What is participatory research in Hindi

सहभागी अनुसंधान क्या है (What is participatory research in Hindi) सहभागी अनुसंधान के प्रकार

सहभागी अनुसंधान क्या है (What is participatory research in Hindi) सहभागी अनुसंधान के प्रकार

सहभागी अनुसंधान क्या है

सहभागी अनुसंधान तकनीक में एक मानवशास्त्री को उन लोगों के बीच जाकर सामाजिक सदस्य के रूप में रहना पड़ता है जिनका वह अध्ययन करना चाहता है। एक मानवशास्त्री को सहभागी अनुसंधान के प्रयोग हेतु सम्बन्ध स्थापन का सहारा लेना पड़ता है। वह अध्ययन समूह के बीच जाकर निवास स्थान की खोज करता है। वह अपने उद्देश्यों से लोगों को परिचित कराता है तथा जब एक अजनबी के रूप में अपने बारे में प्रचलित भ्रांतियां दूर हो जाती हैं, तब अनुसंधानकर्ता तथा अध्ययन समूह के सदस्यों के बीच सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। उस समाज के सदस्य अनुसंधानकर्ता को अपने समाज के सदस्य के रूप में स्वीकार कर लेते हैं।

सहभागी अनुसंधान के प्रकार

सहभागी अनुसंधान को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) पूर्ण सहभागी अनुसंधान

(2) अर्द्ध सहभागी अनुसंधान

(3) असहभागी अनुसंधान

उपरोक्त तीनों प्रकारों की व्याख्या करना आवश्यक प्रतीत होता है, जिससे आप लोगों के समझ में इन तीनों प्रकारों का वास्तविक अर्थ पता चल सके। अतः इन तीन प्रकारों का वर्णन अग्र लिखित प्रस्तुत किया जा रहा है-

  • पूर्ण सहभागी अनुसंधान

यह अनुसंधान वह अनुसंधान है जिसमें एक अनुसंधानकर्ता की पूर्ण भागीदारी रहती है मान लिया जाये कि एक अनुसंधान कर्ता किसी समाज में प्रचलित विवाह सम्बन्धी अनुष्ठानों का अध्ययन करना चाहता है तथा वह प्रारम्भ से अंत तक सभी प्रकार के अनुष्ठानों का अध्ययन अपनी सहभागिता के आधार पर करता है, तब उसका सहभागी अनुसंधान पूर्ण सहभागी अनुसंधान कहलाता है। लेकिन जब वह सभी प्रकार के अनुष्ठानों में अपनी सहभागिता न दर्शाकर कुछ महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में अपनी सहभागिता दर्शाता है, तब इस प्रकार के सहभागी अनुसंधान को अपूर्ण सहभागी अनुसंधान कहा जाता है।

  • अर्द्ध सहभागी अनुसंधान

इस प्रकार के अनुसंधान में एक अनुसंधान कर्ता की भागीदारी पूर्ण नहीं रहती है, बल्कि उसकी भागीदारी अर्द्ध होती है। इस प्रकार की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब एक सहभागी अनुसंधान कर्ता किसी कारणवश बीच में ही अपनी सहभागिता छोड़कर चला जाता है। बाद में बचे हुए तथ्यों की जानकारी वह उन लोगों से प्राप्त करता है जिनकी सहभागिता रहती है। इस प्रकार एक अनुसंधान कर्ता का अपना सहभागी अनुसंधान, अर्द्ध सहभागी अनुसंधान कहलाता है। आकस्मिक घटना, सामाजिक निषेध, दो अनुसंधान कर्ताओं द्वारा एक ही अध्ययन, बड़ी-बड़ी शोध परियोजनाओं में अर्द्ध सहभागी अनुसंधान तकनीक का सहारा लिया जाता है।

  • असहभगी अनुसंधान

असहभागी अनुसंधान वह अनुसंधान है जिसमें एक अनुसंधान कर्ता की सहभागिता नहीं होती है। अपने लक्ष्य पूर्ति हेतु एक अनुसंधान कर्ता उस व्यक्ति से सम्पर्क स्थापित

करता है तथा पूछताछ करता है जिसकी सहभागिता उस घटना से रहती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि एक सहभागी अनुसंधान कर्ता एक के लिए सूचना दाता का काम करता है। यही कारण है कि सहभागी अनुसंधान के गुण असहभागी अनुसंधान के दोष असहभागी अनुसंधान के गुण में बदल जाते हैं। जहाँ सहभागी अनुसंधान विफल हो जाता है वहाँ असहभागी अनुसंधान सफल होता है।

सहभागी अनुसंधान तकनीक के गुण – इन 21 गुणों के बारे में जाने (Properties of participatory research techniques in Hindi)

सहभागी अनुसंधान एवं प्रत्यक्ष अनुसंधान

छात्र हित में सहभागी अनुसंधान एवं प्रत्यक्ष अनुसंधान के बीच अंतर स्पष्ट करना आवश्यक है। सहभागी अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता की सहभागिता अध्ययन समूह के सदस्यों के साथ बनी रहती है। जमकी प्रत्यक्ष अनुसंधान में अध्ययन समूह तथा अनुसंधानकर्ता के बीच सहभागिता का अभाव पाया जाता है। एक सहभागी अनुसंधानकर्ता सहभागिता के साथ-साथ प्रत्यक्ष अनुसंधान भी करता है, लेकिन एक प्रत्यक्ष अनुसंधानकर्ता सहभागी अनुसंधान नहीं कर पाता है। इस प्रकार सभी सहभागी अनुसंधान प्रत्यक्ष अनुसंधान के उदाहरण हो सकते हैं, लेकिन सभी प्रत्यक्ष अनुसंधान सहभागी अनुसंधान नहीं हो सकते।

मानवशास्त्र में सहभागी अनुसंधान का प्रयोग

मानवशास्त्री अध्ययन में सहभागी अनुसंधान तकनीक का प्रयोग सर्वप्रथम ब्रिटिश मानवशास्त्री बी0 के0 मैलिनोवस्की द्वारा ट्रोब्रिएंड द्वीप वासियों के अध्ययन में किया गया था। मैलिनोवस्की प्रकार्यवाद सिद्धांत के जनक थे उन्होंने मानव जाति वर्णनशास्त्र में सहभागी अनुसंधान तकनीक का प्रमुख स्थान स्थापित कराने में सफलता प्राप्त की थी। मैलिनोवस्की ने लगातार चार वर्षों तक (1914-18) ट्रोब्रिएंड द्वीप वासियों के बीच उस समाज के सदस्य के रूप में रहकर सहभागी अनुसंधान तकनीक के माध्यम से अनुभवाश्रित तथ्यों का पता लगाया था। सहभागी अनुसंधान तकनीक के प्रयोग के आधार पर उन्होंने ट्रोब्रिएंड द्वीप वासियों की सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था के रूप में सूचनाओं का भण्डार स्थापित करने में सफलता पाई थी। सहभागी अनुसंधान तकनीक के प्रयोग के आधार पर उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया कि किस प्रकार ट्रोक्रिएंड द्वीप समाज समग्रता के रूप में कार्य करता है। ट्रोब्रिएंड द्वीप वासियों की संस्कृति, सामाजिक संगठन, अर्थव्यवस्था, राजनीति व्यवस्था इत्यादि के बारे में उन्होंने जो कुछ भी लिखा है वह उनके सहभागी अनुसंधान तकनीक से प्राप्त तथ्यों एवं अनुभवों पर आधारित है।

सहभागी अनुसंधान के दोष (sahbhagi anusandhan ke dosh)

मैलिनोवस्की के बाद मानवशास्त्र में सहभागी अनुसंधान तकनीक के माध्यम से क्षेत्र कार्य की परंपरा स्थापित हुई। आजकल सभी मानवशास्त्री मैलिनोवस्की द्वारा स्थापित इस परंपरा का पालन करते हैं । अतः सहभागी अनुसंधान तकनीक मानवशास्त्री शोध की आत्मा का रूप धारण कर चुकी है।

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