पूँजीवादी गुट का नेता अमेरिका था। दोनों गुट एक दूसरे के प्रभाव को नष्ट करने के लिए भरसक प्रयल करने लगे जिसके फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में तनाव उत्पन्न हुआ।

(10) राष्ट्रीय आन्दोलनों को प्रोत्साहन-

1917 की रूसी क्रान्ति से साम्राज्यवाद को आघात पहुँचा। रूसी क्रान्ति के नेताओं ने साम्राज्यवाद का घोर विरोध किया और स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष करने वाले राष्ट्रीय आन्दोलनों का समर्थन किया। अतः एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों में साम्राज्यवादियों के चंगुल से मुक्ति पाने के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन उठ खड़े हुए।

डा. एम.एल. शर्मा लिखते हैं कि “नवम्बर 1917 की क्रान्ति जिसे बोल्शेविक क्रान्ति भी कहा जाता है, विश्व इतिहास में अनूठी क्रान्ति थी जिसने रूस में नवीन समाजवादी ढाँचा स्थापित किया। इस क्रान्ति के फलस्वरूप विश्व में पहली बार मार्क्सवादी सिद्धान्त पर आधारित सर्वहारा वर्ग की सरकार बनी जिसने रूस की काया-पलट कर दी। इस क्रान्ति में विश्व भर में साम्यवादी विचारों का प्रचार किया । क्रान्ति से न केवल जारों का निरंकुश शासन सदा के लिए खत्म हो गया, बल्कि रूस में आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में पूँजीपति और कुलीन वर्गों का प्रभाव भी समाप्त कर दिया गया। समग्र विश्व में रूस ही पहला देश था, जहाँ सर्वसाधारण किसान और मजदूर जनता की शासन सत्ता स्थापित हुई।”

प्रो. देवेन्द्र सिंह चौहान लिखते हैं “बोल्शेविक क्रान्ति एक युगान्तरकारी घटना थी जिसका प्रभाव केवल रूस के इतिहास तक सीमित नहीं था। मनुष्य जाति के इतिहास में 7 नवम्बर, 1917 का दिन एक महान एवं अविनाशी सीमा चिन्ह के रूप में विद्यमान है। इसी क्रान्ति के फलस्वरूप रूस की प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो गया और वह विश्व की एक महान् शक्ति बन गया।

प्रो. मनाजिर अहमद एवं प्रो. सभ्रवाल लिखते हैं कि “रूस की बोल्शेविक क्रान्ति (1917) विश्व के इतिहास की एक अति महत्वपूर्ण घटना थी। इसने सारे विश्व की आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था को झकझोर दिया। रूस में इस क्रान्ति के द्वारा कार्ल मावर्स की हिंसा द्वारा सर्वहारा वर्ग का अधिनायकवाद लाने के विचारों को क्रियात्मक रूप दिया गया था। रूस विश्व में साम्यवादी आन्दोलन का नेता बन गया। इसी व्यवस्था के माध्यम से शीघ्र ही यह देश एक समृद्ध देश बन गया और आज भी इसका विश्व की राजनीति में अपना एक विशेष महत्व है।

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