इतिहास / History

बॉक्सर आंदोलन | चीन में राष्ट्रवाद के उदय में बाक्सर आन्दोलन की भूमिका | बॉक्सर आंदोलन के कारण | बॉक्सर आंदोलन के परिणाम | बॉक्सर-विद्रोह का दमन | बॉक्सर समझौता

बॉक्सर आंदोलन | चीन में राष्ट्रवाद के उदय में बाक्सर आन्दोलन की भूमिका | बॉक्सर आंदोलन के कारण | बॉक्सर आंदोलन के परिणाम | बॉक्सर-विद्रोह का दमन | बॉक्सर समझौता

बॉक्सर आंदोलन

साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा चीन का बंटवारा करने की साजिश से उत्पन्न गंभीर संकट का सामना करने के लिए देश के किसानों ने 1890-1900 में एक व्यापक साम्राज्यवाद विरेधी देशभक्तिपूर्ण आंदोलन चलाया, जिसे ई-हो श्वान आंदोलन कहा जाता है। इस आंदोलन को विदेशी लोग बॉक्सर-विद्रोह कहते थे क्योंकि इसके सदस्य बॉक्सिग से मिलते-जुलते एक शारीरिक प्रशिक्षण का अभ्यास भी करते थे। इस आंदोलन के दौरान युवतियों एवं लड़कियों ने भी लाल कंदील नामक एक गुप्त संगठन बनाकर संघर्ष में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1900 ई० में आठ साम्राज्यवादी देशों (ब्रिटेन, अमेरिका, जापान, रूस, जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रिया हंगरी और इटली) की एक संयुक्त सैन्य शक्ति ने चीन पर हमला कर दिया और चीनी जनता को बड़ी बेरहमी से मारा और लुट-खसोट की। छिग सरकार ने हमलावरों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। बाक्सर आंदोलन असफल रहा। फिर भी, चीनी जनता के इस वीरतापूर्ण संघर्ष की कम-से-कम यह उपलब्धि जरूर रही कि उसने देश का बंटवारा करने की साम्राज्यवादियों की साजिश को नाकाम कर दिया ।

बॉक्सर आंदोलन के कारण

1860 ई. के बाद चीन में पश्चिमी शक्तियों ने लूट-खसोट की जबर्दस्त होड आरंभ कर दी। चीन के साथ पाश्चात्य देशों की असमान संधियों हुई और चीन में विदेशियों को कई विशेषाधिकार प्राप्त हुए। आयात-निर्यात मालों पर कितना कर लगाया जाए, इसका निर्णय चीनी सरकार नहीं कर सकती थी।

पाश्चात्य देशों को चीन में काफी विशेषाधिकार मिले थे। चीन के लोगों की दृष्टि में ये विशेषाधिकार अनुचित थे; क्योंकि पश्चिम के किसी भी देश में इस तरह के अधिकार चीन के नागरिकों को प्राप्त नहीं थे। चीनी नागरिकों के साथ वे इतना बुरा व्यावहार करते मानों चीनी लोग किसी अधीनस्थ देश में निवास करते थे।

ईसाई मिशनरियों द्वारा चीन का धार्मिक शोषण शुरू हो गया था। ईसाई मिशनरियों को अधिकार मिला था कि चीन के लोगों की धार्मिक भावनाओं को कुचलते हुए वे कहीं भी जाकर धर्म-प्रचार करें। 1894 ई० में चीन-जापान युद्ध हुआ और चीन की हार हुई। साम्राज्यवादी राज्यों द्वारा चीन का शोषण और भी तेज गति से किया जाने लगा। 1895 ई० में चीन पर रूस का प्रभाव निरंतर बढ़ता गया। चीन-जापान युद्ध के बाद चीन को कर्ज देने में फ्रांस ने रूस का साथ दिया था। फलतः फ्रांस को भी चीन के कुछ बंदरगाहों को उपयोग करने की सुविधा प्राप्त हुई।

1897 ई० में शांतुंग प्रदेश में दो जर्मन पादरियों की हत्या हो गई। उसकी सेना ने आक्रमण कर चीन के कुछ प्रदेशों पर कब्जा कर लिया। चीनी सरकार को जर्मन सरकार द्वारा प्रस्तुत की गई सभी शर्तों को मानना पड़ा। चीन से और अधिक सुविधा प्राप्त करने के लिए 1897 ई० में रूस ने पोर्ट आर्थर और तेलीनवान पर कब्जा कर लिया। ब्रिटेन ने अपने हित को ध्यान में रखते हुए वर्मा-चौन रेखा को ठीक करवाया और ब्रिटिश नागरिक को ही चुंगी अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार भी चीन से प्राप्त किया। इस तरह चीन में यूरोपीय राज्यों के अपने-अपने पृषक प्रभाव क्षेत्र कायम हो गए। चीन की संप्रभुता समाप्त सी होने लगी थी।

चीन में खुले दरवाजे की नीति का प्रतिपादन अमेरिका ने किया। अन्य देशों की तरह अमेरिका चीन के आंतरिक मामले में खुलकर हस्तक्षेप करना नहीं चाहता था। अमेरिका चाहता था कि सभी विदेशियों को चीन के साथ व्यापार करने को सुविधा मिले और किसी भी देश को चीन में विशेष छूट नहीं मिले। आपसी संघर्ष से बचने के लिए पश्चिमी देशों ने अमेरिका के प्रस्ताव को मान लिया। चीन को लूट में अब अमेरिका को भी हिस्सा बंटाने का सुअवसर मिला।

विदेशियों की उपर्युक्त कार्रवाइयों से चीन की जनता काफी असंतुष्ट यो। उनमें राष्ट्रीयता की भावना बढ़ने लगी। विदेशियों को बाहर निकालने के प्रयास चीनियों द्वारा किए जाने लगे। ईसाई पादरियों के गिरजाघर, विदेशियों द्वारा निर्मित रेल की लाइनें और विदेशी बैंक एवं कंपनियां चीन के लोगों की आंखों में काटे की तरह चुभती । 1899 ई० में बॉक्सर दल के क्रांतिकारियों ने विदेशियों पर छिटपुट हमले शुरू किए। उन्होंने अपना शिकार सर्वप्रथम ईसाई पादरियों को बनाया। कंपनी के ठेकेदारों और इंजीनियरों पर हमले किए गए। सैकड़ों विदेशी मार डाले गए। विदेशी राजदूतों में खलबली मच गई।

पेंकिंग के सामंती शासकों ने बॉक्सर आंदोलनकारियों का साथ देने का स्वांग रचा और भीतर-ही-भीतर साम्राज्यवादी ताकतों से डरते रहे। अपने सैनिकों को पश्चिमी शक्तियों के पक्ष से देशभक्त बॉक्सर आंदोलनकारियों के विरुद्ध वे प्रयोग करने के लिए तैयार थे। चीन को आंत्रिक अनेकता से फायदा उठाकर आक्रमणकारियों ने एक मजबूत सैन्य शक्ति जुटाकर जिसमें बिटेन, अमेरिका, जर्मनी, रूस, फ्रांस, जापान, इटली और ऑस्ट्रिया-हंगरी की टुकड़ियां शामिल थी, पेकिंग पर धावा बोल दिया। खूब लूटमार और कत्लेआम किया गया। वील ने शहर के हर मकान में की गई लूटमार का सजीव वर्णन करते हुए कहा कि विदेशी सैनिक ‘लुटेरों का एक बेंअंत जुलूस’ थे। जिन गांवों को बॉक्सर योद्धाओं ने अपने मुख्य अड्डों के रूप में इस्तेमाल किया या जहाँ से धियार बरामद हुए, उन्हें पश्चिमी सैनिकों द्वारा भस्म कर दिया गया और उनके निवासियों को जान से मार दिया या भगा दिया गया। इस तरह, बॉक्सर आंदोलन कुचल दिया गया।

बॉक्सर आंदोलन के परिणाम

चीनी लोगों का विदेशियों के विरुद्ध प्रथम विद्रोह समाप्त हो गया। बॉक्सर आंदोलन असफल रहा। अपनी सैनिक शक्ति की बदौलत पाश्चात्य देश चीन में अपने प्रभाव और विशेषाधिकार को कायम रखने में सफल रहे। आंदोलन की समाप्ति पर 7 सितंबर, 1901 को एक समझौता हुआ जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

राजतंत्रवादी शासन अंत में साम्राज्यवादी विजेताओं के इशारे पर नाचनेवाला एजेंटमात्र रह गया। अंतरराष्ट्रीय व्यवहार में उन्होनें छिग शासकों को मजबूर किया कि “उन शहरों में सरकारी परीक्षाएं पांच वर्ष के लिए बंद करा दें जहाँ विदेशियों की हत्या की गई थी अथवा उनके साथ कठोर बर्ताव किया गया था तथा एक ऐसा आदेश जारी करें जिसके जरिए “विदेशी-विरोधी संगठनों की सदस्यता के लिए मृत्युदंड का ऐलान करके उस पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगा दिया जाए”।

50 करोड़ अमेरिकी डालर का अबतक का सबसे बड़ा हर्जाना न सिर्फ मुख्य शक्तियों को बल्कि इटली, नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, स्पेन, पुर्तगाल और स्केण्डिनेविया के देशों को भी चुकाया जाना था। उसे 1901 से 1940 ई. तक किश्तों में चुकाना निश्चित हुआ।

दस शक्तियों ने चीन की राजधानी पेकिंग के एक इलाके में, जहाँ “चीनियों को आवास का अधिकार नहीं था”, अपने ‘दूतावासों की रक्षा के लिए’ सैनिक तैनात करने का अधिकार प्राप्त कर लिया।

पेकिंग से समद्रतट तक जानेवाले समुचे रेलमार्ग पर भी विदेशी सैनिकों को तैनात कर दिया गया। फलस्वरूप, कई देशों ने पैकिंग, ध्येनचिन और शांगहाए में आगमी 40 वर्षों तक अपने अधिकार कायम रखे।

इन सब कार्यवाहियों का एक मकसद साररूप में धारा ग्यारह में जाहिर हुआ, जिसमें कहा गया था “चीन सरकार वाणिज्य और नौ परिवहन संधियों तथा वाणिज्यिक संबंधों से ताल्लुक रखनेवाले अन्य विषयों के बारे में विदेशी सरकारों द्वारा उपयोगी समझे जानेवाले संशोधन करने के लिए समझौता वार्ता कर रही है, जिसमें उनपर अमल करना आसान हो जाए।”

विदेशी शक्तियों ने इस तरह चीन पर अपमानजनक सन्धि लाद दी । चीन में विदेशी राज्यों का प्रभाव बहुत बढ़ गया । पेकिंग में विदेशी सेना रहने लगी। चीन में स्थिति विविध राजदूतों द्वारा चीनी सरकार के साथ पूर्ण असमानता का व्यवहार किया जाने लगा। वे समझते कि चीन उनके सम्मुख असहाय है। चीन एक स्वतंत्र राज्य न रहकर यूरोपीय राज्यों का एक अधीनस्थ राज्य की तरह हो गया।

बॉक्सर आंदोलन के साथ विश्वासघात किया गया। उसने भी साम्राज्यवादी शक्तियों को सबक सिखा दिया। हालांकि चीन पुनः एक बार पराजित और अपमानित हो गया, फिर भी इस बार देश का आसानी से विभाजन करने की चर्चा पहले की तुलना में कम हुई। विभिन्न शक्तियों की प्रतिस्पर्धी में, जो यह फैसला नहीं कर पा रही थी कि इस केक को कैसे काटा जाए, एक नया तत्व जुड़ गया। वह तत्व था इस बात का भय कि यदि जनता को बहुत ज्यादा उकसाया गया तो उसका प्रतिरोध न जाने किस हद तक पहुंच जाए।

सामंती शासकों ने विदेशी साम्राज्यवादियों को माफ कर दिया। क्योंकि उन्हें वे अपने देश की जनता के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहते थे। दूसरी तरफ, विदेशी शक्तियों ने भी चीन के प्रतिक्रियावादी शासकों को, उनके द्वारा युद्ध की घोषणा के बावजूद माफ कर दिया; क्योंकि वे साम्राज्यवाद के लिए अपरिहार्य बन गए थे। चूंकि जन-आंदोलन को धोखा देने और छिन्न-भिन्न करने की उनकी क्षमता साबित हो चुकी थी, इसलिए उन्हें पहले से कहीं अधिक मूल्यवान पहरा देनेवाला कुत्ता समझा जाने लगा।

बॉक्सर-विद्रोह का दमन

विदेशी सेनाओं द्वारा बॉक्सर विद्रोह को दबाने का प्रबल प्रयास किया गया। उन्होंने एक संयुक्त सेना संठित की। इसमें रूस, जापान, अमेरिका और ब्रिटेन की सेनाएँ शामिल थी। बॉक्सर-विद्रोहियों का मुख्य गढ़ तितसिन था । तितसिन पर संयुक्त सेना ने आक्रमण किया। एक खूनी युद्ध के पश्चात् विदेशी सैनिकों का तितसिन पर अधिकार हो गया। इस युद्ध में करीब 15,000 चीनी मारे गए। लगभग 800 विदेशी सैनिक घायल हुए। तिंतसिन को विजित करने के पश्चात् संयुक्त सेना ने राजधानी पेंकिंग पहुँचकर 12 अगस्त, 1900 को वहाँ को किलाबंदी तोड़ दी और शहर को काफी लूटा। विदेशी दूतावास को मुक्त करा लिया गया। राजमाता त्जुशी राजधानी से भागकर सिआन चली गई। इस कमजोर स्थिति में चीन को विदेशियों के साथ सन्धि करनी पड़ी। बॉक्सर-विद्रोह दब गया।

विद्रोह की असफलता

अपरिमित शक्ति के बावजूद बॉक्सर-विद्रोह असफल रहा। यह विद्रोह काफी तेज गति से शुरू हुआ और उसी गति में दबा भी दिया गया। इसका सबसे प्रमुख कारण चीनियों के बीच एकता का अभाव था। संपूर्ण चीनी जनता का सहयोग प्राप्त करने में इस विद्रोह के नेता असफल रहे। चीन के कई प्रांतों के सूबेदारों ने निजी थिवश विदेशियों का साथ दिया । कई सूबेदार तटस्थ बने रहे। मंच शासन के बड़े-बड़े अधिकारी बॉक्सर-विद्रोह के विरोध में सदा कार्यरत रहे। कई अधिकारियों का मानना था कि विदेशियों को परास्त करना संभव नहीं। कैंटन के गवर्नर ली-हुंग-चांग, शांतुंग के गवर्नर यूआन-शीह-काई, हूनान तथा हूपेह के वायसराय चांग-चेह-तुंग, पेकिग के अधिकारी रूंग-लू आदि का ऐसा ही मानना था। राजमाता सम्राज्ञी त्जुशी भी विद्रोहियों का साथ नहीं देने के पक्ष में रहीं।

मंचू शासन अवसरवादी बना रहा। जब तक बॉक्सर विद्रोह के कार्यकर्ताओं का पलड़ा भारी रहा मंचू शासन ने उसका साथ दिया, किंतु विदेशी सेना के अने से जब विद्रोहियों की स्थिति कमजोर हुई तब मंचू सरकार विदेशियों के साथ मिल गई। विदेशियों के पक्ष में होकर मंचू सरकार ने जनता को सावधान किया कि बॉक्सर विद्रोहियों का वह साथ न दें और विद्रोहियों को कुचलने में मंचू सरकार का साथ दें। मंचू सरकार विदेशी शक्तियों के दबाव में थी और बॉक्सर विद्रोह के विरुद्ध कार्रवाई करने को विवश थी। उपर्युकत कारणोंवश विद्रोह दबा दिया गया।

बॉक्सर समझौता

चीन में मंचू शासन को समाप्त करने का बॉक्सर विद्रोह ने एक अनुकूल वातावरण प्रदान किया, किन्तु विदेशियों की लोभ-लालच की नीति से चीन के मंचू शासन की रक्षा हो गई। बॉक्सरों की हार हो गई। पेकिंग पर अंतरराष्ट्रीय सेना का अधिकार हो गया। विदेशी शक्तियों ने चीन में अपनी भावी सुरक्षा एवं व्यवस्था को ध्यान में रखकर एक व्यापक कार्यक्रम आरंभ किया। दिसंबर, 1904 में शांति समझौते की व्यवस्था की गई। चीन को लूटने के प्रश्न पर विदेशी राष्ट्रों के बीच काफी मतभेद थे। अतः, समझौता का प्रारूप काफी वाद-विवाद के बाद तैयार हुआ।

बॉक्सर-विद्रोह के समय क्रांतिकारियों ने चीनी पूर्वी रेलवे पर आक्रमण कर मुकदेन एवं त्सित्सीहार से रूसियों को निकाल दिया था। कुछ रूसी इलाकों पर विद्रोहियों ने अधिकार कर लिया था। इस हार का बदला लेने के लिए रूस ने संपूर्ण मंचूरिया पर अधिकार कर लेने की योजना बना ली। अक्टूबर, 1900 में मंचूरिया रूसी सेना से भर गया। मंचूरिया में नियुक्त चीनी गवर्नर को रूस के पक्ष में एक समझौता करना पड़ा। मंचूरिया को अब रूसी प्रभाव-क्षेत्र मान लिया गया। अन्य यूरोपीय देशों ने रूस की नीति का विरोध किया। जापान की सरकार ने यूरोपीय देशों से अनुरोध किया कि वे मंचूरिया पर रूस द्वारा किए गए कब्जे का विरोध करें। रूस के विरुद्ध सभी राष्ट्रों ने निर्णय लिया कि चीन की प्रादेशिक अखंडता समाप्त नहीं होनी चाहिए। इसके साथ-साथ इनका इरादा चीन से काफी धन ऐंठना भी था। उपर्युक्त सभी बातों को ध्यान में रखते हुए चीन के साथ समझौते का एक मसुविदा तैयार हुआ जिस पर 7 सितंबर, 1901 को सभी राष्ट्रों ने हस्ताक्षर किए। इस समझौते (बॉक्सर प्रोटोकल) के परिणामस्वरूप राजतंत्रवादी शासन अंत में साम्राज्यवादी विजेताओं के इशारे पर नाचनेवाला एजेंटमात्र रह गया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मामलों में प्रावधानों के जरिए मंचूशाही को अपने ही अनेक ऐसे अफसरों को कत्ल करने या आत्महत्या के लिए मजबूर करने का दायित्व सौंपा जो युद्ध में ईमानदारी से लड़े थे। विदेशी राष्ट्रों ने मंचू शासकों को इस बात के लिए भी मजबूर किया कि “उन शहरों में सरकारी (शाही अफसरों के चयन के लिए होनेवाली) परीक्षाएँ पाँच वर्ष के लिए बंद करा दें जहाँ विदेशियों की हत्या की गई थी अथवा उनके साथ कठोर बर्ताव किया गया था” तथा एक ऐसा फरमान जारी करें जिसके जरिए ‘विदेशी-विरोधी संगठनों की सदस्यता के लिए मृत्युदंड का ऐलान करके उस पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगा दिया जाए।”

50 करोड़ अमेरिकी डालर का अबतक का सबसे बड़ा हर्जाना न सिर्फ मुख्य शक्तियों को बल्कि इटली, नीदरलैण्ड, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, सेन, पुर्तगाल और स्कैण्डिनेविया के देशों को भी चुकाया जाना था। उसे 1901 से 1940 ई० तक किश्तों में चुकाना निश्चित हुआ था।

दस शक्तियों ने चीन की राजधानी पेकिंग के एक इलाके में जहां “चीनियों को आवास का अधिकार नहीं था।” अपने ‘दूतावासों की रक्षा के लिए’ सैनिक तैनात करने का अधिकार प्राप्त कर लिया।

पेकिंग से समुद्रतट तक जानेवाले समूचे रेलमार्ग पर भी विदेशी सैनिकों को तैनात कर दिया गया। परिणामस्वरूप, कई देशों ने पेकिंग, शंघाई और थ्येनचिन में आगामी 40 वर्षों तक अपने आधिपत्य कायम रखें।

इन सब कार्यवाहियों का एक मकसद साररूप में धारा 11 में जाहिर हुआ, जिसमें कहा गया था-“चीन सरकार वाणिज्य और नौ परिवहन, संधियों तथा वाणिज्यिक संबंधों में ताल्लुक रखनेवाले अन्य विषयों के बारे में विदेशी सरकारों द्वारा उपयोगी समझे जानेवाले संशोधन करने के लिए समझौता-वार्ता कर रही है, जिससे उनपर अमल करना आसान हो जाए।”

अप्रैल, 1902 में रूस और चीन के बीच एक संधि हुई और धीरे-धीरे मंचूरिया से सेना हटा लेने का रूस ने वादा किया।

बॉक्सर-विद्रोह और समझौते का महत्व

बॉक्सर सन्धि से मंचू सम्राट की बेइज्जती हुई। पश्चिमी शक्तियों की स्थिति चीन में सुरक्षित हो गई। विदेशी शक्तियों को ही मंचू सरकार अपना स्वामी और संचालक मानने लगी। चीन की राजनीतिक स्वतंत्रता का अस्तित्व नाममात्र का रहा। मंचू सम्राटरूपी ‘रॉबोट का रिमोट कंट्रोल’ विदेशी शक्तियों के हाथ में रहा। बॉक्सर समझौता के बावजूद चीन का शोषण होता रहा।

बॉक्सर-विद्रोह का परिणाम कुछ लाभदायक भी रहा । चीन में सुधारों को आवश्यकता मंचू शासकों द्वारा महसूस की गई। विदेशी नियंत्रण से मुक्ति पाने के लिए चीन को जापान की तरह आधुनिक राज्य बनाने की आवश्यकता महसूस की गई । चीन में कई सुधार-योजनाएं बनीं।

चीन के राजनीतिक भविष्य पर बॉक्सर-विद्रोह का दूरगामी प्रभाव पड़ा। इसी विद्रोह ने 1911 ई. की क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार की। मंचूवंश के पूर्व गौरव को समाप्त करने और गणराज्य की स्थापना करने में इस विद्रोह की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही। वैसे, बॉक्सर विद्रोह के पास रचनात्मक कार्यक्रम का अभाव था यह विद्रोह बहुत हद तक प्रतिक्रियावादी था। इसी के साथ इस विद्रोह ने प्रमाणित किया कि जनता असंतुष्ट थी और विदेशी शक्तियों के नियंत्रण से निकलना चाहती थी। इस विद्रोह से पता चल सका कि चीन के लोग एकदम मुर्दा नहीं हो गए थे। राष्ट्रवाद की प्यास उनमें विद्यमान थी।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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